#pradepsinghप्रदीप सिंह।
अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट का बहु प्रतीक्षित फैसला आखिरकार मंगलवार को आ गया। अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली हाई कोर्ट में अपनी गिरफ्तारी को चुनौती दी थी और कहा था कि यह गैर कानूनी है, उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए था। उनके वकील ने कहा कि उनको इस मामले में गिरफ्तार करने की कोई जरूरत नहीं थी। इंफोर्समेंट डायरेक्टरेट ने कानून का उल्लंघन किया है। दिल्ली हाई कोर्ट ने फैसले में साफ-साफ कहा गया कि अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी में जांच एजेंसी ने कानून के सारे प्रावधानों का पालन किया है और यह गिरफ्तारी पूरी तरह से कानून सम्मत है। हाई कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल की याचिका को खारिज कर दिया।

अदालत ने अरविंद केजरीवाल के खिलाफ कई सारी टिप्पणियां कीं और उनके वकील अभिषेक मनु सिंघवी द्वारा इस मामले की सुनवाई के दौरान उठाए गए तमाम सवालों का जवाब भी दिया। अरविंद केजरीवाल के वकील ने अभिषेक मनु सिंघवी ने दो मुद्दे प्रमुख रूप से उठाए थे। एक- चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी हुई है जिससे उनको चुनाव में प्रचार से रोका जा सके। अदालत ने कहा कि यह हमारा कंसर्न नहीं है। हमको इससे कोई मतलब नहीं है कि कौन टिकट देता है, कौन चुनाव प्रचार करता है, चुनाव की अधिसूचना जारी हुई है या नहीं हुई है? कानून अपने हिसाब से काम करता है। एक तरह से प्रतिप्रश्न किया कि क्या चुनाव की अधिसूचना जारी होने से पहले गिरफ्तारी होती तो उसको चुनौती ना दी जाती। हाई कोर्ट ने कहा कि अदालत को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि चुनाव की अधिसूचना जारी हो चुकी है या नहीं। एक गवाह को आंध्र प्रदेश में टिकट देने के मुद्दे पर अदालत ने कहा कि हमको (अदालत को) इस बात से कोई कंसर्न नहीं है कि कौन किसको टिकट देता है, कौन किसको नहीं देता है।

यह सवाल भी उठाया गया कि जो लोग अप्रूवर (सरकारी गवाह) बने उनमें से किसी एक की कंपनी ने भारतीय जनता पार्टी को इलेक्टोरल बांड के जरिए चंदा दिया। इस पर अदालत ने कहा यह भी हमारा कंसर्न नहीं है कि कौन किसको चंदा देता है। अदालत ने यह बात साफ-साफ कही कि गोवा चुनाव के अंदर जो घोटाले का पैसा इस्तेमाल हुआ उसे लेकर हवाला ऑपरेटर और अप्रूवर्स बयान के आधार पर मनी ट्रेल स्थापित हो गई है। ईडी पर जो मनी ट्रेल स्थापित करने का बार-बार सवाल उठाया जाता था, हाई कोर्ट ने कहा कि वह मनी ट्रेल स्थापित हो गई है।

अदालत ने अरविंद केजरीवाल की दो तरह से जिम्मेदारी तय की। एक मुख्यमंत्री होने के नाते वह पॉलिसी को प्रभावित करने, बदलने की स्थिति में थे। दूसरा आम आदमी पार्टी के नेशनल कन्वीनर होने के नाते पार्टी के फैसलों को प्रभावित करने की स्थिति में थे। तो निजी आधार पर और आम आदमी पार्टी का कन्वीनर होने के नाते- उन पर जो आरोप लगाए गए हैं उसके लिए ईडी ने पर्याप्त सबूत अदालत के सामने पेश किए हैं।


