आपका अखबार ब्यूरो। 
क्या राहुल गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष पद पर ताजपोशी एक बार फिर टल जाएगी? बिहार विधानसभा और अन्य राज्यों में हुए विधानसभा उप चुनाव के नतीजों के बाद से इस बात की चर्चा जोर पकड़ रही है। 

इसका दूसरा असर यह हुआ है कि पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में सहयोगी दल कांग्रेस को अब ज्यादा सीटें नहीं देना चाहते।

सिकुड़ती पार्टी -बढ़ती मुश्किलें

कांग्रेस पार्टी की मुश्किलें कम होने का नाम ही नहीं ले रहीं। पार्टी लगातार सिकुड़ती जा रही है। पार्टी नेतृत्व पर बाहर से ही नहीं अंदर से भी आवाज उठने लगी है। बिहार के नतीजे आने के बाद तारिक अनवर ने सबसे पहले कहा कि कांग्रेस के खराब प्रदर्शन के कारण ही महागठबंधन सत्ता में नहीं आ पाया। उसके बाद से बोलने वाले कांग्रेस नेताओं का तांता लगा है। कपिल सिब्बल ने तो यहां तक कह दिया कि पार्टी कोई सुधार या आत्मनिरीक्षण करना ही नहीं चाहती। तो पी चिदम्बरम ने कहा कि उप चुनाव की हार और चिंतित करने वाली है। इससे लगता है कि जमीन पर कांग्रेस का संगठन नहीं है।
बिहार विधानसभा में महागठबंधन की हार के लिए कांग्रेस के प्रदर्शन को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। यह बात केवल गठबंधन के साथी दल ही नहीं कुछ कांग्रेसी कह रहे हैं। बात केवल बिहार तक सीमित नहीं है। अलग अलग राज्यों में हुए उपचुनावों में भी कांग्रेस फिसड्डी साबित हुई।
राहुल गांधी की फिर होगी ताजपोशी? कांग्रेस में पार्टी अध्यक्ष बनाने की मांग हुई तेज

हर जगह मात

उप चुनावों में वैसे तो उसे हर जगह मात मिली है। पर मध्य प्रदेश जहां की अट्ठाइस सीटों के उप चुनाव पर शिवराज सरकार का भविष्य टिका हुआ था। करीब दो साल पहले कांग्रेस जिन सत्ताइस सीटों पर जीती थी उनमें से उन्नीस हार गई। ज्योतिरादित्य सिधिया के साथ गए विधायकों को विश्वासघाती कहने की बात को मतदाता ने नकार दिया। अब शिवराज सरकार सुरक्षित हो गई है।
उत्तर प्रदेश में जहां कांग्रेस को प्रियंका से बड़ी उम्मीदें थी, वहां तो हालात और खराब निकले। सात सीटों के लिए हुए उपचुनाव में चार पर तो कांग्रेस की जमानत तक नहीं बची। इसी तरह कर्नाटक की दो सीटें भाजपा जनता दल सेक्यूलर और कांग्रेस के गढ़ से छीनकर लाई।
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बचाव की मुद्रा

इतना ही काफी नहीं था कि जम्मू कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और दूसरे स्थानीय दलों के गुपकर संगठन के साथ कांग्रेस के जाने की घोषणा होते ही गृहमंत्री अमित शाह ने हमला बोल दिया। उसके बाद कांग्रेस बचाव की मुद्रा में आ गई।

इससे पहले अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपनी पुस्तक में राहुल गांधी के बारे में भारत के आम मतदाता और उनके विरोधियों की राय को पुष्ट कर दिया। उनके कहने का लब्बोलुआब यह है कि राहुल गांधी अक्षम व्यक्ति हैं। राजनीति उनके बस की बात नहीं है।
अब सवाल है कि इतना सब होने बाद क्या कांग्रेस राहुल गांधी को फिर से अध्यक्ष पद पर बिठाने का जोखिम लेगी। और अगर नहीं तो क्या करेगी। ये ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब कांग्रेस के लोगों को जल्दी ही खोजना होगा।