प्रदीप सिंह।
कांग्रेस पार्टी चोर दरवाजे से मुसलमानों को आरक्षण देना चाहती है। कांग्रेस पार्टी और उसके सेक्युलर साथी दल आजकल बाबा भीमराव अंबेडकर के संविधान की दिन रात दुहाई देते हैं। वे पिछले 10 सालों से, खास तौर से पिछले पांच सालों से, शोर मचा रहे हैं कि देश का संविधान खतरे में है, जनतंत्र खतरे में है। बीजेपी को अगर 400 से ज्यादा सीटें मिलीं तो वह संविधान बदल देगी, संविधान को खत्म कर देगी, आरक्षण खत्म कर देगी। इस शोर के पीछे इरादा कुछ और है।
वे चाहते हैं कि इस शोर में वह जो करना चाहते हैं, उनका वह मंसूबा व इरादा दब जाए। उनका इरादा क्या है? चोर दरवाजे से संविधान की मूल संरचना के खिलाफ जाकर मजहब के आधार पर आरक्षण देना। भारत का संविधान साफ-साफ कहता है कि मजहब के आधार पर आरक्षण नहीं मिल सकता। अब सवाल यह है कि हिंदुओं को आरक्षण क्यों मिला? इस बात पर संविधान सभा में बहुत विस्तार से चर्चा हुई। हिंदुओं की कुछ जातियों को, दलितों को आरक्षण मिला और पिछड़ों को आरक्षण की बात कही क्योंकि हिंदू धर्म में जाति व्यवस्था है। यह कहा गया कि दूसरे मजहबों इस्लाम, क्रिश्चियनिटी या दूसरे हों, उनमें जाति व्यवस्था नहीं है। जाति व्यवस्था के नाम पर हिंदू धर्म में दलितों के साथ बहुत लंबे समय तक अत्याचार हुआ। सदियों के अत्याचार की वजह से जो पिछड़ गए उनको बराबरी पर लाने के लिए एक सकारात्मक कदम के रूप में आरक्षण को चुना गया।
हिंदुओं को आरक्षण दिया गया क्योंकि यहां जाति व्यवस्था है। अब मुसलमानों को आरक्षण देना है तो चल पड़ा है कि मुसलमानों में भी जाति व्यवस्था है। तो भाई मुसलमानों में जाति व्यवस्था है यह बात पहली बार सामने आई है। जब कन्वर्जन कराते हैं तब यह कहते हैं कि हमारे यहां जाति का कोई भेदभाव नहीं है, सब बराबर हैं, खुदा के सामने ना कोई ऊंचा है ना नीचा है। लेकिन जब आरक्षण की बात आती है तो ऊंचा-नीचा आ जाता है। यह कैसे हो सकता है?
यहाँ बात कांग्रेस की मंशा और नीयत की हो रही है। असल में उसके बारे में सच-सच बताने की कांग्रेस में हिम्मत नहीं है। अगर कांग्रेस में हिम्मत होती वह खम ठोक कर कहती कि हम संविधान में संशोधन करेंगे। संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर में परिवर्तन करेंगे और मजहब के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था करेंगे। लेकिन वह ऐसा करने की हिम्मत जुटा नहीं पा रही है। उसको अंदाजा नहीं है कि इसका बैकलेस कितना होगा और वह उसको संभाल पाएगी कि नहीं। लेकिन उसको लगता है कि अपना मुस्लिम वोट बैंक बनाए रखने के लिए अब समय आ गया है कि अगर आरक्षण का लोभ नहीं दिया तो मुस्लिम वोट ज्यादा समय तक उसके साथ नहीं रहेगा।
इस कोशिश पर गंभीरता से काम शुरू हुआ है 1998 से, जब से कांग्रेस पर सोनिया गांधी का कब्जा हुआ। क्योंकि 1998 में कांग्रेस पार्टी सत्ता में नहीं थी तो इसलिए कुछ कर नहीं सकती थी। लेकिन 2004 में सत्ता में आते ही उसने अपना एजेंडा लागू करना शुरू कर दिया। एक कमेटी और एक कमीशन बिठाया गया। उस पर गौर कीजिए उससे आपको समझ में आएगा कि कांग्रेस का इरादा क्या है, नीयत क्या है? मई 2004 में सरकार बनी और 29 अक्टूबर 2004 को सुप्रीम कोर्ट के जज रंगनाथ मिश्रा की अध्यक्षता में यह कमीशन बन गया।
