सत्यदेव त्रिपाठी।
आरसीबी और चेन्नई सुपर किंग्स के बीच हुए पिछले मुक़ाबले के बाद महेंद्र सिंह धोनी का बयान आया है कि वे दो शॉट और लगाते तो जीत सकते थे। लेकिन पहली तीन गेंदे रिक्त (बिना रन की) खेलते हुए उन्हें याद नहीं आया कि सीमा-पार के लिए प्रहार करना है और ऐसा नहीं हो रहा, तो एक-एक रन चुरा लेते, तो भी दो रन से हार नहीं होती!!
लेकिन असली बात यह है कि अपने को खेलाने और जीत जाने पर श्रेय लेकर नाम कमाने की स्वार्थी और ख़राब नीयत थी उनकी। क्या वे नहीं जानते कि यह उम्र क्रिकेट खेलने की नहीं है? लेकिन चेन्नई टीम के मालिकों का मोह हो या जो भी बात हो, वे खेला रहे हैं और धोनी अपने बड़े नाम पर दाग लगने (जो कि रोज़-ब-रोज़ लग रहा है) की परवाह किये बिना खेल रहे हैं, तो इसमें कोई कुछ नहीं कर सकता…।
लेकिन कह तो सकता है कि अब वे पहले की तरह जिताऊ खेल नहीं खेल सकते – इस उम्र में वह ताक़त, वह हौसला न रहा। और इस बात को क्या वे नहीं जानते? हमसे-आपसे अच्छा जानते हैं। पिछले दिनों एक दौर था, जब वे बल्लेबाज़ी के लिए अपने को बहुत देर से लाते थे – नवें नम्बर तक आये। लेकिन लोग भी तो लाजवाब हैं – आलोचना करने लगे…। इस पर धोनी को ध्यान न देना था – ‘कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना’…सोचकर अपनी तरह काम करते…लेकिन वे चढ़ गये ताड़ पर और इस बार ही नहीं, कई बार धड़ाम से गिरे ही नहीं, टीम को भी गिरा दिया।
यदि पहले की तरह अपने को पीछे लाने और अच्छे-युवा को पहले भेजने की उस परिपाटी पर भी चलते… और ज़रा-सा सही सोच से काम लेते, तो शिवम् दुबे को पहले भेज देते…। मैं कहता हूँ कि टीम निश्चित ही जीत जाती। जो छक्का उसने आते ही पहली गेंद पर मारा, वही १७वें ओवर में तब मार देता, जब धोनी रिक्त गेंदें खेल-खेलकर मौक़े गँवा रहे थे, तो खेल की कहानी और ही होती!! तब दुबे के छक्के का गहरा मनोवैज्ञानिक असर दोनो दलों पर पड़ता…और कम रन, ज्यादा गेंदों का समीकरण बन जाता, जो जीत का मंत्र होता!! कोई क्रिकेट विशेषज्ञ या धोनी ही बताएँ – कि ऐसा उन्होंने क्यों नहीं किया?
मैं नहीं मानता कि उनमें यह बुद्धि न थी। बस, लोगों की आलोचनाओं का दबाव था और खुद से कुछ अच्छा हो जाता (जो इधर कभी नहीं हो रहा), तो वाह-वाह ही हो जाती, जिसका मोह हो गया था उन्हें। इसी को मैंने शीर्षक में नीयत कहा है। सो, दबाव व मोह के वश होकर रूटीन फ़ैसला किया, जब कि धोनी अपने साहस व सूझ-बूझ वाले अपवाद जैसे फ़ैसलों के लिए जाने जाते रहे हैं। अब उनमें यह नहीं रहा, तो टीम-मालिक…आदि के कहने तथा अपने को मुख्य धारा में बनाए रहने के लिए आज के धोनी खेल के साथ दुर्व्यवहार कर रहे हैं – हम जैसे अपने लाखों दीवानों को दुखी कर रहे हैं…। कभी-कभी कुछ ख़ास छोड़ देने से इज्जत मिलती-बढ़ती है। अपनी ऐसी बेइज्जती कराने और टीम को नुक़सान पहुँचाने तथा अपने मुरीदों के दिल दुखाने से हज़ारगुना बेहतर है कि वे अब पूरी तौर पर खेल से सन्यास ले लें…।
वरना वह दिन दूर नहीं कि मैदान में खेलने आते हुए उनके लिए जो तालियाँ बजती रहीं, जो अब बहुत कम हो गयी हैं, कहीं बंद न हो जाएँ…और इससे भी आगे बढ़कर कहीं जाते हुए खिल्ली उड़ाने (हूट करने) के लिए न बजने लग जाएँ…। सो, चेतो धोनी, चेतो…!!