आतंक पैदा करने वाली सोच पर होना चाहिए कड़ा प्रहार।
प्रदीप सिंह।
दिल्ली में सोमवार को लाल किले के पास बम विस्फोट हुआ। कई लोग मारे गए। उसके बाद से जांच एजेंसियां अपना काम कर रही हैं। लगातार विस्फोटक बरामद हो रहे हैं। गिरफ्तारियां हो रही हैं। सवाल उठ रहा है कि फरीदाबाद में यह जो अलफला यूनिवर्सिटी है, वह चल कैसे रही थी? यह इन आतंकवादियों का अड्डा था। यह अड्डा चलता रहा और किसी को पता नहीं चला। देश में इस तरह के कितने संस्थान हैं? मेरा तो मानना है कि ऐसे सारे संस्थानों का फॉरेंसिक ऑडिट होना चाहिए। हमारी एजेंसियों, सरकार और जो लोग इस देश का हित चाहते हैं, उन सभी लोगों के दिमाग में यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि असली दुश्मन कौन है? देश का सत्यानाश कौन करना चाहता है? देश को नष्ट कौन करना चाहता है?

दूसरी बात इस घटना के बाद से आप महसूस कर रहे होंगे कि एक अजब सा सन्नाटा है। वह हल्ला-गुल्ला नहीं है। वह आरोप-प्रत्यारोप, वह सवाल पूछने की कोशिश नहीं हो रही है। अमेरिका का विदेश मंत्री मार्को रूबियो कह रहा है कि भारत बड़ा संयम से काम कर रहा है। जांच हो रही है। जांच का नतीजा आने के बाद ही भारत कोई रुख अपनाएगा। उनका मतलब आप समझिए। वह कह रहे हैं कि भारत ने घटना होते ही पाकिस्तान का नाम नहीं लिया और इस घटना के तार तुर्की से जुड़े हुए नजर आ रहे हैं। अभी तक जितना प्रमाण मिला है, यह जो डॉक्टर के भेष में आतंकवादी थे, उन सबका हैंडलर तुर्की में बैठा हुआ था। तुर्की की सरकार खंडन कर रही कि हमारा इससे कोई लेना देना नहीं। लेकिन पूरी दुनिया को मालूम है कि तुर्की भारत विरोधी है। भारत के विरोध में वह किसी भी हद तक जा सकता है। फिलहाल तुर्की के मामले को छोड़कर अभी अपने घर के मामले की बात करते हैं। दिल्ली की घटना के बाद सन्नाटा इसलिए है कि यह जो मुस्लिम जिहादियों का पैरोकार वर्ग है, ये जो अर्बन नक्सली हैं, इनको इस बार समझ में नहीं आ रहा है कि हमारी जांच एजेंसियां, सुरक्षा एजेंसियां और सरकार करने क्या जा रही है। उसका अगला कदम क्या होगा। सरकार अपने अगले कदम के बारे में कुछ बोल नहीं रही है। तो इससे और इनके मन में डर बैठ गया है।

ये दरअसल मुसलमानों की बात करते हैं, लेकिन ये मुसलमानों के हितैषी नहीं है। ये जिहादियों के हितैषी हैं, जो आतंकवाद को फैलाना चाहते हैं। तो अब एक नया ट्विस्ट देने की कोशिश हो रही है। अब अमेरिका से तुलना की जा रही है। कहा जा रहा है कि वहां आतंकवादियों द्वारा ट्विन टावर पर जो हमला हुआ था, उसके बाद अमेरिका ने आतंकवाद से लड़ाई लड़ी अपने देश के मुसलमानों से नहीं। अब इस बात को समझिए कि ये कह रहे हैं कि आप आतंकवाद से लड़ाई लड़िए, देश के मुसलमानों से नहीं। अरे भाई जो 9/11 में शामिल थे, वे अमेरिका के मुसलमान नहीं थे, लेकिन जो हमारे यहां आतंकी घटनाएं कर रहे हैं, वे हमारे यहां के हैं। इन लोगोँ को अब समझ में नहीं आ रहा है कि इन जिहादियों को कैसे बचाएं? तो इस मामले को थोड़ा फैलाना चाहते हैं कि अमेरिका से सीखिए। इनसे कोई पूछे कि हे मूढ़, तुम्हें पता है कि 800 साल मुसलमानों