चीन दुनिया में भले ही दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का राग अलाप रहा हो, लेकिन हकीकत यह है कि उसकी अर्थव्यवस्था बहुत ही बुरे दौर में है। चीन में इकॉनमी और सियासत को लेकर कभी पारदर्शिता नहीं रही। चीन की आम जनता सरकार के कामकाज से खुश नहीं है। वॉशिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, चीन के कोने-कोने में राष्ट्रपति शी जिनपिंग के खिलाफ गुस्सा भड़क रहा है। 2008 में शी जिनपिंग चीन के राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठे। अमेरिका से लगातार प्रतिस्पर्धा कर रहे चीन के मौजूदा हालात खस्ता नजर आ रहे हैं। चीन के राष्ट्रपति भारत में होने वाले जी20 शिखर सम्मेलन में नहीं पहुंचे, इसके पीछे चीन के घरेलू हालात जिम्मेदार बताए जा रहे हैं।

सरकार की नीतियों ने जनता परेशान

चीनी लोग शी जिनपिंग सरकार से और भी ज्यादा परेशान हैं। पिछले कुछ वर्षों में उनकी कई नीतियों ने जनता में आक्रोश पैदा किया है। इसकी झलक आर्थिक आंकड़ों में देखने को मिली है। मूलतः चीन की अर्थव्यवस्था को कोविड महामारी के बाद से कई समस्याओं का सामना करना पड़ा है। आरोप है कि लॉकडाउन के दौरान सरकार की कई नीतियां जनविरोधी थीं। तभी से ही लोगों के अंदर क्रोध की आग जलने लगी।

मौजूदा वक्त में चीन की अर्थव्यवस्था के सामने सबसे बड़ी समस्या डिफ्लेशन है। चीनी युआन का मूल्य अचानक बढ़ गया है। नतीजा यह है कि वहां कीमतें बढ़ने की बजाय धीरे-धीरे वस्तुओं की कीमतें कम होती जा रही हैं। लोगों का सरकार से भरोसा उठ गया है और वे अपना भविष्य सुरक्षित करना चाहते हैं। बिना खर्च किये अधिक धन संचय करना चाहते। हालिया आंकड़ों की मानें तो देश में आपूर्ति की तुलना में मांग कम हो रही है।

नागरिकों की बढ़ती उम्र और बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्‍या

चीन में एक और बड़ी समस्या वहां के नागरिकों की बढ़ती उम्र और बेरोजगारी है। वहां वरिष्ठ नागरिकों की संख्या लगातार बढ़ रही है और बेरोजगारी युवा पीढ़ी को लील रही है। उन्हें नौकरी नहीं मिल रही है। चीनी लोग सरकार की नीतियों से डरे हुए हैं और नया परिवार शुरू करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं, उन्हें संतान पैदा करने से डर लगता है। विवाह दर में भी कमी आई है। परिणामस्वरूप नये बच्चों की जन्म दर भी पहले की तुलना में कम हो गयी है।

गिरा जन्म दर, बुजुर्ग आबादी बढ़ी

जन्म दर में गिरावट के कारण चीन में बुजुर्ग नागरिकों की आबादी बढ़ रही है। नागरिकों की औसत आयु 39 वर्ष है।  जैसे-जैसे बुजुर्ग नागरिकों की संख्या बढ़ रही है, चीन का कार्यबल भी धीमा हो गया है।  काम धीमा हो गया है। जिन नागरिकों ने शी जिनपिंग के सत्ता में आने से पहले चीन देखा था, वे मौजूदा आर्थिक आंकड़ों से बेहद निराश हैं। वे सरकार को सकारात्मक दृष्टि से नहीं देख सकते।

कंपनियां भी देश छोड़ने की कर रही कोशिश

चीनी सरकार पर आरोप है कि उसने पूरे देश में अनिश्चित स्थिति पैदा कर दी है। अमेरिकी वाणिज्य सचिव ने हाल ही में चीन का दौरा किया। उन्होंने चीन को इस बारे में चेतावनी भी दी। अमेरिकी वाणिज्य सचिव के मुताबिक, चीन में सरकार द्वारा बनाया गया अनिश्चित माहौल निवेश के लिए अनुपयुक्त है। अमेरिकी निवेशक चीन में निवेश करने से कतरा सकते हैं। जानकारों के मुताबिक चीन के इस हालात में वहां की कंपनियां भी देश छोड़ने की कोशिश कर रही हैं।  चीनी व्यापारियों के बीच यह धारणा है कि विदेशों में व्यापार करना अधिक लाभदायक है। अंतरराष्ट्रीय राजनीति में चीन की स्थिति बहुत सहज नहीं है। पड़ोसी देशों के खिलाफ चीनी आक्रामकता को पश्चिम द्वारा अच्छी तरह से स्वीकार नहीं किया गया है।

अमेरिका का विरोध पड़ा भारी

वैश्विक परिप्रेक्ष्य में चीन का व्यवहार अपेक्षा के अनुरूप नहीं है। इसीलिए शी जिनपिंग के देश को संयुक्त राष्ट्र की आलोचना का शिकार होना पड़ रहा है। अमेरिका चीन के पड़ोसी शत्रु देशों का करीबी बन गया है। इससे शी जिनपिंग सरकार के लिए नई आशंकाएं पैदा हो सकती हैं। डगमगाती अर्थव्यवस्था के संकट को शी जिनपिंग कैसे रोकेंगे, ये सवाल देश के अंदर उठने लगा है।   (एएमएपी)