- पिता डाइलिसिस पर, फीस नहीं भरी तो नहीं दी मार्कसीट, टीसी
- बच्चियों की टॉयलेट खुली पाई गईं, अग्निशमन यंत्र खराब, कभी भी हो सकता है हादसा
- कई खुफिया कमरे, नहीं जाने दिया आयोग को जांच करने
- मूक दर्शक बना रहा प्रशासन और पुलिस

ये है पूरा मामला
दरअसल, दो बालिकाओं के साथ एक बालक की शिकायत राज्य बाल संरक्षण आयोग को मिली थी, जिसकी जांच के लिए आयोग से पांच सदस्यीय टीम ओंकार सिंह, डॉ. निवेदिता शर्मा, निशा श्रीवास्तव, अनुराग पाण्डेय, मेघा पॅवार वहां पहुंचे। आयोग न बालिकाओं की टीसी और अंकसूची न देने का कारण जानना चाहा, जिस पर स्कूल प्रबंधन ने बताया कि इन्होंने फीस जमा नहीं की है। इस मामले में तीन साल पहले बड़ी बहन ने दसवीं की परीक्षा और दूसरी बहन ने तभी सातवीं की परीक्षा इस विद्यालय से उत्तीर्ण की थी लेकिन उनके पिताजी के डायलिसिस पर जाने के कारण परिवार फीस देने में सक्षम नहीं रहा, जबकि उसके पूर्व यह परिवार ईमानदारी से पूरी फीस चुकाता रहा था।
मध्य प्रदेश में आज बड़ा प्रश्न यह है कि जहां एक तरफ सरकार बालिकाओं की शिक्षा को लेकर प्रयासरत हैं, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के नारे दिए जा रहे हैं। बच्चियों की शिक्षा गुणवत्ता पूर्ण हो, इसमें निरंतरता बनी रहे, इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं, ऐसे समय पर एक विद्यालय द्वारा वह भी इस कारण से कि उसका पिता बिस्तर पर है डायलिसिस के माध्यम से ही जिंदा है इसकी संवेदनशीलता को देखते हुए कह देना कि अगर डेढ़ लाख रुपया दिया जाएगा तो हम बच्ची की मार्कशीट दे देंगे अपने आप में निंदनीय है। वहीं, दूसरे बच्चे का मामला अभी का है उसे भी सातवीं में फेल कर दिया गया तथा स्कूल ने कहा कि 75 हजार रुपए दे दे तो तुम्हें सातवीं की अंकसूची प्रदान कर देंगे।

इस प्रकरण में राज्य बाल आयोग की सदस्य डॉ. निवेदिता शर्मा का कहना है कि इस विद्यालय द्वारा मार्कशीट और टीसी ना देने के कारण दो बच्चियों का तीन साल बर्बाद हो गया है। इसी प्रकार एक बालक सातवीं की परीक्षा में अनुत्तीर्ण कर दिया गया । बाल आयोग के समक्ष इसकी शिकायत आने पर आयोग ने बालक की उत्तर पुस्तिका देखी, जिसमें बालक में ठीक ढंग से नहीं लिखा था । बच्चे के पिता का कहना था कि भाई की मृत्यु के कारण परिवार डिस्टर्ब रहा, बच्चा पढ़ नहीं पाया, यदि दोबारा परीक्षा लीजाएगी तो वह पास हो जाएगा। वहीं, ज्ञात हुआ कि 75 हजार रुपए जमा कर दिए जाएं तो स्कूल प्रबंधन मार्कसीट देने के लिए राजी पाया गया। इस पर हमें आपत्ति है कि रुपए देने पर मार्कसीट देने का मतलब क्या है?

वहीं, पहले दोनों बहनों के मामले में विद्यालय के प्राचार्य द्वारा प्रारंभ में आश्वासन दे दिया गया था और बाल आयोग की निवेदन को भी स्वीकार कर लिया था कि मानवता के नाते इन बच्चियों की अंकसूची और टीसी प्रदान कर दी जाएगी, जिसके बाद बाल आयोग द्वारा माता और उनकीदोनों बच्चियों को यहां बुलाया गया था, लेकिन स्कूल फिर से अपनी बात से मुकर गया।
उन्होंने कहा कि बच्चियों के टॉयलेट खुले हुए थे, यह बहुत आत्तिजनक है। जो लोग यहां रहते पाए गए उनके पास कोई पुलिस वेरिफिकेशन नहीं मिला । विद्यालय भवन में लगे हुए सभी अग्निशमन यंत्र निष्क्रिय पाए गए । गैलरी में लगभग 40 लीटर डीजल रखा हुआ था और ऐसी परिस्थिति में जब ज्वलनशील पदार्थ वहां रखा हुआ है और अग्निशमन यंत्रों का काम ना करना बच्चों की सुरक्षा से सीधा समझौता है।

