आपका अखबार ब्यूरो।

उत्तराखंड में एक बार फिर आपदा का कहर टूटा। इस बार निशाना बना चमोली जिला और एपिसेंटर था रैणी गांव। चमोली जिले के तपोवन क्षेत्र के रैनी गांव में रविवार सुबह ग्लेशियर फटने से अलकनंदा और धौलीगंगा नदी में बाढ़ आ गई। ऋषि गंगा और तपोवन हाईड्रो प्रोजेक्ट पूरी तरह ध्वस्त हो गए। धौली नदी में बाढ़ आने से हरिद्वार तक खतरा बढ़ गया। अलकनंदा भी उफान पर है। ग्लेशियर फटने से हुई तबाही को देखते हुए श्रीनगर, ऋषिकेश और हरिद्वार समेत अन्य जगहों पर अलर्ट जारी किया गया है। त्रासदी को देख उत्तर प्रदेश में भी अलर्ट जारी कर दिया गया है।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को हर संभव मदद का भरोसा दिया है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मौके पर जाकर बचाव और राहत कार्यों का जायजा लिया। उत्तराखंड के मुख्य सचिव ओम प्रकाश ने 100 से 150 लोगों के बहने की आशंका जताई है।

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एनटीपीसी की एक साइट भी प्रभावित हुई। आपदा प्रभावित दोनों स्थलों में कई लोगों के फंसे होने की आशंका है। तपोवन एनटीपीसी की साइट में तीन लोगों के शव बरामद हुए हैं। आपदा से प्रभावित दो कंस्ट्रक्शन साइट पर काम कर रहे मजदूरों की जान बचाने के लिए पुलिस, राज्य आपदा मोचन बल और आईटीबीपी की टीमें काम कर रही हैं। ग्लेशियर के टूटने से हिमस्खलन और बाढ़ के कारण अलकनंदा और धौलीगंगा नदी के आसपास बसे लोगों को हटाकर ऊपरी इलाकों में भेजा जा रहा है। जोशीमठ के करीब बांध टूटने की भी खबर है।

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धौली गंगा

धौली गंगा गंगा नदी की पांच आरंभिक सहायक नदियों में से एक है। यह नदी अलकनंदा नदी से विष्णु प्रयाग में संगम करती है। यह गढ़वाल और तिब्बत के बीच नीति दर्रे से निकली है। इसमें कई छोटी नदियां मिलती हैं जैसे- पर्ला, कामत, जैन्ती, अमृतगंगा तथा गिर्थी नदियां। धौलीगंगा नदी पिथौरागढ़ में काली नदी की सहायक नदी है।
धौलीगंगा नदी में अचानक पानी का स्तर बढ़ने से यह घटना सामने आई है। रेनी गांव में धौलीगंगा नदी से जुड़े कई सोते या पानी के स्रोत हैं। नदी में पानी का स्तर बढ़ने से इन जल स्रोतों में पानी का स्तर अचानक बढ़ गया। नदी का बांध टूट जाने से उसके तटीय इलाके में बसे गांवों के घर तबाह हो गए।

धौली गंगा परियोजना

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धौली गंगा परियोजना भारत की नदी घाटी परियोजनाओं में से एक है। इस परियोजना में उत्तराखंड राज्य में धौली गंगा नदी पर ‘धौली गंगा बांध’ बनाकर 280 मेगावाट की विद्युत इकाई निर्माणाधीन है। हिमालय के ऊपरी भाग में शारदा नदी के बेसिन में तीन मुख्य सहायक नदियां शामिल हैं- धौली गंगा, गोरी गंगा और पूर्वी राम गंगा। इन तीन नदियों की विद्युत संभाव्यता क्रमश: 1240 मेगावाट, 345 मेगावाट तथा 80 मेगावाट होने का अनुमान लगाया गया है। धौली गंगा नदी में उपलब्ध 2000 मीटर के हेड का उपयोग करने के लिए एक मास्टर प्लान बनाया गया। 280 मेगावाट की धौली गंगा परियोजना इस मास्टर प्लान की सबसे कम क्षमता वाली योजना है।


नैसर्गिक नदियों को सुरंगों में ठेला जाएगा तो वे पहाड़ों और हिमनदों को पुकारेंगी ही


ग्लेशियर और उनके फटने की वजह

ग्लेशियर बर्फ के एक जगह जमा होने के कारण बनता है। पृथ्वी की सतह पर विशाल आकार की गतिशील बर्फराशि को ग्लेशियर कहा जाता है। भारत में पानी के बड़े स्रोतों के रूप में ग्लेशियर मौजूद हैं। ये दो प्रकार के होते हैं। पहला अल्पाइन ग्लेशियर और दूसरा आइस शीट्स। पहाड़ों पर पाये जाने वाले ग्लेशियर अल्पाइन श्रेणी में आते हैं।

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पहाड़ों पर ग्लेशियर टूटने की कई वजहें हो सकती हैं। ये गुरुत्वाकर्षण और ग्लेशियर के किनारों पर टेंशन बढ़ने की वजह से टूट सकते हैं। जलवायु परिवर्तन या ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी के तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है। बर्फ पिघलने से ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटकर अलग हो सकता है।
कुछ ग्लेशियर हर साल टूटते हैं। तो कुछ दो या तीन साल के अंतर पर टूटते हैं। कुछ ग्लेशियरों के बारे में यह अनुमान लगाना लगभग असंभव होता है कि वे कब टूट सकते हैं।

ग्लेशियर झील

भूगर्भीय हलचल जैसे भूकंप आदि से भी हिमालय के अत्यधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों के हिमखंड टूटकर नीचे की ओर बहते हैं। उनके साथ चट्टानें भी बहकर आ जाती हैं। एक स्थान पर यह बहाव रुक जाता है और झील का रूप ले लेता है। इसे ग्लेशियर झील कहा जाता है। ग्लेशियर झीलों में पानी का दबाव बढ़ने पर एक स्थिति ऐसी आती है जब यह उस दबाव को सहन नहीं कर पातीं और फट जाती हैं। ऐसे में जलप्रलय होता है, जिसकी जद में आने वाली हर चीज तबाह हो जाती है। नदी पर कोई बांध या बिजली परियोजना होने पर नुकसान और ज्यादा बढ़ जाता है। भारत में बहुुत सी ग्लेशियर झीलें नदियों के किनारे पर ही स्थित हैं।


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