पुर नर नारी सनाथ करि भवन चले भगवान

apka akhbar-ajayvidyutअजय विद्युत ।
अयोध्या में भगवान रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर पूरा देश एक दिव्य एवं भव्य आभा से जागृत है।
होहिं सगुन सुभ बिबिध  बिधि बाजहि गगन निसान।
पुर नर नारी सनाथ करि भवन चले भगवान।।
एक दिवाली तब थी जब भगवान राम वन से अयोध्या लौटे थे। और, एक दिवाली अब है जब भगवान राम मन से अयोध्या आए हैं। सनातन धर्म के लिए यह शताब्दियों बाद एक अत्यंत दिव्य और सबसे बड़ा गौरवपूर्ण अवसर आया है। गली मोहल्ले से लेकर विदेश तक में राम नाम की गूंज है। इसी विषय पर हमने जाने-माने गायक कैलाश खेर से बात की
हम पद्मश्री कैलाश खेर से यह जानना चाहते हैं कि अयोध्या में श्रीराम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर उनके मन में क्या उमग रहा है?
हमको लग रहा है जैसे सदियों के पश्चात राम युग का प्रारंभ हो रहा हो और यह इस निमित्त से कह सकते हैं कि जो युगों युगों से अनुचित हो रहा था मनुष्य जाति में, वह अब पिछले कुछ वर्षों- लगभग एक दशक से – उचित होना प्रारंभ हो गया है। ऐसा तभी हो सकता है जब हृदय हृदय में राम जग गए हों। हम बाल्यावस्था से यह सुनते आए हैं कि जनता तो राम होती है, जनता जनार्दन होती है। जब जनता में राम जग गए हैं तभी तो वह उचित निर्णय ले–लेकर अपना भाग्य निश्चित कर रही है ना। तो अब वह दिन आ गए हैं। यानी राम जग गए हैं हृदय हृदय में। तो पृथ्वी पर जीव में राम की जाग हुई है। इसका प्रभाव दिखने लगा है। हमारा भारत, भारत के लोग, भारत की स्थिति– अब विश्व में ऐसी स्वीकृत हो रही है जैसे विश्व संकटों से गुजर रहा है और उसे जो कुछ आस बची है वह भारत से ही बची है। कुछ देश आपस में लड़ रहे हैं, कहीं आर्थिक संकट है, किसी देश में भीतर गृह युद्ध की स्थिति है। ऐसा लगता है जैसे ’देव दानव दोनों ही भारत की ओर देख रहे हों कि यह हमारा निपटारा या बीच बचाव करवा देंगे, यह हमें संकट से मुक्ति दिला देंगे।

भारत की ओर से ही हमें कुछ सहारा मिल सकता है। वरना हम तो गए’। इस प्रकार की अनुभूतियों अन्य देशों में आ गई हैं। वैसे तो हम युगों युगों से सुनते आए हैं– मेरा भारत महान, मेरा भारत महान। लेकिन जब हम व्यावहारिक दृष्टि से देखते थे तो विश्व में भारत की स्थिति दयनीय लगती थी। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से आप ध्यान से देखिए कि चाहे साइंस हो, भारत अग्रगण्य जा रहा है… चाहे कला हो भारत अग्रणी जा रहा है, ऑस्कर मिल रहे हैं धड़ाधड़… खेलों को ले लीजिए खेलों में भारत आगे जा रहा है और धड़ाधड़ मेडल आ रहे हैं। स्वर्ण आ रहा है, रजत आ रहा है, कांस्य भी आ रहे हैं, लेकिन आ रहे हैं… तो विभिन्न क्षेत्रों में भारत आगे भाग रहा है। दरअसल भारत ऐसा ही था। अगर आप हजार साल पहले का भारत देखेंगे तो वह ऐसा ही था। भारतीय सभ्यता शीर्ष पर थी। फिर जब मुग़ल आए तो उन्होंने इसे हिंदुस्तान नाम दे दिया। अंग्रेज आए तो उन्होंने इंडिया नाम दे दिया। और, हम लकीर के फकीर बनकर बड़े मजे से उसे अडॉप्ट करते गए। लेकिन अब राम जग गए हैं। अब जैसे पुनः भारत का पुनरुद्धार और पुनर्निर्माण हो रहा है। तो भारत जाग रहा है। अब इसीलिए प्रारंभ हुई हैं ये सब बातें। अब जो उचित होता है वही होता है। ऐसा तभी होता है जब राम जागें। अब राम अवतरित हो गए हैं हृदय हृदय में। राम की प्राण प्रतिष्ठा तो पहले ही हो चुकी है। अब तो जो मंदिर की एक व्यवस्था होती है वह मेरे दाता रच रहे हैं। वह तो खुद रचनाकार हैं– चले खूब तुरुप की चाल लगाये रंगों का तांता/ रचना के रचनाकार का खेला समझ नहीं आता।

एक लंबा अंतराल… फिर आज की अयोध्या और राम… क्या कहेंगे?

