‘एम’ वायरस को खत्म करने के लिए वैक्सीन भी ‘एम’ चाहिए।
डॉ. सुधांशु त्रिवेदी।
इतिहास के जिस मुकाम के ऊपर आज हम लोग खड़े हैं, उसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि यह अमृत काल है, जिसमें पांच प्रण की आवश्यकता है। नंबर वन, भारत को विकसित राष्ट्र बनाना, पर विकसित राष्ट्र की सारी बात बेमानी है, अगर हमारे अंदर गुलामी की मानसिकता भरी है। तो, गुलामी की मानसिकता से अपने को मुक्त करना है। अपनी विरासत पर गर्व करना है और इसके लिए हम सबको कर्तव्य करना है और कर्तव्य सामूहिक रूप से करना है। इसीलिए इतिहास के इस स्वरूप को बहुत समझने की आवश्यकता है।
मैं एक छोटी-सी बात कहता हूं। हमारा अभी नववर्ष प्रारंभ हुआ है। किसी का नववर्ष 2025 है, तो किसी का 1400 कुछ। लेकिन हमारा नववर्ष किसी भगवान, किसी भगवान के दूत के जन्म से नहीं शुरू होता, सृष्टि के प्रारंभ से शुरू होता है। ब्रह्म संवत् 1 अरब 96 करोड़ 82 लाख वगैरह-वगैरह… युधिष्ठिर संवत् जो कलियुग से शुरू हुआ, वह 5,128 है। फिर विक्रम संवत् 2082 आता है। कार्ल सेगन, जो दुनिया के सबसे बड़े कॉस्मोलॉजिस्ट हैं, जिन्होंने वॉयजर के ऊपर extraterrestrial Civilisation (परग्रही सभ्यता यानी पृथ्वी के अलावा दूसरे ग्रह की सभ्यता) के लिए डिकोड किया हुआ है। उन्होंने लिखा है कि केवल हिंदुओं की प्राचीन ब्रह्माण्ड संबंधी गणना ही आधुनिक वैज्ञानिक ब्रह्माण्ड संबंधी गणना से मेल खाती है। उन्होंने कहा, बाकी कोई हजार से ऊपर, लाख में नहीं पहुंचा। हम बिलियन में पहुंचे और हमारे हिसाब से तो ब्रह्मा जी की आयु 3.11 ट्रिलियन वर्ष है। अब आप कहेंगे कि 14.3 बिलियन वर्ष, जो यूनिवर्स की आयु है, उससे ज्यादा है, तो ये ठीक नहीं लगता है। पर अगर आप जेम्स वेब टेलिस्कोप की लेटेस्ट डिस्कवरी (नवीनतम खोज) में जाएं तो बहुत सी ऐसी गैलेक्सीज मिली हैं, जो ये दर्शा रही हैं कि तो उनकी आयु 14.3 बिलियन वर्ष, जो यूनिवर्स की आयु मानी जाती है, उससे ज्यादा पुरानी है। इसलिए मैं कहना चाहता हूं, वैज्ञानिकता का भी प्रमाण अगर देखना है, तो वह भी दिखाई पड़ता है और उसका प्रमाण यह दिखता है कि अभी हमारा महाकुंभ हुआ, तो यह एक मात्र ऐसा पर्व है, जो ब्रह्माण्ड संबंधी गणना (कॉस्मोलॉजिकल कैलकुलेशन) के ऊपर है।
यह ब्रह्माण्ड संबंधी गणना क्या है? सबसे बड़ी जो वैज्ञानिक खोज है 20वीं शताब्दी की, वह आइंस्टीन की स्पेशल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी है, जिसने कहा कि एक्स, वाई, जेड तीन डायमेंशन (आयाम) के अलावा एक चौथा आयाम टाइम का भी होना चाहिए। जैसे एक्स, वाई, जेड है न लंबाई, चौड़ाई, ऊंचाई… समय का भी आयाम होना चाहिए। टाइम क्यों? आपने कहा कि यह पॉइंट यहां पर है, वहां पर स्थिर मान लिया न, स्थिर तो नहीं है न यूनिवर्स में कुछ भी। इसका मतलब, किस टाइम पर है, यह बताना पड़ेगा। समय का पूर्ण मापदंड (एब्सॉल्यूट मेजरिंग पैरामीटर) क्या होता है? आपने कहा पौने पांच बजे हैं इस समय। तो, दिल्ली में बजे है ना? लंदन में तो कुछ और है, टोक्यो में कुछ और है, पेरिस में कुछ और है, तो आपने जीएमटी (ग्रीनविच मीन टाइम), एक स्टैंडर्ड मीन टाइम बनाया, जो पृथ्वी पर समान रूप से लागू होता है। तो आपसे पूछे कि समय का सबसे सटीक मापदंड कौन-सा हो सकता है, जो चंद्रमा, पृथ्वी या किसी भी ग्रह या सौरमंडल में अंतरिक्ष के किसी भी बिंदु पर समान रूप से लागू हो? यह केवल ग्रह की सापेक्ष स्थिति है और यह केवल ग्रह की सापेक्ष स्थिति हो सकती है।
