आयुषी राणा भारती

ये लड़की बाल्मीकि है इसलिए न्याय दो/ ये लड़की जाट है इसलिए न्याय दो/ ये लड़की राजपूत है इसलिए न्याय दो/ ये लड़की ब्राह्मण है इसलिए न्याय दो/ ये लड़की गुर्जर है इसलिए न्याय दो/ ये लड़की यादव है इसलिए न्याय दो/ ये लड़की दलित है इसलिए न्याय दो/ ये लड़की सवर्ण है इसलिए न्याय दो/ ये लड़की कश्यप है इसलिए न्याय दो/ ये लड़की निषाद है इसलिए न्याय दो/


ये लड़की हरिजन है इसलिए न्याय दो/ ये लड़की बेचारी है इसलिए न्याय दो/ ये लड़की है इसलिए न्याय दो।

जब तक ये विभाजन रहेगा तब तक कुछ बदलाव नहीं हो सकता।

राजनीति करनी है या न्याय दिलवाना है

जब ये होगा कि ये लड़की भी एक सजीव प्राणी है, इसके भी अपने अधिकार हैं, ये भी मनुष्य है, इसको भी पीड़ा होती है और बहन बेटियां तो सबकी समान ही होती हैं, इसलिए इसकी रक्षा करना और ध्यान रखना, इसको सुरक्षित अनुभव कराना हमारा दायित्व है, जब ये भावना हो जाएगी हम सबकी, तब समाज की मानसिकता परिवर्तित हो सकती है।

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अब पहले जाति देखते हैं आसिफा है, तो बोलो, ट्विंकल है तो दही जमा लो, बात बात में मंदिर और पूजा को खींच लाओ तो भाई ये बताओ राजनीति करनी है या न्याय दिलवाना है?

ये हर बेटी को पहले जाति में बांटेंगे

बहन को न्याय मिलना चाहिए, किसी भी बहन के साथ बुरा करने वाले को जल्द से जल्द सजा मिले। लेकिन जो लोग जानबूझकर आग लगा रहे हैं, आग में घी का काम कर रहे हैं उनको भी लठ लगने चाहिए। ये लोग वो हैं जो किसी भी बेटी के साथ न्याय नहीं होने देते। ये हर बेटी को पहले जाति में बांटेंगे फिर न्याय मांगेंगे।

अरे मूर्खों उसके लिए न्याय मांगने वाला कोई एक जाति का नहीं है, हर बन्दा कह रहा जल्द से जल्द दण्ड मिले, फिर इसमें जातिवादी एंगल की क्या जरूरत थी?

जो आ गए जाति जाति खेलने उनको भी खुराक दो। ये अपने संगठन चमकाने के चक्कर में किसी की बहन बेटी की आबरू का कोई मतलब नहीं समझते।

अरे बहन बेटी तो सबकी होती हैं उनको क्यों बांट रहे हो। ओर जो इस केस की आड़ में मूलनिवासी ओर विदेशी निवासी का खेल खेल रे उनको कहूंगी अरे धूर्तों कहीं तो रुक जाओ, तवायफ तक किसी मौके पे घुंघरू तोड़ देती है। कुछ तो शर्म कर लो।

सब बेटियों को अपनी बेटी मानें

माफ कीजियेगा, लेकिन जब तक ये जाति के पुरोधा सब बेटियों को अपनी बेटी की तरह नहीं मानेंगे तब तक कुछ नहीं होगा। आप बेटी न कहकर उसमें जाति ऐड कर रहे हैं तो आप मेरे लिए एक धूर्त व्यक्ति से अधिक ओर कुछ नहीं हैं, जिसे एक बेटी की आड़ में अपना एजेंडा पूरा करना है।

हर बेटी को न्याय मिले। लेकिन बेटी है, इंसान है -ये सोचकर… न कि जाति देखकर।

#हाथरस

अब आंखों पर पट्टी बांध ली

राजनीति के गिद्धों! हाथरस की घटना के बाद बलरामपुर में भी छात्रा की दुष्कर्म के बाद मौत हुई है। पर यहां की लाश तो तुम्हें स्वादिष्ट बिल्कुल नहीं लगेगी क्योंकि इस बार अत्याचारी मुसलमान है।

हर बार तुम लोग यही तो करते हो।

ये जो सेलेक्टिव रवैया है न वही तुम्हारे थोबड़े पर रहपट मारने के लिए पर्याप्त है।

अब इस पर कोई स्वरा भास्कर नहीं बोलेगी, जेएनयू के सब किरान्तिकारी सो जाएंगे, मानवाधिकार वाले आंखों पर पट्टी बांध लेंगे। अगर असली में इंसान हो न तो इस पर भी बोलो।

(सोशल मीडिया पोस्ट) 

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