पाकिस्तान का पाप अब उसके सिर पर चढ़कर बोलने लगा है. उसने जिन खालिस्तानी आतंकवादियों को अपने यहां समर्थन दिया था अब वही पाकिस्तान में ही अलग खालिस्तान बनाने की मांग कर रहे हैं. खालिस्तानी आतंकवादियों के समर्थकों ने पाकिस्तान के मुख्य शहर कराची में जगह-जगह अलग खालिस्तान बनाने की मांग को लेकर स्लोगन लिखे हैं।

कराची की सड़कों पर लिखे स्लोगन

कराची की मुख्य सड़कों पर जगह-जगह यह स्लोगन लिखे दिख रहे हैं जिसमें स्पष्ट तौर पर लिखा है, ‘पाकिस्तान बनेगा खालिस्तान’, ‘कराची बनेगा खालिस्तान’, ‘मुल्ला बनेगा खालसा.’ दिलचस्प है कि खालिस्तानी आतंकवादी संगठनों के लोगों ने यह वीडियो भी वायरल कर दिया है जिसमें कराची की सड़कों पर जगह-जगह यह स्लोगन लिखे दिख रहे हैं. कराची में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी और पाकिस्तानी फौज के बड़े अधिकारी बड़े पैमाने पर रहते हैं, लिहाजा माना जाता कि वहां पर कड़ी सुरक्षा और सतर्क खुफिया निगाहें होंगी. इन सबके बावजूद वहां पर अलग खालिस्तान बनाने की मांग को लेकर जगह-जगह नारे लिख दिए गए।

पाकिस्तानी हुक्मरानों ने तुरंत संभालने की कोशिश की

पाकिस्तानी हुक्मरानों को खालिस्तानी आतंकवादियों की इस हरकत का जैसे ही पता चला उन्होंने तत्काल इस पर एक्शन लिया. सूत्रों के मुताबिक इस बाबत खालिस्तानी आतंकवादियों के आकाओं को बुलाकर बाकायदा पाकिस्तानी फौज और खुफिया एजेंसी के लोगों ने बैठक की. उन्हें स्पष्ट तौर पर निर्देश दिए गए कि वह पाकिस्तान में ऐसी कोई डिमांड सार्वजनिक तौर पर ना लिखें जिससे यह साबित हो कि पाकिस्तान खुले तौर पर खालिस्तान का समर्थन कर रहा है।

खालिस्तानी आतंकवादियों में दो गुट

सूत्रों का कहना है कि खालिस्तानी आतंकवादियों में दो गुट बन गए हैं, जिनमें से एक गुट चाहता है कि पाकिस्तान की बड़ी आबादी जहां मौजूद है उस इलाके को खालिस्तान घोषित कर दिया जाए. इसके साथ ही बताया जा रहा है कि यह गुट कनाडा में भी ऐसी मांग उठाने जा रहा है. खालिस्तानी आतंकवादियों के इस अलग गुट का मानना है कि दूसरे देशों की खुफिया एजेंसियों ने उन्हें अभी तक केवल यूज किया है, लेकिन उनके मतलब की कोई चीज आज तक सामने नहीं आई है. जबकि उनके सैकड़ों लोग इस दौरान मारे जा चुके हैं. लिहाजा जो देश उन्हें समर्थन दे रहे हैं वह वहां अपने यहां पर छोटा हिस्सा ही दें, लेकिन खालिस्तान के नाम पर दे दें. हो सकता है जल्दी ही यह मांग कनाडा में भी देखने को मिले।

अकाल तख़्त के जत्थेदारों की स्थिति

अमृतसर में स्वर्ण मंदिर परिसर में स्थित अकाल तख़्त सिख धर्म का सर्वोच्च स्थान है. इसके प्रमुख को जत्थेदार कहा जाता है और चार अन्य तख्तों के प्रमुखों के साथ वे सामूहिक रूप से सिख समुदाय से संबंधित महत्वपूर्ण मामलों पर फ़ैसले लेते हैं. साल 2020 में ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी के मौके़ पर अकाल तख़्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने कहा कि खालिस्तान की मांग जायज़ है. उन्होंने पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहा था, “सिखों को यह संघर्ष याद है. दुनिया में ऐसा कोई सिख नहीं है जो खालिस्तान न चाहता हो. भारत सरकार खालिस्तान देगी तो हम लेंगे।

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खालिस्तान की मांग पहली बार कब उठी?

खालिस्तान शब्द पहली बार 1940 में सामने आया था. मुस्लिम लीग के लाहौर घोषणापत्र के जवाब में डॉक्टर वीर सिंह भट्टी ने एक पैम्फ़लेट में इसका इस्तेमाल किया था. इसके बाद 1966 में भाषाई आधार पर पंजाब के ‘पुनर्गठन’ से पहले अकाली नेताओं ने पहली बार 60 के दशक के बीच में सिखों के लिए स्वायत्तता का मुद्दा उठाया था. 70 के दशक की शुरुआत में चरण सिंह पंछी और डॉक्टर जगजीत सिंह चौहान ने पहली बार खालिस्तान की मांग की थी. डॉक्टर जगजीत सिंह चौहान ने 70 के दशक में ब्रिटेन को बेस बनाया और अमेरिका और पाकिस्तान भी गए. 1978 में चंडीगढ़ के कुछ नौजवान सिखों ने खालिस्तान की मांग करते हुए दल खालसा का गठन किया।

क्या भिंडरावाले ने कभी खालिस्तान की मांग की थी?

