आपका अखबार ब्यूरो ।

केंद्र के तीन नये कृषि कानूनों के विरोध में शनिवार को किसानों का तीन घंटे का चक्का जाम शांति से निपट गया। पहले आंदोलनकारी किसानों के संगठनों ने दोपहर 12 बजे से 3 बजे तक राष्ट्रीय और राज्य के राजमार्गां पर देशव्यापी चक्काजाम का आह्वान किया था। फिर किसान यह कहकर बैकफुट पर आ गए थे कि दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में कोई जाम नहीं लगाया जाएगा।


 

राकेश टिकैत के तीन अलग अलग बयान

भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता और आंदोलन के प्रमुख नेता बनकर उभरे राकेश टिकैत ने तीन राज्यों को चक्काजाम से अलग रखने को लेकर एक ही दिन में तीन अलग अलग बयान दिए हैं। इन बयानों से लगता है कि वे जबरदस्त भ्रम की स्थिति में हैं। पहले बयान में उन्होंने कहा कि ‘उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और दिल्ली के आसपास के किसानों को हमें कभी भी शार्ट नोटिस पर बुलाना पड़ता है इसलिए उन्हें ऐसे अवसरों की तैयारी में रहना चाहिए और इसीलिए उन्हें चक्काजाम से अलग रखा गया है।’ बयान नंबर दो- ‘उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के किसान अभी कृषि कार्यों में जुटे हैं जबकि पंजाब आदि में फसल काटी जा रही है। इसलिए इन तीन राज्यों के किसानों को चक्का जाम से अलग रखा गया।’ और तीसरा बयान यह कि- ‘हमें ऐसी सूचनाएं मिली हैं कि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और दिल्ली में किसानों के चक्काजाम के दौरान शरारती तत्व गड़बड़ी कर सकते हैं। हम किसानों के आंदोलन को शांतिपूर्ण रखना चाहते हैं इसलिए ऐसी अप्रिय स्थिति की आशंका के मद्देनजर हमने इन तीन राज्यों में चक्काजाम न करने का फैसला किया।’

केंद्र को धमकी

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चक्काजाम संपन्न होने के बाद राकेश टिकैत अपने पुराने धमकाऊ अंदाज में नजर आए और केंद्र सरकार को अल्टीमेटम देते हुए दो अक्टूबर तक कृषि कानूनों को वापस लेने को कहा। उन्होंने कहा कि ‘किसान झुककर केंद्र सरकार के पास बात करने नहीं जाएगा। हम किसी दबाव में बातचीत नहीं करेंगे। अब तभी बात होगी जब प्लेटफार्म बराबरी का होगा।’
टिकैत के इस बयान पर सोशल मीडिया पर तमाम प्रतिक्रियाएं आई हैं। कुछ लोगों का कहना है कि राकेश टिकैत के अल्टीमेटम में कोई दम नहीं है और टिकैत खुद भी अब किसानों के लिए विश्वसनीय नहीं रहे हैं।’

किसान अड़े, सरकार डटी

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किसानों का आंदोलन 70 दिन से ज्यादा खिंच चुका है और सरकार कृषि कानूनों को वापस लेने को तैयार नहीं दिखती। वह कानूनों पर किसानों की आपत्तियों के आधार पर संशोधन करने को तैयार है और किसान संगठनों के साथ ग्यारह दौर की बातचीत हो चुकी है। किसान संगठनों के नेता कानूनों पर अपनी आपत्तियां बताने के बजाय कानूनों को वापस लेने की जिद पर अड़े हैं और इसके बिना अपना आंदोलन खत्म करने को राजी नहीं हैं। उधर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने कहा है कि राज्यसभा में कृषि कानूनों पर पंद्रह घंटे चर्चा हुई लेकिन विपक्षी दल कृषि कानूनों में एक भी खामी नहीं निकाल पाए।

स्वामी के सुझाव

इस बीच भारतीय जनता पार्टी के नेता और राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने शुक्रवार को कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों पर किसानों के आंदोलन को समाप्त कराने के लिए कुछ सुझाव दिए हैं। पत्र में सुब्रमण्यम स्वामी ने जो तीन सुझाव दिए हैं उनमें पहला है कि कृषि कानून पूरे देश में लागू न किए जाएं। जिन राज्यों में किसान इन कानूनों को लागू करवाना चाहते हैं उन राज्यों को केंद्र को इस बारे में पत्र लिखना चाहिए। स्वामी का कहना है कि जो इस कानून का लाभ लेना चाहते हैं उन्हें इससे वंचित नहीं किया जाना चाहिए। उनका कहना है कि मुख्य रूप से पंजाब ही इन कानूनों को लागू करने के पक्ष में नहीं है इसके पीछे उसका चाहे कुछ भी कारण हो।
अपने पत्र में स्वामी ने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों की मांग को मानने का सुझाव दिया है। अनाज की खरीदारी को कृषि संबंधित व्यापार तक सीमित रखने तथा इसमें दूसरे व्यावसायिक हित रोकने का सुझाव भी भाजपा नेता ने दिया है।


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