मध्यप्रदेश में इस बार विधानसभा चुनाव साधारण नहीं होगा । एक एक वोट के लिये संघर्ष है । सत्ता के लिये मुख्य दावेदार भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच परस्पर तीखे तेज आरोप और लोक लुभावन वादों की स्पर्धा तो है। फिर भी चुनाव परिणाम का मुख्य आधार भारतीय जनता पार्टी की संगठनात्मक शक्ति, साँस्कृतिक राष्ट्रवाद, मोदी प्रभाव और लाड़ली बहना योजना और कांग्रेस की जाति वाद के कूटनीतिक कौशल के बीच होगा ।

मध्यप्रदेश विधान सभा में कुल 230 सीटें हैं। इनमें 47 अनुसूचित जनजाति केलिये आरक्षित, 25 अनुसूचित जाति और शेष सामान्य सीटें हैं। 2018 के आम चुनाव में भाजपा ने 41.02 प्रतिशत वोट लेकर 109 और कांग्रेस ने 40.89 प्रतिशत वोटों के साथ 114 सीटें जीतीं थीं। किसी को बहुमत नहीं था । पर कांग्रेस बहुमत के समीप थी । कांग्रेस ने निर्दलीय तथा बसपा का समर्थन लेकर सरकार तो बना ली पर वह केवल पन्द्रह महीने ही चल सकी । कांग्रेस की आंतरिक गुटबाजी के चलते ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ 24 विधायकों ने कांग्रेस छोड़ दी थी, सरकार गिरी और भाजपा ने पुनः सरकार बनाई और उपचुनाव अपनी सरकार को स्थायित्व दे दिया।पिछले अनुभव ने दोनों ही दलों के लिये यह चुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न बना दिया है ।

कांग्रेस अपनी खोई सरकार को वापस पाने के लिये कोई भी पैंतरा नहीं छोड़ रही तो भाजपा पुनः सरकार बनाने के लिये ऐड़ी चोटी का जोर लगा रही है । इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का संगठन उसकी सबसे बड़ी शक्ति है । उस पर सरकार के विकास कार्य और विशेषकर मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान द्वारा घोषित लाड़ली बहना योजना से महिलाओं में बढ़ी साख तथा प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्र और सांस्कृतिक जागरण ने भाजपा की राह को आसान बनाया है तो कांग्रेस ने मँहगाई, बेरोजगारी की व्यक्तिगत समस्याओं की चर्चा से विकास से ध्यान हटाने तथा जातिगत जनगणना और जातिगत आरक्षण का आश्वासन देकर साँस्कृतिक राष्ट्रभाव में सेंध लगाने का प्रयास कर रही है । दोनों अपने स्वभाव और शक्ति से एक दूसरे से आगे निकलने का रहे हैं । साथ ही एक दूसरे की कमियाँ और अपने कार्यों की उपलब्धि भी गिना रहे हैं।

भारतीय जनता पार्टी की रणनीति

भारतीय जनता पार्टी ने संगठन की सक्रियता के साथ अपने केन्द्रीय नेतृत्व के प्रमुख व्यक्तियों को भी मैदान में उतारा है । गृहमंत्री अमितशाह, राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की ताबड़तोड़ सभाएँ हो रहीं हैं । मतदान केन्द्र स्तर के प्रभारी कार्यकर्ताओं ने मतदाता के घर जाकर “चाय पीने” का संपर्क अभियान चलाया हुआ है । अपने संगठन और कार्यकर्ताओं के कार्यों की समीक्षा केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह स्वयं कर रहे हैं। चुनाव प्रभारियों की सतत बैठकें हो रहीं हैं। राष्ट्रीय सह संगठनमंत्री शिव प्रकाश जी के साथ केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव, अश्विनी वैष्णव, ज्योतिरादित्य सिंधिया, प्रदेशाध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा और मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान रात दिन बैठके और सभाएँ कर रहे हैं । संगठन और नेतृत्व की सक्रियता के साथ लाड़ली बहना योजना, किसानों की ब्याज माफी, उज्जवला योजना में महिलाओं को पाँच सौ रुपये का गैस सिलेंडर ने एक मजबूत अधार बनाया है ।

