मालदीव की नई सरकार का कहना है कि हिंद महासागर में आपसी सहयोग बढ़ाने के लिए इस क्षेत्र के सभी देशों को शामिल करना चाहिए और खेमेबाज़ी ख़त्म करनी चाहिए। मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू के कार्यालय की ओर से जारी बयान के अनुसार, उप-राष्ट्रपति हुसैन मोहम्मद लतीफ़ ने यह बात चीन में आयोजित ‘इंडियन ओशन रीजन फ़ोरम’ में कही। माना जाता है कि चीन ने यह मंच हिंद महासागर में भारत के प्रभाव को कम करने के इरादे से बनाया गया।

पिछले साल मालदीव ने इस फ़ोरम में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया था। उस समय मालदीव में इब्राहिम मोहम्मद सोलिह राष्ट्रपति थे, जिन्हें भारत का क़रीबी माना जाता है। हुसैन मोहम्मद लतीफ़ ने कहा कि मालदीव हिंद महासागर में मज़बूत रिश्ते बनाने, विशेषज्ञता साझा करने और इसे उदार और समृद्ध क्षेत्र बनाने में कंधे से कंधा मिलाकर काम करने के लिए तैयार है।

उन्होंने कहा, “साल 2011 में मालदीव सबसे कम विकसित देशों की सूची से बाहर निकल गया था. उसके बाद से ही वह हिंद महासागर और अन्य क्षेत्रों में साझेदारी मज़बूत कर रहा है और शांतिपूर्ण ढंग से सह-अस्तित्व और समृद्धि के लिए प्रयासरत है। अपने भाषण में उन्होंने कहा कि हिंद महासागर में सहयोग समावेशी होना चाहिए, किसी के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए और क्षेत्र के सभी देश इसमें शामिल होने चाहिए। मोहम्मद लतीफ़ ने कहा कि इससे खेमेबाज़ी ख़त्म होगी और ‘हमारे शांतिपूर्ण समुदायों में विकास और सहयोग को गति देने में मदद मिलेगी।

लतीफ़ का बयान क्यों है अहम?

हुसैन मोहम्मद लतीफ़

मालदीव के उप-राष्ट्रपति हुसैन मोहम्मद लतीफ़ का बयान इसलिए भी अहम है क्योंकि वह राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू की सरकार के पहले शीर्ष नेता हैं जो चीन पहुंचे थे। मालदीव में चीन ने बड़े पैमाने पर निवेश किया हुआ है। भारी निवेश का यह सिलसिला मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के कार्यकाल से शुरू हुआ था।

नए राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के क़रीबी रहे हैं। मुइज़्ज़ू ने हाल ही में हुए चुनावों में राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह को हराया था, जिन्हें भारत का क़रीबी माना जाता है। मोहम्मद मुइज़्ज़ू चुनाव अभियान के वक़्त से ही अपने देश में मौजूद भारतीय सैनिकों को वापस भेजने की बात करते आ रहे हैं। चुनाव में उन्होंने ‘इंडिया आउट’ का नारा दिया था। कुछ दिन पहले उन्होंने कहा था कि भारत अपने सैनिकों को वापस बुलाने के लिए तैयार हो गया है।

भारत की चिंता है कि अब मुइज़्ज़ू की सरकार बनने के बाद चीन का प्रभाव फिर से मालदीव पर बढ़ सकता है और निवेश का जो सिलसिला अब्दुल्ला यामीन की सरकार हटने के बाद कम हुआ था, उसमें तेज़ी आ सकती है। मालदीव लंबे समय तक भारत के प्रभाव में रहा है। यहां से भारत को हिंद महासागर के एक प्रमुख हिस्से पर नज़र रखने की क्षमता मिल जाती है। मगर चीन भी भारत के क़रीब इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए लगातार कोशिश कर रहा है।

चीन से सहयोग बढ़ाने की कोशिश

दुबई में हुए जलवायु सम्मेलन के दौरान मालदीव के राष्ट्रपति मुइज्ज़ू चीन के फ़र्स्ट वाइस प्रीमियर डिंग शुएशियांग के साथचीन ने जिबूती में अपना सैन्य अड्डा बनाया है और श्रीलंका के क़र्ज़ न चुका पाने पर उसके हंबनटोटा बंदरगाह को अपने नियंत्रण में ले लिया है। चीन के दक्षिण-पश्चिमी युन्नान प्रांत की राजधानी कुनमिंग में आयोजित फ़ोरम में शुक्रवार को मालदीव के उप राष्ट्रपति हुसैन मोहम्मद लतीफ़ ने कहा कि हाल के दशकों में मालदीव की प्रगति में चीन अहम योगदान दे रहा है।

उन्होंने कहा, “राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू चीन के साथ रिश्ते बनाने और साझा हितों को हासिल करने के पक्षधर हैं। हम चीन के साथ सहयोग बढ़ाने के नए अवसर तलाश रहे है। मीडिया , मोहम्मद लतीफ़ के भाषण की ख़ास बात यह रही कि उन्होंने चीन और मालदीव के द्विपक्षीय रिश्तों पर तो बात की, लेकिन चीन के बेल्ट एंड रोड अभियान का ज़िक्र नहीं किया, जिसके तहत मालदीव में कई विकास परियोजनाएं चल रही हैं।