हमारे माता-पिता यह सपना लिए हुए ही दिव्य लोक चले गए कि उनकी आंखों के समक्ष अयोध्या में मंदिर बने, प्राण प्रतिष्ठा हो। हमारी जो अस्मिता है वह वापस आए। क्योंकि अयोध्या का तो नाम ही मिटा दिया गया था। अयोध्या कहीं रह ही नहीं गई थी। सिर्फ किताबों में अयोध्या थी। विचारों में अयोध्या थी। लेकिन संस्कारों में से अयोध्या गायब कर दी गई थी।

फैजाबाद हो गया था…

हां, वही। ’बाद’ ही ’बाद’ चल रहे थे सब जगह। गाजियाबाद कहीं, फैजाबाद, कहीं लादिया बाद… उस वजह से संस्कृति में थोड़ा बिखराव हो गया था। लेकिन अब अयोध्या में राम जैसे पुनः अवतरित हो रहे हों। सिर्फ मंदिर नहीं बन रहा, मनुष्यों के लिए कहते हैं ना कि ’हर नजर में राम-राम तू जंगल जंगल क्या ढूंढे/ तेरे रोम रोम में शिव शिव तू पत्थर पर सर क्यों मारे।’ पत्थर का संस्काररुप है शिव। तो शिव तो घट-घट में है। वैसे ही जब हम कण कण में राम कहते हैं तो कण कण का स्वरूप क्या है? हमारा जीवाश्म हमारा जीव, हमारा परमात्मा का बनाया हुआ आयाम- हम उसमें भी राम देखते हैं। मन में भी राम और तन में भी राम… तो अब वह मूर्त रूप में दिखाई देना प्रारंभ हुआ है। पहले ये सब  बातें ही थीं। न संगठन था पहले, तो अब वह शुरू हुआ है। अब सब संगठित होकर देश की सोचते हैं। अब धर्म की लड़ाई भी कम हो रही है। थोड़े से लोग चाहते हैं कि लोग धर्म को लेकर भिड़ जाएं लेकिन अब ऐसा नहीं होता। लोग अब जाग गए हैं। पहले तो दृष्टि वालों को भी अंधा बनाने की प्रक्रिया शुरू रहती थी लेकिन अब भगवान की दृष्टि तीसरी आंख ऐसी खुली है कि हर चीज बहुत अच्छे से व्यवस्थित हो रही है।
पहले पढ़े लिखे युवा आधुनिकता की तरफ ज्यादा रुझान रखते थे। लगता था उनका धर्म वगैरा से कोई मतलब नहीं है। लेकिन इस समय उनमें जो उत्साह आया है उसे आप किस तरह से देखते हैं?
यह एक बहुत बड़ा युग परिवर्तन हुआ है। पहले वे बोलचाल, संस्कार और रोजाना की जिंदगी में पश्चात सभ्यता से प्रभावित थे… और समझते थे कि वे वही हैं। लेकिन अब उनको पता लगा कि वे तो वह है ही नहीं जो बताया गया। हमारे एक राम-राम कहने से 108 मनको की माला का जाप हो जाता है… जब हमने साइंस में उन्हें यह बात बताई तो युवाओं को भी समझ आने लगी यह बात कि– हां, हम जब राम-राम कहते हैं तो हमारे होंठ बंद हो जाते हैं। उधर हम अंग्रेजी के जो भी संबोधन देते हैं उनमें होंठ खुले के खुले रह जाते हैं। इन सारी चीजों का प्रभाव हुआ है युवाओं पर। पहले हमारे यहां धर्म के प्रचार प्रसार की जो कथाएं या संभाषण होते थे उनमें युवा कम रुचि लेते थे। लेकिन अब उनकी रुचि बढ़ने लगी है क्योंकि उनको उसमें लॉजिक से ज्यादा आस्था दिखने लगी है। पहले लोग टैटू बनबाते थे फैशन के लिए। अब वे टैटू के साथ ही ध्यान लगाना यानी मेडिटेशन करना भी सीख रहे हैं। यह बहुत बड़ा परिवर्तन आया है युवाओं में। इस परिवर्तन में आपके कैलाश खेर और उनके संगीत कैलासा का बहुत बड़ा प्रभाव हुआ है। पिछले 16–17 साल के करियर में हम जहां भी गए, हमने अपने यूथ को यही बताया कि– ऐ मेरे यूथ, बन के ना रहो बूथ।

आपकी इस पहल से युवाओं में कितना बदलाव आया?

