प्रदीप सिंह।
देश की राजनीति इस समय एक संक्रमण काल से गुजर रही है। यह सिलसिला आगामी लोकसभा चुनाव तक चलेगा। अभी सार्वजनिक जीवन, भाषा और आचरण की सभी मर्यादाएं टूटने का दौर है। दोष सिद्ध होने पर भी कोई माफी मांगने को तैयार नहीं है। भ्रष्टाचार की जांच से बचने को मौलिक अधिकार मान लिया गया है। आजादी के बाद से विपक्ष इतना कमजोर और दिशाहीन कभी नहीं रहा। जब संख्या बल में इससे भी कम रहा तब भी नहीं।
मोदी का होना कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या
कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता चली गई। इस बात से कांग्रेस खुश है या दुखी यह पता लगाना कठिन हो रहा है। कांग्रेसी सड़क पर तो उतरे हैं लेकिन उनको पता नहीं है कि वे किसके खिलाफ हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ तो कांग्रेस पिछले बाईस साल से है। तो इसमें तो कोई नई बात नहीं है। दरअसल राजनीतिक परिदृश्य पर मोदी का होना ही कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या है। कांग्रेस के तीव्र गति से हो रहे पतन को जरा इस बात से समझिए। बात नवम्बर, 1992 की है। पीवी नरसिंह राव देश के प्रधानमंत्री थे। दिल्ली में कांग्रेस के विधायकों और नेताओं की बैठक हुई। उसमें राव ने कहा ऐसा इंतजाम कर रहा हूं कि आप घर बैठे चुनाव जीतेंगे।
बात यह थी कि उन्होंने उसी समय तय कर लिया था कि अयोध्या में जमीन अधिग्रहण के कल्याण सिंह सरकार के फैसले पर इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला छह दिसम्बर( कारसेवा की तारीख) से पहले नहीं आने देंगे। कारसेवा निर्धारित तारीख पर हो नहीं पाएगी। कारसेवक और मंदिर समर्थक भाजपा नेताओं के खिलाफ विद्रोह कर देंगे। पर ऐसा हुआ नहीं और विवादित ढ़ांचा गिर गया। 1993 में विधानसभा चुनाव हुआ भाजपा फिर से नम्बर एक की पार्टी हो गई। भले ही सरकार नहीं बनी। नरसिंह राव से जब कांग्रेसियों ने पूछा कि आपकी रणनीति का क्या हुआ। उनका जवाब था मैं भाजपा से लड़ सकता हूं भगवान राम से नहीं। वहां से चलकर कांग्रेस आज इस स्थिति में है पहुंची है कि किसी भी राजनीतिक दल से लड़ सकती है पर भाजपा और मोदी से नहीं।
‘मेरा भाई पप्पू नहीं है’
राहुल गांधी की सदस्यता बचाने की कोई कोशिश न करना कांग्रेस का अंतिम हथियार है, जो भोथरा साबित हो रहा है। इस मामले में कांग्रेस ने कोई कानूनी कदम नहीं उठाया। जिला जज के पूछने पर भी माफी न मांग कर राहुल गांधी ने खुद ही सजा तय कर ली। वे माफी मांग लेते तो बात वहीं खत्म हो जाती। कम से कम दो साल की सजा तो नहीं ही होती। राहुल गांधी को चुनावी अखाड़े (व्यक्तिगत रूप से नहीं) उतारने का कांग्रेस को इसके अलावा कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। क्योंकि राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा से जो रूखी सूखी रोटी कमाई थी वह लंदन जाकर गंवा दी। भाजपा के आक्रामक विमर्श को बदलने का कांग्रेस के पास कोई विकल्प नहीं था। भारत जोड़ो यात्रा से राहुल को पप्पू की छवि से मुक्त कराने का दावा कर कांग्रेस खुश थी। अब भाजपाइयों ने पप्पू बोलना छोड़ दिया तो कांग्रेसी बोलने लगे। राजघाट पर अपने भाषण में प्रियंका ने चार बार पप्पू बोला। कहा मेरा भाई पप्पू नहीं है।
