के. विक्रम राव ।

भाषायी मीडिया बड़ी सतवंती, शुचिताप्रिय है। इसीलिये उसने रतिक्रिया दर्शानेवाली बहुप्रसारित अमरीकी पत्रिका ”हस्लर” के अरबपति मालिक लारी क्लेयर फ्लिंट के गत बुधवार को हुए निधन के शोक समाचार को नहीं छापा। शायद लाज के मारे। फिल्म सिटी लास एंजेलिस में फ्लिंट की मृत्यु हुई, अस्सी के पास थे। ”विश्व मीडिया स्वतंत्रता” के व​ह महाबली बांकुरे थे। अपने घोर प्रतिस्पर्धी पचास करोड़ डालरवाली कामुक पत्रिका ”प्लेबाय” के स्वामी ह्यूग हेफनर से कहीं ज्यादा धनी फ्लिंट थें। दोनों ख्यात या कुख्यात अमेरिकी मीडिया मुगल दुनियाभर के तरुण और प्रौढ़जनों को उत्तेजित तथा तरंगित करते रहे। संपत्ति अकूत बटोर ली। फ्लिंट ने जब ”हस्लर” का पहला अंक प्रकाशित किया था तो नारी के गुप्तांगों की फोटो कवर पृष्ठ पर मुद्रित की थी। भारत में होता तो सुधी पाठक इस पत्रिका का दहन कर कर डालते। अमेरिका उन्मुक्त समाज है। माहौल दीगर है।


पांच शादियां, पांच संतानें

Jacqueline widow of American President John F Kennedy who married Greek born Argentinian ship owner Aristotle Onassis in 1968.

पांच बार शादी रचानेवाले, पांच संतानों ​के पिता फ्लिंट क्लास नौंवीं फेल थे। घर से पन्द्रह साल की आयु में भागकर अमेरिकी नौ सेना में भर्ती हुए। शराब की तस्करी और अश्लील चित्रों की बिक्री इत्यादि करते थे। अपनी विधवा मां के रेस्त्रा को मुनाफेवाला बनाकर उन्होंने लाखों डालर कमाया। तब पत्रिका शुरु की। एक फोटोग्राफर ने राष्ट्रपति जान कैनेडी की विधवा जैकलीन कैनेडी की सागर में (1971) नहाते समय निर्वस्त्र तस्वीरें लेकर फ्लिंट को बेची। उसे प्रकाशित कर उसने अरबों डालर कमाये। फिर पलट कर नहीं देखा।

क्लिन्टन के चुनाव में सक्रिय

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राजनीति में फ्लिंट ने डेमोक्रेटिक पार्टी के बिल क्लिन्टन के चुनाव में सक्रिय अभियान किया था। स्वयं उसने 1984 में रिपब्लिकन पार्टी की ओर से राष्ट्रपति के टिकट पाने के लिये प्रयत्नशील था। जान कैनेडी के हत्यारे को पकड़ने के लिये फ्लिंट ने दस लाख डालर (सत्तर लाख रुपये) के पुरस्कार की घोषणा की थी।

अश्लील पत्रिका का प्रकाशक हो तथा मुकदमों और जेल से दूर हो? यह तो असंभव ही है। उसका दावा था कि अमेरिकी गणराज्य के संविधान के प्रथम संशोधन (1791) को पारित कर प्रेस की आजादी को पूर्णतया सुरक्षित किया गया था। अत: वह उसी अधिकार का संरक्षण और उपयोग करता रहा था।

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फ्लिंट पर एक फिल्म (1996) भी बनी थी : ”जनता बनाम फ्लिंट”। इस पर नारी अधिकारों की अभियानकर्ता ग्लोरिया स्टीनेम ने कहा : ”एक अश्लील तथा लज्जाहीन संपादक को हीरो जैसा दर्शाना सभ्य समाज की अवमानना है।” एक बार सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपराधी घोषित किये जाने पर उसने प्रधान न्यायाधीश की जननी और नानी को शाब्दिक तोहफे पेश किये थे।

 

असंख्य शत्रु

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फ्लिंट के शत्रु असंख्य थे। एक बार एक नाराज पाठक जोसेफ पाल फ्रैंकलिन ने उसकी कमर पर कई गोलियां बरसायी। नतीजन फ्लिंट कमर से एड़ी तक घायल हो गये। दोनों पैर सुन्न हो गये, लुंजपुंज हो गये। तब से पहियेवाली कुर्सी पर ही चलते थे। अमेरिकी मीडिया इतिहास में इस रंगीन और फितरती प्रकाशक को कई लोग याद रखते है। कई नफरत से, तो कुछ उसे बहादुर मानते हैं। पर कोई भूल नहीं सकता।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। सौजन्य: सोशल मीडिया)


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