कर्नाटक चुनाव के अब नतीजे सामने आ गए हैं जिसमें कांग्रेस को बहुमत हासिल हुआ है। कांग्रेस राज्‍य में सरकार बनाने जा रही है और बीजेपी काफी अंतर से दूसरे नंबर पर रहेगी। त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में किंगमेकर बनने का  इरादा रखने वाले जेडी(एस) के कुमारस्वामी को भी जोर का झटका लगा है। हिमाचल प्रदेश के बाद चार महीने के भीतर बीजेपी ने दूसरा राज्य गंवाया है। हार के कारण और परिस्थितियां भी कमोबेश एक जैसी रही हैं। बसवराज बोम्मई सरकार की कमियों पर फोकस करते हुए कांग्रेस जनसमर्थन पाने में सफल रही। कांग्रेस ने जो पांच वादे किए, उसका भी असर नतीजों पर साफ दिख रहा है।

 

कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में बजरंग दल और पीएफआई को बैन करने की घोषणा की। ये कांग्रेस की बड़ी चाल थी क्योंकि उसे भी पता है कि राज्य में सरकार बनने के बाद भी बजरंग दल को बैन नहीं कर सकती है। किसी संगठन को बैन करने का अधिकार केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास है और राज्य सरकार प्रतिबंधित नहीं कर सकती। दूसरी जो जरूरी बात है कि पीएफआई पहले से प्रतिबंधित है। केंद्र सरकार ने पीएफई को पिछले साल सितंबर में ही बैन कर दिया था। तो क्या कांग्रेस अनजाने में घोषणा पत्र में ऐसी बात डाली थी। नहीं, यही उसकी चालाकी थी।

कांग्रेस को अंदाजा था कि राज्य के त्रिकोणीय मुकाबले में ज्यादातर इलाकों में उसके और बीजेपी के बीच टक्कर है, सिवाय ओल्ड मैसूर क्षेत्र में। ओल्ड मैसूर में बीजेपी पारंपरिक रूप से कमजोर है और यहां कांग्रेस व जेडी(एस) के बीच मुकाबला रहता है। कांग्रेस यह जानती थी कि जेडीएस को जितनी अधिक सीटें मिलेंगी, वह सत्ता से उतनी ही दूर होती जाएगी। इसे ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने दो स्तर की रणनीति पर काम किया। बीजेपी के खिलाफ मुकाबले के लिए उसने जातीय समीकरण और पांच वादे जैसे स्कीमों को हथियार बनाया। जेडी(एस) को नुकसान पहुंचाने के लिए उसने राज्य के 13% मुस्लिम मतदाताओं को अपने पक्ष में पोलराइज़्ड करने की रणनीति पर काम किया।

कांग्रेस की इसी रणनीति का हिस्सा थी सरकार बनने पर बजरंग दल को बैन करने की घोषणा। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि ज्यादातर मुस्लिम मतदाता बीजेपी के खिलाफ वोट करते हैं। कांग्रेस चाहती थी कि ये वोट एकमुश्त उसको मिले और जेडीएस से मुस्लिम वोटों का बंटवारा न करना पड़े। चुनाव नतीजों से साफ लग रहा है कि कांग्रेस की यह रणनीति काम कर गई और मुस्लिम वोटरों ने जेडीएस की तरफ रुख नहीं किया और थोक में कांग्रेस को वोट डाला। अभी तक जो आंकड़े सामने आ रहे हैं उससे लग रहा कि 60-70% मुस्लिमों ने कांग्रेस को वोट किया है, जबकि जेडी(एस) को महज 20% मुस्लिम वोटरों के मत मिलते दिख रहे हैं।(एएमएपी)