स्कूल की मान्यता बहाल करने के लिए कोर्ट
भी सहमत नहीं।
डॉ. मयंक चतुर्वेदी।
स्कूल की इस एक करतूत ने खोली उसकी पूरी पोल
स्कूल से जुड़े इन साक्ष्यों और घटनाओं को देखिए- दमोह का यह स्कूल जब मुस्लिम बच्चियों के साथ अच्छे अंक लानेवाली हिन्दू बच्चियों का फोटो हिजाब पहले हुए लगाकर सबसे अच्छा रिजल्ट देनेवाला श्रेष्ठ विद्यालय होने का दावा अपने विज्ञापन में करता है, तब हिन्दू बच्चियों को लोग हिजाब में देखते हैं तो इस पर अपनी आपत्ति दर्ज कराते हैं। शुरूआत में गंगा जमुना स्कूल का प्रबंधन यह बात मानने से ही इंकार कर देता है कि हिन्दू बच्चियों को हिजाब पहनाया गया, वह उसे एक सामन्य स्कार्फ सिद्ध करने में जुट जाता है। लेकिन तमाम दलीलों के बाद भी जो साक्ष्य पुलिस को मिले उसने साफ कर दिया कि यह स्कार्फ नहीं बल्कि हिजाब है जोकि हर बच्ची का स्कूल में लगा कर आना अनिवार्य था, यदि कोई बच्ची इसे लगाकर नहीं आती तो उसे विद्यालय में प्रवेश ही नहीं दिया जाता था।
बाल आयोग गया तो खुल गए नए-नए राज
सभी जानते हैं कि प्रारंभ में इस स्कूल को जिला शिक्षा अधिकारी, एसपी और कलेक्टर तक सभी ने क्लीन चिट दे दी थी किंतु जब मामला गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा तक पहुंचा और मीडिया द्वारा इस इस संबंध में उनसे सवाल किया गया तब उन्होंने जवाब देते हुए कहा कि हम इसकी जांच कराएंगे और फिर पुनः जब जांच टीम जाकर स्कूल की गहराई से पड़ताल करती है और इस बीच एनसीपीसीआर-एससीपीसीआर की संयुक्त टीम यानी कि केंद्र एवं राज्य बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य यहां अपनी छापामार कार्रवाई करते हैं, तब जो ध्यान में आया वह सभी के लिए चौंकाने वाला साबित हुआ। जिस स्कूल को प्रशासन क्लीन चिट दे चुका था, वहां ऐसा बहुत कुछ पाया गया, जिस पर आपत्ति ली जाना जरूरी समझा गया ।

कलमा के साथ ”मेरे अल्लाह बुराई से बचाना मुझको” पढ़ रहे थे बच्चे
गंगा जमुना में मिले साक्ष्यों में पाया गया कि केवल यह स्कूल बच्चों को नमाज नहीं पड़वाता बल्कि गैर मुस्लिम बच्चों को यहां कलमा पढ़ाया जा रहा है । कुरान की आयतें बताई जा रही हैं और तो और दुआ के नाम पर लब पे दुआ जैसे सिर्फ अल्लाह को समर्पित प्रार्थना कराई जाती है। जिसके बोल थे लब पर आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी, ज़िन्दगी शमा की सूरत हो ख़ुदाया मेरी। इस पूरी प्रार्थना का निष्कर्ष एक शब्द में यही निकलता है कि अल्लाह ही सब कुछ है, गीत में बीच के बोल हैं ”मेरे अल्लाह बुराई से बचाना मुझको”। कुल मिलाकर जो कुछ देनेवाला और करने-करानेवाला है वह अल्लाह है।
मुख्यमंत्री शिवराज बोले- मतांतरण के कुचक्र को कामयाब नहीं होने देंगे
स्वभाविक है कि यह सच सामने आने के बाद मध्य प्रदेश सरकार को एक्शन लेना पड़ा और स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज को इस मामले में अपना वक्तव्य देना पड़ा, जिसमें कि उन्होंने साफ शब्दों में कहा था कि मैंने उच्च स्तरीय जांच के निर्देश दिए हैं। मतांतरण के कुचक्र को कामयाब नहीं होने देंगे, दमोह घटना की रिपोर्ट आ रही है। दो बेटियों ने बयान दिए हैं कि उन्हें बाध्य किया गया। कठोरतम कार्रवाई होगी। भोले-भाले बच्चे, जिनमें समझ ही नहीं है, उन्हें पढ़ाई के नाम पर बुलाकर अगर इस ढंग का प्रयत्न किया जाता है तो किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेंगे। ऐसा करने वाले कठोरतम दंड पाएंगे। मध्य प्रदेश की धरती पर कोई भी किसी बेटी या बच्चे को हिजाब बांधने या अलग ड्रेस पहनने पर विवश नहीं कर सकता। इसके लिए हम कठोर से कठोर कार्यवाही करेंगे।
गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने प्रश्न किया कि हिंदू बच्चियों को जबरन हिजाब पहनना क्या सही है, कलावा नहीं बांधने देना क्या प्रबंधन का भोलापन है? स्कूल प्रबंधन ने जो कृत्य किए हैं वह भोलेपन में किया गया कृत्य नहीं है। जांच में प्रथम दृष्ट्या आया है कि प्रबंधन द्वारा जबरन बच्चियों को हिजाब पहनाया जाता था। उन्होंने कहा कि धार्मिक भावनाएं आहत करने और धर्म परिवर्तन का कोई भी प्रयास प्रदेश में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। आगे हम सब को पता है कि जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, यहां बहुत कुछ मिलता गया और इसलिए मध्य प्रदेश स्कूल शिक्षा विभाग ने इस विद्यालय की मान्यता रद्द कर दी।
स्कूल प्रशासन गया हाईकोर्ट तो नहीं मिली कोई राहत
मान्यता रद्द होते ही विद्यालय प्रशासन जबलपुर हाइकोर्ट में मामले को लेकर गया, कोर्ट ने दो अवसर अपनी बात रखने को इस स्कूल को दिए लेकिन उसमें यह विद्यालय नहीं सिद्ध कर पाया कि उसके यहां कुछ भी गलत नहीं हो रहा। जबकि मध्यप्रदेश सरकार के वकील एवं राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की ओर से कोर्ट में जो साक्ष्य रखे गए, उसने स्पष्ट कर दिया कि प्रथम दृष्ट्या इस विद्यालय की तमाम गलतियां हैं, जिन्हें नजरअंदाज तो बिल्कुल ही नहीं किया जा सकता, और ऐसा मानते हुए कोर्ट ने कोई राहत इस स्कूल को प्रदान नहीं की । विद्यालय की मान्यता अभी भी रद्द है। जब न्यायालय पर जोर नहीं चला तब यह नया पैंतरा अपनाया गया है।
अब भोले-भाले बच्चों का उपयोग स्कूल प्रबंधन ने अपने हित में किया है । लगातार दमोह में प्रदेश सरकार, बाल संरक्षण आयोग एवं पुलिस-प्रशासन के खिलाफ माहौल बनाया जा रहा है कि बच्चों के हित की अनदेखी की जा रही है, यहां उनकी किसी को नहीं पड़ी। जबकि इस मामले में शासन ने उनकी आगे की पढ़ाई के लिए स्कूल चिन्हित कर दिए हैं।
अभिभावक शासन का दिया विकल्प नहीं हैं मानने को तैयार, बच्चों ले सड़क पर उतरे
इस संबंध में सहायक संचालक शिक्षा आरएस राजपूत का कहना है कि सभी बच्चों और उनके अभिभावकों से आग्रह भी कर रहे हैं कि स्कूल निलंबन का मामला कोर्ट में है और सरकार के निर्देश पर गंगा जमना स्कूल के बच्चों के दाखिले के लिए सरकारी स्कूल चिन्हित किये गए हैं। यदि इन स्कूलों में कोई दिक्कत है तो शिक्षा विभाग सहायता करेगा। पर यहां सरकार एवं सरकारी मशीनरी को बदनाम करने का माहौल इतना तगड़ा बना दिया गया है कि बड़ी संख्या में बच्चे सड़कों पर आ गए। अभिभावक बच्चों के साथ विरोध की अगुवाई कर रहे हैं और पीछे से स्कूल प्रशासन अब भी मामले को हवा दे रहा है, ताकि उसके समर्थन में माहौल बने। दरअसल, यह इसलिए कहा जा रहा है कि बिना योजना के सह संभव नहीं था कि एक साथ सेंकड़ों बच्चे घरों से निकलें और सड़कों पर प्रदर्शन करने लगें।
केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल का घर भी नहीं छोड़ा इन अभिभावक और बच्चों ने
इतना ही नहीं तो इस बच्चों ने केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल जोकि दमोह संसदीय क्षेत्र से सांसद है इनके घर का भी घेराव किया। जबकि चाइल्ड कानून कहता है कि बच्चों का इस्तेमाल किसी भी सूरत में आन्दोनात्मक, विरोध-प्रदर्शन में नहीं किया जा सकता । लेकिन यहां तो न्याय के नाम पर खुले तौर पर ऐसा करते हुए देखा गया । यही कारण है कि अब फिर एक बार राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने एक लम्बा ट्वीट किया है, इसमें उन्होंने गंगा जमुना स्कूल से जुड़े उन तमाम साक्ष्यों को सामने रखा है, जिनके जानाने के बाद यह समझा जा सकता है कि इस विद्यालय के संचालकों के मंसूबे धर्मांतरण के मामले में ही नहीं अन्य मामलों में भी कितने खतरनाक थे।

एनसीपीसीआर ने इसलिए लिया था ये स्कूल अपने संज्ञान में
