धान कटाई के बाद शुरू होने वाले मड़ई-मेला में उत्साह, उमंग श्रद्धा भक्ति से होता है सराबोर।
बस्तर संभाग में दर्जन भर से ज्यादा आदिवासी जाति-जनजाति बाहुल्य यह इलाका अपनी विशिष्ट आदिम संस्किृति-परंपराओं मान्यताओं को अपने में सहेजे हुए अनवरत आगे बढ़ रहा है। इन्ही सांस्कृतिक-परंपराओं, मान्यताओं से बस्तर का मड़ई-मेला एवं जात्रा के आयोजन की परंपरा शताब्दियों से अनवरत जारी है। बस्तर में धान कटाई के बाद शुरू होने वाले मड़ई-मेला एवं जात्रा के आयोजन में उत्साह, उमंग के साथ ही श्रद्धा भक्ति से सराबोर होता है।मेले के आयोजन में गांव के मुखिया, सिरहा, पुजारी, गायता की मुख्य भूमिका होती है। मड़ई-मेला एवं जात्रा में व्यक्तियों के साथ ही देवी-देवताओं को भी आमंत्रित किया जाता है। वर्तमान में कुछ ऐसे मेले मड़ई है, जिन्हें छत्तीसगढ़ शासन बाकायदा प्रायोजित करती है और इन्हें आज महोत्सव का दर्जा मिल गया है। पहले इन्हें भी मेला या मड़ई ही कहा जाता था। जिसमें अब बस्तर जिले का चित्रकोट मड़ई को चित्रकोट महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसी तरह दंतेवाड़ा का बारसूर महोत्सव, कांकेर का गढ़िया महोत्सव, के नाम से मनाया जा रहा है।
आमतौर पर मेला-मड़ई को केवल मनोरंजन, खरीद-फरोख्त के लिए ही जाना जाता है, कुछ हद तक इसे उचित माना जा सकता है, लेकिन इसका दूसरा सबसे महत्वपूर्ण पहलू सांस्कृतिक-परंपराओं, मान्यताओं को नजर अंदाज नही किया जा सकता है, मेलों और मड़ई में उस अंचल के सांस्कृतिक विरासत को देखा जा सकता है। बस्तर संभाग में कुछ ऐसे चर्चित मेले-मड़ई है, जो एक निश्चित अंतराल पर आयोजित किए जाते हैं। और जिसे देखने दूर-दूर से लोग आते हैं।
डोकरा मेला
बस्तर जिले के बास्तानार ब्लॉक के मावली भाटा में आयोजित होने वाले अनोखे मेले में तो भारतीय संविधान का मंदिर बनाकर ग्रामीण पूजा करते हैं। मिली जानकारी के मुताबिक पुराने एक आईएएस अधिकारी की याद में इस गांव में मेला का आयोजन किया जाता है। इस मेले को डोकरा मेला भी कहा जाता है। दरअसल बस्तर के पूर्व कलेक्टर और सामाजिक कार्यकर्ता ब्रह्मदेव शर्मा ने आदिवासियों को उनकी जमीन और संवैधानिक अधिकारों के लिए जागरूक किया था। इन्हें गांव के लोग डोकरा कहते थे और इसी वजह से इस मेले का नाम डोकरा मेला रखा गया। इस आईएएस अधिकारी को याद कर इस मेले का आयोजन 1992 से मावली भाटा किया जाता है।
आम की टहनी से आमंत्रण
कोण्डागांव जिले में फागुन में आयोजित होने वाले वार्षिक मेले में शामिल होने के लिए साप्ताहिक बाजार में आए व्यापारियों को आम की टहनी लेकर निमंत्रण दिया जाता है, या यूं कहा जाए कि मेले में लोगों को बुलाने के लिए आम की टहनी निमंत्रण पत्र का काम करती है। बताया जाता है आम की टहनी से, निमंत्रण देने का रिवाज 700 वर्ष पुराना है जो लगातार चला आ रहा है। ग्राम देवी-देवताओं के साथ लाकर मेले की शुरुआत की जाती है। मेला आयोजन समिति के अनुसार मेले में शामिल होने वाले ग्राम देवी-देवताओं की अनुमति प्राप्त करना, देवी पहुंचानी की रस्म अदा करने के साथ सभी ग्राम देवी-देवताओं को मेले में शामिल होने का निमंत्रण देना, यह धार्मिक प्रक्रिया मेला शुरू करने से पहले की जाती है।
