नदियों में बढ़ते प्रदूषण पर चिंता प्रकट करते समय आमतौर पर गंगा और यमुना जैसी बड़ी नदियों में गिरती गंदगी को रेखांकित किया जाता है। मगर सच्चाई यह है कि देश की तमाम नदियों का पानी उपयोग लायक नहीं रह गया है। यही नदियां गंगा और यमुना आदि मुख्य नदियों में जाकर मिलती हैं और उनका प्रदूषण और बढ़ा देती हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि देश की दो सौ उनासी नदियां तीन सौ ग्यारह जगहों पर पहुंच कर प्रदूषित हो जाती हैं। यह रपट संसद में पेश की गई।
हालांकि सरकार का कहना है कि नमामि गंगे योजना और नदी संरक्षण योजना के अंतर्गत चलाई जा रही परियोजनाओं के चलते नदियों में प्रदूषण रोकने में काफी मदद मिली है। मगर हकीकत क्या है, यह देश की किसी भी नदी को साक्षात देखने से प्रकट हो जाती है।
कई जगहों पर तो केंद्र और राज्य सरकारों के बीच इन नदियों को प्रदूषण मुक्त करने को लेकर सियासी रस्साकशी तक देखी जाती है। हालांकि यह रिपोर्ट कोई पहली बार नहीं आई है और न नदियों में बढ़ते प्रदूषण स्तर के कारण ही केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से छिपे हैं, मगर इस पर काबू पाना क्यों कठिन बना हुआ है, इसका सही उत्तर शायद कोई देना नहीं चाहता।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड हर बार अपने अध्ययन में यह तथ्य पेश करता है कि विभिन्न शहरों में लगी औद्योगिक इकाइयों और आवासीय परिसरों से निकलने वाले जल-मल को बिना शोधन के नदियों में गिराए जाने की वजह से यह प्रदूषण बढ़ता है। जल शोधन संयंत्र लगाने की जरूरत सालों से रेखांकित की जाती रही है, मगर न तो राज्य सरकारों ने इसे गंभीरता से लिया और न कल-कारखानों में इसे कड़ाई से लागू किया जा सका है।
अलग-अलग जगहों पर औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले गंदे पानी की प्रकृति अलग-अलग होती है। जिन जगहों पर कपड़े की रंगाई आदि का काम होता या चमड़े का प्रसंस्करण किया जाता है, उन कारखानों से निकलने वाले पानी में जहरीले तत्त्वों का स्तर बहुत ऊंचा होता है। इसी तरह स्टील की सफाई आदि के कारखानों से निकलने वाले पानी में जहरीले तत्त्व घुले-मिले होते हैं।
जिन इलाकों में रासायनिक उत्पाद बनते हैं, वहां से निकलने वाले पानी को सीधे बहा देना किसी भी रूप में खतरे से खाली नहीं होता। यह बात केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अच्छी तरह जानता है, पर कभी संजीदगी से इसे रोकने का प्रयास करता नहीं देखा जाता। कभी-कभार भारी दबाव बनने पर वह कुछ कारखानों के खिलाफ औपचारिक कार्रवाइयां जरूर कर देता है।
कुछ दिनों पहले ही जलवायु परिवर्तन को लेकर हुए विश्व सम्मेलन में यूनेस्को ने स्वीकार किया कि भारत के पास नदियों की बड़ी संपदा है और उनके किनारे प्राकृतिक वातावरण तैयार कर कार्बन उत्सर्जन में काफी कमी लाई जा सकती है। इसके लिए वित्तीय मदद की भी पेशकश की गई। मगर यह तभी कारगर साबित हो पाएगा, जब कारखानों और शहरी बस्तियों से निकलने वाले गंदे पानी को नदियों में सीधे गिरने से रोका जाए।
औद्योगिक नियमों के मुताबिक बिना शोधन के कोई भी औद्योगिक कचरा सीदे नदियों में नहीं बहाया जा सकता, मगर खुद प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इस पर गंभीरता से पालन नहीं करा पाता। जब तक इस दिशा में बिना पक्षपात के कठोर कदम नहीं उठाए जाते, तब तक नदियों की सेहत सुधारना मुश्किल ही बना रहेगा।(एएमएपी)