आपका अखबार ब्यूरो।
अपने ‘भाईजान’ किसी से कम हैं क्या? अपने स्टारडम की हनक में वाहियात फिल्में परोसने का विशेषाधिकार सलमान खान को भी है। अपने विशेषाधिकारों के साथ इस बार वह पधारे ‘राधे- योर मोस्ट वॉन्टेड भाई’ के साथ। कोरोना की दूसरी लहर के कारण उनकी फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज नहीं हो पाई थी। 13 मई को ओटीटी पर रिलीज होने के बाद पहले दूसरे दिन तो इस फिल्म की कामयाबी के झूठे सच्चे आंकड़ों के इश्तिहार भी आए- ‘क्रिएटिंग हिस्ट्री 4.2 मिलियन व्यूज’ …लेकिन असली हिस्ट्री तब क्रिएट हुई जब इश्तिहार दिखा ‘150 मिलियन व्यूज’ …फिर इश्तिहार आने बंद हो गए।
छोटा पर्दा छोटी बेइज्जती, बड़ा पर्दा बड़ी बेइज्जती
संभवतः वितरकों को ‘भाईजान’ की इतनी बेइज्जती पर्याप्त से कुछ कम लगी होगी तभी 4 हफ्ते बाद फिल्म को बड़े पर्दे के दर्शन कराए गए। महाराष्ट्र के जिन दो सिनेमाघरों में यह फिर दिखाई गई उनमें एक मालेगांव स्थित ड्राइव इन सिनेमा है और दूसरा औरंगाबाद का सिनेप्लेक्स। मालेगांव के ड्राइव इन सिनेमा में फ़िल्म के 2 और सिनेप्लेक्स में 4 शो दिखाए जा रहे थे। पहले दिन कुल 84 टिकट बिके। इसे कहते हैं असली बेइज्जती। ठीक भी है। छोटा पर्दा छोटी बेइज्जती, बड़ा पर्दा बड़ी बेइज्जती! मालेगाव में 9:30 बजे के शो में तो एक भी व्यक्ति फिल्म देखने नहीं आया और शो कैंसिल करना पड़ा।
सारी बातें खराब नहीं
15 मई को इसी स्थान पर फिल्म की समीक्षा करते हुए राजीव रंजन ने लिखा: ‘बतौर निर्देशक, प्रभुदेवा ने कोई कालजयी फिल्में तो नहीं बनाई हैं, लेकिन कुछ मनोरंजक फिल्में जरूर बनाई हैं। उस लिहाज से देखें, तो यह उनकी अब तक की सबसे खराब फिल्म है।’
‘कुछ याद रखने लायक है इस फिल्म में? याद नहीं आता। जरा ठहरिये- फिल्म में सारी बातें खराब ही नहीं हैं। एक अच्छी बात भी है। फिल्म केवल दो घंटे में खत्म हो जाती है।’
चाहने वालों से सहानुभूति
‘सलमान भाई कुछ भी कर सकते हैं। हर बार एक जैसी काठ की हाड़ी ले आते हैं और आग पर चढ़ा देते हैं। जिसको जो बिगाड़ना, हो बिगाड़ ले। मैं समीक्षा लिख कर भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता। बस भाई के चाहने वालों से सहानुभूति जता सकता हूं। सलमान खान के प्रशंसकों का भी मनोरंजनाधिकार है। उन्हें भाई का प्रशंसक होने की सजा ‘राधे’ के रूप में नहीं दी जा सकती। शायद भविष्य में उन्हें ‘बजरंगी भाईजान’ जैसा कोई तोहफा मिल जाए। तब तक… बेटर लक नेक्स्ट टाइम।’