तो कांग्रेस की नई और आखिरी रणनीति के तहत राहुल गांधी को बेचारा साबित करने की कोशिश हो रही है। जिनके खिलाफ यह सरकार हाथ धोकर पड़ गई है। प्रयास हो रहा है कि राहुल को पीड़ित दिखाकर सहानुभूति बटोरी जाय। पर सहानुभूति का माहौल बन नहीं पा रहा है। देश के बाकी हिस्सों को छोड़िए वायनाड, जहां राहुल सांसद थे, वहां भी लोग नहीं निकले।
सूरत की अदालत का फैसला आए एक सप्ताह हो रहा है। कांग्रेस के दिग्गज वकील अभी आराम कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि तीस दिन का समय मिला है तो आखिरी समय तक खींचा जाय जिससे कर्नाटक विधानसभा के चुनाव में कुछ फायदा मिल जाय। यहां तक कहा जा रहा है कि राहुल गांधी के लिए अलग कानून होना चाहिए। प्रियंका सहित कांग्रेस के तमाम नेताओं की बातें सुनकर ऐसा लगता है कि कांग्रेस मानती है कि देश में जनतंत्र नहीं राजतंत्र है। भला जनता का कानून राजा पर कैसे लागू हो सकता है।
सात समुंदर पार टकटकी
कांग्रेस और राहुल गांधी समझ ही नहीं पा रहे हैं कि वे मोदी से लड़ रहे हैं, स्वातंत्र्यवीर सावरकर से, हिंदुत्व से या भारत वर्ष से। सात समुंदर पार टकटकी लगाए हुए हैं कि मदद आएगी। मंगलवार को मदद आई। अमेरिकी प्रशासन के उप प्रवक्ता वेदांत पटेल ने कहा कि उनकी सरकार की नजर राहुल गांधी के मामले पर है। अमेरिका की जो बाइडेन सरकार का ज्यादा भला इसमें होगा कि वह अपने पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पर नजर बनाकर रखे। भारत अपने मामले सुलझाने में सक्षम है। पर इस एक बयान से लेफ्ट-लिबरल बिरादली की बांछें खिली हुई है। उन्हें उम्मीद है कि और मदद आएगी। वे समझ नहीं रहे हैं कि यह मनमोहन सिंह की सरकार वाला भारत नहीं है।
भाजपा अपने एजेंडे के मामले में बिल्कुल स्पष्ट है। किसी को कोई गलतफहमी रही हो तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को भाजपा मुख्यालय में पार्टी कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए दूर कर दी। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुआ अब तक का सबसे बड़ा अभियान किसी भी हालत में रुकने वाला नहीं है। विपक्षी एकता की संभावना में पलीता लगाते हुए उन्होंने कहा कि सारे भ्रष्टाचारी एक मंच पर आ गए हैं। विपक्ष के पास इसका कोई ऐसा जवाब नहीं है कि जिससे वह आम जनता को वह समझा सके कि यह सब राजनीतिक बदले की भावना से हो रहा है।
सपना टूट गया…
राहुल गांधी को विपक्ष का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने का कांग्रेस का सपना टूट चुका है। अब तो उनके राजनीतिक भविष्य पर ही सवालिया निशान लग गया है। मानहानि के मामले में बच भी जाएं तो अभी इतने मुकदमों में फंसे हैं किसी में भी सजा हुई नहीं कि उनका गाड़ी फिर पटरी से उतर जाएगी। प्रधानमंत्री मोदी का भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई का प्रण उन्हें राजनीतिक रूप से जीने नहीं देगा। मोदी सरकार का राजनीति के क्षेत्र में काम करने वालों को साफ संदेश है कि भ्रष्टाचार से बचोगे तो ही आगे बढ़ोगे। नहीं तो जेल की सलाखें आपका इंतजार कर रही हैं। अब फैसला राजनीतिक दलों और नेताओं को करना है।
(आलेख ‘दैनिक जागरण’ से साभार)
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ न्यूज पोर्टल एवं यूट्यूब चैनल के संपादक हैं)