अगर आप पर्यावरण प्रेमी है, साथ ही घुमने फिरने के शौख रखते है तो बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के वाल्मीकीनगर जरूर आये। यहां सचमुच आपको कश्मीर के वादियो का एहसास होगा। प्रकृति के अनुपम छंटाओ के साथ अध्यात्मशक्ति का भी यह केन्द्र है। कई ऐतिहासिक तथ्यों एवं प्रमाणों से भी आप यहां रूबरू होंगे।बिहार से झारखंड के अलग होने के बाद बिहार के महज नौ फीसदी हरित पट्टी का ज्यादतर हिस्सा आपको यही मिलेगा। विगत डेढ दशक से यहां औसतन सामान्य से भी कम वर्षापात होने से सूखे जैसे हालात के बाद भी यह पूरा इलाका हरा भरा दिखेगा। कलरव करती गंडक नदी के साथ कई नेपाली नदियो से घिरे इस इलाके को भी बिहार सरकार राजगीर एवं बोधगया की तर्ज पर यहां ईको टुरिज्म बढाने पर संजीदा है।

जंगल सफारी,हाथी की सवारी के साथ झूरमूठो में विचरण करते बाघो को भी यहां नजदीक से देख सकते है।साथ ही यहां राफ्टिंग की भरपूर व्यवस्था है।कालांतर में यहां बढी कई सुविधाओ के साथ विलुप्त होते थारू जनजातियो के संस्कृति एवं उनके सुस्वादु व्यंजनो का चटकारा भी यहाँ आप ले सकते है। इतना ही नही यहां के जंगलो से निकले गरम मसाला भी आप सस्ते दरो पर ले सकते है। इतना ही नही यहां आपको नेपाल के संस्कृति एवं प्रकृति सौन्दर्य का भी भरपुर आनंद मिलेगा।

बिहार में एकमात्र वाल्मीकि राष्ट्रीय उद्यान एवं टाइगर रिज़र्व लगभग 880 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैला है,जिसका जुड़ाव नेपाल के राजकीय चितवन नेशनल निकुंज से भी है। सोमेश्वर,दून और चूड़िया पर्वत श्रृंखला के बीच अवस्थित यह पूरा इलाका आपको न केवल मंत्रमुग्ध कर देगा बल्कि एकबार आने के बाद बार बार आने को भी विवश करेगा।प.चंपारण के मुख्यालय बेतिया से 105 किलोमीटर दूर बाल्मीकीनगर के इस राष्ट्रीय उद्यान के भीतरी क्षेत्र 335 वर्ग किलोमीटर हिस्से को 1990 में देश का 18 वाँ बाघ अभयारण्य बनाया गया। हिरण, चीतल, साँभर, तेंदुआ, नीलगाय, जंगली बिल्ली,अजगर जैसे जंगली पशुओं के अलावे चितवन नेशनल पार्क से सटे होने कारण यहां एकसिंगी गैडा और जंगली भैंसा भी दिखाई देते है। इस राष्ट्रीय उद्यान की सैर के लिए दूर-दराज से सैलानी यहां तक का सफर तय करते हैं। इसके अलावा यहां पास में मदनपुर जंगल है, जो अपने फ्लाइंग फॉक्स के लिए प्रसिद्ध है।

फ्लाईंग फॉक्स चमगादड़ की एक प्रजाति है। इऩ्हें आप यहां किसी भी समय देख सकते हैं। इसके अलावा आप अनेक दुर्लभ प्रजाति के पक्षियो को भी चहकते देख सकते हैं। अध्यात्मिक दृष्टि से भी यह पूरा क्षेत्र संपन्न है,इसके एक छोर पर महर्षि बाल्मिकी का वह आश्रम है जहाँ प्रभु श्रीराम के त्यागे जाने के बाद देवी सीता ने आश्रय लिया था। सीता माता ने इसी स्थान पर अपने ‘लव’ और ‘कुश’ दो पुत्रों को जन्म दिया था। महर्षि वाल्मिकी ने हिंदू महाकाव्य रामायण की रचना भी यहीं की थी। आश्रम के मनोरम परिवेश के साथ ही पास ही गंडक नदी पर बनी बहुद्देशीय परियोजना है जहाँ 15 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है और यहाँ से निकाली गयी नहरें चंपारण के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश के बड़े हिस्से में सिंचाई की जाती है। गंडक बैराज के आसपास का शांत परिवेश चित्ताकार्षक है।

