नई दिल्ली । कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए शशि थरूर ने अभियान छेड़ा है। हालांकि, खड़गे के मुकाबले कांग्रेस में उन्हें अभी भी बराबरी का मौका नहीं मिल रहा है। गुरुवार को थरूर ने इशारों-इशारों में इस बात को कह भी दिया। दरअसल, एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान जब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि क्या आपको चुनाव में बराबर की जमीन मिल रही है या आपकी उससे कोई शिकायत है? इस पर तिरुवनंतपुरम से पार्टी सांसद ने कुछ ऐसे उदाहरण दिए, जिससे कांग्रेस में होने वाले चुनाव को लेकर सवाल खड़े हो गए।
क्या बोले थरूर?
1. हमें सही फोन नंबर-एड्रेस तक नहीं मिले
शशि थरूर ने कहा, “सिस्टम में कुछ कमियां हैं। हमको पता है। 22 साल से चुनाव नहीं हुए। हमने पहले 30 तारीख को एक लिस्ट दिया गया। फिर एक हफ्ते बाद हमें दूसरा लिस्ट मिला। पहले लिस्ट में फोन नंबर ही नहीं थे किसी के। किसी में उनके पते नहीं थे। तो हम संपर्क करते कैसे किसी को? फिर जो लिस्ट मिली उसमें नाम और फोन नंबर पहली लिस्ट से अलग थे। तो मेरी ये शिकायत नहीं है कि ये जानबूझकर कर रहे हैं। बल्कि ये कहना है कि हमारी पार्टी में 22 साल से चुनाव नहीं हुए हैं, इसलिए ये गलतियां हुई हैं। मैं मिस्त्री साहब पर सवाल नहीं उठा रहा। वे स्वतंत्र चुनाव कराने में प्रतिबद्ध हैं। हम उनके खिलाफ शिकायत नहीं कर रहे।”
उन्होंने कहा, “17 तारीख तक मुझे कोई गारंटी नहीं है कि हम अपना संदेश कार्यकर्ताओं तक पहुंचा पाएंगे या नहीं। क्योंकि उनके फोन नंबर गलत होंगे तो न हम उन्हें फोन कर पाएंगे, न ही मैसेज। हमारे जो मैनिफेस्टो हैं, वो हमने रिलीज तो किया है, लेकिन अगर लोग सीधे उसे लेने आएंगे तो उन्हें शायद पता न चले। इसलिए मैं आप लोगों से बात कर के मेरी उम्मीद है कि कोई डेलिगेट्स हों जिनसे मेरा संपर्क सीधा न हो पा रहा हो। लेकिन आपके माध्यम से वे जान जाएं कि मैं उसे क्या चाहता हूं।”
दूसरी बात ये है कि कुछ नेताओं ने जिस तरह के काम किए हैं। उससे मुझे लगता है कि मुकाबले के लिए जमीन बराबरी की नहीं है। कई जगहों पर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्षों और बड़े नेताओं ने खड़गे साहब का स्वागत किया, उनके साथ बैठते हैं, प्रदेश कांग्रेस कमेटी के लोगों को मिलवाते हैं। पीसीसी से निर्देश जाते हैं कि आ जाओ खड़गे साहब आ रहे हैं। ऐसी कई चीजें पीसीसी में हुई हैं। लेकिन मेरे लिए ऐसा कुछ नहीं हुआ है।
कई बार ऐसा हुआ है कि मैं पीसीसी गया और उस जगह कमेटी अध्यक्ष ही मौजूद नहीं थे। लेकिन मैं कार्यकर्ताओं से खुशी से मिला हूं। मुझे मालूम है कि एक साधारण कार्यकर्ता का वोट और एक बड़े नेता के वोट की एक ही वैल्यू है। इसलिए मुझे इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। लेकिन अगर आप लेवल प्लेइंग फील्ड की बात करते हैं तो इस तरह के बर्ताव से साफ है कि स्थिति क्या है।