शास्त्रीय गायक उस्ताद राशिद खान नहीं रहे। मंगलवार को कोलकाता के एक अस्पताल में उन्होंने 55 साल की उम्र में अंतिम सांस ली। उस्ताद राशिद खान प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहे थे, जिसके लिए कोलकाता के एक अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। वह वेंटिलेटर और ऑक्सीजन सपोर्ट पर थे। डॉक्टर्स की तमाम कोशिशों के बावजूद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका।

उस्ताद राशिद खान को साल 2022 में पद्मभूषण पुरस्कार से नवाजा गया था। उनके निधन पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने संवेदनाएं जताई हैं। उन्होंने कहा, ‘यह पूरे देश और पूरे संगीत जगत के लिए बहुत बड़ी क्षति है। मैं बहुत दुखी हूं। मुझे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा है कि राशिद खान अब नहीं रहे।’ ममता बनर्जी का कहना है कि उस्ताद राशिद खान के अंतिम संस्कार पर उन्हें बंदूकों से सलामी देकर विदा किया जाएगा। उनके पार्थिव शरीर को रबींद्र सदन में रखा जाएगा। यहां उनके चाहनेवाले उस्ताद को अंतिम अलविदा कह पाएंगे।

उस्ताद राशिद खान का जन्म 1 जुलाई 1968 को उत्तरप्रदेश के बदायूं में हुआ था। उन्होंने तालीम अपने नाना उस्ताद निसार हुसैन खान से ली। राशिद खान की पहली मंचीय प्रस्तुति 11 साल की उम्र में थी। वे रामपुर-सहसवान घराने के गायक थे। उन्होंने फिल्मों में भी अपनी आवाज दी। ‘जब वी मेट’ में उनकी गाई बंदिश ‘आओगे जब तुम साजना’ काफी लोकप्रिय रही। संगीत जगत को अपनी आवाज से मंत्रमुग्ध करने वाले उस्ताद राशिद खान को पद्मश्री और पद्मभूषण से नवाजा गया था। संगीतकार ने कई बांग्ला गीत भी आए।

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राशिद खान अपने नाना की तरह विलंबित ख्यालों में गाते थे। वे उस्ताद अमीर खां और पंडित भीमसेन जोशी की गायकी से भी प्रभावित थे। संगीतकार के लोकप्रिया गानों की बात करें तो वे इंडस्ट्री में ‘तोरे बिना मोहे चैन’ नहीं जैसा सुपरहिट गाना गाया था। वहीं, वे इंडस्ट्री के किंग यानी शाहरुख खान की फिल्म ‘माई नेम इज खान’ में भी गाना गा चुके हैं। यही नहीं, उस्ताद राशिद खान ‘राज 3’, ‘कादंबरी’, ‘शादी में जरूर आना’, ‘मंटो’ से लेकर ‘मीटिन मास’ जैसी फिल्मों में भी अपनी आवाज का जादू बिखेर चुके हैं।(एएमएपी)