लोक आस्था का महापर्व छठ एक ऐसा विश्व स्तरीय त्योहार है, जहां न पुलिस बलों की नियुक्ति की जरूरत पड़ती है और न शांति समिति की बैठक होती है। न इंटरनेट का कनेक्शन काटा जाता है और न ही कहीं चंदा के नाम पर गुंडागर्दी या जबरन उगाही की शिकायत मिलती है। इतना ही नहीं न तो शराब दुकानों को बंद करने के लिए नोटिस चिपकाना पड़ता है और न ही मांस-मछली की दुकानों को बंद करने के लिए किसी को कहना पड़ता है। दूध या पूजन और खाद्य सामग्री में मिलावट का कोई भय नहीं होता। कहीं ठगे जाने का कोई खतरा नहीं।

खूंटी के राजा कुंजला निवासी समाजसेवी काशीनाथ महतो कहते हैं कि यही एक ऐसा त्योहार है, जहां न ऊंच-नीच का भेद होता है न ही अमीर-गरीब में कोई अंतर। इसमें न किसी विशेष व्यक्ति या धर्म के जयकारे होते हैं और न ही किसी से अनुदान और अनुकम्पा की अपेक्षा रहती है। राजा-रंक एक कतार में खड़े होते हैं। समझ से परे रहने वाले मंत्रों के उच्चारण की भी जरूरत नहीं पड़ती। न किसी विशेष दान-दक्षिणा की जरूरत है और न ही किसी दिखावट या आडंबर की।

तोरपा के समाजसेवी तुलसी भगत कहते हैं कि इस पर्व में न कोई प्रदूषण होता है और न ही गंदगी फैलती है। इस पर्व की पहली शर्त ही है शुद्धता और पवित्रता। रनिया प्रखंड के समाजसेवी और भाजपा नेता नारायण साहू कहते हैं कि इसी पवित्रता और सरलता के कारण ही बिहार-झारखंड से निकला यह पर्व अब पूरी तरह अंतरराष्ट्रीय त्योहार बन चुका है। छठ महापर्व के दौरान साफ-सफाई से लेकर अन्य कार्यों में दूसरे समुदाय के लोग भी पूरी आस्था के साथ हाथ बंटाते हैं। (एएमएपी)