अभिषेक मनु सिंघवी ने दूसरे प्रमुख मुद्दे के रूप में अदालत में इस पर बड़ा जोर दिया था कि जो अप्रूवर बने हैं उनके बयान पर भरोसा नहीं किया जा सकता। वे लोग दबाव डालकर अप्रूवर बनाए गए हैं। इनका बयान पहले कुछ था, बाद में इन्होंने बयान बदल दिया। अदालत ने कहा कि अप्रूवर के बयान पर सवाल उठाना जांच एजेंसी पर सवाल नहीं है बल्कि यह अदालत पर सवाल उठाना है। जो अप्रूवर बनता है उसका बयान 164 के तहत मजिस्ट्रेट लेता है। वो न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा है। अगर आप अप्रूवर के बयान पर सवाल उठा रहे हैं तो इसका मतलब आप अदालत पर सवाल उठा रहे हैं। जांच एजेंसी अप्रूवर का बयान दर्ज नहीं करती है, जांच एजेंसी ने किसी अप्रूवर का बयान दर्ज नहीं किया है। इसलिए आप उस पर सवाल नहीं उठा सकते। यह अप्रूवर की परंपरा या व्यवस्था या कानूनी प्रावधान आज का नहीं 100 साल पुराना है। सुप्रीम कोर्ट ने कभी किसी मामले में अप्रूवर के बयान पर इस तरह का सवाल नहीं उठाया है, उसको डिसएप्रूव नहीं किया है। इसलिए अप्रूवर के बयान पर सवाल उठाना, उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाना दरअसल अदालत की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने जैसा है।

आम आदमी पार्टी की ओर से जितने मुद्दे उठाए गए थे हाई कोर्ट ने उन सबको खारिज कर दिया। साथ ही लताड़ भी लगाई कि यह संभव नहीं है कि दो तरह के कानून लागू हों। यह अदालत ऐसा काम नहीं कर सकती कि आम लोगों के लिए एक कानून होगा और  विशिष्ट लोगों, मुख्यमंत्री के लिए दूसरा। कानून सबके लिए समान है। आप विशिष्ट हैं इसलिए आपके लिए अलग से कानून लागू होगा, ऐसा नहीं हो सकता। आप चुनाव लड़ रहे हैं या नहीं लड़ रहे हैं, आप चुनाव में प्रचार कर रहे हैं या नहीं कर रहे हैं, चुनाव चल रहा है या नहीं चल रहा है- इससे अदालत का कोई मतलब नहीं। अदालत को संविधान और कानूनी प्रक्रिया से मतलब है।

दिल्ली हाई कोर्ट के इस फैसले ने केवल अरविंद केजरीवाल ही नहीं, पूरे विपक्षी गठबंधन की विश्वसनीयता पर सवाल उठा दिया है। अरविंद केजरीवाल के समर्थन के लिए अभी 31 मार्च की रामलीला मैदान में हुई पूरे विपक्षी गठबंधन की रैली पर एक तरह से नैतिकता का प्रश्न उठाया है। यह अदालत ने नहीं कहा मैं अपनी ओर से कह रहा हूं कि ये रैली ऐसे व्यक्ति के समर्थन में की गई जो अदालत की नजर में आरोपी है। जिसके खिलाफ लगाए आरोपों के पक्ष में जांच एजेंसी ने अदालत में पुख्ता सबूत पेश किए हैं।

यह कहा जा सकता है कि हाई कोर्ट के इस फैसले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भ्रष्टाचारियों को कटघरे में खड़ा करने के अभियान को मजबूती मिली है। अब जो भी अरविंद केजरीवाल का समर्थन करेगा वह दरअसल भ्रष्टाचार का समर्थन करता हुआ माना जाएगा। अरविंद केजरीवाल के लिए अब कोई रास्ता नहीं है। कम से कम चुनाव तक उनका जेल में बने रहना तय है। अरविंद केजरीवाल को जब 15 तारीख को फिर पेश किया जाएगा तो उनकी जुडिशियस कस्टडी बढ़ने वाली है। मनीष सिसौदिया और सत्येंद्र जैन की तरह वह जेल में ही रहेंगे यह बात आज पक्की हो गई है।

अब सवाल उठेगा कि दिल्ली का क्या होगा? अरविंद केजरीवाल क्या अब भी अड़े रहेंगे कि वह जेल से सरकार चलाएंगे। अगर वह इस बात पर अड़े रहते हैं तो दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर की इस बात पर हमको ध्यान देना होगा कि ‘दिल्ली के लोगों को मैं आश्वासन देता हूं कि हम जेल से सरकार नहीं चलने देंगे। (विस्तार से जानने के लिए वीडियो देखें)
((लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ के संपादक हैं)