प्रदीप सिंह।

कांग्रेस के खेमे से आई खबर के मुताबिक मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और विधानसभा में कांग्रेस के नेता कमलनाथ कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हो सकते हैं। इसके मायने क्या हैं- कमलनाथ का नाम आना, सोनिया गांधी से उनकी मुलाकात होना और इस मुलाकात के बाद ये खबरें चलना कि कमलनाथ कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हो सकते हैं। अभी कोई फैसला नहीं हुआ है- इसका राजनीति में प्रायः यही मतलब निकाला जाता है कि हो सकता है फैसला हो गया हो लेकिन अभी उसकी कोई औपचारिक घोषणा नहीं हुई है।


75 के कमलनाथ

Kamal Nath may bag major role in Congress leadership as party plans structural changes - India News

इसके मामले पर बात करें, इससे पहले थोड़ा कमलनाथ के बारे में जान लेते हैं, खासकर उनके अतीत के बारे में। कमलनाथ चार महीने बाद 18 नवंबर 2021 को 75 साल के हो जाएंगे। दो राष्ट्रीय पार्टियों भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस की तुलना करें तो भारतीय जनता पार्टी में 75 साल या उससे ऊपर के लोगों को रिटायर किया जा रहा है जबकि कांग्रेस में 75 साल पर पहुंचने वाले को नियुक्त किया जा रहा है। दोनों पार्टियों की सोच में अंतर देखिए। देश की दो-तिहाई आबादी युवा है। अगर यह खबर सच है तो देश की एक राष्ट्रीय पार्टी दो साल की तलाश के बाद 75 साल पर पहुंच रहे व्यक्ति को अपना कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त करने जा रही है। इससे यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि कांग्रेस में चल क्या रहा है? उनकी सोच क्या है? दूसरी पार्टियां आगे जा रही हैं और कांग्रेस पीछे जा रही है। कांग्रेस पीछे इसलिए जा रही है और कमलनाथ का नाम कार्यकारी अध्यक्ष के लिए इसलिए आया है कि उनके साथ कुछ खास चीजें जुड़ी हैं।

पसंद का कारण नं. एक- वफादारी

Kamal Nath is Indira Gandhi's' third son'... Know more about new MP CM | News24

 

अगर किसी को  पार्टी या सरकार में कोई पद देना है तो गांधी परिवार के लिए सबसे बड़ी योग्यता है वफादारी। कमलनाथ की वफादारी पर कोई सवाल नहीं है। कभी नहीं रहा। 1980 में मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा से वह पहली बार सांसद बने। वह वहीं से चुनाव लड़ते रहे हैं और इस बार भी विधानसभा में जाने से पहले वह छिंदवाड़ा से ही सांसद थे।

दूसरा कारण- गांधी परिवार से नजदीकी

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दूसरी बात कमलनाथ संजय गांधी के साथ दून स्कूल में पढ़े हुए हैं। वह संजय गांधी के सखा हैं। इस कारण भी उनकी गांधी परिवार से नजदीकी है। संजय गांधी जी उनको राजनीति में लेकर आए। 1984 में देश में सिख विरोधी हिंसा हुई। दिल्ली में हुई हिंसा में कमलनाथ का भी नाम था। यह मामला तमाम जांच कमीशनों के समक्ष गया। 1 नवंबर 1984 नयी दिल्ली के गुरुद्वारा रकाब गंज में भारी पुलिस बल और सीआरपीएफ तैनात थी। नई दिल्ली रेंज के एडिशनल पुलिस कमिश्नर गौतम कौल वहां मौजूद थे। तीन मूर्ति भवन में इंदिरा जी का शव रखा था। वहां भारी नारेबाजी चल रही थी। वहां से अचानक एक भीड़ आक्रामक मुद्रा में  गुरुद्वारा रकाब गंज की ओर आती है। कमलनाथ भी तीन मूर्ति से ही निकलकर वहां पहुंचे। उस भीड़ ने दो सिखों को जिंदा जला दिया। पुलिस, सीआरपीएफ, एडिशनल कमिश्नर पुलिस- किसी ने कुछ नहीं किया। जांच कमीशनों ने जब कमलनाथ से पूछा तो उन्होंने इतना तो स्वीकार किया कि वह वहां मौजूद थे। लेकिन, उन्होंने कहा कि मैं तो भीड़ को रोकने के लिए गया था। ऐसा माना जाता है कि ज्यादातर कमीशन सिख हिंसा के दोषियों को बचाने के लिए बने थे। कमीशनों की रिपोर्ट इस बात की गवाही देती हैं। 1985 में रंगनाथ मिश्रा जांच कमीशन बना। वह सुप्रीम कोर्ट के जज थे जो बाद में मुख्य न्यायाधीश बने। रिटायर होने पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष बने। उसके बाद उड़ीसा से कांग्रेस के राज्यसभा सांसद बने। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कमीशनों में क्या हुआ होगा? लेकिन यहां हम 1984 की सिख हिंसा नहीं बल्कि कमलनाथ की बात हो रहे हैं। यह कमलनाथ का अतीत है।

