प्रहलाद सबनानी।
वित्तीय वर्ष 2025-26 में केंद्र सरकार ने भारतीय नागरिकों पर करों का बोझ कम करने का ईमानदार प्रयास किया है। सबसे पहले आयकर की सीमा को 12 लाख रुपए प्रति वर्ष कर दिया गया। जिसका मतलब है कि  12 लाख रुपए तक की वार्षिक आय वाले नागरिकों को अब आयकर नहीं देना होगा। इसके बाद वस्तु एवं सेवा कर की दरों का युक्तिकरण करते हुए पूर्व में लागू चार दरों (5 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत एवं 28 प्रतिशत) को केवल दो दरों (5 प्रतिशत एवं 18 प्रतिशत) में परिवर्तित कर दिया गया। इससे भारत में 90 प्रतिशत से अधिक उत्पाद एवं सेवाओं पर करों की दर में भारी कमी दृष्टिगोचर हुई है।

प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों की दरों में की गई उक्त कमी के चलते नागरिकों के हाथो में खर्च करने हेतु अधिक राशि की बचत हुई है और इसका प्रभाव इस वर्ष दीपावली एवं अन्य त्यौहारों के शुभ अवसर पर उपभोक्ता वस्तुओं एवं सेवाओं की बिक्री में हुई भारी भरकम वृद्धि के रूप में देखने को मिला है। वर्ष 2025 के दीपावली एवं अन्य त्यौहारों के समय 5.40 लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि के उत्पाद एवं 65,000 करोड़ रुपए की राशि की सेवाओं की बिक्री हुई है, जो अपने आप में एक रिकार्ड है। भारतीय रिजर्व बैंक ने भी ब्याज दरों में कटौती की है। वर्ष 2025 में रेपो दर को 6.50 प्रतिशत से घटाकर 5.50 प्रतिशत तक नीचे लाया गया है, इससे भारत में नागरिकों एवं उद्योग जगत को सस्ती दरों पर ऋण की सुविधा उपलब्ध हो रही है। दिसम्बर 2025 में भी रेपो दर में 25 आधार बिंदुओं की कमी किये जाने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। इससे ऋणों पर ब्याज दर में और अधिक कमी हो सकती है। साथ ही, अब तो केंद्र सरकार एवं कई राज्य सरकारों द्वारा भी किसानों, बुजुर्गों एवं महिलाओं के बैंक खातों में सीधे ही सहायता राशि जमा की जा रही है, जिससे भारतीय नागरिकों के हाथों में अधिक मुद्रा उपलब्ध हो रही है और वे अधिक मात्रा में बाजार से उत्पादों को खरीदने में सक्षम हो रहे हैं। भारत में, हाल ही के समय में, आम जनता की क्रय शक्ति इसलिए भी बढ़ी है क्योंकि मुद्रा स्फीति की दर पर भी नियंत्रण स्थापित किया जा सका है और खुदरा महंगाई की दर 2 प्रतिशत से भी नीचे आ गई है, जो 10/12 वर्ष पूर्व तक 10 प्रतिशत के आसपास रहती थी। कुल मिलाकर, अब यह कहा जा सकता है कि भारत 10 प्रतिशत वार्षिक विकास दर को हासिल करने की ओर तेजी से अपने कदम बढ़ा रहा है।

Centre to extend free ration scheme for 80 crore for next five years: PM  Modi - BusinessToday

केंद्र सरकार द्वारा 65 करोड़ नागरिकों को मुफ्त अनाज भी उपलब्ध कराया जा रहा है जिससे भारत में अति गरीब नागरिकों की संख्या तेजी से कम हो रही है। गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले करोड़ों नागरिकों को गरीबी की रेखा से ऊपर लाया जा सका है। भारत में लगातार कम हो रही अति गरीब नागरिकों की संख्या की प्रशंसा वैश्विक वित्तीय संस्थानों, विश्व बैंक एवं अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष आदि, द्वारा भी समय समय पर की गई है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि भारतीय नागरिकों को करों में उक्त वर्णित रियायतें देनें एवं गरीब वर्ग को मुफ्त अन्न उपलब्ध कराने एवं उनके खातों में सीधे सहायता राशि जमा कराने जैसी योजनाओं को चलाने के बावजूद केंद्र सरकार के बजटीय घाटे को लगातार कम करने में सफलता मिल रही है। केंद्र सरकार का बजटीय घाटा कोविड महामारी के खंडकाल में लगभग 10 प्रतिशत तक पहुंच गया था जो प्रतिवर्ष लगातार कम होते होते वर्ष 2026 में 4.4 प्रतिशत के स्तर पर नीचे आने का अनुमान लगाया गया है। यह सम्भव हो सका है क्योंकि भारत के नागरिकों द्वारा अपने नागरिक कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर की राशि को ईमानदारी से सरकार के खजाने में जमा कराया जा रहा है। भारत में हाल ही के वर्षों में कर अनुपालन में काफी सुधार दिखाई दिया है।