का आतंक, अत्याचार, हत्या, बलात्कार, धर्म परिवर्तन इसका नंगा नाच देखा है इस देश के सनातनियों ने। अमेरिका ने देखा है क्या? अभी नाइजीरिया में छोटी सी घटना हुई है। कुछ क्रिश्चियन मारे गए हैं और डोनाल्ड ट्रंप कह रहे हैं कि हम नाइजीरिया पर हमला करेंगे। भारत ने कभी कह कि बांग्लादेश और पाकिस्तान में हिंदू मारे जा रहे हैं। हम बांग्लादेश या पाकिस्तान पर हमला करेंगे। पाकिस्तान से जो भी हमारी लड़ाई हुई, वह इसलिए नहीं कि वहां हिंदू मारे जा रहे हैं। पाकिस्तान ने हमला किया इसलिए या फिर आतंकवादी हमले का जवाब देने के लिए। पहलगाम में आतंकवादियों ने हिंदुओं को नाम पूछकर कर मारा। भारत में किसी सरकार के समय क्या ऐसा हुआ कि पूछ कर मारा गया हो कि तुम्हारा मजहब क्या है? मुस्लिम जिहादियों कै पैरोकारों का कहना है कि हर मुसलमान को आतंकवादी बता रहे हैं। हर मुसलमान को कोई आतंकवादी नहीं बता रहा है, लेकिन हर आतंकवादी मुसलमान है। यह तथ्यात्मक रूप से सही है। और क्यों है? पूर्व गृह मंत्री और राहुल गांधी के करीबी पी. चिदंबरम का एक ट्वीट आया है- ‘मैंने जब ऑपरेशन सिंदूर हुआ था तब भी कहा था कि पहले यह पहचान कर लो, यह पता कर लो कि जिन लोगों ने यह काम किया वो भारतीय हैं या पाकिस्तानी हैं।’ तो उनका सारा जोर था कि होम ग्रोन टेररिज्म भी है। मतलब भारत के अंदर के भी आतंकवादी हैं। इससे कोई इंकार नहीं कर सकता। लेकिन उन्होंने जो अगली बात कही उससे उनकी नीयत पता चल जाती है। उन्होंने कहा, हमको इस बात पर विचार करना चाहिए कि आखिर ये पढ़े-लिखे युवा आतंकवादी क्यों बन रहे हैं? अब इस भोलेपन को क्या कहिएगा। अगर यह समझ में नहीं आ रहा है तो आपको सार्वजनिक जीवन में और राजनीति में रहने का कोई अधिकार नहीं है। इसका मतलब आप दोगले हैं। आप सच को छुपाने की कोशिश कर रहे हैं। आप दरअसल आतंकवादियों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। दुनिया में कहीं भी देख लीजिए पढ़े-लिखे आतंकी मिलेंगे। ओसामा बिन लादेन कम पढ़ा लिखा था। वह तो भारतीय नहीं था। लंदन में जो ट्रेन में बॉम्बिंग हुई, उसमें जो शामिल था, वह इंजीनियर था। लेकिन आप सवाल भारत के बारे में उठा रहे हैं।

दुनिया भर में जो पढ़े-लिखे लोग आतंकवाद के रास्ते पर जा रहे हैं। बड़ी-बड़ी आतंकवादी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं, वह क्यों कर रहे हैं? उस पर भी तो विचार होना चाहिए। उन सबका कारण एक है। सूत्र एक ही है कि उनका मजहब उनको सिखाता है यह करना। उनका मजहब कहता है कि जो भी नॉन बिलीवर्स हैं, उनको जीने का अधिकार नहीं है। यह आतंकवादी इसी सोच के कारण बनते हैं। वे यह मानकर चलते हैं कि हमारे मजहब का आदेश है कि जो भी नॉन बिलीवर है यानी जो भी काफिर है, उसको मारना मजहब का काम है। वे आतंकी इसलिए नहीं बनते कि उनको रोजगार नहीं मिला, शिक्षा नहीं मिली। अगर डॉक्टर बनकर भी आप आतंकवाद के रास्ते पर चल रहे हैं तो जाहिर है आप अभाव के कारण या फिर आप किसी अत्याचार के कारण आतंकवादी नहीं बन रहे हैं। आपका मजहब यही सिखाता है। इन डॉक्टरों को कौन हैंडल कर रहा था? एक मौलवी। उस मौलवी के