डॉ. संतोष कुमार तिवारी। 

मेरी  यह ई-पुस्तक Kindle App डाऊनलोड कर पढ़ी जा सकती है। 73 रुपये मूल्य की यह पुस्तक 26 मार्च को रात बारह बजे तक फ्री में उपलब्ध है।  https://a.co/0V9mAEM


 

श्री हनुमान प्रसाद पोद्दारजी का अनुभव

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इस ई-पुस्तक में श्री हनुमान प्रसाद पोद्दारजी (1892-1971) के जीवन की एक  अद्भुत ईश्वरीय घटना का जिक्र है। उन्होंने स्वयं लिखा है:

“सन् 1919 की बात है, मैं बंबई में रहता था। रात को अपने फूफा श्री लक्ष्मीचंदजी लोहिया के घर पर, जो बम्बई से कुछ दूर … शांताक्रूज स्टेशन के समीप पं शिवदत्तरायजी वकील के बंगले में रहते थे, जा कर खाया और सोया करता था। एक दिन की बात है। रतको करीब आठ बजे थे। कृष्णपक्ष की अंधेरी रात थी। मैं लोकल ट्रेन से जाकर शांताक्रूज के प्लेटफार्म पर उतरा। अब तो दोनों ओर स्टेशन है, उस समय एक ही ओर था। और रोशनी का प्रबंध भी नहीं था, न इंजन में सर्चलाइट थी। श्री शिवदत्तरायजी के बंगले में जाने के लिए रेलवे लाइन पार कर उस ओर जाना पड़ता था। मैंने बेवकूफी की। दौड़कर इंजन के सामने से लाइन पार करने लगा। लोकल ट्रेन एक-दो मिनट ही ठहरती थी। मैं नया था। मैंने समझा, गाड़ी छूटने से पहले ही मैं लाइन पार कर जाऊंगा। परन्तु ज्योंही मैंने लाइन पर पैर रखा, त्योंही गाड़ी छूट गई। ईश्वरीय प्रेरणा और और प्रबंध से उसी समय किसी अज्ञात पुरुष ने मेरा हाथ पकड़ कर ज़ोर से खींच लिया। मैं दूसरी लाइन पर जा कर गिर पड़ा। गाड़ी सर्राटे से निकल गई। तीन काम साथ हुए – मेरा लाइन पार कर जाना, गाड़ी का छूटना और किसी अज्ञात व्यक्ति द्वारा खींचा जाना। एक ही दो सेकंड के विलम्ब में मेरा शरीर चकनाचूर हो जाता। परंतु बचाने वाले प्रभु ने उस अंधेरी रात में उसी जगह पहले ही मुझे  बचाने का प्रबन्ध कर रखा था। मैं थर-थर काँप रहा था। ईश्वर की दयालुता पर मेरा हृदय गद्गद हो रहा था। आँखों से आँसू बह रहे थे। मैंने स्टेशन के धुंधले प्रकाश में देखा – एक नौजवान बोहरा मुस्लिम खड़ा हँस रहा है और बड़े प्रेम से कह रहा है – ‘आइंदा ऐसी गलती न करना। आज भगवान ने तुम्हारे प्राण बचाए।‘ मैंने मूक अभिवादन किया, कृतज्ञता प्रकट की। लाइन पर बिछे रोडों में जा गिरा था, परंतु दाहिने पैर में एक रोड़े के जरा-सा गड़ने के सिवा मुझे कहीं चोट नहीं आई। मैं दौड़ कर घर चला गया और ईश्वर को याद करने लगा।“

उपर्युक्त बात गीता प्रेस गोरखपुर की हिन्दी मासिक ‘कल्याण’ के ‘ईश्वरांक’ (सन् 1932) के पृष्ठ संख्या 612 से 615 के बीच पोद्दारजी ने लिखी। उन्होंने अपने तीन अनुभव लिखे। उनमें से एक को इस ई-पुस्तक में पाठकों से साझा किया गया है।

अन्य महात्माओं और विद्वानों के जीवन की घटनाएँ

इस ई-पुस्तक में उन लोगों के जीवन की अद्भुत घटनाओं के बारे में चर्चा है, जिनसे ईश्वर की सत्ता और दया में हमारा विश्वास बढ़ता है। इसमें जिनके जीवन की घटनाओं और विचारों  का जिक्र है, उनमें शामिल हैं: ‘कल्याण’ के आदि सम्पादक श्री हनुमान प्रसाद पोद्दारजी (1892-1971), रमण महर्षि (1879-1950), स्वामी चिदानन्दजी महाराज, गणितज्ञ रामानुजन् (1887-1920), आनन्दमयी माँ (1896-1982), श्री अरविन्द (1872-1950), स्वामी चिदानन्दजी महाराज, श्रीनारायण स्वामीजी, पं. गोपीनाथजी कविराज (1888-1976), महात्मा गांधी (1869-1948), डॉ. मुहम्मद हाफ़िज़ सैय्यद, श्री रियाज अहमद अन्सारी, आदि। इस पुस्तक के अन्त में इस ई-पुस्तक के कुछ मित्रों और उनके अपने जीवन की घटनाएँ भी शामिल हैं।

