प्रदीप सिंह।
पिछले कुछ समय से हम लोग एनसीपी प्रमुख एवं पूर्व मुख्यमंत्री व केंद्रीय मंत्री रह चुके शरद पवार की बौखलाहट, बैचेनी और उनकी परेशानी का सबब ज्यादातर राजनीतिक कारणों में ढूंढ़ रहे थे। वो कारण तो थे ही। उनकी चिंता कुछ केंद्रीय एजेंसियों द्वारा उनके परिवार और उनके मंत्रियों की संपत्तियों की हो रही जांच को लेकर भी थी। लेकिन नागपुर में उन्होंने एक धमकी दी थी कि जो लोग अनिल देशमुख के जेल जाने के लिए जिम्मेदार हैं, उनको इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। माना ये जा रहा था कि क्योंकि इसकी जांच सीबीआई कर रही है, तो उनका इशारा केंद्र सरकार की ओर है। और था भी। इसके अलावा और मुद्दे भी हैं। ईडी भी अलग-अलग मामलों की जांच कर रही है। अनिल देशमुख के मामलो की जांच हो रही है, ये मुद्दा तो था ही, लेकिन इसका भांडा फूटा पिछले दिनों  सुप्रीम कोर्ट में।

पुलिस से जान का खतरा- ये कैसी स्थिति

सुप्रीम कोर्ट में मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह के वकील ने जो बात कही है वो चौंकाने वाली है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने उनको गिरफ्तारी से राहत देते हुए कहा था कि हमारे लिए ये बड़ी चिंता की बात है कि जिस पुलिस महकमे में वो इतने बड़े अधिकारी यानी कमिश्नर रहे, उसी पुलिस से परमबीर सिंह को अपनी जान का खतरा है? ये कैसी स्थिति बन गई है। और उस समय क्यों महाराष्ट्र सरकार उनको ये प्रोटेक्शन देने या उनकी गिरफ्तारी से राहत देने के मामले पर विरोध में नहीं आई- उसका कारण समझ में नहीं आया। ये समझा गया कि ये लापरवाही है, ध्यान नहीं दिया। लेकिन ऐसा नहीं है। वहां जो कुछ चल रहा है सब नियोजित ढंग से, सोच-समझकर चल रहा है। सुप्रीम कोर्ट में परमबीर सिंह के वकील ने जो कुछ कहा, वो खुलासा होने के बाद मुझे लगता है कि जब इस मामले की अगली सुनवाई 6 दिसंबर को होगी तो महाराष्ट्र की राजनीति में भूचाल भी आ सकता है।

कोर्ट में बात कहने के बाद मुकरना मुश्किल

हालांकि अपने देश की राजनीति में बहुत बड़े-बड़े मामले हो जाते हैं और कई बार कुछ नहीं होता। चूंकि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है- लगता है कि बवंडर-भूचाल आएगा। दो चीजें होती हैं। एक- पार्टियां, पार्टियों के नेता आपस में एक दूसरे के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोप खेल खेलें। नवाब मलिक जो खेल खेल रहे हैं वो एक अलग चीज है। लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट के जरिए, प्रमाण देकर आप कोई बात कहते हैं तो उसकी अहमियत बढ़ जाती है। फिर उसको झुठलाना या जिसने ये कहा है, उसके लिए उसे वापस लेना लगभग असंभव जैसा हो जाता है। इसीलिए महाराष्ट्र सरकार के लिए परमबीर सिंह के लगाए आरोपों को आसानी से झुठलाना बहुत ही कठिन होने वाला है। परमबीर सिंह के वकील ने उनकी ओर से एफिडेविट देकर एक बात ये कही है कि वह देश में ही हैं। देश से बाहर नहीं गए। जब वह देश से बाहर नहीं गए तो महाराष्ट्र पुलिस उनके घर पर कुर्की का नोटिस लगा रही है। उनको अदालत से प्रोक्लेम ऑफेंडर घोषित करवा रही है। ये सब कार्रवाई किए जाने का मतलब तो यह समझा जाएगा कि महाराष्ट्र सरकार और महाराष्ट्र पुलिस को कोई अता-पता नहीं है कि परमबीर सिंह कहां हैं।

