बालेन्दु शर्मा दाधीच।
भारत में 25 ओटीटी प्लेटफॉर्मों पर प्रतिबंध लगाना उतना सरल निर्णय नहीं रहा होगा जितना कि दिखता है। देश में डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही सरकार के सामने कुछ सफल और कुछ असफल डिजिटल प्लेटफॉर्मों को प्रतिबंधित करने का सवाल दुविधा उत्पन्न करने वाला रहा होगा। लेकिन दूसरी ओर उसके लिए यह भी आवश्यक था कि वह सामाजिक मर्यादाओं और नैतिकता के अपेक्षाकृत अधिक व्यापक प्रश्न पर स्पष्ट मत ले।
सोशल, डिजिटल और मनोरंजन के प्लेटफॉर्मों का विकास आवश्यक है किंतु यह संदेश यह विकास हमरे मूलभूत सांस्कृतिक-सामाजिक मूल्यों की कीमत पर किया जाए, इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती। स्पष्ट है कि सरकार ने एक कठोर, किंतु ठोस कदम लिया है और इसका प्रभाव ओटीटी प्लेटफॉर्मों तक सीमित नहीं रहेगा।
देश में अब तक ऐसे ओटीटी 43 प्लेटफॉर्मों पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है जिन पर अश्लील, भद्दे और महिलाओं के अपमानजनक चित्रण वाला कंटेंट दिखाने का आरोप है। कोविड संकट के बाद ओटीटी की लोकप्रियता में अपार वृद्धि हुई है। सस्ते इंटरनेट और स्मार्टफोन की वजह से छोटे शहरों और गांवों तक भी इनकी पहुंच हो गई है। युवा वर्ग का अच्छा-खासा समय इन पर खर्च होता है, हालाँकि बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएँ भी पीछे नहीं हैं। इस घटनाक्रम ने एक तरफ जहाँ देश में डिजिटल तथा कंटेंट आधारित उपक्रमों के लिए अच्छी संभावनाएँ पैदा की हैं वहीं अवसरों के दुरुपयोग की चुनौती भी सामने आ खड़ी हुई है, जिसकी परिणति ताजा प्रतिबंधों में हुई है।
जल्दी सफलता पाने के चक्कर में बहुत से छोटे प्लेटफॉर्म अश्लील और भड़काऊ कंटेंट का सहारा लेते रहे हैं। ऐसी शिकायतें निरंतर आती रही हैं कि इनमें स्व-नियमन जैसी कोई चीज नहीं है। न तो दर्शकों की उम्र का सत्यापन करते हैं और न ही अपने कंटेंट को वर्गीकृत करते हैं। शारीरिक नग्नता का प्रदर्शन, अश्लील और घटिया भाषा का इस्तेमाल, महिलाओं को वस्तु के रूप में पेश करना और जान-बूझकर पारिवारिक मूल्यों को तार-तार करने वाला कंटेंट दिखाना इनमें से कई प्लेटफॉर्मों के लिए सामान्य बात बन चुका था। हर किस्म का कंटेंट हर वर्ग के श्रोता को उपलब्ध है, भले ही वह बालिग हो या नाबालिग। डिजिटल माध्यमों पर वही कंटेंट जायज नहीं हो सकता जो पारंपरिक मीडिया माध्यमों के लिए नाजायज है, जबकि पारंपरिक टेलीविजन के पास डिजिटल जैसी पहुँच और ऑन डिमांड जैसी उपलब्धता नहीं है। इस माध्यम की जिम्मेदारी पारंपरिक टीवी से कहीं अधिक होनी चाहिए, हालाँकि वास्तव में इसका उल्टा हो रहा दिखता है।
हालाँकि बात सिर्फ इन्हीं 43 प्लेटफॉर्मों तक सीमित नहीं है। यूट्यूब तथा दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर भी यही समस्या थोड़े अलग रूप में मौजूद है। कुछ बड़े प्लेटफॉर्म भी यदा-कदा छूट ले लेते हैं। अंततः केंद्र सरकार ने सामाजिक मूल्यों तथा नैतिकता को ध्यान में रखते हुए ठोस कार्रवाई की है। इससे वैसा ही संदेश जाएगा जैसा चीन के दर्जनों मोबाइल एप्लीकेशनों पर रोक लगाने से गया था और वह यह कि हमारा डिजिटल स्पेस आपको अथाह भारतीय जनसंख्या तक पहुँचने का जो अवसर देता है वह स्वच्छंद रूप से इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। देश की सामाजिक-सांस्कृतिक मर्यादा, नैतिक मूल्यों तथा समाज व दर्शकों के हितों की अनदेखी नहीं की जा सकती।
भारत कोई अकेला देश नहीं है जहाँ इस तरह की समस्या पेश आ रही है और वह कठोर कदम उठाने पर विवश है। चीन में ओटीटी और इंटरनेट कंटेंट पर बहुत सख्त सरकारी सेंसरशिप है। वहां विदेशी कंटेंट पर भी कठोर पाबंदियाँ हैं। अश्लीलता से ग्रस्त तथा राजनीतिक-सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील कंटेंट तुरंत हटा दिया जाता है। यूरोपीय संघ में ऑडियोविजुअल मीडिया सर्विसेज डायरेक्टिव (AVMSD) के तहत ओटीटी प्लेटफॉर्मों को बच्चों की सुरक्षा, कंटेंट वर्गीकरण और स्थानीय कंटेंट कोटा जैसे नियमों का पालन करना होता है। अमेरिका में ओटीटी पर अपेक्षाकृत कम सरकारी नियंत्रण है, लेकिन कंपनियां खुद कंटेंट की रेटिंग करती हैं और अभिभावकों को यह सुविधा देती है कि वे अपने बच्चों के लिए नियंत्रण लागू कर सकें। अश्लील और अवैध कंटेंट पर कानूनी कार्रवाई भी होती है। ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब जैसे देशों में भी ओटीटी कंटेंट पर सख्त नियम लागू हैं। खासकर अश्लीलता और सांस्कृतिक मूल्यों के हनन को वहाँ बेहद गंभीरता से लिया जाता है।
भारत सरकार का फैसला डिजिटल मनोरंजन की दुनिया में नैतिकता, कानून और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच संतुलन की चुनौती को रेखांकित करता है। इस प्रतिबंध से नेटफ्लिक्स, अमेजॉन प्राइम, हॉटस्टार आदि बड़े प्लेटफॉर्मों पर भी दबाव बढ़ेगा कि वे अपने स्व-नियमन को और मजबूत करें, कंटेंट के वर्गीकरण को गंभीरता से लें और शिकायत निवारण तंत्र को पारदर्शी बनाएँ। निवेशकों और स्टार्टअप्स के लिए यह एक चेतावनी है कि भारत में डिजिटल कंटेंट के लिए स्पष्ट और सख्त नियम लागू हो चुके हैं।
(लेखक सुविख्यात तकनीकविद् हैं)