सार्वजनिक तौर पर प्रियंक कानूनगो ने लिखा- ” दमोह के गंगा जमना स्कूल में अनियमितताओं के चलते एनसीपीसीआर द्वारा संज्ञान लिए जाने के पश्चात जाँच के निर्देश दिए गए व ज़िला शिक्षा अधिकारी की जाँच के बाद पाई गयी कमियों के आधार पर राज्य सरकार द्वार स्कूल की मान्यता निलम्बित की गयी जिसकी घोषणा माननीय मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश ने स्वयं की थी। इसके विरुद्ध स्कूल संचालकों द्वारा माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर में अपील की गयी जिसमें उनको कोई स्थगन नहीं मिला व सरकार को 4 सप्ताह में मामले के निपटान का निर्देश दिए गए।”
उन्होंने आगे कहा ”क़ानूनी रास्ते से काम न निकलता देख गंगा जमना स्कूल के संचालकों ने वही किया जो कट्टरवादी,अतिवादी इस्लामिक धार्मिक उन्मादी समूह दुनिया में कई स्थानों पर करते हैं,आम लोगों की भावनाओं को भड़का कर एक अराजक भीड़ इकट्ठा कर के आंदोलन के नाम पर सड़कों पर भेज दिया तथा बच्चों और औरतों को उसके आगे कर दिया जिस से कि सहानुभूति मिल सके व हिंसा की स्थिति में अपराधी व्यक्ति बच्चे और महिलाओं का इस्तेमाल ढाल की तरह कर सकें। ये भीड़ केंद्रीय मंत्री श्री प्रह्लाद पटेल के घर के परिसर के भीतर भेजी गयी जो कि गम्भीर घटना है, एक केंद्रिय मंत्री के घर इस तरह भीड़ को बेक़ाबू कर भेजना निश्चित प्रशासनिक चूक है पुलिस के गोपनीय विभाग की विफलता है एवं सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार अधिकारियों की लापरवाही है।”
स्कूल की सभी करतूतों का पर्दाफाश
एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियंक ने यहां सिलसिलेवार ढंग से इस स्कूल की सभी करतूतों का पर्दाफाश किया है, उन्होंने लिखा- ”स्कूल के कारनामे इस प्रकार हैं, भारत के नक़्शे से देश के पूर्वी भाग को काट कर दिखाना,बच्चों को डारविन के सिद्धांत के विपरीत उत्पत्ति का इस्लामिक रूढ़िवादी सिद्धांत सिखाना, हिंदू बच्चों को इस्लामिक धार्मिक प्रार्थना में शामिल करना,इस्लाम के सर्वोच्च होने की गवाही दिलवाना व कलमा पढ़वाना जैसी हरकतों के अलावा स्कूल में लड़के लड़कियों लिए पर्याप्त पृथक शौचालय नहीं हैं,मान्यता में प्रदत्त क्षमता से कई गुना अधिक बच्चे भर्ती किए गए हैं,स्टाफ़ के पुलिस सत्यापन नहीं हैं.स्टाफ़ क्वालिफ़ायड नहीं है इत्यादि कई कारण हैं कि मान्यता निलम्बित है।
उनका कहना यह भी है कि ”बच्चों के दूसरे स्कूलों में दाख़िले के लिए कलेक्टर ने हेल्प डेस्क बनाई है सरकारी व प्राइवेट स्कूलों में सीटें ख़ाली हैं हमने भी न्यायालय में ऐसे स्कूलों की जानकारी दी है इसके बावजूद देश भर के अजेंडावादी और आंदोलनजीवी अब इसमें शामिल हैं और सरकार को दबाव में लेने के लिए तमाम प्रपंच रचे जा रहे हैं।”
स्कूल में बच्चों की बनाई गई पावलोवियन कंडीशनिंग
इस मामले में मनोवैज्ञानिक डॉ. राजेश शर्मा कहते हैं कि बच्चों की साइकोलॉजी इस स्थिति में यही बनेगी कि अल्लाह ही सब कुछ है। उसे भविष्य में आसानी से कन्वर्ट करने के लिए ग्राउण्ड तैयार हो जाता है। ऐसे बच्चों को बड़ी सरलता से आगे चलकर इस्लाम में लाया जा सकता है। जिन्हें बचपन में ही यह बताया गया हो कि सर्वोच्च सत्ता अल्लाह ही है। क्योंकि उनकी शुरू से ही साइकोलॉजी के हिसाब से पावलोवियन कंडीशनिंग हो गई । उसी से आगे उनकी मानसिकता बनेगी।
उन्होंने कहा कि इसे ही दूसरे शब्दों ब्रेन वॉश करना कहा जाता है। साइकोलॉजी में ब्रेनवॉशिंग को एक ऐसा प्रभाव माना जाता है जिसमें इंसान की सहमति या सहमति के बीना भी प्रभाव डाला जा सकता है। ब्रेनवॉशिंग में किसी खास उद्देश्य से किसी विचार, भाव, बर्ताव को बदलने की या प्रभावित करने की कोशिश की जाती है। जैसा कि हम सभी जानते हैं की समाज या परिवार में एक साथ रहने वाले लोगों पर एक-दूसरे का स्पष्ट या अस्पष्ट तौर पर सामाजिक प्रभाव पड़ता ही है। ऐसे में स्वभाविक है कि गंगा जमुना में पढ़ रहे बच्चों पर भी वहां कराई गई प्रत्येक क्रिया का गहरा प्रभाव पड़ा है।(एएमएपी)