तर्क समझ से परे

शरद पवार से लेकर एनसीपी के सारे नेता आरोप लगा रहे थे कि केंद्र सरकार ने परमबीर सिंह को देश से बाहर भगा दिया है। परमबीर सिंह महाराष्ट्र की सरकार के लिए- एनसीपी के मंत्री के लिए- और एनसीपी ही नहीं, महाराष्ट्र्र विकास अघाड़ी की उद्धव ठाकरे सरकार के लिए भी- समस्या बने हुए हैं। लेकिन जो उनके लिए मुश्किल खड़ी कर रहा है, उसको भला केंद्र सरकार क्यों भगा देगी? उसमें क्या फायदा है केंद्र सरकार का। उसमें तो नुकसान ही है। अगर परमबीर सिंह यहीं रहते हैं और अनिल देशमुख के खिलाफ लगाए अपने उस आरोप पर डटे रहते हैं जो उन्होंने लगाया है- और वह आरोप अनिल देशमुख पर साबित हो जाता है- तो इसका राजनीतिक फायदा तो बीजेपी को होना है। ऐसे में बीजेपी परमबीर सिंह को क्यों भगा देगी। ये तर्क समझ से परे था।

डीजीपी की परमबीर सिंह को धमकी

लेकिन तर्क के आधार पर राजनीति नहीं चलती है। और आजकल तो बिल्कुल नहीं चलती। न तर्क चलता है न तथ्य चलता है। आरोप कौन कितनी तेजी से और किस तरह से लगा सकता है और कितने कॉन्फिडेंस से झूठ बोल सकता है, इससे तय होता है। ये आरोप जब एनसीपी लगा रही थी तो बीजेपी के लोग एक तरह से डिफेंसिव थे कि हमने नहीं किया – हम क्यों करेंगे। तमाम तरह के तर्क दे रहे थे। लेकिन कुछ लोगों के मन में तो शंका आ गई थी कि ऐसा तो नहीं कि ये पहले बीजेपी ने आरोप लगवाए, फिर भगवा दिया। अब उनके बारे में कहा जा रहा है कि वो अपना आरोप वापस लेना चाहते हैं। सुप्रीम कोर्ट में परमबीर सिंह के वकील ने परमबीर सिंह के एफिडेविट के जरिए कहा है कि महाराष्ट्र के डीजीपी संजय पांडे उनके सम्पर्क में थे। संजय पांडे ने सरकार की ओर से उनको धमकी दी कि “इन लोगों से उलझोगे तो मुश्किल में पड़ोगे। स्टेब्लिशमेंट से लड़ोगे तो मुश्किल में पड़ोगे। अच्छा होगा कि तुम अपनी शिकायत वापस ले लो। तुम्हारे खिलाफ जो केस हैं वो सब बंद कर दिए जाएंगे। और अगर ऐसा नहीं करोगे तो तुम्हारे खिलाफ जो पुरानी कंप्लेन्ट्स हैं उन पर भी जांच होगी। नई जांच भी होगी और नये मुकदमे दर्ज होंगे। इसलिए अच्छा है, इसे वापस ले लो।” अब ऐसा लगता है कि परमबीर सिंह ने इस पूरी बातचीत को रिकॉर्ड कर लिया है। अगर उसको साक्ष्य के रूप में सुप्रीम कोर्ट में पेश किया है तो जाहिर है उसको उन्होंने टेप कर लिया था।

परमबीर सिंह अपने आरोप पर डटे

अब आपये अंदाजा लगाइये कि एक राज्य का डीजीपी, पुलिस का मुखिया सरकार की ओर से एक पूर्व पुलिस अधिकारी को धमकी दे रहा है, जिसको उसकी सरकार अभियुक्त मानती है। उससे समझौते और सौदेबाजी की बात हो रही है। तो नागपुर में उस दिन जो शरद पवार धमकी दे रहे थे, उसमें सबसे प्रमुख उस समय उनके दिमाग में परमबीर सिंह का नाम रहा होगा। वो उस भाषण के जरिए परमबीर सिंह को संदेश दे रहे थे कि ये आरोप वापस ले लो, नहीं तो इसकी कीमत तुम्हें चुकानी पड़ेगी। परमबीर सिंह अपने आरोप से पीछ हटे नहीं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से ये भी कहा कि ‘मैंने जो आरोप लगाया है, जो बातें कही जा रही हैं, इस पूरे मामले की सीबीआई जांच का आदेश दे दीजिए। मैं उसके लिए तैयार हूं। मैं देश छोड़कर न गया हूं न जा रहा हूं।’