मिस्टर 10 परसेंट

इसके अलावा आपको राडिया टेप्स की भी याद होगी। बहुत से नेताओं की बातचीत और उनके बारे में दूसरे लोगों की राय- यह सब उस टेप में सार्वजनिक हुआ। यह अलग-अलग एजेंसियों की फोन टैपिंग से निकल कर आया था। उसमें एक उद्योगपति इस बात का जिक्र कर रहे हैं कि मनमोहन सिंह सरकार में किसको कौन सा मंत्रालय मिलेगा। जब कमलनाथ का जिक्र आता है तो वह उद्योगपति कहते हैं मिस्टर 10 परसेंट। उसके बाद बहुत दिनों तक कमलनाथ के बारे में यही कहा जाता रहा- मिस्टर 10 परसेंट। अब 10 परसेंट का क्या मतलब है, यह सभी समझते हैं। इसलिए उसके विस्तार में जाने की जरूरत नहीं है। उसके बाद अभी हाल का कमलनाथ का बयान है कि मैं नहीं मानता कि भारत महान है। यानी कमलनाथ यह तय करेंगे कि भारत महान है या नहीं।

कमलनाथ ही क्यों

On becoming the president of Sonia Gandhi CM Kamal Nath gave such a reaction

सोनिया गांधी को, पार्टी को और गांधी परिवार को उन पर भरोसा है। एक पार्टी किसी को भी अध्यक्ष बना सकती है या कोई पद दे सकती है- पर सवाल यह है कि कमलनाथ ही क्यों? तो इसका पहला कारण है- वफादारी। अगर वफादारी पर नंबर दिए जाएं तो कमलनाथ को 100 में 100 मिलेंगे। इसके अलावा वह बीच-बीच में ट्रबल शूटर का भी काम करते रहे हैं। जैसे कांग्रेस के 23 असंतुष्ट नेताओं का मामला सामने आया तो बीच बचाव करने और उनका गुस्सा शांत कराने में कमलनाथ की भूमिका थी। राहुल गांधी कमलनाथ को बहुत ज्यादा पसंद नहीं करते लेकिन सोनिया गांधी के वह विश्वास पात्र हैं। वजह कई हैं। वह राजीव गांधी के भी करीब थे और सोनिया गांधी को उन पर भरोसा है।

राहुल-कमलनाथ संबंध

ऐसा क्यों है कि कमलनाथ को राहुल गांधी पसंद नहीं करते- इसके दो कारण हैं। पहला- 2018 में जब पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव हुए और मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनी, तब सवाल आया कि मुख्यमंत्री किसे बनाया जाए? कौन बनेगा मुख्यमंत्री- इसके लिए कांग्रेस में काफी जद्दोजहद हुई। परिवार में चर्चा हुई और परिवार के बाहर भी थोड़ी बहुत चर्चा हुई। मुख्यमंत्री पद के दावेदारों से भी चर्चा हुई। मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया मुख्यमंत्री पद के सबसे प्रबल दावेदार थे। लेकिन कमलनाथ अपना दावा छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे। राहुल गांधी चाहते थे कि ज्योतिरादित्य सिंधिया प्रधानमंत्री बनें। सोनिया गांधी ऐसा नहीं चाहती थीं। उस समय कांग्रेस में बहुत ज्यादा तकरार या अंदरूनी खींचतान चल रही थी। दो गुट बन गए थे। एक सोनिया का कैंप था, दूसरा राहुल का कैंप।  दोनों के बीच एक तरह से पावर स्ट्रगल चल रहा था। उस समय राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष थे। जो पुराने नेता थे और सोनिया कैंप के माने जाते थे उनको लग रहा था कि अगर राहुल गांधी ज्यादा ताकतवर होते जाएंगे तो हमारे लिए मुश्किल होगी, फिर हमारे बच्चों को पार्टी में एडजस्ट करने में मुश्किल आएगी। वे सोनिया गांधी पर लगातार दबाव बना रहे थे कि राहुल गांधी जिस तरह से चल रहे हैं और अपनी टीम बना रहे हैं उससे पार्टी में बहुत ज्यादा असंतोष हो जाएगा और विद्रोह भी हो सकता है। उनके लिए काम करना मुश्किल हो सकता है। ऐसे में राहुल गांधी न तो मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री बनवा पाए, न राजस्थान में सचिन पायलट को। राहुल गांधी जिम्मेदारी से भागते हैं यह एक अलग बात है। लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष पद से उनके इस्तीफा देने के जो दो-तीन बड़े कारण थे उनमें एक प्रमुख कारण यह भी था कि न तो वह अपने मन से अपनी टीम बना पा रहे थे और न फैसले ले पा रहे थे। उसके ये दो बड़े उदाहरण हैं कि वह जिनको मुख्यमंत्री बनवाना चाहते थे उनको नहीं बनवा पाए। राहुल को लगा कि जब मैं अध्यक्ष होकर यह काम नहीं करवा पा रहा हूं तो मेरे अध्यक्ष होने का क्या फायदा? बिना अध्यक्ष रहे भी मैं यह सब कर सकता हूं।