सिख सशस्त्र आंदोलन का पहला चरण स्वर्ण मंदिर या श्री दरबार साहिब परिसर पर हमले के साथ समाप्त हुआ, जो परिसर के भीतर मौजूद उग्रवादियों को बाहर निकालने के लिए किया गया था. इसे 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के नाम से जाना जाता है. सशस्त्र संघर्ष के दौरान ज़्यादातर उग्रवादियों ने जरनैल सिंह भिंडरावाले को नेता के तौर पर स्वीकार किया था. हालाँकि इस ऑपरेशन के दौरान जरनैल सिंह भिंडरावाले मारे गए थे.उन्होंने कभी साफ़तौर से खालिस्तान की मांग या एक अलग सिख राष्ट्र की बात नहीं कही थी. हालांकि उन्होंने ये ज़रूर कहा था कि, ‘अगर श्री दरबार साहिब पर सैन्य हमला होता है तो यह खालिस्तान की नींव रखेगा.’ उन्होंने 1973 के श्री आनंदपुर साहिब प्रस्ताव को अमल में लाने के लिए ज़ोर दिया था जिसे अकाली दल की वर्किंग कमिटी द्वारा अपनाया गया था।

क्या है आनंदपुर साहिब रिज़ॉल्यूशन

1973 का आनंदपुर साहिब रिज़ॉल्यूशन में अपने राजनीतिक लक्ष्य के बारे में इस प्रकार कहा गया है, “हमारे पंथ (सिख धर्म) का राजनीतिक लक्ष्य, बेशक सिख इतिहास के पन्नों, खालसा पंथ के हृदय और दसवें गुरु की आज्ञाओं में निहित है. जिसका एकमात्र उद्देश्य खालसा की श्रेष्ठता है. शिरोमणि अकाली दल की मौलिक नीति एक भू-राजनीतिक वातावरण और एक राजनीतिक व्यवस्था के निर्माण के माध्यम से खालसा की श्रेष्ठता स्थापित करना है। अकाली दल भारतीय संविधान और भारत के राजनीतिक ढांचे के तहत काम करता है। आनंदपुर साहिब रिज़ॉल्यूशन का उद्देश्य सिखों के लिए भारत के भीतर एक स्वायत्त राज्य का निर्माण करना है. ये रिज़ॉल्यूशन अलग देश की मांग नहीं करता है। 1977 में अकाली दल ने इस रिज़ॉल्यूशन को आम सभा की बैठक में एक नीति निर्देशक कार्यक्रम के हिस्से के रूप में अपनाया था।  अगले ही साल 1978 के अक्टूबर में अकाली दल लुधियाना सम्मेलन में इस प्रस्ताव को लेकर नरम पड़ गया।  इस सम्मेलन के वक़्त अकाली दल सत्ता में था. स्वायत्तता को लेकर रिज़ॉल्यूशन संख्या एक को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष गुरचरण सिंह तोहड़ा ने पेश किया गया था और तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने इसका समर्थन किया था. रिज़ॉल्यूशन संख्या एक को आनंदपुर साहिब रिज़ॉल्यूशन के 1978 संस्करण के तौर पर जाना जाता है।

 आनंदपुर साहिब रिज़ॉल्यूशन 1978

इस रिज़ॉल्यूशन में कहा गया है , “शिरोमणि अकाली दल को लगता है कि भारत विभिन्न भाषाओं, धर्मों और संस्कृतियों की एक संघीय और भौगोलिक इकाई है. धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए, लोकतांत्रिक परंपराओं की मांगों को पूरा करने के लिए और आर्थिक प्रगति की राह को आसान करने के लिए यह अनिवार्य हो गया है कि पहले से तय सिद्धांतों और उद्देश्यों के तर्ज पर केंद्र और राज्य के संबंधों और अधिकारों को फिर से परिभाषित करते हुए संवैधानिक ढांचे को संघीय आकार दिया जाए।

औपचारिक तरीके से खालिस्तान की मांग कब उठाई गई?

खालिस्तान की पहली औपचारिक मांग 29 अप्रैल 1986 को उग्रवादी संगठनों की संयुक्त मोर्चा पंथक समिति द्वारा की गई थी। इसका राजनीतिक उद्देश्य इस प्रकार बताया गया था -इस विशेष दिन पर पवित्र अकाल तख़्त साहिब से हम सभी देशों और सरकारों के सामने यह घोषणा कर रहे हैं कि आज से ‘खालिस्तान’ खालसा पंथ का अलग घर होगा. खालसा सिद्धांतों के मुताबिक़ सभी लोग खु़श और सुख पूर्वक रहेंगे। “ऐसे सिखों को शासन चलाने के लिए उच्च पदों की ज़िम्मेदारी दी जाएगी जो सबकी भलाई के लिए काम करेंगे और पवित्रता से अपना जीवन बिताएंगे।  भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व आईपीएस अधिकारी सिमरनजीत सिंह मान ने 1989 में जेल से रिहा होने के बाद इस मुद्दे को उठाया. लेकिन उनके रुख़ में कई विसंगतियां देखी जा सकती थीं।  वह अब संगरूर से सांसद हैं और उन्होंने भारत की एकता और अखंडता को बनाए रखने की शपथ ली है. हालाँकि संसद के बाहर इंटरव्यूज़ में उन्होंने खालिस्तान की वकालत की थी। (एएमएपी)