
आपने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का अवैध निर्माण पर बुलडोजर चलते हुए काफी समय से देखा है। उस बुलडोजर की रफ्तार और प्रभाव भी देखा है। दशकों से (खासकर महाकुम्भ को लेकर पिछले लगभग सवा डेढ़ महीने से) सनातन विरोधी विचारों का किला बनाकर जो बैठे थे, उस किले को सनातन के वैचारिक बुलडोजर से एक एक कर वे ध्वस्त करते जा रहे हैं।सनातन विरोधियों के किले को कुंभ के जरिए उन्होंने जो संदेश दिया है वह केवल भारत में नहीं भारत से बाहर भी पूरी दुनिया के लिए सनातन का संदेश है। उन्हीं के शब्दों में “महाकुंभ सनातन और आस्था की विश्वव्यापी गूंज है।” वह गूंज बहुत जोर से सुनाई दे रही है। बहुत से लोगों के कानों में दर्द हो रहा है। आंखों से तो देखा ही नहीं जा रहा। कुंभ में जो कुछ हो रहा है, जिस तरह का मेला आ रहा है, रेला आ रहा है, जिस तरह का जन सैलाब आ रहा है, उनको समझ में नहीं आ रहा कि इसमें जाति कहां से ढूंढ लें- धर्म कहां से ढूंढ लें।योगी जी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा में जो कहा, जिस तरह से जवाब दिया कि “जिसकी जैसी नीयत थी- जैसा चरित्र था- उसने वैसा देखा। सनातन के इस बड़े मेले में जिसने जो तलाशा उसे वही मिला। सूअरों को गंदगी मिली, गिद्धों को लाश मिली, गरीबों को रोजगार मिला, अमीरों को व्यापार मिला, श्रद्धालु को साफ सुथरी व्यवस्था मिली, सद्भावना वालों को जाति-पाति रहित व्यवस्था मिली और भक्तों को भगवान मिले।” तो जिसका जैसा स्वभाव और चरित्र था उसे वैसा मिला। जब से महाकुंभ शुरू हुआ है- बल्कि शुरू होने से पहले से- लगातार एक वर्ग का हमला हो रहा है सनातन संस्कृति पर। उनका हमला कुंभ मेले पर नहीं है। कुंभ मेला तो बहाना है। उसके जरिए उनका हमला सनातन संस्कृति पर है।
सनातन का विरोध कैसे किया जाए- उसे अपमानित कैसे किया जाए- उसे पद दलित कैसे किया जाए- यह सारी कोशिश करके वे एक तरह से हार चुके हैं। लेकिन खिसियाई बिल्ली की तरह अब भी खंभा नोच रहे हैं। यहां गंदगी थी- यहां यह अव्यवस्था थी- लोगों को पैदल चलना पड़ा। जो घर में बैठकर यह सब बयान दे रहे हैं- सोशल मीडिया को अपने ज्ञान से प्रदूषित कर रहे हैं, उनकी बात मत सुनिए। जो लोग गए हैं उनसे पूछिए, और करोड़ों गए हैं। कहा जा रहा है कि शिवरात्रि तक 66 करोड़ लोग कुंभ में स्नान कर चुके। आस्था की डुबकी लगा चुके होंगे। इन लोगों में से किसी ने शिकायत नहीं की। लेकिन जो नहीं गए हैं उनको सारी कमियां दिखाई दे रही हैं। कमियां क्यों दिखाई दे रही हैं? उनको समझ में नहीं आ रहा है कि ये लोग अपनी जाति की बात क्यों नहीं कर रहे हैं- जातीय भेदभाव की बात क्यों नहीं हो रही है- अमीर गरीब की बात क्यों नहीं हो रही है? दृश्य यह है कि अमीर और गरीब एक साथ अगल बगल खड़े होकर स्नान कर रहे हैं। कोई पूछ नहीं रहा- तुम गरीब हो, कैसे आ गए? कोई पूछ नहीं रहा कि हम तो ऊंची जाति वाले हैं, तुम नीची जाति वाले कैसे आ गए। ना किसी की जाति पूछी जा रही- ना भाषा- ना क्षेत्र- ना कोई सामाजिक भेदभाव की बात हो रही है… यह बात उनके गले के नीचे कैसे उतर सकती है।
महाकुंभ के सफल आयोजन ने यह साबित किया कि नीयत सही हो तो सफलता मिलती ही है। अच्छी नीयत से किए गए काम का परिणाम हमेशा अच्छा होता है। तो योगी जी का यह वैचारिक बुलडोजर केवल प्रयागराज में नहीं चल रहा है, वह प्रयागराज से संभल तक चल रहा है। संभल नया तीर्थ बन जा रहा है। बल्कि आप कह सकते हैं कि प्राचीन तीर्थ था, उसकी पुनर्स्थापना होने जा रही है।
