डॉ. सईद रिजवान अहमद ।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक अरविंद केजरीवाल को दो जून को तिहाड़ जेल में सरेंडर करना होगा। वह यह पहली जून से तीन चार दिन पहले यानी 27-28 मई के बाद किसी भी मंच पर अचानक बेहोशी का ड्रामा करके गिर पड़ेगा। और फिर सुप्रीम कोर्ट से कहेगा कि मेरी तबियत बहुत ख़राब है। डायबिटीज बहुत बढ़ी हुई है। मुझे इलाज कराने के लिए कुछ और वक्त जेल से बाहर रहने दिया जाए।
यह अंतरिम बेल नहीं, कुछ और है
अरविंद केजरीवाल को इंटरिम बेल मिली है – यह कहना पूर्णत: गलत है। भ्रम पैदा करने के लिए है। हिंदुस्तान का बड़े से बड़ा वकील मेरी बात को काट कर दिखा दे।
केजरीवाल को इंटरिम बेल अर्थात अंतरिम जमानत तब मिलती जब वह क्रिमनल प्रोसीजर कोड CrPC की धारा 439 में कोर्ट में जमानत मांगने के लिए गए होते।
तरीका यह होता है कि आप बेल के लिए तब अप्लाई करते हैं जब तक पुलिस पूरा इन्वेस्टिगेशन नहीं कर पा रही होती है। या पूरे एविडेंस नहीं आए होते हैं या यूं कहें कि केस डायरी नहीं आई होती है। तो कोर्ट इंटरिम बेल दे देता है। इंटरिम बेल का मतलब होता है फौरी तौर पर, टेंपरेरी तौर पर आप घर चले जाइए। जब कुछ दिन बाद फाइनल आर्गुमेंट बेल का होगा, तो आपको वापस सरेंडर करना पड़ेगा और उस टाइम तय होगा कि ये इंटरिम बेल क्या परमानेंट बेल में कन्वर्ट होगी या आप वापस जेल में जाएंगे। ये होती है इंटरिम बेल। मैं जो कह रहा हूं उसे सुप्रीम कोर्ट का बड़े से बड़ा वकील मेरी बात को काट के दिखा दे।
यदि अरविंद केजरीवाल क्रिमनल प्रोसीजर कोड CrPC के उन प्रोविजन में एप्लीकेशन डालता जिन प्रोविजन में बेल की एप्लीकेशन डाली जाती है तो उसे टेंपरेरी इंटरिम बेल मिलने की संभावना बनती।
लेकिन अरविंद केजरीवाल तो कोर्ट में गया था कि मेरी गिरफ्तारी या मेरी कस्टडी गैर कानूनी है, इलीगल है। अरविंद केजरीवाल ने यह प्रार्थना पत्र डाला था सुप्रीम कोर्ट में कि मुझे गिरफ्तार ही गलत किया गया है।
अंतर्निहित शक्ति का प्रयोग
माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपनी इन्हेरेंट पावर्स अर्थात अंतर्निहित शक्ति का प्रयोग करते हुए असाधारण परिस्थितियों में केजरीवाल को लगभग 20 दिन के लिए परोल पर छोड़ा है।
परोल का मतलब होता है कि जब आदमी जो जेल के अंदर होता है उसको कुछ शर्तों के साथ टेंपरेरिली छोड़ा जाता है कि इस दिन इतने बजे तुझे वापस आना है। इंटरिम बेल में यह कंडीशन नहीं होती है कि तुझे इतने बजे इतने वक्त बाद जेल वापस आना है। इंटरिम बेल की कंडीशन होती है तुमको इस तारीख को कोर्ट में आना है फाइनल सुनवाई के लिए।
चलते-चलते केजरीवाल के मुंह पर थप्पड़ मारते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि तुम टेक्निकली सस्पेंडेड चीफ मिनिस्टर हो। तुम अपनी ऑफिशियल ड्यूटीज जेल से बाहर निकल कर नहीं कर सकते हो। टेक्निकली स्पीकिंग केजरीवाल चीफ मिनिस्टर कार्यालय की कुर्सी पर जाकर नहीं बैठ सकता है।
अब केजरीवाल सस्पेंडेड चीफ मिनिस्टर की तरह
जब केजरीवाल जेल के अंदर था तो वह चीफ मिनिस्टर था। परन्तु जब वह 21 दिन के लिए परोल पर बाहर आया है तब वह एक सस्पेंडेड चीफ मिनिस्टर की तरह हैं।
केजरीवाल का जो बाहर आना है वह संजय सिंह के बाहर आने से कंपेयर नहीं किया जा सकता है। संजय सिंह बेल के प्रोविजंस को अट्रैक्ट करते हुए बेल पर बाहर आया है। केजरीवाल को टेंपरेरी आजादी, फौरी आजादी, टेंपरेरी रिलीफ परोल मिला है कि तुम जाओ यह काम निपटा के वापस आ जाओ। जैसा कैदियों को मिलता है। इंटरिम बेल और परोल में जमीन आसमान का फर्क है। इंटरिम बेल के बाद आदमी कोर्ट में रिपोर्ट करता है फाइनल आर्गुमेंट के लिए। परोल के बाद आदमी जेल के दरवाजे पर रिपोर्ट करता है। इतना बड़ा फर्क है।
अब केजरीवाल कोई बीमारी का ड्रामा कैसे करेगा पहली जून से दो या ढाई दिन पहले। शायद यह किसी मंच पर बेहोश हो जाएगा और फिर जाकर किसी अस्पताल में एडमिट हो जाएगा।
इस मामले में पूरी हकीकत यह है कि सुप्रीम कोर्ट ‘आउट ऑफ द वे‘ गया है। कोर्ट ने अपनी इन्हेरेंट पावर्स अन्तर्निहित शक्ति का इस्तेमाल किया है। एक्सेप्शनल पावर्स को इस्तेमाल किया है।
केजरीवाल को जो मिला है वह इंटरिम बेल नहीं है। बेल की एप्लीकेशन उसने दी ही नहीं थी। उसकी पहली जून तक की आजादी के लक्षण सिर्फ और सिर्फ परोल से मिलते हैं।
अब आप इस खबर पर नजर गड़ा कर रखिएगा कि एक जून से ठीक पहले केजरीवाल की तबियत अचानक बिगड़ेगी और फिर वह मेडिकल ग्राउंड पर जेल से बाहर ही रहना चाहेंगे।
(लेखक जाने माने अधिवक्ता और राजनीतिक विश्लेषक हैं)