ग्लोबल हंगर इंडेक्स-2022।
डॉ. निवेदिता शर्मा।
भारत में भुखमरी का बुरा हाल है। भारत के लोग भूख से तड़प रहे हैं। यहां अन्न उपज और उसके वितरण का हाल इतना बेहाल है कि देश की जनता तक उनके लिए आवश्यक भोज्य पदार्थ पहुंच ही नहीं पा रहे! ”ग्लोबल हंगर इंडेक्स-2022” यही बता रही है। लेकिन क्या वास्तविकता में यह स्थितियां हैं? इस पूरी रिपोर्ट को पढ़ने के बाद जो विचार सबसे पहले आया, वह है कि दुनिया में शक्ति सम्पन्न बनते भारत के वैभव को कैसे कम किया जा सकता है, उसके लिए किए जा रहे तमाम षड्यंत्रों में से एक षड्यंत्र यह सीधे तौर पर नजर आता है।
भारत विरोधी नैरेटिव
पूरी रिपोर्ट को पढ़कर क्षोभ होता है कि किस तरह से अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां किसी विशेष नैरेटिव का शिकार हो रही हैं और अपनी विश्वसनीयता खोती जा रही हैं। क्योंकि जिस एजेंसी ने यह रिपोर्ट जारी की है। वह जर्मनी का गैर-सरकारी संगठन ‘वेल्ट हंगर हिल्फ’ और आयरलैंड का गैर-सरकारी संगठन ‘कंसर्न वर्ल्डवाइड’ है। दोनों ने ही इस बात पर जरा भी गौर करने की जहमत नहीं उठाई कि जिस श्रीलंका में लोगों को दिन भर में दो रोटी नसीब नहीं हो रही थी, उस देश को भारत ने न सिर्फ खाद्ध्यान्न से बल्कि रोजमर्रा से जुड़ी तमाम वस्तुओं की पूर्ति की, जोकि मानव जीवन का अहम हिस्सा होती हैं।
इसी प्रकार से पाकिस्तान जिसमें कि एक किलो आटे की कीमत सामान्यत: 110 रुपए और करांची जैसे शहर में 125 रुपये किलो हो चुकी है। गेहूं 88 रुपये से 105 रुपए प्रति किलो के हिसाब से मिल रहा है, वह देश भी इस भूखों की गणना करनेवाली रिपोर्ट में भारत से आगे बताया गया है। इतना ही नहीं तो बांग्लादेश, म्यांमार और नेपाल भी इस रिपोर्ट के हिसाब से भारत से अच्छी स्थिति में है। इसमें कहा गया है कि उनकी पिछली रिपोर्ट की तुलना में भारत छह नंबर और नीचे गिरा है। 121 देशों की सूची में पाकिस्तान 99वें, श्रीलंका 64वें, बांग्लादेश 84वें, नेपाल 81वें व म्यांमार 71वें स्थान पर है, जबकि भारत का स्थान इसमें 107वां है।
इस रिपोर्ट में यह कहा गया है कि दुनिया में सबसे अधिक भूख के स्तर वाले क्षेत्र, दक्षिण एशिया में बच्चों में नाटेपन की दर (चाइल्ड स्टंटिंग रेट) सबसे अधिक है। जिसमें कि भारत में यह 19.3 प्रतिशत है जो दुनिया के किसी भी देश में सबसे अधिक है। भारत में अल्पपोषण की व्यापकता 2018-2020 में 14.6 प्रतिशत से बढ़कर 2019-2021 में 16.3 हो गई है। इसका अर्थ हुआ कि दुनिया भर के कुल 82.8 करोड़ में से भारत में 22.43 करोड़ की आबादी अल्पपोषित है। पांच साल की आयु तक के बच्चों में मृत्यु दर के सबसे बड़े संकेतक ‘चाइल्ड वेस्टिंग’ की स्थिति भी बदतर हुई है। 2012-16 में 15.1 प्रतिशत से बढ़कर यह 2017-21 में 19.3 प्रतिशत हो गया है।
नेपाल से 25 और पाकिस्तान से सात पायदान नीचे
रिपोर्ट के हिसाब से भारत उन 21 देशों में भी शामिल है जहां पर भुखमरी की समस्या काफी गंभीर मानी गई है। इतनी कि भारत नेपाल से 25 और पाकिस्तान से सात पायदान नीचे है। भारत का जीएसआई स्कोर 29.1 है, जो कि गंभीर कैटेगरी में आता है। फिलहाल जो लोग इस ”ग्लोबल हंगर इंडेक्स-2022” को आधार बनाकर केंद्र सरकार को घेरने का प्रयास कर रहे हैं अथवा भारत को कमजोर बताने का प्रयास कर रहे हैं, उन्हें पहले इन तथ्यों पर भी गौर करना चाहिए कि जनसंख्या के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा किए गए प्रयासों को जानबूझकर यह रिपोर्ट क्यों अनदेखा करती है?