चौकीदार वाले मुद्दे पर चुप्पी

एक दूसरा किस्सा। 2019 में लोकसभा का चुनाव हुआ। चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने बहुत जोर शोर से राफेल का मुद्दा उठाया। उनके कई आरोप थे जैसे राफेल सौदे में रिश्वत ली गई है, बेईमानी हुई है कई और गड़बड़ियां की गई है। उनकी बात को सीएजी ने नहीं माना। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी बात को खारिज किया। फिर 2019 के चुनाव परिणाम में आम जनता ने खारिज किया। हालांकि राहुल गांधी अब भी उस पर टिके हुए हैं यह एक अलग मुद्दा है। चुनाव अभियान के दौरान उन्होंने इस बात पर नाराजगी जाहिर की कि मैं चुनाव सभाओं में ‘चौकीदार चोर है’ का नारा लगवाता हूं लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेता ऐसा नहीं करते। यह बात उन्होंने कमलनाथ से कही और पूछा ऐसा क्यों? कमलनाथ ने कहा कि हमें लगता है कि यह मुद्दा पब्लिक के बीच नहीं जा रहा है इसलिए यह मुद्दा नहीं उठाते। लेकिन राहुल गांधी कहां मानने वाले। उन्होंने जोर दिया तो कमलनाथ ने कहा कि ठीक है, अगली चुनावी सभा में मैं यह नारा लगवाऊंगा। फिर मध्य प्रदेश में अगली चुनाव सभा हुई तो उसमें कमलनाथ भी थे और राहुल गांधी भी। वहां भी कमलनाथ ने यह नारा नहीं लगवाया। मीटिंग के बाद राहुल गांधी ने उनसे पूछा कि अब क्या हो गया? उनका जवाब था कि मैंने देखा कि जब मुझसे पहले बोल रहे नेताओं ने यह नारा लगवाया तो आगे की दो तीन कतारों में बैठे हमारे कार्यकर्ताओं के अलावा पीछे आम जनता में से कोई भी इस नारे का समर्थन नहीं कर रहा था। क्योंकि पीछे की आम जनता से इस नारे का समर्थन नहीं आ रहा था इसलिए मैंने यह नारा नहीं लगवाया। राहुल गांधी इस बात से बहुत नाराज हो गए। लेकिन 2019 में भी कांग्रेस 2014 की ही तरह बहुत बुरी तरह से हारी। तब राहुल गांधी को लगा कि पार्टी अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी का बोझ उठाना बहुत मुश्किल है। अगर जिम्मेदारी का बोझ उठाए बिना ही अगर हमको ताकत मिल सकती है तो कौन जिम्मेदारी का बोझ उठाना और अपनी जवाबदेही तय करना चाहेगा? उन्होंने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।

तीसरा कारण- राहुल के लिए पद खाली कर देंगे

Bharat Mahan Nahin, Badnam Hai': Kamal Nath Stirs Controversy; MP CM Asks Sonia Gandhi to Expel Cong Leader