इस कमीशन का टर्म्स ऑफ रेफरेंस क्या था? उसको किस बात पर विचार करना था? क्योंकि छिपाकर करना था तो नाम दिया गया लिंग्विस्टिक एंड रिलीजियस माइनॉरिटी के अधिकारों और समस्याओं पर विचार करने के लिए। उसमें लिंग्विस्टिक माइनॉरिटी को जोड़ा गया ताकि रिलीजस माइनॉरिटी का मुद्दा दबा रहे, छिपा रहे। तो एक आवरण के रूप में लिंग्विस्टिक माइनॉरिटी की बात की गई लेकिन उद्देश्य लिंग्विस्टिक माइनॉरिटी से नहीं था और माइनॉरिटी से भी नहीं था। असली मतलब मुसलमान से था। कमीशन के बनने के साथ-साथ उसकी रिपोर्ट आने से पहले हाई लेवल सात सदस्य कमेटी बनाई गई जो सच्चर कमेटी के नाम से जानी जाती है।
इस कमेटी की रिपोर्ट का लब्बोलुआब यह है जिसको कांग्रेस पार्टी ने खूब प्रचारित किया और अल्पसंख्यकों यानी मुसलमानों को यह बताने की कोशिश की कि कांग्रेस पार्टी जब अल्पसंख्यक शब्द का इस्तेमाल करे तो आप समझ लीजिए वह मुसलमान कह रही है। तो मुसलमानों की स्थिति दलितों से भी बदतर है। अब इसका मतलब क्या है? संदर्भ को अगर आप नहीं समझेंगे तो आप मुद्दे से भटक जाएंगे। इसका मकसद यह बताना नहीं था कि मुसलमानों की स्थिति बहुत खराब है। अगर यह बताना मकसद होता तो यह तो कांग्रेस के खिलाफ जाता है। आजादी के बाद से 55 साल कांग्रेस ने देश पर प्रत्यक्ष परोक्ष रूप से शासन किया। जो मुसलमान थोक में कांग्रेस पार्टी को वोट देते रहे कांग्रेस पार्टी का वोट बैंक रहे अगर उनकी स्थिति खराब हुई तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है? इसका जवाबदेह कांग्रेस के अलावा और कौन हो सकता है?
राहुल, प्रियंका, पित्रोदा ही लंका लगा दें तो कांग्रेस को कौन बचाए
लेकिन कांग्रेस पार्टी अपनी जवाबदेही तय करने के लिए इस कमेटी की रिपोर्ट लेकर नहीं आई। इस कमेटी को बिठाने का वह उद्देश्य नहीं था। इस कमेटी का उद्देश्य उसकी रिपोर्ट से जाहिर हुआ। वह मुसलमानों को आरक्षण देने का एक आधार तैयार करना था। क्योंकि उनकी स्थिति दलितों से भी बदतर है इसलिए अगर दलितों को आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण दिया जा सकता है, तो मुसलमानों को भी मिलना चाहिए। मुस्लिम आरक्षण का आधार तैयार करना सच्चर कमेटी का उद्देश्य था जो नैरेटिव बनाने में कांग्रेस एक तरह से कामयाब रही। देश भर में यह नैरेटिव चल गया कि मुसलमानों की स्थिति बड़ी खराब है। मुसलमानों की स्थिति क्यों खराब है- यह कांग्रेस पार्टी ने कभी नहीं बताया। किस वजह से खराब है- यह नहीं बताया। कौन उसका जिम्मेदार, जवाबदेह है- यह नहीं बताया। लेकिन उसके लिए क्या करना पड़ेगा यह बताती रही। उसके लिए करना यह पड़ेगा कि उनको भी आरक्षण देना पड़ेगा। तो पिछले दरवाजे से आरक्षण देने की शुरुआत कर्नाटक से हुई।
कर्नाटक में 4 फीसद आरक्षण दिया गया। कैसे दिया गया? पिछड़ी जातियों में मुस्लिम जातियों को शामिल कर दिया गया। मुसलमानों में जितनी जातियां बताई गई उन सबको पिछड़ा वर्ग में शामिल कर दिया गया और पिछड़ा वर्ग के आरक्षण में कोटे में से 4% आरक्षण मुसलमानों को दे दिया गया। यह कांग्रेस की सरकार ने किया। जब भाजपा की सरकार आई तो उसने इस फैसले को पलट दिया और मुसलमानों के इस 4% आरक्षण को खत्म कर दिया। कहा कि हमारा संविधान धार्मिक आधार पर आरक्षण की इजाजत नहीं देता। इस 4% में से 2% आरक्षण लिंगायत समाज और 2% कालिका समाज को दे दिया। ये दोनों पिछड़ा वर्ग में आते हैं। यह बात आपको ध्यान रखनी चाहिए।