आप भूल जाइए आइंस्टीन की थ्योरी के फोर्थ डायमेंशन (चौथे आयाम) को। अब आप आ जाइए भारत के गांव में। एक किसान कहता है भईया बुवाई शुरू करनी है, तो पहले मुहूरत देखो। मुहूरत क्या है? ग्रहों की सापेक्ष स्थिति। नौकरी शुरू करनी है तो मुहूरत देखो, शादी करनी है तो मुहूरत देखो। ये क्या है? यह ग्रहों की सापेक्ष स्थिति है। इसलिए मैं कहना चाहता हूं कि विज्ञान की सबसे महत्वपूर्ण चीजों में से एक हमारी संस्कृति में, इतिहास में ऐसे निहित है कि हम समझ ही नहीं पाते हैं कि उन तीनों में से कुछ क्या चीज है। एक बात, जैसे वीक में संडे (रविवार) के बाद मंडे (सोमवार) क्यों आता है? मंडे (सोमवार) के बाद ट्यूजडे (मंगलवार) क्यों आता है? इसका कोई तर्क है क्या? पूरी दुनिया मानती है, सिर्फ भारत नहीं मान रहा है। भाई रविवार पहला हो, समझ में आता है। सूर्य सबसे बड़ा ग्रह है। उसके बाद अगर आकार के हिसाब से हो तो वृहस्पति सबसे बड़ा है। उससे छोटा शनि है, तो रविवार के बाद वृहस्पतिवार आना चाहिए।
अगर दूरी के हिसाब से हो, तो सूर्य के सबसे नजदीक बुध है। तो रविवार के बाद बुधवार आना चाहिए। तो संडे के बाद मंडे, मंडे के बाद ट्यूजडे क्यों है? वह इसलिए है कि वैदिक ज्योतिष में जो ‘होरा’ निकाला जाता है, यानी दिन के दो भाग 12-12 घंटे के विभाजित किए जाते हैं, जिसको ‘अहोरात्र’ कहते हैं। उसमें अ और त्र हटा दें तो ‘होरा’ आ जाता है। इसी से ग्रीक में ‘हॉरोस्कोप’ शब्द आया है और अंग्रेजी का ‘आवर’ (Hour) शब्द भी ज्योतिष के होरा से लिया है। इसीलिए 24 घंटे ही क्यों होते हैं? क्योंकि ज्योतिष के हिसाब 24 ही होरा होते हैं और जब पहला होरा सूर्य का होगा तो आप किसी से भी जाकर पूछिएगा, जो थोड़ा इस विषय का जानकार होगा, वह बताएगा कि 24 घंटे के बाद जो 25वां घंटा आता है, यानी अगले दिन का पहला ‘होरा’, वह सूर्य के बाद चंद्र का आएगा। चंद्र के बाद जो 25वां ‘होरा’, 25वां घंटा लगेगा, अगले दिन का पहला होरा, वह मंगल का आएगा। मंगल के बाद बुध का आएगा। फिर आप कहेंगे कि भई इतना जटिल तो मुझे नहीं पता। पहले तो नहीं पढ़ा था। मगर आप सब ने पूजा करते समय यह ग्रह शांति का मंत्र तो ज़रूर पढ़ा है न! उसका क्रम याद करिए, “ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरान्तकारी भानु शशि भूमि-सुतो बुधश्च।” भानु… पहले सूर्य, फिर शशि… चंद्रमा, भूमिसुत… मंगल, फिर बुध… “गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव: सर्वे ग्रहा शांति करा भवंतु।।” तो जो हम बोल रहे हैं, हम जगद्गुरु थे नहीं, बल्कि दुनिया मान रही है। जो हमने कहा, वही मान रही है। 24 घंटे का घंटा भी मान रही है, ‘होरा’, कहीं आवर भी मान रही है और ग्रहों का वही क्रम भी मान रही है।
