चीन की कम्युनिस्ट व्यवस्था के लिए चुनौती बना आर्थिक संकट का साया।
प्रमोद जोशी।
हाल में चीन की सबसे बड़ी रियलिटी फर्म एवरग्रैंड के दफ़्तरों के बाहर नाराज़ निवेशकों की भीड़ जमा हो गई। प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़पें भी हुईं। चीनी-व्यवस्था को देखते हुए यह एक नई किस्म की घटना है। जनता का विरोध? अर्थव्यवस्था के रूपांतरण के साथ चीनी समाज और राजनीति में बदलाव आ रहा है। वैश्विक-अर्थव्यवस्था से जुड़ जाने के कारण उसपर वैश्विक गतिविधियों का और चीनी गतिविधियों का वैश्विक-अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ने लगा है। और इसके साथ कुछ सैद्धांतिक प्रश्न खड़े होने लगे हैं, जो भविष्य में चीन की साम्यवादी-व्यवस्था के लिए चुनौती पेश करेंगे।
हाल में चीन की सबसे बड़ी रियलिटी फर्म एवरग्रैंड के दफ़्तरों के बाहर नाराज़ निवेशकों की भीड़ जमा हो गई। प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़पें भी हुईं। चीनी-व्यवस्था को देखते हुए यह एक नई किस्म की घटना है। जनता का विरोध? अर्थव्यवस्था के रूपांतरण के साथ चीनी समाज और राजनीति में बदलाव आ रहा है। वैश्विक-अर्थव्यवस्था से जुड़ जाने के कारण उसपर वैश्विक गतिविधियों का और चीनी गतिविधियों का वैश्विक-अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ने लगा है। और इसके साथ कुछ सैद्धांतिक प्रश्न खड़े होने लगे हैं, जो भविष्य में चीन की साम्यवादी-व्यवस्था के लिए चुनौती पेश करेंगे।
देनदारियों का बोझ
एवरग्रैंड, चीन में सबसे ज़्यादा देनदारियों के बोझ से दबी संस्था बन गई है। कम्पनी पर 300 अरब अमेरिकी डॉलर की देनदारी है। कर्ज़ के भारी बोझ ने कम्पनी की क्रेडिट रेटिंग और शेयर भाव ने उसे रसातल पर पहुँचा दिया है। इसकी तमाम निर्माणाधीन आवासीय इमारतों का काम अधूरा रह गया है। करीब 10 लाख लोगों में मकान खरीदने के लिए इस कम्पनी को आंशिक-भुगतान कर दिया था।
पैसे के निवेश के ज्यादा रास्ते नहीं
चीनी समाज में पैसे के निवेश के ज्यादा रास्ते नहीं हैं। बड़ी आबादी के मन में अच्छे से घर का सपना होता है। इस झटके से उन्हें धक्का लगा है। अब चीन सरकार ने घर खरीदने की अनुमति देने के नियमों को कठोर बना दिया है। बहरहाल इस परिघटना से चीनी शेयर बाजार में 9 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है। 2008 के वैश्विक आर्थिक संकट के बाद चीनी शेयरों में आई यह सबसे बड़ी गिरावट है। इस संकट के झटके दुनिया शेयर बाज़ारों में महसूस किए गए हैं।
औद्योगिक उत्पादन में गिरावट
उधर राष्ट्रपति शी जिनपिंग सामाजिक बदलाव पर जोर दे रहे हैं। साथ ही उन्होंने प्रदूषण, असमानता और वित्तीय जोखिमों को दूर करने पर अपना ध्यान केन्द्रित किया है। जलवायु परिवर्तन के सिलसिले में चीन ने बड़े वैश्विक लक्ष्यों को स्वीकार कर लिया है, पर इससे औद्योगिक उत्पादन में गिरावट आने लगी है। अब संस्थाओं पर चढ़े कर्ज ने सिर उठाना शुरू किया है। इस सदी के शुरुआती दशक में चीनी अर्थव्यवस्था की संवृद्धि में काफी तेजी आ गई थी। कामगारों की अपनी विशाल फ़ौज का इस्तेमाल कर वैश्विक सप्लाई चेन में निर्यात आधारित विकास के रास्ते पर आगे बढ़ता रहा।