दूसरा काम 2004 में हुआ, जब आंध्र प्रदेश का बंटवारा नहीं हुआ था। भारी बहुमत से कांग्रेस सत्ता आई थी। आंध्र प्रदेश में उस समय वी राजशेखर रेड्डी मुख्यमंत्री थे और सोनिया गांधी के बहुत करीबी थे। जब वो मुख्यमंत्री थे तब 2004 से 2010 के बीच चार बार आंध्र प्रदेश में मजहब के आधार पर मुसलमानों को आरक्षण देने की कोशिश हुई। हर बार इस कोशिश को हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट से नकार दिया गया। कोर्ट ने कहा कि संविधान में मजहब के आधार पर आरक्षण देने की व्यवस्था नहीं है इसलिए यह आरक्षण संविधान सम्मत नहीं है। लेकिन कांग्रेस ने वह कोशिश छोड़ी नहीं।
अब आइए रंगनाथ मिश्रा कमीशन पर। रंगनाथ मिश्रा कमीशन की रिपोर्ट 2007 में आती है। किस तरह से नैरेटिव बनता है और किस तरह से कांग्रेस के विरोधी काउंटर नैरेटिव बनाने में फेल हो जाते हैं- इसका सबसे बड़ा उदाहरण रंगनाथ मिश्रा कमीशन की रिपोर्ट। देश में उसकी संस्तुतियों के बारे में नैरेटिव कभी बन ही नहीं पाया। उस कमेटी ने कहा कि 10 फीसद आरक्षण अल्पसंख्यकों को मिलना चाहिए और खास तौर से मुसलमानों को मिलना चाहिए। फिर आप याद कीजिए नवंबर 2006 में उस समय के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का बयान कि देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों और खास तौर से मुसलमानों का है।
अब इस पूरी कड़ी को आप जोड़िए तो पूरी तस्वीर आपके सामने आ जाएगी। रंगनाथ मिश्रा कमीशन की दूसरी रिपोर्ट क्या थी… कहा कि पिछड़ों को मिले 27% आरक्षण में से 8.4% काटकर मुसलमानों को दे देना चाहिए।
यह भी कहा गया कि जो दलित या आदिवासी हिंदू से मुसलमान बन गए हैं या हिंदू से ईसाई बन गए हैं, उनको भी आरक्षण मिलना चाहिए। इसका मतलब आप समझ रहे हैं। यह उनको आरक्षण देने के लिए नहीं किया गया। यह धर्म परिवर्तन को बढ़ावा देने, धर्म परिवर्तन की गति को तेज करने के लिए था। ताकि दलितों और आदिवासियों का धर्म परिवर्तन कराया जा सके। मदर टेरेसा यह काम बड़े पैमाने पर खास तौर से आदिवासी इलाकों में कर ही रही थी। उसके अलावा तमाम एनजीओ इस काम में लगे थे। सरकार इसमें सहयोगी बने इसकी कोशिश हुई।
रंगनाथ मिश्रा कमीशन की सबसे खतरनाक रिकमेंडेशन यह थी कि आरक्षण को रिलीजन न्यूट्रल बना दिया जाए। यानी आरक्षण का मजहब से, धर्म से, से कोई नाता न रहे। यानी सभी मजहब के लोगों को आरक्षण मिलना चाहिए। और कांग्रेस का इरादा क्या था, नीयत क्या थी- मुसलमानों को आरक्षण देना… क्योंकि मुसलमान दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला समाज है, दूसरी सबसे बड़ी मेजॉरिटी कम्युनिटी है। वो उनका कैपटिव वोट बैंक बना रहे तो उसके लिए आरक्षण की व्यवस्था की कोशिश बार-बार कांग्रेस पार्टी की ओर से होती है।
