“टूटा टाइगर” पुस्तक उजागर करती है उस दौर की पूरी सच्चाई।
डॉ. अरुणा ओझा।
श्रीलंका में पच्चीस-तीस वर्षों का एक कालखंड ऐसा रहा जिसमें बहुसंख्यक सिन्हली समुदाय और अल्पसंख्यक तमिल समुदाय के बीच भयानक टकराव हुआ और देश गृह युद्ध की आग में झुलसने लगा। मुख्यतः श्रीलंकाई सरकार और अलगाववादी गुट लिट्टे के बीच हुए इस युद्ध में दोनों तरफ से बड़ी संख्या में लोग मारे गए। स्वतंत्र स्रोतों ने इस गृहयुद्ध में मारे जाने वालों की संख्या कई लाख बताई। अगर हम सरकारी आंकड़े का ही उल्लेख करें तो वो बताते हैं कि इस युद्ध में लगभग अस्सी हजार लोग मारे गए थे। श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को एक बड़ा झटका इस गृह युद्ध से लगा। इसके अलावा पर्यावरण को भी बहुत नुकसान हुआ। आखिरकार इस गृह युद्ध का अंत हुआ मई 2009 में, जब लगभग ढाई साल के सैन्य अभियान के बाद श्रीलंका की सरकार ने लिट्टे को परास्त किया।
इसी लम्बे घटनाक्रम के कई अनजाने और चौंकाने वाले तथ्यों को स्वामी विरुपाक्ष ने 12 वर्षों के लम्बे मौन के बाद उजागर किया है अपनी पुस्तक ‘टूटा टाइगर’ में। युद्ध और अशांतिग्रस्त श्रीलंका में शांति लाने के लिए साल 2006 से आर्ट ऑफ़ लिविंग के संस्थापक और प्रख्यात आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर मध्यस्थता के प्रयासों में सक्रियता से संलग्न रहे। श्रीलंका में लिट्टे की समस्या के दौरान श्री श्री रविशंकर के मध्यस्थता के प्रयासों के दौरान हुए अनुभवों की अब तक की अनसुनी कहानियों को समेटे हुए है “द टाइगर्स पॉज़” (The Tiger’s Pause) का हिंदी संस्करण “टूटा टाइगर”। इसके लेखक श्रीलंका में नौ वर्षों तक श्री श्री के संघर्ष समाधान दल का हिस्सा रहे स्वामी विरूपाक्ष हैं।
समाधान के प्रयास
जब श्रीलंका तमिल अल्पसंख्यकों और सिंघली बहुसंख्यकों के टकराव के 26 वर्षों के इतिहास के अंतिम दौर में पहुँच चुका था, तब श्री श्री ने 2006 से ही अपने संघर्ष समाधान के प्रयास करना आरम्भ कर दिया था, ताकि शांति स्थापित हो सके। स्वामी विरुपाक्ष के अनुसार, “एक युद्ध लड़ने में कई प्रकार की और बहुत सी चुनौतियाँ आती हैं, किन्तु शांति स्थापित करने में आने वाली चुनौतियाँ अपने आप में अनूठी होतीं हैं। और उनका अंदाजा लगाना कठिन होता है।” “टूटा टाइगर” श्रीलंका द्वारा उन खोए हुए अवसरों, जिससे वो अधिक बेहतर स्थिति में हो सकता था, षड्यंत्रों, भीतर की कहानियाँ लोगों को बताती है। विशेष कर जब आज हम श्रीलंका को इस बुरी स्तिथि में देखते हैं, तो ये कहानियाँ और अधिक प्रासंगिक हो जातीं हैं। बहुत से लोग श्रीलंका की वर्तमान स्थिति के लिए कोविड महामारी और दशकों के राजनैतिक-आर्थिक कुप्रबन्धन को जिम्मेदार मानते हैं, किन्तु इनमें से अधिकतर को इसके मूल कारण के बारे में नहीं पता। यदि शांति को वाकई एक अवसर दिया गया होता, तो इस गृह युद्ध के चौथे और अंतिम चरण, जो कि सबसे अधिक घातक रहा, को टाला जा सकता था, और श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जा सकता था।”
गरुड प्रकाशन से प्रकाशित “टूटा टाइगर” का विमोचन 17 अगस्त को कॉन्सटिट्यूशन क्लब में मेजर जेनरल (सेवानिवृत्त) (डॉ) जी डी बक्षी द्वारा किया गया। किया है। लेखक एवं श्यामा प्रसाद मुख़र्जी रिसर्च फाउंडेशन के सीनियर फेलो, बिनय कुमार सिंह तथा गरुड प्रकाशन के सह-संस्थापक श्री अंकुर पाठक भी इस कार्यक्रम में उपस्थित रहे। ये पुस्तक तमिल भाषा में “पुलियिन निसापथं” के नाम से भी उपलब्ध है।
श्री श्री के अपहरण करने की तैयारी!
पुस्तक में बताया गया है कि किस प्रकार, 2006 की गर्मियों में जब श्री श्री रविशंकर श्रीलंका के दौरे पर गए थे तो तत्कालीन भारत सरकार ने उन्हें लिट्टे प्रमुख प्रभाकरन से मिलने की अनुमति नहीं दी थी। सरकार के इस दृष्टिकोण पर स्वामी विरूपाक्ष कहते हैं कि “श्रीलंका में सतत शांति एवं समृद्धि का एक अनोखा अवसर हाथ से चला गया।” वे यह भी बताते हैं कि कैसे एक युद्ध पीड़ित ने उन्हें बताया था कि शांति प्रयासों के दौरान श्री श्री का अपहरण करने की तैयारी थी।
आर्ट ऑफ लिविंग के अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक स्वामी विरूपाक्ष की यह पुस्तक श्रीलंकाई गृहयुद्ध के चौथे एवं अंतिम चरण में तेजी से बदलते हुए घटनाक्रम को एक विस्तृत तथा मानवीय दृष्टिकोण से रेखांकित करती है। श्री श्री रवि शंकर के शांति प्रयासों और आर्ट ऑफ लिविंग के मानवीय आधार पर उस कठिन समय में किए जा रहे प्रयासों को इस पुस्तक में विस्तार से बताया गया है। श्रीलंका के उस मारक टकराव के अंतिम दिनों में वहां क्या क्या हुआ, किन किन लोगों और देशों ने कैसे स्थिति को संवारने या बिगड़ने में योगदान किया- इस सब वस्तुस्थिति का तथ्यपरक बयान ये पुस्तक करती है।
राजीव गाँधी हत्याकांड के अन्वेषण के लिए बनाई गई विशेष अन्वेषण टीम के प्रमुख डी आर कार्तिकेयन, आईपीएस (सेवानिवृत्त), ने पुस्तक की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। पुदुचेरी की पूर्व राज्यपाल और सेवानिवृत्त आईपीएस श्रीमती किरण बेदी का कहना है कि “एक बार ये पुस्तक हाथ में आ जाए तो इसे बंद करना मुश्किल है। यह पुस्तक आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर जी की सोच के मूल तत्त्व प्रेम, संतोष, और शांति को उजागर करती है।” कुल मिलाकर “टूटा टाइगर” कई ऐसे “सीखे गए सबक” को रेखांकित करती है, जिनसे भारतीय उपमहाद्वीप में हमारे देश को एक स्थिर एवं समृद्ध पड़ोसी उपलब्ध रहता है।
(लेखिका आर्ट ऑफ़ लिविंग की टीचर और वाराणसी संभाग की मीडिया कोऑर्डिनेटर हैं)