मावली मेला
नारायणपुर जिले में शिवरात्रि के आस-पास यानि माघ महीने में 07 दिनों तक चलने वाला मावली मेला, देवी मावली को समर्पित होता है। बताया जाता है। चालुक्य राजाओं के शासन के दौरान बस्तर दशहरा में मावली परघाव पूजा विधान में मावली देवी की पूजा करने का विधान राजा पुरुषोत्तमदेव के द्वारा 1408 में शुरू किया गया था। मावली मेले का इतिहास 614 वर्ष पुराना है। मावली मेला में प्रति वर्ष विदेशी पर्यटक मेला देखने आते हैं। परम्परागत नृत्य और धार्मिक अनुष्ठान इस मेले के प्रमुख आकर्षण होते हैं। मावली मेला के आयोजन में छग. शासन अपना योगदान देने लगा है।
रामाराम मेला
सुकमा जिला मुख्यालय से 09 किमी दूर एनएच-03 पर रामाराम में चिटमिटिन अम्मा देवी को समर्पित यह मेला फरवरी में होता है। श्रीराम सांस्कृतिक शोध संस्थान न्यास ने रामाराम को वर्षों पहले राम वन गमन पथ के रूप में दर्शाया है। ऐसी मान्यता है, कि वनवास के दौरान भगवान श्रीराम ने इस जगह पर भू-देवी की पूजा की थी।
भद्रकाली मेला
बीजापुर जिले के भद्रकाली में शिवरात्रि के दिन यहां पर भद्रकाली मेला लगता है। गोदावरी इंद्रावती के संगम पर एक रेत का टीला है, जिसमें शिवलिंग स्थापित है। संगम पर विशाल मेला लगता है और कई प्रकार के आयोजन होते हैं। एसी मान्यता है कि चालुक्य राजा ने भद्रकाली में मंदिर बनाकर पूजा-अर्चना की तो देवी ने राजा को एक दिव्य तलवार दी जिसके दम पर बस्तर में वे चालुक्य राज स्थापित कर पाए।
फागुन मंडई
दंतेवाड़ा जिले में फागुन मंडई फरवरी-मार्च के बीच शुरू होकर होली तक 10 दिनों तक जारी रहता है। फागुन मंडई में परंपरानुसार लमाहामार, गंवार और चीतलमार, आंवलामार के रस्म का निर्वहन किया जाता हैं। होली के दूसरे दिन लोग एक दूसरे पर होलिका की राख से होली खेलकर मनाते हैं और इस त्यौहार का समापन होता है।
लिंगेश्वरी मेला आलोर
कोण्डागांव जिले में लगने वाला मेले का आकर्षण साल में एक बार खुलने वाली आलोर गुफा है। कार्तिक पूर्णिमा पर मेले के दिन संतान प्राप्ति की कामना किए हजारो की संख्या में दूर-दूर से लोग प्रतिवर्ष यहां आते हैं और नि:संतान दंपत्ति संतान प्राप्ति का आशिर्वाद प्राप्त करते हैं, यह मेला संतान प्राप्ति की आशा और विश्वास का प्रतीक बन गया है।
सकलनारायण मेला
भोपालपट्नम से 12 किमी दूर सकलनारयण गुफा पहुंचा जा सकता है। चैत्र माह में यह मेला 07 दिनों तक चलता है। यहां पडोसी राज्य तेलंगाना से भी बड़ी संख्या में श्रृद्धालू यहां पहुंचते हैं।
इसके अलावा बस्तर संभाग में और भी छोटे-बड़े मेले-मड़ई का आयोजन लगभग सभी इलाकों में होता है, जिसमें से उपरोक्त कुछ चर्चित मेले-मड़ई के बारे में बताया गया है। बस्तर संभाग में आयोजित होने वाले मेले-मड़ई यहां के देवी देवताओं के पूजा अनुष्ठान के साथ जुड़े होने से यह सिलसिला अनवरत प्रतिवर्ष शताब्दियों से आज भी मनाये जा रहे हैं। (एएमएपी)