सरकार और पुलिस का नाटक

जब महाराष्ट्र की पुलिस और महाराष्ट्र सरकार दोनों को परमबीर सिंह का पता है कि वो कहां हैं और महाराष्ट्र की सरकार और महाराष्ट्र पुलिस के मुखिया उनके संपर्क में थे, तो सवाल ये है कि सरकार और पुलिस ये नाटक क्यों कर रही थी कि परमबीर सिंह खोजने से नहीं मिल रहे हैं, कहीं वो देश छोड़कर भाग तो नहीं गये हैं। ये सब बातें महाराष्ट्र सरकार की ओर से आ रही थीं तो उसी दौरान उनके डीजीपी यानी पुलिस के मुखिया उनसे बातचीत कर रहे थे। इसी वजह से सीबीआई फिर कोर्ट में गई कि हमने इस मामले में डीजीपी और चीफ सेक्रेटरी को पूछताछ के लिए समन किया था, लेकिन सरकार ने उनको भेजने से मना कर दिया। वो सीबीआई के समन पर हाजिर नहीं हो रहे हैं।

महाराष्ट्र सरकार की चाल

दूसरी बात ये, चूंकि समझौते की बातचीत चल रही थी इसलिए जब परमबीर सिंह का सुप्रीम कोर्ट में गिरफ्तारी से राहत मांगने के लिए केस आया, इसीलिए महाराष्ट्र सरकार वहां मौजूद नहीं थी। आमतौर पर ये कॉमन प्रैक्टिस है कि ऐसे मामलों में राज्य सरकार या दूसरा पक्ष कैवियट फायल करके रखता है कि अगर इस मामले की सुनवाई हो तो उसको सुने बिना कोई फैसला न दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने जो परमबीर सिंह को राहत दी है, वो महाराष्ट्र सरकार को सुने बिना दी है, क्योंकि महाराष्ट्र सरकार ने न तो कैवियट फाइल किया और न उस दिन मौजूद थी। तो इसका मतलब परमबीर सिंह को बचाने की कोशिश हो रही थी। महाराष्ट्र सरकार चाहती थी कि परमबीर सिंह को ये राहत मिल जाए, जिससे दबाव बनाने में आसानी हो और कह सकें कि देखिए हमने आपको ये छूट दिला दी – अब आपकी गिरफ्तार नहीं होगी। इसलिए हमारी बात मानिए और ये शिकायत वापस ले लीजिए।

चिंता जो शरद पवार को खाए जा रही

अनिल देशमुख का फंसना शरद पवार के लिए, उनकी पार्टी के लिए और महाराष्ट्र विकास अघाड़ी के लिए एक खतरे की घंटी है। यह गले में पत्थर डालकर पानी में उतरने जैसा है। तो अनिल देशमुख नाम का जो पत्थर है, वो इस सरकार को डुबो सकता है। अगर इसकी ठीक से जांच और पैरवी हो गई- तथ्य और प्रमाण पेश कर दिए गए- तो इससे न केवल अनिल देशमुख जेल जाएंगे बल्कि और भी बहुत से लोग जेल जा सकते हैं। यही चिंता शरद पवार को खाए जा रही है।  इस समय पवार अपनी पार्टी में अपना उत्तराधिकारी तय करने की तैयारी कर रहे हैं। उनकी नजर में उनकी उत्तराधिकारी सिर्फ और सिर्फ उनकी बेटी है। वो अपने भतीजे अजीत पवार को अपना उत्तराधिकारी नहीं बनाना चाहते। ये बात अजीत पवार को भी पता है। 2019 में शुरुआत में जो उन्होंने बगावत की थी, उसका भी कारण यही था। उनको मालूम था कि एनसीपी में शरद पवार उनको राजनीतिक उत्तराधिकारी नहीं बनाएंगे। लेकिन संगठन अजीत पवार के पास है। कुल मिलाकर ऐसे माहौल में शरद पवार के रिमोट से सरकार चल रही है और वह अपने स्वास्थ्य को देखते हुए अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी तय करना चाहते हैं। ऐसे में अनिल देशमुख उनके गले में पत्थर बन गए हैं। और इस पत्थर को गले से निकालने में उनकी पूरी ताकत लगी हुई है। उसको निकालने के लिए जरूरी है कि उस पत्थर का भी बचाव करें। पत्थर को तोड़ नहीं सकते। तो अब पत्थर रूपी अनिल देशमुख अगर जेल जाएंगे तो वो फिर बाकी लोगों को बचने नहीं देंगे। इसलिए शरद पवार परेशान हैं, एनसीपी को लोग परेशान है।

