घी का घ तुम्हारे पास नहीं, शक्कर का श तुम्हारे पास नहीं, फिर भी हलवा तुमने बनाया।

डॉ. सुधांशु त्रिवेदी।
तीन और चीजें हैं, जो भारतीय इतिहास के लिए बहुत गंभीर वाली बात हैं। षडयंत्र नंबर वनसब बाहर से आए। अंग्रेजों को साबित करना था कि हम बाहर से आए, तो सब बाहर से आए।दूसरा- जो भी अच्छा था, वह सब बाहर वाले लाए।तीसरा- जो बुरा था, वह तुम्हारा है। यानी एक तरफ हमसे कहा जाता है कि 1,000 साल आप गुलाम क्यों रहे, अगर आप इतने अच्छे थे? इसका मतलब आपमें कोई बुराई थी। ठीक है साहब, हम गुलाम रहे तो फिर जो कुछ 1,000 साल में गलत हुआ, उसके लिए हम दोषी कैसे हैं? हम तो गुलाम थे साहब… नहीं, नहीं दोषी तो तुम ही हो… अरे, जब हम फैसले नहीं ले सकते थे तो हम दोषी कैसे?… नहीं, नहीं, दोषी तो आप ही हो, आप ही फैसले ले रहे थे… हम फैसले ले रहे थे, तो हम गुलाम कैसे थे? नहीं, नहीं, गुलाम तो तुम थे… अब सोचिए कैसे डायलेक्टिक लॉजिक (द्वंद्वात्मक तर्क) में फंसाया जाता है। अगर हम गुलाम थे, तो किसी भी चीज के बारे में हम निर्णय कैसे ले रहे थे? अगर हम निर्णय ले रहे थे तो हम गुलाम नहीं थे, लेकिन उनके हिसाब से हम खुदमुख्तार गुलाम (स्वतंत्र गुलाम) थे। यानि कि हम गुलाम भी थे और कुछ फैसले भी ले रहे थे।

फिर देखिए, कैसे दिमाग में भरा गया। हमने बचपन में पढ़ा हिंदू समाज की कुरीतियों में एक घूंघट, पर्दा प्रथा थी, जबकि हमारी कोई देवी पर्दे में नहीं है और पर्दा प्रथा जिस कारण से आई गुलामी के काल में, वहां के लिए पर्दा प्रथा नहीं बताई जाती। हिंदू समाज की बुराइयों में एक बाल विवाह की चर्चा होती है। हमारे यहां तो 25 वर्ष का ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास स्पष्ट रूप से धर्मग्रंथों में लिखा हुआ है। और तो और, जहां आज भी विधान है कि नौ साल की बच्ची से विवाह कर सकते हैं, वहां बाल विवाह कोई मुद्दा नहीं है। सोचिए कैसे दिमाग में भरा जाता है। तो इसलिए जो आया, वह बाहर से आया और उसके बाद भी हुकूमत उसने तुम पर की। गुलाम इसलिए बताना कि आपका कॉन्फिडेंस (आत्मविश्वास) न उभरने पाए। और उसके बाद, उनके द्वारा समाज में आई विकृतियों के लिए आपको जिम्मेदार इसलिए बनाना है, ताकि समाज में लड़ाई लगाई जा सके।

और एक बड़ी मजेदार बात, कि साब सब कुछ बाहर से आया – मतलब हल्के-फुल्के अंदाज में कहूं, जिन्होंने इतिहास पढ़ा है, सबको पता है- आर्य से लेकर आलू, गोभी, मिर्च, टमाटर तक सब बाहर से आया। किस जमीन पर आया? जहां दुनिया की सबसे हरियाली वाली जमीन थी, जहां सबसे अच्छी ट्रॉपिकल कंडीशंस (उष्ण कटिबंधीय परिस्थितियां) थीं, ये सब मानते हैं और जिस जमाने में सरस्वती नदी भी बहती होगी, आप सोचिए, पेशावर से लेकर ढाका तक इतना बड़ा मैदान पूरी दुनिया में कहीं नहीं था। सरस्वती नदी तो अपने उत्कर्ष के समय, अब जियोलॉजिकल (भूगर्भीय) डाटा में मिला है, 6 से 8 किलोमीटर चौड़ी थी।

सोचिए, ये कितना धन-धान्य से भरा हुआ प्रदेश था, यहां सब कुछ बाहर से आया। एक मजे की बात आप और देखिए। एक तरफ कहते हैं कि भारत से मेसोपोटामिया और ग्रीस और यूनान तक खूब व्यापार होता था। इतना व्यापार होता था कि ग्रीक की पार्लियामेंट में कई बार कहा गया कि भारत, यूनानी सोने का भण्डार बन गया है। यानी वहां कपड़े जाते थे यहां से, सबकुछ होता था और ब्लैक पीपर (काली मिर्च) की इतनी खपत थी यूनान में कि संस्कृत में उसका एक पर्यायवाची ‘यवनप्रिय’ भी है। और इसके बदले यूनान से सोना आता था।

