#satyadevtripathiसत्यदेव त्रिपाठी।

समाज व संस्कृति की परवाह न करके नंगा होने वाला रणवीर क़ानून को धता न बता सका। पिछली बार मैंने लिखा था कि चेम्बूर पुलिस में शिकायत दर्ज़ हुई है और पुलिस ने हाज़िर होने का फ़रमान ज़ाहिर किया है। तो दी हुई तारीख़ पर 29 अगस्त, सोमवार को बिना कोई हिल्ला-हवाली, ना-नुकुर के अपने क़ानूनी सलाहकारों के साथ समय पर सुबह सात बजे पहुँच गया वह नंगा– कपड़े पहने हुए। पुलिस की पूछताछ ढाई घंटे चली– साढ़े नौ बजे वापस गया और इस हिदायत के साथ कि ज़रूरत पड़ने पर उसे फिर बुलाया जायेगा।

पुलिस ने फोटोशूट कम्पनी के नाम व अन्य व्योरों में शूट के समय, स्थान आदि की प्राथमिक व औपचारिक सूचनाओं के साथ नंगे होने के इस कारनामे के विषय में भी बहुत से सवाल पूछे। खबर के अनुसार रणवीर ने सारे प्रश्नों के उत्तर अपनी हस्तलिपि में दिये, जो अनोखा भी है और उल्लेखनीय भी।

‘अंदाज़ा नहीं था…’

ज़ाहिर विमर्श की बात यह है कि रणवीर सिंह अपने को इस बिना पर निर्दोष मानता है कि उसको अंदाज़ा नहीं था कि ऐसे फ़ोटोग्राफ़ से लोगों की भावनाएँ आहत होंगी। इसका सीधा मतलब है कि अपने किये को याने नंगा होने को वह ग़लत या असमाजिक नहीं मानता –खपड़ी फोड़ता है लोगों की भावनाओं पर। फिर तो उसे लोगों की भावनाओं का आहत होना भी ग़लत लगता होगा। अब ऐसे शख़्स को दुनियादारी से रहित या दुनियावी रहन-सहन-चलन से परे समझा जाये, मासूम समझा जाये या मासूमियत की खोल ओढ़े धूर्त्त व शातिर समझा जाये। इतना बड़ा स्टार यह बेसिक बात नहीं जानता कि नंगा होना यदि वर्जित या असामाजिक न होता, तो उसे बचपन से ही कपड़े क्यों पहनाये जाते? क्यों अपने घर में भी स्नानागार के अलावा हमेशा लोग कपड़े में रहते? यदि नंगा होना इतना आम या उसे पसंद है, तो वह आज तक कपड़े में क्यों रहा? पत्रिका वालों के कहे के बिना भी कभी अपनी नंगी तस्वीर क्यों नहीं खिंचाके लगा दिया?

कितने में नंगे हुए

पुलिस ने उससे मिलियन डॉलर सवाल यह भी पूछा कि उसने इन नंगे फोटोज के लिए उन लोगों से कितने पैसे लिये? इसका जवाब क्या दिया, पता नहीं लगा– शायद इस सवाल का जवाब ज़ाहिर नहीं किया गया। असल में यही बात है कि उसने कितने पैसे में अपने को नंगा किया – अपनी लाज व समाज की मर्यादा की क्या क़ीमत ली? यह भावनाओं को आहत होने के अनजानेपन  का भोलापन तो उसका बहाना है, बेशर्मी है। आज के समय के लिए यह कहावत काफ़ी मशहूर है– आज सब कुछ बिकाऊ है- यहाँ हर चीज़ बिकती है…

यहाँ मुझे जॉर्ज बर्नार्ड शॉ का एक लतीफ़ा याद आता है। किसी आयोजन में एक हॉलीवुड की सुपरस्टार की बग़ल में बैठे हुए उन्होंने उससे पूछ लिया था – मैडम यदि मैं साठ हज़ार पौंड दूँ, तो क्या आप मेरे साथ एक रात बिता सकती हैं? तारिका ने कुछ सोचा और जवाब दिया– वेल, मिस्टर शॉ – आइ कैन थिंक। इस पर छूटते ही शॉ साहब ने पूछ लिया– और यदि आपको मै साठ पेंस दूँ, तो क्या आप मेरे साथ एक रात बिता सकती हैं? इस पर बिफरते हुए तारिका ने कहा– मिस्टर शॉ, आप मुझे क्या समझते हैं? शॉ का जवाब था– आप क्या हैं, यह तो तय हो चुका है। अब तो मोलभाव हो रहा है।

तो पुलिस के इस सवाल में यही सचाई निहित है कि कितने में नंगे हुए? शायद इसीलिए इसका जवाब खोला नहीं जा रहा – या मेरे सूचना-क्षेत्र तक पहुँचा नहीं है, पर होगा भाव ऊँचा ही। लेकिन सौदा चाहे जितने में हुआ हो, उसका मुस्तक़बिल खतरनाक है। औरतों के नग्न दृश्यों को बिकते हमने देखा है और इस माँग-आपूर्त्ति का बाज़ार भी। इस बिकने की क़ीमत  पुलिस को चाहे जो बतायी या न बतायी गयी हो, भाव तो खुल ही गये होंगे उस बाज़ार में। अब उसे जिस्मफरोशी के वजन पर जिस्म-नुमाई का बाज़ार कहें या ‘जिस्म फ़रोशी’ ही चला लें, लेकिन यदि यह नंगापन चलने याने बिकने लगा, तो नंगों का बाज़ार खुल जायेगा।

मेरी चिंता

कई लोग मेरे लेखों पर पूछ दे रहे हैं कि आपको चिन्ता क्यों है? मेरी चिंता एक रणवीर के नंगे होने की नहीं है, नंगेपन के इसी बाजार के खुलने की है। वो कहावत है गाँवों में– ‘मुझे एक बुढ़िया के मरने का डर नहीं, दऊ (दैव) के परकने का डर है’। तो जब इस नंगेपन को ख़रीदने वाले दैव परक जाएँगे, तो क्या वह मंज़र बर्दाश्त होगा?

इसलिए क़ानून व पुलिस को याने व्यवस्था को सजग तो होना ही होगा!

(लेखक साहित्य, कला एवं संस्कृति से जुड़े विषयों के विशेषज्ञ हैं)