इस ई-पुस्तक में लेखक की पत्नी श्रीमती रजनी तिवारी के जीवन की भी एक घटना शामिल है। इसमें लेखक ने अपने जिन मित्रों के अनुभव मैंने साझा किए हैं उनमें शामिल हैं: प्रोफेसर जी.डी. शर्मा (मेघालय), प्रोफेसर जी.डी. भट्ट (दिल्ली), प्रोफेसर विनोद पांडे (अहमदाबाद), प्रोफेसर प्रवीण पटेल (वडोदरा, गुजरात) और उनके पत्रकार मित्र श्री अकु श्रीवास्तव (नई दिल्ली)।

पुस्तक का मुख्य उद्देश्य

इस पुस्तक का मुख्य उद्देश्य ईश्वर के बारे में लोगों की आस्था को सुदृढ़ करना है।

‘कल्याण’ का ’ईश्वरांक’ (1932)

गीताप्रेस गोरखपुर की हिन्दी मासिक पत्रिका ‘कल्याण’ अगस्त 1926 से लगातार प्रकाशित हो रही है।  ‘कल्याण’ के आदि सम्पादक हैं श्री हनुमान प्रसाद पोद्दारजी (17 सितम्बर 1892- 22 मार्च 1971)। वह अगस्त 1926 से अपनी अन्तिम सांस तक अर्थात लगभग 45 वर्ष तक इस पत्रिका के सम्पादक रहे। उन्होंने बहुत ही अद्भुत और आध्यात्मिक विषयों पर इस मासिक पत्रिका के विशेषांक निकाले। वर्ष 1932 में ‘कल्याण’का विशेषांक था – ‘ईश्वरांक’। इसके लिए महात्मा गांधी ने भी पोद्दारजी को पत्र लिखा था। पोद्दारजी ने अपने लेखकों से निम्न चार बिंदुओं पर जानकारी मांगी थी:

  1. ईश्वर को क्यों मानना चाहिए?
  2. ईश्वर को न मानने में कौन-कौन सी हानियां हैं?
  3. ईश्वर के होने में कौन-कौन से प्रबल प्रमाण हैं?
  4. अपने जीवन की ऐसी घटनाएं लिखिए जिनसे ईश्वर की सत्ता और दया में आपका विश्वास बहुत बढ़ा हो।

ये जानकारियां ‘कल्याण’के ‘ईश्वरांक’ (1932) में दी गई हैं।

इस पुस्तक के लेखक की रुचि पोद्दारजी द्वारा भेजे गए चौथे बिंदु पर है। उन्होंने इस चौथे बिन्दु पर अपने कुछ मित्रों से अपने-अपने अनुभव लिखने का निवेदन किया था। उनसे जो उत्तर मिले वे इस ई-पुस्तक में साझा किए गए हैं।  पुस्तक के प्रारम्भ में ‘कल्याण’ के  ‘ईश्वरांक’ में प्रकाशित कुछ सन्तों और विद्वानों के अनुभव आपसे साझा किए गए हैं।

‘ईश्वरांक’ के लिए पोद्दारजी के पास बहुत से सन्तों और विद्वानों ने अपने लेख भेजे और कुछ ने अपने अनुभव भी लिखे।

‘ईश्वरांक’ के पृष्ठ संख्या 517 पर पोद्दारजी ने लिखा:

इस ‘ईश्वरांक’ में ईश्वर के सम्बन्ध में अनेक ऐसे ऐसे पूज्यचरण संतों, महात्माओं, विद्वानों, और गुरुजनों के लेख प्रकाशित हो रहे हैं कि जिनकी पवित्र चरण-धूलि को मस्तक पर चढ़ा कर मुझे अपना जीवन सफल बनाना चाहिए।

 

Shri Hanuman Prasad Ji Poddar | Radha Baba of Gorakhpur

कहाँ-कहाँ से कितनी भाषाओं में लेख आए

इसी ‘ईश्वरांक’ के पृष्ठ संख्या 519-20 पर ‘क्षमा-याचना’ शीर्षक से पोद्दारजी ने लिखा:

“ईश्वरांक’ के लिए हिन्दी के अतिरिक्त संस्कृत, मराठी, गुजरती, बंगला, उर्दू, अंग्रेजी, फ्रेंच, गुरुमुखी में अनेकों लेख आए थे, जिनका अनुवाद कराया गया। इस बार के लेखकों में संयुक्त प्रांत, बंगाल, बिहार, उड़ीसा, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मद्रास, पंजाब, राजपूताना आदि विभिन्न प्रान्तीय भारतीय विद्वानों के अतिरिक्त इंग्लैंड, अमेरिका, रूस, आदि देशों के विद्वान भी हैं। इनमें सब सम्प्रदायों के हिन्दू, बौद्ध, जैन, सिख, मुसलमान, पारसी, ईसाई आदि सभी हैं।”

(लेखक झारखंड केन्द्रीय विश्वविद्यालय के सेवा निवृत्त प्रोफेसर हैं)


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