कहने पर चल रहे थे और वह मौलवी क्या सिखाएगा, यही सिखा सकता है। तो भारत में जितने इस तरह के संस्थान हैं जो मजहबी शिक्षा देते हैं, इस्लाम की शिक्षा देते हैं, वह जब तक चलते रहेंगे, हम आतंकवाद से लड़ते रहेंगे। कभी एक जीत मिल जाएगी, लेकिन ज्यादातर समय पर हारते रहेंगे। हमारी जो सुरक्षा एजेंसियां हैं वे 24 घंटे चौकन्ना रहें। उनको हर बार सफल होना है और आतंकवादियों को केवल एक बार सफल होना है। ये फर्क है इस लड़ाई में कि आप चाहे जितने चौकन्ने रहें, आप देखिए ऑपरेशन सिंदूर किया। इससे बड़ा सबक क्या सिखा सकते थे, लेकिन पाकिस्तान ने कोई सबक नहीं सीखा क्योंकि उनको इससे कोई मतलब नहीं कि उनके कितने जेट गिर गए, कितने एयरबेस और आतंकवादियों के हेड क्वार्टर नष्ट हो गए, कितने लोग और सैनिक मारे गए। उसका सिर्फ एक उद्देश्य है गजवा-ए-हिंद। आज कोई मुस्लिम संगठन यह घोषित कर दे कि गजवाए अमेरिका करना है फिर देखिए अमेरिका का क्या रुख होता है। तब आपको तुलना करने का मतलब समझ में आएगा। तो ये जो तुलना की जा रही है, ये सिर्फ जिहादियों को बचाने और उनको कवर फायर देने के लिए है।
देश में हुई किसी आतंकी घटना के बाद पहली बार लेफ्ट इको सिस्टम डिफेंसिव मोड पर है। उसको समझ में नहीं आ रहा है कि इन जिहादियों का बचाव कैसे करें। पहली बार उनके मन में डर है और यह डर बहुत अच्छा है। जो भी देश के विरोध में काम करे उसके मन में डर होना ही चाहिए। यह डर पैदा किया जाना चाहिए कि देश के विरोध में काम करने की सजा मिलेगी। यह गलती नहीं है, जो माफ कर दी जाए। यह अपराध है, जिसकी सजा मिलनी चाहिए।

आज देश में परिवर्तन हो रहा है और माहौल बदल रहा है। लोगों के मन में आतंकी घटनाओं को लेकर गुस्सा उभर रहा है कि आखिर कब तक इसे बर्दाश्त करेंगे और क्यों बर्दाश्त करेंगे? अब लोगों के मन में यह बात स्पष्ट होती जा रही है कि दरअसल शत्रु कौन है? हमारे देश के विरोध में, सनातन के विरोध में, हमारी संस्कृति के विरोध में कौन खड़ा है? ऐसे लोगों की पहचान करना और उनको सजा देना जरूरी है। कानून क्यों बनते हैं? कानून अपराध के खिलाफ एक डेटरेंस है कि अगर हम अपराध करेंगे, हत्या करेंगे, बलात्कार करेंगे, चोरी करेंगे, डकैती करेंगे, स्मगलिंग करेंगे तो हमको सजा मिल सकती है। और यह सजा जितनी त्वरित होगी, यह डर, ये डेटरेंस का काम कानून उतना ज्यादा करेगा। आतंकवादियों के ही खिलाफ ही नहीं बल्कि इनके जो मददगार हैं, जैसे अर्बन नक्सली, उनके खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। जैसे ही कोई आतंकवादी पकड़ा जाता है, ये मुसलमान मुसलमान चिल्लाने लगते हैं। इनमें से किसी को किसी मुसलमान की कोई चिंता नहीं है। इनको चिंता सिर्फ आतंकवादियों की है कि आतंकवाद चलता रहे। हिंदू मारे जाते रहे। हिंदू हमेशा डरे रहे। ये हमेशा विक्टिम कार्ड खेलने लगते हैं कि मुसलमानों को सताया जा रहा है। मुसलमानों को टारगेट किया जा रहा है। सवाल यह भी है कि भारत में मान लीजिए कि ये सब हो रहा है। दुनिया के और देशों में क्यों हो रहा है? दुनिया के और देशों में मुस्लिम संगठन क्यों हिंसा कर रहे हैं? जब