क्या है चीन का इंडियन ओशन रीजन फ़ोरम

चीन में आयोजित जिस सम्मेलन में मालदीव के उप राष्ट्रपति ने ये सब कहा, उसे ‘चाइना इंटरनेशनल डेवेलपमेंट कोऑपरेशन एजेंसी’ (सीआईडीसीए) आयोजित करती है। सीआईडीसीए चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का अंग है। चीन के पूर्व उप विदेश मंत्री और भारत में राजदूत रह चुके लुओ ज़ाओहुई सीआईडीसीए के प्रमुख हैं। इस साल इस फ़ोरम का दूसरा संस्करण था। लुओ ने कहा था कि पिछले साल इस फ़ोरम में 19 देशों ने हिस्सा लिया था।

ये देश हैं- पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, मालदीव, इंडोनेशिया, म्यांमार, अफ़ग़ानिस्तान, ईरान, ओमान, दक्षिण अफ़्रीका, केन्या, मोज़ांबिक, तंज़ानिया, सेशेल्स, मेडागास्कर, मॉरिशस, जिबूती और ऑस्ट्रेलिया।

हालांकि, बाद में ऑस्ट्रेलिया और मालदीव ने इसमें भागीदारी से इनकार कर दिया था। भारत को उस बैठक में नहीं बुलाया गया था। ऑस्ट्रेलिया ने कहा था कि उसके किसी प्रतिनिधि ने इस फ़ोरम में शिरकत नहीं की। वहीं, मालदीव ने कहा था कि इसमें भाग न ले पाने को लेकर उसने पहले ही सीआईडीसीए को सूचना दे दी थी।

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सीआईडीसीए का कहना है कि इस साल चीन, 20 अन्य देशों और कई संगठनों के क़रीब 300 मेहमानों ने इस फ़ोरम में शिरकत की। माना जाता है कि चीन ने इस फ़ोरम को हिंद महासागर में भारत के प्रभाव को कम करने के लिए शुरू किया है।

इस क्षेत्र के लिए भारत समर्थित कई संगठन हैं, जो लंबे समय से सक्रिय हैं. जैसे कि ‘इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन’ (आईओआरए), जिसके 23 देश सदस्य हैं. साल 1997 में बने आईओआरए में चीन भी एक साझेदार है, जिसे वार्ता में शामिल किया जाता है। आईओआरए के अलावा, साल 2015 में मोदी सरकार ने ‘सिक्यॉरिटी एंड ग्रोथ फ़ॉर ऑल इन द रीजन (सागर) शुरू किया था। इसके अलावा, भारतीय नेवी ने इंडियन ओशन नेवल सिंपोज़ियम (आईओएनएस) भी बनाया है, जिसका मक़सद इस क्षेत्र की नौसेनाओं के बीच समुद्री सहयोग बढ़ाना है।

मालदीव और भारत

बीते दिनों मालदीव सरकार ने बताया था कि उनके देश से भारतीय सैनिकों की वापसी की गुज़ारिश को भारत सरकार ने मान लिया है। कॉप-28 सम्मेलन के दौरान पीएम मोदी और राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू की मुलाक़ात भी हुई थी। भारत ने मालदीव को साल 2010 और 2013 में दो हेलिकॉप्टर और साल 2020 में एक छोटा विमान तोहफ़े में दिया था। भारत ने कहा था कि ये विमान राहत और बचाव कार्यों और मेडिकल इमर्जेंसी में इस्तेमाल किए जाने थे।

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साल 2021 में मालदीव के सुरक्षा बलों ने बताया कि इन हेलिकॉप्टरों और विमान के संचालन के लिए क़रीब 75 भारतीय सैनिक मालदीव में मौजूद हैं। भारत मालदीव को सैन्य उपकरण भी मुहैया करवाता है। साथ ही नौसेना के लिए डॉकयॉर्ड बनाने में भी भारत मालदीव की मदद कर रहा है। मालदीव में भारत और चीन दोनों अपना दबदबा बनाने की कोशिश में दिखते हैं। माना जाता है कि मुइज़्ज़ू ने जिस गठबंधन के साथ मिलकर ये चुनाव जीता है, वो चीन की तरफ़ झुकाव रखता है।

भारत और मालदीव के बीच छह दशकों से अधिक पुराने राजनयिक, सैन्य, आर्थिक और सांस्कृतिक संबंध रहे हैं। मालदीव हिंद महासागर में क़रीब 1200 द्वीपों वाला एक देश है, जिसकी लगभग 98 फ़ीसदी आबादी सुन्नी मुस्लिम है। अगर किसी को मालदीव की नागरिकता चाहिए तो उसके लिए मुसलमान होना ज़रूरी है। मालदीव एक गणतंत्र है, जिसकी आबादी पांच लाख से बस थोड़ी सी ही ज़्यादा है। हिंद महासागर में यह ऐसे भौगोलिक जगह पर है कि यह भारतीय और चीनी रणनीति के लिहाज से महत्वपूर्ण है। मालदीव को लंबे अरसे से भारत से आर्थिक और सैन्य मदद मिलती रही है।(एएमएपी)