अभी उत्तर प्रदेश की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया। इसमें कहा गया कि यह जो तथाकथित शाही मस्जिद है, जिसे मस्जिद बताया जा रहा है, यह सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा करके बनी है। यह भी कहा गया कि जिस कुएं की बात की जा रही थी कि वह मस्जिद के अंदर है, दरअसल यह मस्जिद के अंदर है ही नहीं। यह मस्जिद के पास है। मस्जिद के अंदर से इस कुएं तक पहुंचने का कोई रास्ता भी नहीं है जिससे इस तथाकथित मस्जिद को कुएं से जोड़ा जा सके। इस कुएं को सनातन संस्कृति में हमारे ग्रंथों में धरनी वराह कूप कहा गया है। मस्जिद कमेटी को इस कुएं के पुनरुत्थान, पुनर्निर्माण पर ऐतराज है। वह चाहती है इसको पुनर्जीवित ना किया जाए। कुएं को पुनर्जीवित करने का विरोध दरअसल प्रकृति का- मानवता का- समाज का विरोध है। यह केवल एक धर्म या आस्था की बात नहीं है, उससे परे का विषय है। ऐसे 19 कुएं हैं जिनको पुनर्जीवित किया जाएगा तो उस इलाके का वाटर लेवल बढ़ेगा। पर्यावरण में उसका कितना बड़ा योगदान होगा। वर्षा के जल का संचय होगा। लोगों को पीने का पानी मिलेगा और भूजल का स्तर बढ़ेगा।
उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने हलफनामे में यह भी कहा कि जिन 19 कुओं का पुनरुद्धार किया जा रहा है, पुनर्जीवित किया जा रहा है, उन्हीं में से एक यह कुआं है। संभल जिला ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। उसका भारतीय संस्कृति और सनातन संस्कृति में बहुत बड़ा महत्व है, बहुत बड़ा योगदान है। वैसे भी यह कुआं सार्वजनिक कुआं है। 1978 के दंगे के बाद कुएं के एक हिस्से पर पुलिस चौकी बन गई और 2012 में कुएं के बाकी हिस्से को ढक दिया गया। श्रीविष्णु हरि मंदिर के मामले में जो भी कार्यवाही चल रही थी उस पर 8 जनवरी को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट में उत्तर प्रदेश सरकार ने यह कहा कि हाई कोर्ट के फैसले को छिपाया गया और उसको इस रूप में दिखाने की कोशिश हुई कि तथाकथित मस्जिद की सीढ़ियों और इस समय उसके दरवाजे के आसपास की जो स्थिति है उसको यथा स्थिति के रूप में बनाए रखा जाए। रोक इस पर लगाई थी। सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के फैसले को पूरी तरह नहीं बताया गया। अब देखना है कि सुप्रीम कोर्ट क्या फैसला देता है लेकिन संभल में जो हो रहा है उसको ना कोई कोर्ट रोक सकता है, ना कोई सरकार रोक सकती है, ना कोई संगठन रोक सकता है, ना कोई व्यक्ति रोक सकता है, ना कोई नेता रोक सकता है। वो सनातन संस्कृति के पुनरुत्थान का एक यज्ञ है जो रुकने वाला नहीं है। इतने साल से, दशकों से दबा रहा। उसको दबाने की कोशिश की जाती रही।
तो एक तरफ संभल में यह कुछ चल रहा है, दूसरी तरफ प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन। महाकुंभ का यह आयोजन पूरी दुनिया के लिए एक उदाहरण है कि इतने बड़े मेले का किस तरह से सफलतापूर्वक आयोजन किया जाता है। वहां जिस तरह की सफाई है… जिन लोगों को यहां गंदगी नजर आती है उनको यह पता होना चाहिए कि प्रयागराज में वायु की शुद्धता का स्तर चंडीगढ़ शहर से बेहतर है। विघ्नसंतोषियों को जब कहीं कुछ नहीं मिला तो आखिर में संगम के पानी में खोट ढूंढने की कोशिश हुई। तमाम झूठमूठ के तथ्यों के आधार पर यह बताने की कोशिश हुई कि यह पानी प्रदूषित है। यह पीने के लायक तो छोड़िए नहाने के लायक भी नहीं है। जिस संस्था ने भी यह रिपोर्ट दी है और जिन लोगों ने इसका प्रचार किया उनको यह बात उन 66 करोड़ लोगों को जाकर बताना चाहिए जो कुम्भ गए। उनको तो कोई गंदगी नहीं दिखी। दरअसल सनातन विरोधियों को यह मालूम नहीं है कि आस्था की ताकत क्या होती है- उसकी शक्ति क्या होती है- आध्यात्मिकता क्या होती है?
