योगेश कुमार गोयल।

भारत उत्सवधर्मिता का देश है। यहां हर धर्म-संप्रदाय के पर्व पूरे जोश व उत्साह के साथ मनाए जाते हैं। बात दीपावली जैसे ‘ज्योति पर्व’ की हो तो पांच पर्व की इस शृंखला पर तो देशभर में हर जाति, हर धर्म, हर संप्रदाय के लोगों का उत्साह देखते ही बनता है। राष्ट्र के कोने-कोने में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाने वाला रोशनी का यह रंग-बिरंगा पर्व देश के विभिन्न हिस्सों में कुछ भिन्नता अवश्य लिए हुए है। हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और बिहार में दीपावली का त्योहार पूर्णतः वैदिक रीति से मनाया जाता है। रात्रि के समय मुहूर्त के अनुसार गणेश व लक्ष्मी का पूजन किया जाता है तथा व्यापारी वर्ग इन राज्यों में इस दिन लक्ष्मी पूजन के साथ-साथ अपने बही-खातों की भी पूजा करते हैं। घर के भीतर व बाहर दीपमालाएं प्रज्ज्वलित की जाती हैं और बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक आतिशबाजी का मजा लेते देखे जाते हैं। इस दिन लोग अपने परिचितों, रिश्तेदारों व मित्रों को खील, बताशे, चीनी के बने खिलौने, मिठाइयां, मेवा अथवा अन्य उपहार भेंट करते हैं। धनतेरस पर यहां बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है। उत्तर प्रदेश में लोग इस दिन गाय की पूजा भी करते हैं जबकि बिहार में लोग इस दिन कच्चा नारियल खाना शुभ मानते हैं तथा मशाल जलाकर गांव की पूजा करते हैं।
Diwali Celebrations in Rajasthan | Celebrating Diwali in Rajasthan

राजस्थान में दीपावली का त्योहार ‘वीरों के पर्व’ के रूप में मनाया जाता है। वीरभूमि राजस्थान में इस दिन शस्त्रों की पूजा की जाती है और प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में शस्त्र कला का शानदार प्रदर्शन भी किया जाता है। इसके साथ-साथ कुछ स्थानों पर रातभर सामूहिक लोकगीतों व लोकनृत्यों के कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं। दीपावली के दिन राजस्थान के कुछ भागों में बिल्ली को लक्ष्मी का रूप मानकर उसकी पूजा भी की जाती है तथा सभी मिष्ठानों का भोग पहले बिल्ली को ही लगाया जाता है। कहा जाता है कि अगर बिल्ली इस अवसर पर किसी का कुछ नुकसान भी करे तो भी बिल्ली को लोग नहीं दुत्कारते।

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हिमाचल प्रदेश के बहुत से क्षेत्रों में दीपावली उत्तर भारत के अन्य राज्यों की भांति ही मनाई जाती है लेकिन कुछ पहाड़ी भागों में दीपावली का अलग ही रूप देखने को मिलता है। इन क्षेत्रों में दीपावली का त्योहार पूरे देश में मनाए जाने वाले दीपावली के त्योहार से ठीक एक माह बाद मनाया जाता है और इसे ‘बूढ़ी दीपावली’ के नाम से जाना जाता है। मार्गशीर्ष की अमावस्या को मनाई जाने वाली बूढ़ी दीपावली के बारे में यह किवंदती प्रचलित है कि जब भगवान श्रीराम लंका पर विजय हासिल करके अयोध्या लौटे थे तो देशभर में उनके लौटने की खुशी में घी के दीये जलाकर खुशियां मनाई गई थी लेकिन हिमाचल के इन दूरदराज पहाड़ी इलाकों में बसे लोगों को श्रीराम के लौटने की सूचना इसके एक माह बाद मिली थी, इसीलिए यहां दीपावली के त्योहार का आयोजन देशभर में मनाई जाने वाली दीपावली से एक माह बाद किया जाने लगा।

पश्चिम बंगाल में यूं तो दीपावली से एक माह पूर्व मनाई जाने वाली दुर्गा पूजा का विशेष महत्व है लेकिन यहां दीपावली का पर्व भी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन यहां गणेश-लक्ष्मी के बजाय महाकाली की पूजा की जाती है। रात को महाकाली की पूजा के उपरांत लोग पटाखे चलाते हैं तथा मिठाइयों का आनन्द लेते हैं। इसके अलावा यहां एक अलग रिवाज भी देखने को मिलता है। बंगाली युवतियां इस दिन दीप जलाकर नदी में प्रवाहित करती है क्योंकि यहां ऐसी मान्यता है कि जिस युवती का दीप बुझने तक नदी में तैरता रहेगा, उसका पूरा वर्ष सुख, शांति एवं ऐश्वर्य से बीतेगा।