हंगर इंडेक्स में तथ्यों को गलत तरीके से मापना सामने आ रहा है। क्योंकि इंडेक्स की गणना के लिए उपयोग किए जाने वाले चार संकेतकों में से तीन बच्चों के स्वास्थ्य से संबंधित हैं जोकि पूरी आबादी का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते। कुपोषित (पीओयू) आबादी के अनुपात का चौथा और सबसे महत्वपूर्ण संकेतक अनुमान तीन हजार के बहुत छोटे नमूने के आकार पर किए गए एक जनमत सर्वेक्षण पर आधारित है। जिसमें कि विशेष रूप से कोविड महामारी के दौरान आबादी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित किए जाने का कोई जिक्र नहीं। एक अनुमान और दृष्टिकोण लेते हुए रिपोर्ट में कुपोषितों को दर्शाया गया है जो कि पूरी तरह से गलत है। क्योंकि भारत की जनसंख्या वर्तमान में 1,404,234,872 (140 करोड़) है। दुनिया के हर 100 आदमी में से 18 लोग भारत में रहते हैं। तब उस स्थिति में इतनी बड़ी जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए नमूने एकत्र किए जाने चाहिए थे, जोकि इस रिपोर्ट को बनाते समय बिल्कुल भी नहीं किए गए।
रिपोर्ट किसी भी स्तर पर विश्वास करने लायक नहीं
यहां समझ यही आ रहा है कि भारत की छवि को एक ऐसे राष्ट्र के रूप में दिखाने का प्रयास किया गया है जो अपनी आबादी की खाद्य सुरक्षा और पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता है। जबकि देश के वर्तमान हालातों और लगातार आर्थिक प्रगति करते हुए आगे बढ़कर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाने के सफर को देखकर सीधे तौर पर दिखाई दे रहा है कि यह रिपोर्ट किसी भी स्तर पर विश्वास करने लायक नहीं। इस रिपोर्ट का जूठ इससे भी समझ आता है कि एशिया में केवल अफगानिस्तान ही भारत से पीछे है और वह 109वें स्थान पर है!
अंत में तथ्यों को गहराई से विश्लेषण करने पर यही कहा जाएगा कि ”ग्लोबल हंगर इंडेक्स-2022” में भारत के संदर्भ में दर्शाए गए आंकड़े मिथ्या हैं। भारत को अंरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम करने का एक सुनियोजित प्रयास है। जो भारत विरोधी हैं और भारत की बढ़ती वैश्विक शक्ति को सहन नहीं कर पा रहे हैं, उनके हिसाब से तैयार की गई यह रिपोर्ट है। ऐसे संगठन एवं राज्य-राष्ट्र भारत के बढ़ते प्रभाव को सहन नहीं कर पा रहे हैं, उनके द्वारा हिन्दुस्थान के प्रभाव को कम करने एवं दुनिया भर में विकास एवं शक्ति सम्पन्नता को लेकर जो एक नई दृष्टि भारत को लेकर दिखाई देती है, उससे सभी का ध्यान भटकाने एवं भारत के प्रति नकारात्मक नैरेटिव सेट करने का यह कुत्सित प्रयास है। क्योंकि यदि यह सच नहीं होता तब उस स्थिति में यह तो सभी मानेंगे कि भारत को कभी भी इस रिपोर्ट में पाकिस्तान और श्रीलंका से नीचे नहीं रखा जा सकता था, बल्कि कहना चाहिए कि विश्व के अनेक देश सार्क देशों के साथ ऐसे हैं जिनकी तुलना में भारत कई मायनों में आगे है, जिसका कि इस रिपोर्ट में कोई जिक्र नहीं है।
(लेखिका मध्य प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य हैं)