ज्यादा कर्ज़ की व्यवस्था
2015 तक इलेक्ट्रॉनिक्स और घरेलू उपकरणों के निर्माण में चीन का क़रीब-क़रीब एकाधिकार स्थापित हो गया। कम्प्यूटर, मोबाइल हैंडसेट, और एयरकंडीशनरों के उत्पादन और असेम्बली में चीनी-उत्पाद दुनिया पर छा गए। इस ‘आर्थिक चमत्कार’ को जारी रखने के लिए अब चीन को उत्पादन का वही स्तर बरकरार रखना होगा या बढ़ाना होगा। इसके लिए ज्यादा कर्ज़ की व्यवस्था करनी पड़ेगी साथ ही तैयार माल की खपत के बाजार को अपने काबू में रखना होगा।
अर्थव्यवस्था विस्तार से उपजी विसंगतियां
चीनी अर्थव्यवस्था के विस्तार ने कुछ और विसंगतियों को जन्म दिया है। देश में असमानता का स्तर बढ़ा है। एक तरफ तुलनात्मक गरीबी है, वहीं दूसरी तरफ एक नया कारोबारी समुदाय तैयार हो गया है, जो अब सरकारी नीतियों के बरक्स दबाव-समूहों का काम करने लगा है। निजी कारोबार ने लोगों की आमदनी को बढ़ाया है। ऐशो-आराम और मौज-मस्ती पसंद यह समूह कम्युनिस्ट-व्यवस्था से मेल नहीं खाता। अलीबाबा ग्रुप के जैक मा की टीका-टिप्पणियों पर सरकार की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया हुई थी। जनवरी 2021 में पोलित ब्यूरो की बैठक में ‘पूँजी के बेतरतीब विस्तार को रोकने’ ज़ोर दिया गया। राष्ट्रपति शी चिनफिंग कम से कम पाँच मौकों पर ‘पूँजी के बेतरतीब विस्तार’ को रोकने का जिक्र कर चुके हैं।
बिजली संकट
एवरग्रैंड संकट के बीच एक नया संकट और खड़ा हो गया है। देश में बिजली का संकट पैदा होने लगा है। यह संकट खासतौर से जियांग्सू, झेजियांग और ग्वांग्डोंग में सबसे ज्यादा है, जो औद्योगिक क्षेत्र हैं। चीनी अर्थव्यवस्था का करीब एक तिहाई योगदान इन क्षेत्रों से आता है। एक तरफ औद्योगिक माँग है और दूसरी तरफ कोयले और गैस की कीमतें चढ़ रही हैं। तीसरे उत्सर्जन की मात्रा कम करने के लिए सरकार ने जो लक्ष्य निर्धारित किए हैं, उन्हें देखते हुए कोयले पर आधारित बिजलीघरों पर अवलम्बन कम किया जा रहा है। आगामी फरवरी में बीजिंग में विंटर ओलिम्पिक खेल आने वाले हैं। राष्ट्रपति शी चिनफिंग चाहते हैं कि उस दौरान आसमान नीला दिखाई पड़े। वे दुनिया को दिखाना चाहते हैं कि हम जलवायु-संरक्षण में भी सबसे आगे हैं। यों भी आगामी सर्दियों में कोयले और गैस की किल्लत पैदा होने वाली है। इससे घरों को गर्म रखने में ही दिक्कतें पैदा नहीं होने वाली हैं, बल्कि उद्योगों के सामने भी संकट पैदा होने वाला है। बिजली उत्पादन में गिरावट का सीधा असर अल्युमिनियम के कारखानों, वस्त्रोद्योग और सोयाबीन प्रोसेसिंग प्लांटों पर पड़ता है। अब या तो उत्पादन कम करना पड़ रहा है या कारखानों को पूरी तरह बंद करने की नौबत आ गई है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। आलेख जिज्ञासा से)