सनातन संस्कृति की शक्ति क्या है महाकुंभ के आयोजन में यह पूरी तरह से पूरी दुनिया ने देखा। किसी तरह का कोई भेद भाव नहीं। अगर आप गए हों- मैं गया था- इस तरह की सफाई छोटे से छोटे आयोजन में भी देखने को नहीं मिलती है। हमारे घर में, आपके घर में शादी ब्याह के कार्यक्रम आयोजित होते हैं। उसमें भी जितनी गंदगी देखने को मिलती है, वह भी पूरे कुंभ क्षेत्र में देखने को नहीं मिली। और जिस तरह का रोजगार हुआ है। गरीबों को जिस तरह का रोजगार मिला है। बहुत से परिवारों के लिए तो वे जितनी पूंजी तीन साल, चार साल में कमाते थे- वह उन्होंने इस सवा डेढ़ महीने में कमा लिया। जो गरीबों का भला होते हुए नहीं देखना चाहते उनको गरीबों से कोई मतलब नहीं है। उनका ध्यान सिर्फ इस बात पर है कि सनातन की इस एकता को कैसे खंडित किया जाए। सनातन पर जो यह गर्व का भाव है- लोगों की जो आस्था है- उस पर कैसे प्रहार किया जाए? योगी जी ने जिस तरह से खुलकर ऐसे तत्त्वों पर प्रहार किया है वह वही व्यक्ति कर सकता है जो अनअपोलोजेटिक हिंदू हो। जिसमें हिंदू होने पर कोई शर्म ना हो। जिसमें हिंदू होने पर गर्व का एहसास हो… और यह हिंदू होने पर गर्व का एहसास केवल जबान तक नहीं हृदय तक हो। जब हृदय से ऐसे भाव निकलते हैं, तब ऐसी वाणी निकलती है जो इस पूरेविघ्नसंतोषी सनातन विरोधी वर्ग को चुप कराने का काम करती है। लेकिन चुप वो होते हैं जो तर्क को समझते हैं, तथ्य को समझते हैं, सच्चाई को समझते हैं। जिसने आंखों पर पट्टी बांध रखी हो, उसको आप सच्चाई नहीं दिखा सकते। उसको तथ्य और तर्क से कोई मतलब भी नहीं होता है। उसका एक एजेंडा होता है। जो उसके मन में भरा हुआ है वही सब लोगों को बताता है। जिसके मन में गंदगी भरी हुई वह गंदगी दिखा रहा है। जिसके मन में अव्यवस्था भरी हुई है वह अव्यवस्था दिखा रहा है।
यहां दो महिला नेताओं का जिक्र करना बड़ा जरूरी है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने और जया बच्चन जो अपने को प्रयागराज की बहू बताती हैं (और प्रयागराज का दुर्भाग्य है कि वह हैं भी) कुंभ के बारे में क्या कहा? यह अलग बात है इन लोगों की जबान पर 2013 में ताला क्यों लगा हुआ था जब कुम्भ में हुई भगदड़ में इतने लोगों की मौत हुई। तब इनको कुंभ में कोई खोट नजर नहीं आया क्योंकि उस समय राज्य में सरकार दूसरी पार्टी की थी। तो सनातन विरोधियों के खिलाफ योगी आदित्यनाथ के इस शंखनाद की गूंज बहुत दूर तक और बहुत देर तक सुनाई देती रहेगी। उनके कानों में दर्द समय के साथ और बढ़ता जाएगा। उसकी वजह यह है कि उनके पास इसका कोई जवाब नहीं है। जवाब उसके पास होता है जो सच्चाई पर खड़ा होता है। जो झूठ के घोड़े पर सवार होता है उसको यह सब नहीं दिखता है, इसलिए इन लोगों को नहीं दिखेगा- लेकिन उस आम जनता को दिखाई दे रहा है। उन 66 करोड़ लोगों को दिखाई दे रहा है जो आए थे। और जो नहीं आ सके और अफसोस कर रहे हैं- जिनको इस बात का दुख है कि वो किसी ना किसी कारण से नहीं पहुंच पाए- ऐसे लोगों की संख्या भी करोड़ों में है जिनका शरीर भले ही किसी और शहर में हो लेकिन दिल और आस्था प्रयागराज में संगम तट पर थी। ऐसे लोगों को इस तरह की बातों से वे और भड़का रहे हैं, उनको और ज्यादा अपने खिलाफ कर रहे हैं। यह बात शायद उनको अभी समझ में नहीं आ रही है लेकिन धीरे-धीरे समझ में आएगी जब जनता समझाएगी, जब मतदाता समझाएगा, तब पता चलेगा कि उन्होंने कितना बड़ा पाप किया है।
जो पाप करता है उसको उसकी सजा मिलती ही है। महाकुंभ के इस सनातन संस्कृति के इस इतने बड़े आयोजन का विरोध करने वालों को यह समझ लेना चाहिए कि उनका समय बीत गया है- उनके एजेंडे का समय बीत गया है- लोगों की आंखें खुल गई हैं और आंखों के साथ-साथ लोगों की जिह्वा भी खुल गई है। लोग बोलने लगे हैं, प्रतिकार भी करने लगे हैं। इसलिए आने वाले दिनों में उनको अपने छुपने की जगह खोजनी पड़ेगी।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अख़बार’ के संपादक हैं)