एक और मजे की बात जानते हैं, क्या है? अगर वहां से (मुस्लिम आक्रमणकारियों के देशों से) कुछ आना था, जैसे कहते हैं तरबूज आया, तो भाई सेंट्रल एशिया से व्यापारी हजारों साल से आ रहे थे, तो वह कोई खाने-पीने की चीज नहीं ला पाए! खाने-पीने की चीज लाने के लिए लुटेरे की जरूरत! गजब का तर्क है कि नहीं! जो फौजें चलती थीं, वह तो जमीन के रास्ते से चलती थीं, तो अपने साथ खाने-पीने का सामान लेकर नहीं चलती थीं। उस जमाने में कोई फ्रिज नहीं होते थे कि खाने-पीने का सामान 15 दिन तक चलता रहेगा। वह रास्ते में जिस गांव में जाते थे, वहीं से खाना लेते थे या लूट लेते थे और खाते थे। जबकि जो समंदर के रास्ते से आता है, वह उस जमाने में हफ्तों का खाना लेकर चलता था, क्योंकि कई-कई हफ्तों से पहले उसको कोई बंदरगाह नहीं मिलेगा। वह खाने की चीज लेकर नहीं आ सकता था, खाने की चीज लेकर लुटेरा आएगा! आप जरा गौर से सोचिए, कि किस प्रकार के षडयंत्र में हमको फंसाने का प्रयास किया गया। हमारी सारी की सारी जो क्षमता, मेधा थी, उसको नष्ट करने का प्रयास किया गया।

सिर्फ एक उदाहरण देना चाहूंगा। कहा जाता है कि भारत में प्राचीन काल में पढ़ने नहीं दिया गया समाज के कुछ वर्गों को। बड़ी मजेदार बात है कि जिनको हम यवन और म्लेच्छ कहते थे, वो खलीफा मंसूर आकर सुश्रुत संहिता पढ़कर हल सुश्रुत लिख सकता है, दाराशिकोह संस्कृत सीख सकता है। ह्वेन सांग, फाहियान और इत्सिंग सीख सकते हैं। हमारे यहां के लोग नहीं सीख सकते। देखिए, कैसे बढ़िया-बढ़िया तर्क दिए जाते हैं।

एक टीवी डिबेट में बड़ी मजेदार बात हुई। हमारे एक हैदराबादी हजरत हैं, जिनके लिए कोई भी चुनाव हो… तो जो कहते हैं न कि धूम धूम धड़म धड़ैया रे… सबसे बड़े लड़ैया रे… सब जगह लड़ने को तैयार रहते हैं। हमारे एक नेता ने कह दिया था कि पोहा खाते हुए देखते समझ में आ गया कि बांग्लादेशी… उन्होंने कहा कि मैं पोहा नहीं खाता, मैं तो हलवा खाता हूं, जो अरबी है। तो मैंने कहा कि मेरे भाई, हलुए के दो प्रमुख घटक हैं- घी और शक्कर। शक्कर वहां होती है, जहां सबसे ज्यादा गन्ना होगा। गन्ने से राब बनेगी तो गुड़ बनेगा, गुड़ से शक्कर बनेगी।

मेरे भाई गन्ना सिर्फ भारत और क्यूबा में होता है। अरब में तो गन्ना होता ही नहीं। उनको दूसरी चीज है घी। घी वहां होगा, जहां खूब मात्रा में दूध होगा। दूध से दही, दही से मक्खन और मक्खन से घी बनेगा। जहां ऊंट का बूंद-बूंद दूध निकलता है, वहां घी आया कैसे! शायद आपमें बहुतों को नहीं पता हो कि जो ऊंट का दूध होता है, उसकी शेल्फ वैल्यू बहुत कम होती है, बस आधा घंटा। आपको आधे घंटे में इस्तेमाल कर लेना होगा। तो भाई, घी का घ तुम्हारे पास नहीं था, शक्कर का श तुम्हारे पास नहीं था, इसके बावजूद हलवा तुमने बनाया, हमको खिलाया, वामपंथियों ने ऐसा हलवा खिलाया कि हमने मान भी लिया कि हलवा वही लेकर आए थे।

आप सोचिए तो इसी में छोटा-सा उदाहरण, जिसके लिए कोई इतिहास की बहुत समझ की जरूरत नहीं है। बिरयानी वह लाए। तो भईया यह चावल कहां होता है? जहां खूब पानी होता हो। इसीलिए बंगाल, उड़ीसा, असम, बिहार और झारखंड की तरफ चावल ज्यादा होता है। रेगिस्तान में चावल होता था? दूसरी चीज क्या है घी, तो घी का तो मैंने उत्तर पहले ही दे दिया था। मसाले… मसाले सारे भारत में होते थे। मगर इसके बावजूद, मसाले का म तुम्हारे पास नहीं, घी का घ तुम्हारे पास नहीं, चावल का च तुम्हारे पास नहीं, फिर भी बिरयानी तुमने बनाई और हमको खिलाई और हमने मान भी लिया। इसीलिए ये बहुत से ऐसे षड्यंत्र हैं, जिन्हें समझने की जरूरत है। (जारी)

(लेखक भाजपा नेता और राष्ट्रवादी विचारक हैं)

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