अब नजर सुप्रीम कोर्ट पर

नवाब मलिक अति उत्साह में रोज समीर वानखेड़े के खिलाफ आरोप लगाए जा रहे हैं। समीर वानखेड़े सच्चे हैं – झूठे हैं – अच्छे हैं – खराब हैं- हम इस बहस में नहीं जाना चाहते। लेकिन इस आरोपबाजी के जरिए कोशिश ये है कि जो भी जांच एजेंसी या जांच अधिकारी हो, उसको रॉन्ग बॉक्स में खड़ा कर दो- उसकी जो निष्ठा है, उसे संदेहास्पद बना दो। उसकी जो इंटिग्रिटी है उस पर सवाल उठा दो और उस जांच को सख्त कर दो। समीर वानखेड़े से उनकी कोई निजी खुन्नस नहीं है, सिवाय इसके कि उनके दामाद को गिरफ्तार किया था। एनसीपी ने नवाब मलिक को खुली छूट दी हुई है। इसका मतलब ये है कि ये मामला शरद पवार तक जाता है। उन पर आंच आ सकती है। शरद पवार किसी भी हालत में नहीं चाहते कि इस उम्र में आकर वो ऐसे मामले में फंसें और उनका नाम आए। यही वजह है कि अनिल देखमुख को बचाने के लिए पूरी पार्टी और शरद पवार ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया है। अनिल देशमुख को बचाने के लिए वो हर तरह के समझौते के लिए तैयार हैं। लेकिन अनिल देशमुख को बचाने वाला कोई नजर नहीं आ रहा। और अदालत से भी उनको कोई राहत मिलती हुई नजर नहीं आ रही है। देखना यह है कि महाराष्ट्र सरकार ने जिस तरह से एक अभियुक्त, जिसकी वो खोज और जांच कर रही है, उससे जो सौदेबाजी की कोशिश की है- इसको सुप्रीम कोर्ट किस तरह से लेता है,क्योंकि इसका असर दूरगामी होगा।

ब्यूरोकेसी और पॉलिटीशियन के नैक्सस का मामला
यह संजय पांडे, अनिल देशमुख का मामला नहीं है। ये देश में ब्यूरोकेसी और पॉलिटीशियन के नैक्सस का मामला है कि किस तरह से ब्यूरोकेसी पॉलिटीकल मास्टर्स के सामने इस सब्लिएंट हो जाती है। डीजीपी संजय पांडे को क्या जरूरत है इस तरह की बातचीत करने की- जैसा कि दावा परमबीर सिंह कर रहे है, जैसा कि उनके वकील ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है। अगर ये सब सही है तो उनका आचरण उनके पद के अनुरूप नहीं है। अब या तो परमबीर सिंह इस बात को साबित करें या संजय पांडे। सुप्रीम कोर्ट में उनकी सरकार जाकर कहे कि परमबीर सिंह जो आरोप लगा रहे हैं वो सब गलत हैं- निराधार हैं- उनसे संपर्क नहीं किया गया। लेकिन इस सबका पता कैसे चलेगा? पता तो सर्विलांस के जरिए चलेगा,  जब उन दोनों के फोन काकॉल डेटा रिकॉर्ड निकलवाया जाएगा कि कौन किस समय कहां था- बातचीत हुई कि नहीं- किस नंबर से किस नंबर पर बात हुई- ये सब जांच से जब सामने आएगा। और इस पर जबाव देने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई और महाराष्ट्र सरकार को भी नोटिस दिया है।

सही समय

इस तरह 6 दिसंबर की तारीख महत्वपूर्ण होने वाली है। वैसे भी भारत की राजनीति में और देश के इतिहास में भी 6 दिसंबर का एक अलग महत्व है। लेकिन 6 दिसंबर को इस पॉलिटिक्स-ब्यूरोकेसी और क्राइम सिंडीकेट का जो नैक्सस है, क्या उसके बारे में कोई नई दिशा- कोई नई उम्मीद जगेगी? पता नहीं… लेकिन उम्मीद पर तो दुनिया कायम है। सुप्रीम कोर्ट बार बार चिंता जाहिर करता है कि राजनीति का अपराधीकरण हो रहा है- पॉलिटीशियंस, ब्यूरोक्रेट्स और अपराधियों का गठजोड़ हो रहा है, उसको तोड़ा जाना चाहिए- रोका जाना चाहिए- ऐसे लोगों को सजा मिलनी चाहिए- उनके खिलाफ मुकदमे तेजी से तय होने चाहिए। तो उस चिंता पर अमल करने का यह सही समय है। एक उपयुक्त मौका है। इसी तरह के मामलों के जरिए सुप्रीम कोर्ट एक कड़ा संदेश और चेतावनी दे सकता है। ये एक तरह से डिटरेंट (बचाव का) का काम कर सकते हैं। अगर सुप्रीम कोर्ट इस मामले में तेजी से कार्रवाई करता है तो सवाल ये है कि 6 दिसंबर को क्या होगा- ये अदालत में ही पता चलेगा। तब तक के लिए इंतजार करते हैं।