मगर ‘स्टेज ऑफ़ डिमॉरलाइजेशन’ ने हमारे दिमाग को ऐसा डिमॉरलाइज (शर्मिंदा) कर दिया कि हम उभरकर ना आने पाएं। मैं यह कहना चाहूंगा कि आप सब लोग बहुत बुद्धिमान हैं और आप सब लोग भारत की जो एक नई चेतना उभर रही है, उसको आगे बढ़ाने के लिए सतत प्रयत्नशील हैं। भारत के इतिहास के साथ यह जितने भी प्रकार का छल किया गया है, ये सबसे ज्यादा किसके द्वारा किया गया है? ये ‘एम’ फैक्टर के द्वारा किया गया है। मतलब Macaulay thought of 19th century (मैकाले विचार, 19वीं शताब्दी का) और Marxist thought of 20th century (मार्क्सवादी विचार, 20वीं शताब्दी का)। वैसे भी कोई और एम फैक्टर आप सोच रहे होंगे, तो आपकी बुद्धिमत्ता पर मुझे पूरा भरोसा है। इसलिए ‘एम’ फैक्टर को, यह जो ‘एम’ वायरस है, उसको खत्म करने के लिए वैक्सीन भी ‘एम’ ही चाहिए। और, वह है मोदी वैक्सीन।
आज आप देखिए, यह राणा सांगा और बाबर के बीच में… किसी भारतीय स्रोत में ऐसा उल्लेख ही नहीं है। वैसे ही किसी भारतीय स्रोत में सिकंदर के आक्रमण का उल्लेख नहीं है। यह तो तथ्य है, जो विदेशी भी मानते हैं कि सिकंदर आकर आगे नहीं बढ़ा, भाग गया और कहावत क्या है, ‘जो जीता वही सिकंदर’, जबकि होना चाहिए, ‘जो भागा, वही सिकंदर।’ अब आप सोचिए, राणा सांगा के द्वारा बुलाए जाने का कोई उल्लेख नहीं, विदेशियों के द्वारा। यह भी एक षडयंत्र है कि हम जो कुछ लाए, वह बाहर से आए। अगर हमने कुछ गलत किया, तो तुम्हीं उनको बुलाए। तो इसलिए इस ढंग का इतिहास जो लोग कहना चाहते हैं, उन इतिहास वालों के लिए मैं ये पंक्तियां कह कर बात समाप्त करता हूं।
पहले एक पंक्ति राणा सांगा के लिए और फिर इतिहास के लिए कि वह कुछ भी इतिहास में झूठा पढ़ा लें, हमारे इतिहास की कहानी हमारी जवानी में, हमारी परंपरा में, हमारे पत्थरों में, हमारे पर्वतों में अंकित है।
“मौन मौन गिर कहते हिलमिल गाथा वीर जवानों की/ एक एक पत्थर कहता है करुण कथा बलिदानों की/ तरु के पत्ते पत्ते पर अंकित राणा की अमर कहानी है/ मिटी नहीं पर्वत पथ से चेतक की चरण निशानी है/ जयमल ने जीवन दान दिया, फत्ते ने अर्पण प्राण किया/ कल्ला ने इसकी रक्षा में अपना सब कुछ कुर्बान किया/ सांगा के अस्सी घाव लगे मरहम पट्टी थी आंखों पर/ फिर भी उसकी असि बिजली सी फिर गई छपाछप लाखों पर/ अब भी करुणा की करुण कथा हम सबको याद ज़बानी है/ राणा तू इसकी रक्षा कर ये सिंहासन अभिमानी है।”
और यह भी समझिए पार्टी लाइन से ऊपर, एक वर्ग के नेता औरंगजेब के साथ खड़े हैं, मगर हमारे यहां कहा जाता है, राणा सांगा के नाम पर बांट दो। एक चीज और है, मैं कहने से नहीं रोक पा रहा हूं। इतिहास बताता है कि जब-जब हम बंटे, तब-तब कटे। जब जयचंद और पृथ्वीराज के बीच में बंटे, तो गोरी के हाथों कटे। जब मानसिंह और महाराणा प्रताप के बीच में बंटे, तो अकबर के हाथों कटे। जब छत्रपति शिवाजी महाराज और मिर्जा राजा जयसिंह के बीच में बंटे, तो औरंगजेब के हाथों कटे। इतिहास बताता है, बंटेंगे तो कटेंगे, एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे और इसके लिए सही इतिहास जानिए, तो सिर्फ यह कहता हूं- “हटा दो ये इतिहास झूठे तुम्हारे/ यहां जर्रे जर्रे पर सच है लिखा रे/ जो कोई किताबें ना बानी कहेगी/ यह माटी सभी की कहानी कहेगी।” (सम्पूर्ण)
(लेखक भाजपा नेता और राष्ट्रवादी विचारक हैं)