कांग्रेस : आक्रामक रणनीति और कूटनीतिक कौशल भी

इसमें कोई संदेह नहीं कि विधानसभा चुनाव की तैयारी के समय कांग्रेस ने बहुत आक्रामक अभियान चलाया था किन्तु  प्रचार के अंतिम चरण में गति कुछ धीमी हुई है । हालाँकि प्रियंका गाँधी, राहुल गाँधी और मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ कमलनाथ जी की भी सभाएँ हुईं पर इनकी संख्या अपेक्षाकृत कम रही । इसके अतिरिक्त पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की आम सभाओं से कुछ दूरियाँ रहीं । उन्होंने कार्यकर्ताओं की बैठकों पर अधिक ध्यान दिया । प्रचार के अंतिम चरण तक आते भले कांग्रेस के प्रचार की आक्रामकता  में कुछ कमी आई हो पर उनके कूटनीतिक कौशल में तेजी गई है । कांग्रेस ने आस्था, राष्ट्रभाव और सांस्कृतिक मूल्यों को प्राथमिकता देने वाले मतदाता समूह में अपनी पैठ बनाने के लिये कांग्रेस नेताओं ने एक ओर मंदिरों में जाने, पूजन कथाओं के आयोजन और सामूहिई तीर्थयात्राओं की भूमिका  बनाई और इसके साथ उनकी शैली कुछ ऐसी रही जिससे समाज में जातिगत स्पर्धा का वातावरण बनने लगा । कांग्रेस का कूटनीतिक कौशल उसके प्रत्याशी चयन में भी दिखा और वर्ग गत वचन पत्र तैयार करने में भी। कांग्रेस ने आदिवासियों, पिछड़े वर्ग एवं अनुसूचित जाति के लिये अलग अलग आश्वासन दिये हैं । कांग्रेस मतदाता को जाति धर्म और क्षेत्र विशेष पर फोकस करके आकर्षित करने के साथ महिला, किसान और मध्यमवर्ग के मतदाता केलिये अलग अलग घोषणाओं से आकर्षित करने का भी प्रयास कर रही है । महिलाओं को 15 सौ रुपये महीना देने, गैस सिलेंडर के दाम 500 रुपये किए जाने, 100 यूनिट तक बिजली का बिल माफ करने और 200 यूनिट का बिल हाफ करने, सरकारी कर्मचारियों की पुरानी पेंशन लागू करने, किसानों को समर्थन मूल्य ढाई हजार रुपया करने के साथ शेष बचे किसानों की कर्ज माफी को पूरा करने की घोषणा की में स्पष्ट संकेत है ।

गोवर्धन इसलिए है खास, पूजी जाती हैं गाय

भाजपा और कांग्रेस की अपनी अपनी रणनीति वोट में कितनी बदलती है यह तो भविष्य पर निर्भर करेगा फिर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के चेहरे को “डबल इंजन” सरकार का नारा देकर भाजपा द्वारा मतदाता को एकजुट करने का प्रयास अपेक्षाकृत अधिक प्रभावशाली प्रतीत हो रहा है जिससे प्रभावहीन करने के लिये कांग्रेस जन तीखे व्यक्तिगत आरोप लगाने की रणनीति पर उतर आये हैं जिसकी झलक प्रतिदिन मीडिया में दिखाई दे रही है । पर मतदाता पर जितना प्रभाव मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की सक्रियता, अमितशाह  और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का साख का दिखाई दे रहा है उतना कांग्रेस के कमलनाथ की सक्रियता और राहुल गाँधी या प्रियंका गाँधी की सभाओं का नहीं देखा जा रहा । मध्यप्रदेश विधान सभा के इस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी, आम आदमी पार्टी के अतिरिक्त कुछ प्रभावशाली निर्दलीय भी मैदान में हैं। लगभग सत्तर विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ भाजपा और कांग्रेस दोनों के विद्रोही परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं फिर भी अनुमान है कि डाले गये कुल मतों का लगभग 82 % के आसपास मत और कुल 230 सीटों में 220 से 223 तक सीटे भाजपा और कांग्रेस की झोली में रहेंगी। निर्दलीय और अन्य दलों को यदि सात आठ सीटें तो बहुत होगी। (एएमएपी)