यह सही है कि किसी भी देश में आर्थिक विकास की दर को तेज करने में, उस देश में, इस संदर्भ लागू की जाने वाली आर्थिक नीतियों का प्रभाव पड़ता है परंतु यदि उस देश में समाज भी सरकार के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने का प्रयास करे तो आर्थिक विकास की गति को और अधिक तेज किया जा सकता है। अर्थात, समाज को अपने नागरिक कर्तव्यों पर आज और अधिक विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष में संघ के स्वयंसेवकों द्वारा पंच परिवर्तन नामक कार्यक्रम को समाज के बीच ले जाने का प्रयास बड़े उत्साह से किया जा रहा है। पंच परिवर्तन कार्यक्रम में 5 बिंदु शामिल हैं – नागरिक कर्तव्य, कुटुम्ब प्रबोधन, पर्यावरण, समरसता एवं स्व के भाव का जागरण (इसमें स्वदेशी अर्थात देश में निर्मित उत्पादों का उपयोग भी शामिल है)। इन 5 आयामों के माध्यम से समाज परिवर्तन के कार्य को गति देने का प्रयास किया जा रहा है, जिसमें भारतीय नागरिकों को अपने नागरिक कर्तव्यों के अनुपालन पर भी विशेष ध्यान दिलाने का प्रयास किया जा रहा है। देश के कानूनों का पालन करना और उनका सम्मान करना नागरिकों की जिम्मेदारी है। इस कर्तव्य को पूरा करने से समुदाय में अनुशासन और सुरक्षा की भावना पैदा होती है। दैनिक जीवन के छोटे छोटे नियमों का पालन करने से सामाजिक अनुशासन का विकास होता है। जैसे, यातायात नियमों का पालन करना। जहां आवश्यक हो वहां वाहन कतार में लगाना। नागरिक कर्तव्य के अंतर्गत नागरिकों से अपेक्षा की जाती है कि वे विभिन्न करों का भुगतान समय पर करें एवं सही राशि का भुगतान करें। यह देश की आर्थिक प्रगति के लिए आवश्यक है। यदि समस्त नागरिक अपने इस कर्तव्य का पालन करते हैं तो भारत में करों की दरों को निश्चित ही और अधिक नीचे लाया जा सकता है। इसी प्रकार, राष्ट्रीय सम्पत्ति की सुरक्षा एवं रखरखाव करना भी नागरिकों का परम कर्तव्य है, जैसे सार्वजनिक स्थानों की स्वच्छता बनाए रखना और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना। कभी कभी आम जनता को गुमराह कर आंदोलन हिंसक रूप लेते नजर आते हैं एवं परिणामस्वरूप देश में आगजनी, लूटपाट और राष्ट्रीय सम्पदा की हानि देखने को मिलती है। इस सम्बंध में समाज में जागरूकता पैदा किए जाने की आज सख्त आवश्यकता है।

वैसे भी लोकतंत्र की सफलता और स्थिरता नागरिकों की भागीदारी और कर्तव्यों के प्रति सजगता पर निर्भर करती हैं। जब नागरिक अपने कर्तव्यों के प्रति संवेदनशील होते हैं और उनका ईमानदारी से पालन करते हैं तो समाज में सकारात्मक बदलाव आते हैं और देश के आर्थिक विकास की गति तेज होती है। समाज की प्रगति, सुरक्षा और समृद्धि के लिए नागरिकों की अपने कर्तव्यों प्रति संवेदनशीलता तथा कटिबद्धता आवश्यक है। देशभक्ति न केवल अपने देश के प्रति प्रेम और निष्ठा है, बल्कि अपने देश के उत्थान और सुरक्षा में योगदान भी है। एक देशभक्त नागरिक अपने नागरिक कर्तव्यों के प्रति सदैव संवेदनशील एवं जागरूक रहता है। नागरिक एवं सामाजिक अनुशासन का पालन करना ही स्वतंत्र देश में प्रतिदिन प्रकट होने वाली देशभक्ति है।

नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों में मुख्य रूप से शामिल है, (1) संविधान का पालन करना एवं उसके आदर्शों और संस्थाओं, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्र्गान का सम्मान करना। (2) जिसने हमारे राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम को जन्म दिया प्रेरित होने पर उन ऊंचे आदर्शों को विकसित करना और उनका पालन करना। (3) भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता उनका रख-रखाव एवं संरक्षण करना। (4) देश की रक्षा करना और आह्वान किए जाने पर राष्ट्रीय सेवा करना। (5) धार्मिक, भाषाई और क्षेत्रीय या वर्ग मतभेदों को पार करना, भारत के लोगों के बीच एकता और भाईचारे को बढ़ावा देना, महिलाओं की गरिमा को कम करने वाली प्रथाओं को त्यागना। (6) हमारी विविधतापूर्ण सांस्कृतिक विरासत की सराहना करना और इसे बचाना। (7) वनों, झीलों, नदियों, वन्य जीवों और प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना, जीवित प्राणियों के प्रति दया दिखाना। (8) वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवतावाद, जिज्ञासा और सुधरवाद का विकास करना। (9) सार्वजनिक सम्पत्ति की रक्षा करना एवं हिंसा का कठोर त्याग करना। (10) देश में ही निर्मित वस्तुओं का उपयोग करना एवं सनातन संस्कृति के संस्कारों का अनुपालन करना।

भारत के समस्त नागरिक यदि उक्त मौलिक कर्तव्यों का अनुपालन करते हैं तो भारत की आर्थिक विकास दर को 10 प्रतिशत प्रतिवर्ष के ऊपर ले जाने में किसी प्रकार की अन्य कठिनाई आने वाली नहीं है। केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारें अपनी ओर से देश के लिए हितकारी आर्थिक नीतियां बनाने की पूरी कोशिश कर रही हैं परंतु भारतीय नागरिक होने के नाते हमें भी अपने नागरिक कर्तव्यों का अनुपालन सुनिश्चित करना होगा तभी हम सब मिलकर मां भारती को एक बार पुनः विश्व गुरु के रूप में आरूढ़ कर पाएंगे।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के सेवानिवृत्त उपमहाप्रबंधक हैं)