महाराष्ट्र में वैसे तो दीपावली पर गणेश-लक्ष्मी का ही पूजन किया जाता है और लोग अपने घरों के अंदर व बाहर दीपों की कतार जलाकर अपने घरों को आलोकित करते हैं तथा रोशनी के लिए तरह-तरह के रंग-बिरंगे फैंसी बल्बों का प्रयोग भी खूब देखा जाता है किन्तु प्रदेश के कुछ हिस्सों में दीपावली का पर्व ‘यम पूजा’ के लिए भी प्रसिद्ध है। ‘भैया दूज’ को यहां विशेष महत्व दिया जाता है और इस अवसर पर यमराज की पूजा-अर्चना करके उन्हें दीपदान किया जाता है जबकि कुछ हिस्सों में दैत्यराज बलि की पूजा का भी प्रचलन है। राजा बलि की मूर्ति बनाकर सामूहिक रूप से उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। हर खुशी के मौके अथवा पर्व पर अपने-अपने घरों में रंगोली सजाना तो महाराष्ट्र की गौरवशाली संस्कृति का अहम हिस्सा है। दीपावली पर भी महिलाएं अपने घर-आंगन में रंगोली सजाती हैं। यहां लोग धनतेरस के दिन बर्तन खरीदना शुभ नहीं मानते।

मध्य प्रदेश में भी कुछ स्थानों पर महिलाएं महाराष्ट्र की ही भांति अपने घर-आंगन में रंगोली सजाती हैं और राजा बलि की मूर्ति की स्थापना करके उसकी पूजा करती हैं। रात को पूजन करने के उपरांत एक-दूसरे को मिठाईयां व उपहार बांटे जाते हैं और लोग आतिशबाजी का मजा लेते हैं।

गुजरात में दीपावली के दिन पारम्परिक तरीके से लक्ष्मी का पूजन किया जाता है तथा व्यापारी वर्ग नए बही-खाते बनाता है। लक्ष्मी पूजन के साथ-साथ गुजरात के कुछ क्षेत्रों में ‘शक्ति’ का पूजन भी किया जाता है। पूजन के बाद एक-दूसरे को उपहारों का आदान-प्रदान किया जाता है। इस दिन यहां महिलाएं कच्चे घड़ों को आटे और चावल से सजाती हैं। दीपावली के दिन गुजरात में नमक खरीदना और बेचना शुभ माना जाता है, जिसे यहां ‘वांघवरान’ कहा जाता है।

कर्नाटक में लोग दीपावली के अवसर पर नई फसल आ जाने की खुशी में लक्ष्मी के साथ-साथ धरती मां की पूजा भी विशेष तौर पर करते हैं। यहां इस दिन उबटन लगाकर नहाने की परम्परा है और उबटन लगाते समय नरकासुर वध की कथा सुनी जाती है।

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आंध्र प्रदेश में मान्यता है कि दीपावली के दिन जिन घरों को दीये जलाकर आलोकित नहीं किया जाता, वहां भूत-प्रेतों का डेरा बन जाता है और ऐसे परिवारों के लिए पूरा वर्ष अनिष्टकारी साबित होता है। इस दिन लोग अपने-अपने घरों के बाहर मचान बनाकर उस पर दीये सजाते हैं, जिससे पूरा माहौल दूर से ही दीयों की जगमगाती रोशनी में नहाया नजर आता है। हैदराबाद में दीपावली पर लक्ष्मी पूजन की परम्परा तो निभाई जाती है लेकिन इन दिन यहां का प्रमुख आकर्षण भैंसों की लड़ाई होती है बल्कि यूं भी कहा जा सकता है कि हैदराबाद के लोग भैंसों को लड़ाकर ही दीपावली का त्योहार मनाते हैं।

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केरल में दीपावली के दिन भगवान श्रीराम का पूजन किया जाता है। इसके अलावा विचित्र बात यह है कि श्रीराम के पूजन के साथ-साथ इस दिन यहां भगवान श्रीकृष्ण का पूजन किए जाने की भी परम्परा देखी जाती है। अरुणाचल प्रदेश में लोग दीपावली से एक दिन पहले रात्रि के समय खुले मैदान में इकट्ठे होते हैं और जुआ खेलते हैं। दीपावली के दिन यहां भी लोग अपने घरों को रंग-बिरंगी रोशनी से सजाते हैं तथा दीपों की कतार से अपने घरों को आलोकित करते हैं। युवक पटाखे चलाते हैं और मिठाइयों का आनन्द लेते हैं। (एएमएपी)

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)