ये जो कांग्रेस के ताजा घोषणा पत्र में जाति गणना की बात कही जा रही है, फाइनेंशियल एक्सरे की बात कही जा रही है, फाइनेंशियल सर्वे की बात कही जा रही है, इंस्टिट्यूशनल सर्वे की बात कही जा रही है… यह सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्रा कमेटी का मिलाजुला नया स्वरूप है। उसके जरिए मुसलमानों को आरक्षण देने का आधार तैयार किया जाएगा। आप मानकर चलिए कि अगर किसी दिन कांग्रेस पार्टी को दो तिहाई बहुमत मिल गया तो वह संविधान में संशोधन भी कर सकती है। जो पार्टी देश में संविधान को खत्म कर सकती है- लोगों के जीने का अधिकार, मौलिक अधिकार छीन सकती है- जैसा कि 1975 में इमरजेंसी के दौरान हुआ, वह पार्टी ऐसा करे तो कोई आश्चर्य नहीं।
राहुल गांधी की बात को याद रखिए कि यह हमारे लिए पॉलिटिकल एजेंडा नहीं है, यह हमारे लिए जीवन का मिशन है। यानी वह हर हालत में इसको हासिल करना चाहते हैं। इस सारे घटनाक्रम के आधार पर एक ही निष्कर्ष निकलता है कि जब तक सफल नहीं होंगे तब तक कोशिश करते रहेंगे कि किसी तरह से मुसलमानों को आरक्षण की व्यवस्था की जाए। वरना, मुसलमानों की सभी जातियों को पिछड़ा वर्ग में शामिल करने का क्या अर्थ है? उसकी परेशानी के दो कारण हैं। एक- यह डर कि इसका काउंटर पोलराइजेशन हो सकता है। उल्टा असर हो सकता है। दूसरा- पिछड़ों दलितों के उसके एजेंडे को चोट पहुंचती है क्योंकि उन्हीं के आरक्षण कोटे में से काटकर मुसलमानों को आरक्षण दिया जाएगा। वो नाराज न हों और अपना काम भी हो जाए इसलिए राहुल गांधी और उनकी पार्टी का घोषणा पत्र कह रहा है कि हम आरक्षण की सीमा बढ़ा देंगे। आरक्षण की सीमा बढ़ाने के पीछे मकसद दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों का भला करना नहीं है। मकसद है मुस्लिम आरक्षण को उसमें समाहित करना, उसकी व्यवस्था उसमें करना।
हर तरह से नाप परख कर देख लीजिए, कांग्रेस का एक ही एजेंडा है- कम्युनल एजेंडा… किसी तरह से मुस्लिम समाज को आरक्षण की सुविधा प्रदान कराना। उसके लिए नए-नए आवरण में अलग-अलग तरह की बातें पेश की जाती रही हैं। रंगनाथ मिश्रा कमीशन की रिपोर्ट इसलिए लागू नहीं हो पाई कि बीजेपी ने उसका बड़ा विरोध किया। विरोध से कांग्रेस पार्टी डरती है। वह इस तरह के कदम उठाना चाहती है कि किसी को कानो-कान खबर ना होने पाए। ऐसा हो पाना तो आज के जमाने में संभव नहीं हो सकता। कांग्रेस पार्टी करना भी चाहती है और डरती भी है। इस दुविधा में वह ना मुसलमानों को साथ पा रही है और ना हिंदुओं का साथ पा रही है। दो नावों की सवारी में बार-बार वह बीच नदी में गिर रही है। कांग्रेस पार्टी जिस तरह से डूब रही है, उसके और डूबने की आशंका दिन पर दिन बढ़ती जा रही है। यह जो उसका मैनिफेस्टो है, जो उसका इरादा है, नीयत है- वह उसको और नीचे ले जाएगी क्योंकि उसने मुसलमानों के लिए कुछ किया नहीं है। मुसलमानों के लिए अगर किसी ने कुछ किया है तो वह पिछले 10 साल में नरेंद्र मोदी की सरकार ने किया है। कांग्रेस को लगता है कि आरक्षण की व्यवस्था से मुसलमान संतुष्ट हो जाएगा और हमारा परमानेंट कैपटिव वोट बैंक बन जाएगा। कांग्रेस के इस इरादे, कुत्सित प्रयास को समझने का की जरुरत है। यह देश के बंटवारे की नीव डालने जैसा कदम होगा क्योंकि इसका अगला कदम लॉजिकल कंसीक्वेंस है। वह एक बार फिर से देश के बंटवारे के रूप में सामने आएगा। हर जागरूक देशवासी को इस षड्यंत्र को समझना चाहिए और उसको नाकाम करने के लिए अपने स्तर पर जिस भी तरह का विरोध हो सके, करना चाहिए।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अख़बार’ के संपादक हैं)