दूसरे लड़ने के लिए नहीं मिलते तो आपस में लड़ रहे हैं। तो हिंसा इनके मजहब का अभिन्न अंग है। इनके लिए वह सामान्य बात है। इनको इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कितने लोग मारे जाते हैं। इनका उद्देश्य पूरा होना चाहिए। वे अपने लक्ष्य के लिए लड़ रहे हैं और उसके लिए जान लेने और जान देने दोनों के लिए तैयार हैं। ये जो फिदाइन डॉक्टर मारा गया आखिर इसको क्या कमी थी? परिवार में, समाज में, देश में किसी तरह की कोई कमी नहीं। अच्छी नौकरी, अच्छी पढ़ाई, सब कुछ अच्छा, जीवन अच्छा। लेकिन इसने क्यों जान दे दी? अपने मजहब के लिए। अपने मजहब के लक्ष्य को हासिल करने के लिए। आतंकवादियों से ज्यादा खतरनाक इन आतंकवादियों के समर्थक हैं। ऐसे लोगों की पहचान करने और ऐसे लोगों के खिलाफ कानून बनाने की जरूरत है। अमेरिका और इंग्लैंड में भी ऐसाा कानून बना है। आतंकवादियों और उनके समर्थकों को जब तक हम अलग-अलग करके देखते रहेंगे यह समस्या हल नहीं होने वाली है। देश में इस समस्या को हल करना है तो पहले आस्तीन में पल रहे सांपों को पहचानना पड़ेगा। दरअसल हमारी लड़ाई व्यक्तियों से नहीं है। हमारी लड़ाई एक विचारधारा से है। जिसका मानना है कि सनातनियों को यानी काफिरों को जीने का अधिकार ही नहीं है। उनकी मान्यता है कि सिर्फ अल्लाह है। अल्लाह के अलावा कोई दूसरा नहीं है। यानी वह हमारे अस्तित्व को भी स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। अभी तो कुछ लोग आश्चर्य कर रहे हैं कि ये पढ़े लिखे लोग आतंकवादी क्यों बन रहे हैं? सवाल ये है कि उससे कई कई गुना बड़ी संख्या में पढ़े लिखे लोग इन आतंकवादियों का समर्थन क्यों कर रहे हैं? आखिर चिदंबरम को खुद से यह सवाल पूछना चाहिए कि वह हर बार आतंकवाद के समर्थन में क्यों आ जाते हैं? आतंकवाद का समर्थन करने के लिए उसका बचाव करने के लिए ही कांग्रेस ने एक शब्द गढ़ा था भगवा आतंकवाद। ताकि इन आतंकवादियों को बचा सकें, लेकिन झूठ के पांव होते नहीं तो वह खड़ा रह नहीं पाया। एक बार यूएस एंबेसडर से मिलकर राहुल गांधी ने कहा था कि इस्लामी आतंकवाद से ज्यादा बड़ा खतरा सैफ्रन टेररिज्म है। यह है सोच। हमारी लड़ाई इसी सोच से है। व्यक्ति तो आते जाते रहेंगे। लेकिन अगर यह सोच बनी रहेगी तो फिर हम यह लड़ाई कभी नहीं जीत पाएंगे। तो जरूरत व्यक्ति को मारने की नहीं। इस सोच को बांधने की है। इसका जड़ से उन्मूलन जब तक नहीं होगा तब तक यह चलता रहेगा। सरकार की पहली नजर मुसलमानों की मजहबी संस्थाओं के फॉरेंसिक ऑडिट पर होनी चाहिए। ज्यादातर को तो बंद ही कर देना चाहिए। हमारा सकुलर देश है तो मदरसे क्यों चलने चाहिए? और सबसे पहला एक्शन दारुल उलूम देवबंद पर होना चाहिए। यह आतंकवादी बनाने की फैक्ट्री है। फैक्ट्री को जब तक बंद नहीं करेंगे तो उसके सामान को जब्त कर लेने से कुछ नहीं होने वाला है। फैक्ट्री चलती रहेगी तो सामान बनता रहेगा। तो आतंकवादियों को पकड़ना तो जरूरी है ही लेकिन उससे ज्यादा जरूरी है आतंकवाद को पैदा करने वाली सोच को खत्म करना।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ के संपादक हैं)