आयोग के दूसरे सदस्य ओंकार सिंह का कहना था कि आयोग द्वारा विद्यालय का निरीक्षण करने पर प्रथम भवन के तीसरी मंजिल पर आवाज मिला है, जिसमें प्राचार्य द्वारा बताया गया कि तीन सिस्टर रहती हैं । जबकि आवासीय की कोई अनुमति विद्यालय नहीं दिखा पाया। बच्चियों की फीस के मामले में यहां उपस्थित एक व्यक्ति जो अपने आप को विद्यालय समिति का सदस्य बता रहा था एनोश जॉर्ज कार्लो वह लगातार आयोग के कार्य में बाधा डालता रहा। ऐसे में जब बच्चों के साथ हादसे होने की घटनाएं आए दिन सामने आती रहती हैं, तब स्कूल में आवासीय परिसर का होना कई सवाल खड़े करता है।
आयोग के सदस्य अनुराग पाण्डेय ने बताया कि यहां कई खुफिया कमरे थे, लगभग 14-15 कमरे हैं, जब उन कमरों को देखना चाहा तो विद्यालय द्वारा उन कमरों को यह कहते हुए नहीं दिखाया गया कि यहां पर ब्रदर्स का निवास है । यहां निवास के दरवाजे बच्चों के क्लासरूम में खुलते हुए पाए गए । जोकि बच्चों की सुरक्षा के साथ सीधा खतरा है। ऐसी विचित्र परिस्थितियों में प्रधानाचार्य का जवाब ना देना कई संदेह पैदा करता है।

इनके साथ ही आयोग की अन्य सदस्य निशा श्रीवास्तव ने बताया कि यहां उपस्थित एनोश जॉर्ज कार्लो ने हमारे कार्य में बहुत बाधा डाली । वह स्कूल प्रबंधन से ठीक से बात तक नहीं करने दे रहा था। प्रशासन का जो सहयोग मिलना चाहिए था वह भी नहीं मिला। वह अपने तीन साथियों के साथ वहां उपस्थित था और बाल आयोग को जांच नहीं करने दे रहा था। बाल आयोग सदस्यों को कह रहा था कि आपका वेतन मेरे टैक्स से निकलता है इसीलिए मैं यहां आ सकता हूं आपसे कुछ भी पूछ सकता हूं, एक गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है ।
उन्होंने कहा, बाल आयोग द्वारा प्रशासन को बुलाना और वहां पर प्रशासन का मूकदर्शक बने रहना, आयोग द्वारा दिए गए पंचनामा के ऊपर कार्रवाई ना करना अपने आप में संदेह पैदा करता है । एसडीएम और पुलिस को भी कमरों के दरवाजे नहीं खोलने दिए गए।

उल्लेखनीय है कि इस मिशनरी स्कूल में प्राचार्य से लेकर भृत्य तक का पुलिस वेरिफिकेशन नहीं कराया गया है। अभी हाल ही में मध्यप्रदेश के दो मामले सबके सामने हैं जिसमें कि सेंटपीटर स्कूल डबरा जिसके फादर के ऊपर 376 का मामला दर्ज था। सेंटमैरी स्कूल जिसमें प्रिंसिपल का कक्षाओं से लगा हुआ कमरा पाया गया था जहां कई शराब की बोतले पाई गईं थीं। यहां एनोश जॉर्ज कार्लो अल्पसंख्यक कार्ड खेलने का बार -बार प्रयास करता हुआ नजर आया। कह रहा था कि अल्पसंख्यकों की भावनाओं को आहत किया गया है परंतु यहां ध्यान देने की बात यह है कि आयोग भी जिनके लिए खड़ा था वह भी अल्पसंख्यक वर्ग से ही आने वाली बच्चियां हैं। किसी का मांस खाना ना खाना यहां कोई जांच का विषय नहीं है, परंतु विद्यालय के अंदर जरूरत से अधिक इसका होनाजरूर जांच का विषय बन जाता है। फिर अल्पसंख्यक के उनके अपने अधिकार हैं, लेकिन यहां पढ़ रहे अधिकांश बच्चे बहुसंख्यक वर्ग से आते हैं, ऐसे में उनकी भावनाओं चिंता कौन करेगा, यह आज बड़ा सवाल है।(एएमएपी)



