कहां चूक गए प्रशांत
वास्तविक पटकथा कुछ और
एक दूसरे को धोखे में रखने की जुगत
प्रशांत किशोर प्रियंका के साथ मिलकर राहुल गांधी का पत्ता साफ करना चाहते थे। तैयारी थी प्रियंका को पार्टी अध्यक्ष बनाने की। राहुल गांधी संसदीय दल के नेता बनाए जा रहे थे। संसद में तो उनका पार्टी से भी कम मन लगता है। राहुल गांधी न तो अध्यक्ष बनेंगे और न ही अध्यक्ष पद पर किसी और को बैठने देंगे। इस समय पार्टी पर राहुल और उनकी टीम का कब्जा है। इन सब लोगों को डर था कि प्रशांत किशोर अपनी योजना में सफल हो गए तो उनकी दुकान बंद हो जाएगी। तो तय हुआ कि प्रशांत किशोर को भगाना है, पर ऐसे भी नहीं कि साफ दिखाई दे। तो मुद्दा बनाया गया दूसरे दलों से प्रशांत किशोर के व्यावसायिक संबंध को। इस पूरे प्रकरण में कांग्रेस पार्टी ने अपनी भद पिटवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।बहुत सी पार्टियां चुनाव रणनीतिकारों की सेवाएं लेती हैं, पर सारी बातचीत बंद कमरे में और व्यावसायिक रूप से होती है। कांग्रेस ने ऐसा नजारा पेश किया जैसे प्रशांत किशोर चुनावी रणनीतिकार न होकर ‘जादूगर पीसी सरकार’ हों। जो आएंगे और कांग्रेस पार्टी के सारे दुख-दर्द दूर कर देंगे। दरअसल दोनों पक्ष एक दूसरे को धोखे में रखने की जुगत भिड़ा रहे थे। प्रशांत वही करना चाहते थे, जो राहुल गांधी पिछले 18 सालों से कर रहे हैं। यानी अधिकार सब चाहिए, पर जवाबदेही कोई न हो। वह यह आकलन करने में चूक गए कि गांधी परिवार को इस मामले में महारत हासिल है। प्रशांत इस खेल के नए खिलाड़ी हैं। वह मात खाने से पहले मैदान छोड़कर भाग गए। इस पूरे खेल में फिर भी फायदे में गांधी परिवार ही रहा। इतने महीनों में जी-23 ने जो दबाव बनाया था, वह हवा में उड़ गया। पार्टी में कोई परिवर्तन न करते हुए भी परिवार ऐसा करता हुआ दिख रहा है। राहुल गांधी ने दूर रह कर अपनी छोटी बहन को बता दिया कि ‘बड़े भाई’ वही हैं। नुकसान में प्रियंका रहीं, क्योंकि उनकी पार्टी अध्यक्ष बनने की महत्वाकांक्षा सबके सामने आ गई। जो बात घर के बंद दरवाजों के भीतर थी, वह सार्वजनिक हो गई। कांग्रेस पार्टी गांधी परिवार के तीन खेमों में बंटी है। सोनिया गांधी चूंकि बेटे के साथ हैं, इसलिए राहुल का पलड़ा भारी है।
आईना दिखा गए
प्रशांत कांग्रेस में आते-आते रह गए, लेकिन कांग्रेस को बाय-बाय करने के पहले वह कांग्रेस और कांग्रेसियों को आईना दिखा गए। फिलहाल उन्होंने अपने कपड़े बचा लिए हैं। यह पूरी कहानी देश की सबसे पुरानी और विपक्ष की सबसे बड़ी और एकमात्र राष्ट्रीय विपक्षी दल के पतन की है।आज की कांग्रेस पुरानी कांग्रेस की छाया भी नहीं रह गई है। इसका नया नामकरण ‘सोनिया कांग्रेस’ के रूप में होना चाहिए। पार्टी हाईकमान 1998 से 2014 तक जो काम अधिकारपूर्वक करता था, अब छल से हो रहा है। इस समय यह तय करना कठिन है कि कांग्रेस में कौन किससे छल कर रहा है? कूटनीति का स्थान कपट ने ले लिया है। ऐसे में पहला शिकार सत्य होता है। कांग्रेस में इस समय जिनके दिल नहीं मिलते, वे भी जोर-जोर से हाथ मिला रहे हैं।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं। आलेख दैनिक जागरण से साभार)