बेतिया महाराज के द्वारा बनवाया गया शिव-पार्वती मंदिर और मदनपुर देवी का स्थान भी दर्शनीय है। यहाँ के सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा इतना मनोरम है कि इसकी व्याख्या शब्दों में करना संभव नहीं है। जंगल में जानवरों को विचरते देखना किसी रोमांच से कम नहीं है। एक ओर खुशहाल जंगल और दुसरी ओर पहाड़ी नदियों अनवरत करलव बरबस सबको आकर्षित करता है।ऐसे तो पर्यटक बरसात को छोड़ सालो भर आते जाते रहते है,लेकिन मुख्यत: वाल्मीकि टाइगर रिज़र्व को अक्टूबर माह में खोला जाता है।क्योकी इस समय पर्यटकों की सुविधा के लिए VTR प्रशासन खास तैयारी रखता है।यहां पर्यटकों को ठहरने के लिए आधुनिक सुविधा युक्त टूरिज्म होटल का निर्माण किया गया है। पर्यटकों के लिए जंगल सफारी कराने के भी विभिन्न इंतजाम भी किये हैं। यहां आने वाले पर्यटक हाथी सफारी का भी आनंद उठा सकते है।

उल्लेखनीय है कि बिहार सरकार वीटीआर के घने जंगलों में स्थित प्राचीन काल के लगभग आधा दर्जन से अधिक धार्मिक स्थल को इको टूरिज्म से जोड़ा है।जिसमें नरदेवी मंदिर जटाशंकर धाम, कौलेश्वर धाम, सोमेश्वर, मदनपुर देवी स्थान, सोफा मंदिर आदि शामिल हैं। वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में इको टूरिज्म सेंटर को वाल्मीकि नगर से मंगुराहा तक पर्यटकों के लिए इको हट,थ्री हट,होटल बिहार, वश्रिामागार आदि संसाधनों का जाल बिछाया गया है।साथ ही इको टूरिज्म से जुड़े वन क्षेत्रों में पर्यटकों की सुविधाओं को लेकर कई योजनाओं पर तेजी से काम हो रहा है।

अन्य नजदीकी पर्यटन स्थल

बाल्मिकीनगर आश्रम और गंडक परियोजना, त्रिवेणी संगम तथा बावनगढी, भिखनाठोरी,भितहरवा आश्रम एवं रामपुरवा का अशोक स्तंभ, नन्दनगढ, चानकीगढ एवं लौरिया का अशोक स्तंभ, सुमेश्वर का किला, सरैयां मन (पक्षी विहार)

कैसे आयें

वाल्मीकिनगर पश्चिमी चम्पारण जिला मुख्यालय बेतिया से लगभग 108 किलोमीटर, गोरखपुर (उत्तरप्रदेश) से 125 किमी की दूरी पर अवस्थित है। बिहार की राजधानी पटना से यह लगभग 300 सौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पटना तक देश के किसी भी कोने से हवाई जहाज, रेल व सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। यहां से सड़क मार्ग से बेतिया,बगहा होते वाल्मीकिनगर पहुंचा जा सकता है। साथ ही मुजफ्फरपुर गोरखपुर रेलखंड पर बिहार का अंतिम स्टेशन व यूपी के बाद बिहार का पहला स्टेशन वाल्मीकिनगर रोड है। यहां से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर वाल्मीकिनगर है।इसके साथ ही इस रेलखंड पर बगहा या नरकटियागंज स्टेशन सें भी यहां पहुंच सकते है।

कब आयें

वाल्मीकि राष्ट्रीय उद्यान एवं टाइगर रिज़र्व सामान्यतः 15 अक्टूबर से 31 मई पर्यटकों के लिए खुला रहता है।लेकिन यहाँ आने का सर्वोत्तम समय अक्टूबर–मार्च है। दिसम्बर–जनवरी में यहाँ का निम्नतम तापमान 3-4 डिग्री सेल्सियस रहता है।(एएमएपी)