बात भारत की -2

apka akhbar-ajayvidyutअजय विद्युत ।

भ्रष्टाचार कोई आज का ही मर्ज नहीं है। चाणक्य ने अपने ग्रंथ अर्थशास्त्र में इस पर विस्तार से चर्चा करते हुए यहां तक कहा कि चोरों को तो चोरी करने से रोका जा सकता है लेकिन सरकारी अधिकारियों को भ्रष्टाचार से रोकना कठिन है।

 


 

घोड़ा जैसे अपने स्थान पर बंधा हुआ शांत दिखाई देता है परंतु रथ आदि में जोड़ते ही वह बिगड़ पड़ता है, वैसे ही स्वभाव से शांत दिखाई देने वाला मनुष्य भी धन संग्रह आदि के कार्य पर नियुक्त हो जाने के बाद उदंड हो जाता है।

कैसे पहचानें कि कोई अधिकारी भ्रष्ट है या नहीं

चाणक्य कहते हैं- किसी कर्मचारी-अधिकारी की आय थोड़ी और उसका खर्च अधिक दिखाई दे तो समझ लेना चाहिए कि वह राज्य के धन का अपहरण यानी गबन करता है। अगर उसकी आय और व्यय दोनों में साम्य दिखाई दे तो समझना चाहिए कि वह न तो सरकारी धन का गबन करता है और न रिश्वत लेता है। लेकिन इतना ही संतोषजनक नहीं है। चाणक्य कहते हैं कि ऐसा भी हो सकता है कि अधिकारी भ्रष्ट हो, सरकारी धन का गबन कर या रिश्वत लेकर ऊपरी कमाई करता हो परंतु धन थोड़ा खर्च करता हो जिससे किसी को उसकी करतूत का पता न चले। इसलिए गुप्तचरों द्वारा ही इस बात का ठीक से पता चल सकता है कि कौन हेरा-फेरी करता है और कौन नहीं।

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भ्रष्टाचार पर लगाम कसने के उपाय

भ्रष्टाचार पर लगाम कसने के भी उपाय अर्थशास्त्र में बताए गए हैं। जैसे उच्च अधिकारियों के विभाग समय समय पर बदलते रहना चाहिए। उन्हें एक ही विभाग में लंबे समय तक न रहने दिया जाए ताकि उनके निहित स्वार्थों की पूर्ति को रोका जा सके।

राज कर्मचारी राजकीय कोष को भी लूटते हैं और जनता को भी। उनके कार्यकलापों को पूरी तरह से जानना आसान नहीं है। जैसे जीभ पर रखे हुए मधु अथवा विष का स्वाद लिए बिना नहीं रहा जा सकता उसी तरह अर्थ अधिकार यानी पैसे का लेनदेन से संबंधित कार्यों पर नियुक्त व्यक्ति धन का थोड़ा भी स्वाद ना लें यह असंभव है।

हजारों वर्ष पहले ढूंढ लिया था आज की चिंताओं का इलाज

जिस प्रकार पानी में रहने वाली मछलियां पानी पीती हुई दिखाई नहीं देती उसी प्रकार अर्थ से संबंध कार्यों पर नियुक्त कर्मचारी भी धन का अपहरण करते हुए जाने नहीं जा सकते। चाणक्य ने तो यहां तक लिख दिया कि आकाश में उड़ने वाले पक्षियों की गतिविधि का पता लगाया जा सकता है परंतु धन का अपहरण करने वाले कर्मचारियों की गतिविधियों का पार पाना कठिन है।

भ्रष्टाचार के तरीके

कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों द्वारा अवैधानिक तरीकों से धन उगाहने के 40 तरीकों का वर्णन किया है। उनमें से कुछ शताब्दियों के अंतराल में हुए परिवर्तनों के कारण प्रासंगिक नहीं रहे लेकिन कई बातें आज भी उतनी ही सटीक हैं जितनी ईसा पूर्व थीं, जैसे-

  • लोगों से अधिक धन लेना और सरकारी रजिस्टर में कम दर्ज करना।
  • लोगों से कम पैसे लेना और थोड़ी रिश्वत लेकर सरकारी रजिस्टर में अधिक दिखा देना।
  • किसी से धन लेकर रजिस्टर में उसे दूसरे के नाम से दिखा देना।
  • लोगों से धन वसूल कर उसे सरकारी खजाने में न जमा कराना।

-सरकार द्वारा जो समग्री जनता को दी जाती है उसमें किसी को अधिक कीमत की सामग्री की जगह सस्ती, घटिया सामग्री दे देना। किसी को रिश्वत लेकर कम कीमत के बजाय महंगी सामग्री दे देना।