अगर कमलनाथ कार्यकारी कांग्रेस अध्यक्ष बनते हैं तो उसका तीसरा बड़ा कारण होगा सोनिया गांधी अभी इस बात की कोशिश कर रही हैं कि राहुल गांधी को ही कांग्रेस पार्टी की कमान सौंपी जाए। वह इस पद को एक पारिवारिक विरासत के तौर पर अपने बेटे को सौंपना चाहती हैं। अगर पार्टी अध्यक्ष पद अपने बेटे को सौंपना है तो अभी किसी ऐसे व्यक्ति को बिठाया जाए जो बाद में राहुल गांधी के लिए यह पद खाली कर दे। राहुल गांधी को दो साल से मनाया जा रहा है। कोशिश हो रही है कि वह अध्यक्ष बनने के लिए तैयार हो जाएं। अब एक नई कोशिश शुरू हुई है कि वह लोकसभा में कांग्रेस के नेता बन जाएं। वह मानेंगे या नहीं मानेंगे यह पता नहीं- लेकिन सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष पद राहुल गांधी के लिए बचाए रखना चाहती हैं। यही कारण है कि कांग्रेस अध्यक्ष न बनने की घोषणा के बावजूद सोनिया ने कार्यकारी अध्यक्ष बनना मंजूर किया था। जब दो साल की कोशिश के बावजूद सोनिया गांधी राहुल गांधी को मना नहीं पाई हैं तो उन्होंने सोचा कि किसी ऐसे व्यक्ति को बिठाएं जो आगे चुनौती देने वाला ना बन सके। अगर इस पद पर किसी युवा नेता को बिठा देंगे और उसने अपनी ताकत बढ़ा ली, लोकप्रिय हो गया, पार्टी में उसकी स्वीकार्यता हो गई- तो राहुल गांधी के लिए दरवाजा बंद हो सकता है। यह सोनिया गांधी बिल्कुल नहीं चाहतीं।  वह हर हाल में राहुल गांधी को पार्टी की विरासत सौंपना चाहती हैं इसलिए कमलनाथ को चुना जो 4 महीने में 75 साल के हो जाएंगे। उनकी कोई बहुत महत्वाकांक्षा नहीं बची है और वह इस जमीनी हकीकत से वाकिफ भी हैं कि आगे क्या होने वाला है।

चौथा कारण- पार्टी के लिए फण्ड जुटाना

कमलनाथ के अध्यक्ष बनने का चौथा कारण है पार्टी के लिए फंडिंग- यानी पैसे का इंतजाम। जो कमलनाथ कर सकते हैं। पार्टी कोई एक नेता ऐसा भी चाहिए जो फंड जुटा सके। कमलनाथ खुद भी उद्योगपति हैं। तमाम उद्योगपतियों से उनके संबंध हैं। वह कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष होंगे तो पार्टी को फंड मिल सकता है।

पांचवां कारण- जी 23 को साधना

अब पांचवें कारण की बात। कमलनाथ के माध्यम से जी 23 को एक संदेश देना और उनके असंतोष की धार को कुंद करना कि देखिए हमने एक सीनियर व्यक्ति को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया है। आप के ही समकालीन एक व्यक्ति को यह पद सौंप दिया है। इससे युवा बनाम ओल्ड गार्ड की जो लड़ाई पार्टी में चल रही है और ओल्ड गार्ड की ओर से जो हमला और असहयोग राहुल के साथ हो रहा है- वह बंद हो जाएगा।

छठा कारण- कठपुतली बने रहेंगे

Sonia Gandhi will select new Madhya Pradesh Congress chief: Kamal Nath | National News – India TV

कमलनाथ को इस पद के लिए चुनने का छठा और अंतिम कारण पहले कारण वफादारी से जुड़ा हुआ है। अभी यह पता नहीं है कि सोनिया गांधी कार्यवाहक अध्यक्ष रहेंगी और कमलनाथ कार्यकारी अध्यक्ष बन जाएंगे। या सोनिया अपने पास पद नहीं रखेंगी। उधर कांग्रेस में संगठन चुनाव की घोषणा दो साल से हो रही है। अब कहा जा रहा है कि संसद के मानसून सत्र के बाद चुनाव होगा होगा। होगा या नहीं होगा- यह भी स्पष्ट नहीं है। लेकिन चुनाव होता है तो उसमें कमलनाथ को अध्यक्ष चुना जाएगा य वह कार्यकारी अध्यक्ष ही बने रहेंगे इसका भी अभी पता नहीं है। सोनिया गांधी पार्टी की अध्यक्ष रहें या न रहें और राहुल गांधी भले अभी अध्यक्ष बनने को तैयार ना हों-  कमलनाथ के अध्यक्ष रहते सोनिया गांधी निश्चिंत रहेंगी कि पार्टी की कमान उन्हीं के हाथ में है। उनको एक कठपुतली अध्यक्ष चाहिए था- जिसकी तलाश हो रही थी। कमलनाथ गांधी परिवार के हित के खिलाफ कुछ नहीं करेंगे इस बात से सोनिया गांधी आश्वस्त हैं। इस प्रकार कमलनाथ को कार्यकारी अध्यक्ष बनाने के लिए ये छह कारण हैं। वह बनेंगे या नहीं बनेंगे यह भी मालूम नहीं है लेकिन उसी दिशा में बात आगे बढ़ रही है। पार्टी के अंदर से यह बात उठ रही है कि किसी को पार्टी का अध्यक्ष होना ही है। या तो राहुल गांधी घोषणा करें कि वह कांग्रेस अध्यक्ष बनने को राजी हो गए हैं- या फिर किसी और को अध्यक्ष बनाया जाए। फिलहाल सबकी नजरें इसी बात पर हैं कि कमलनाथ का क्या होता है।