उसे समय ज्यादातर छिछोरे गाने ही होते थे, चाहे वह फिल्मों के हों या गैर फिल्मी। चलन था कि रोमांटिक गाने रखो, और रोमांटिक गानों में भी सतही बातें करो, सतही दृश्य दिखाओ… और इससे मोह को यूथ को। लेकिन अब नहीं। हम 2007 में इंडस्ट्री में आए और हमने गाया ’अगड़ बम बबम अगड़ बम बबम अगड़ बम बनाने बम बम बम लहरी’। यह प्रेम गीत है। यह प्रपोजल गीत है जिसमें मां पार्वती हमारे भगवान शिव को प्रपोज कर रही हैं। और, भगवान शिव कह रहे हैं कि तू पगली मेरे चक्कर में कहां पड़ रही है, मैं तो बूढ़ा हूं, मैं तो किसी योग्य नहीं हूं। शिव तो बार बार वेश बदलते थे। माता पार्वती भी अंतर्यामी हैं। वह कहती हैं कि– मैं तेरी लीला को जान गई, पल में बूढ़ा, पल में बाला। इस तरह यात्रा आगे बढ़ी। युवाओं में एक अलग तरह की क्रांति जागी कि यह भी हो सकता है, ऐसे भी हो सकता है। पहले लोग भगवान शिव को नशे से जोड़तै थे। कहते थे यह तो शिव की बूटी है, भगवान शिव भी तो लेते थे। फिल्मों में भी हमारे भगवान शिव को ऐसा दिखाया जाता था– जय जय शिव शंकर, कांटा लगे ना कंकर, प्याला तेरे नाम का पिया।’ उनके कान के नीचे एक लगाओ कि प्याला हमारे शिव ने क्या पिया था? विष का प्याला किया था। उसे सांकेतिक इसलिए पिया था कि उस समय की जो भी विषकर चीज थी वह दाता ने स्वयं अपने अंदर धारण की और इस सृष्टि को अमृत तत्व दिया कि तुम जियो पहले।

22 जनवरी के लिए आपकी तैयारी…

हमारी तैयारी तो यही है कि हमने अपना कुर्ता धो लिया, बनियान धो ली, अपने हाथों से प्रेस कर लेंगे। भगवान के सामने उपस्थित होना है तो ऐसा सज के जाएंगे, पीला कुर्ता पहन के, कि आपको एकदम से लगेगा कि अरे कैलाश खेर तो साधु बनकर आए हैं। …लेकिन जो हमारी असली तैयारी चल रही है वह यह कि पिछले दो-तीन महीने में हमने भगवान राम पर 21 गाने गाए हैं। इनमें कुछ तो भगवान राम पर आधारित फिल्मों के लिए गाए गाने हैं, कुछ प्राइवेट यानी दूसरों के लिए गाए हैं। और 11 गाने हमने स्वयं रचे, लिखे और गाए हैं। जब प्राण प्रतिष्ठा के 5 दिन शेष बचे तो हमने ’5 दिन शेष 5 प्रण विशेष’ पांच दिनों तक भगवान राम पर रोज एक गीत दिन 11 बजकर 11 मिनट पर रिलीज किया।
अयोध्या में एक दिव्य आयोजन है। और कहते हैं जहां दिव्यता होती है, वहां भव्यता खुद खिंची चली आती है।
वही हो रहा है अब। आज जो हमारे देश का नेतृत्व है, उसे देखकर लग ही नहीं रहा की कोई मनुष्य देश चला रहा है। आप स्वयं देखिए, लग रहा है जैसे देवसत्ता से कोई आदेश हुआ हो और वहीं से किसी संवाहक को भेजा गया हो कि तुम अवधूत बनकर जाओ। हे देवता, मनुष्य का रूप धारण करो। तुम्हारी यात्रा यहां रहेगी कि तुम गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में पढ़ोगे, लेकिन देशाटन करोगे। पूरे देश का भ्रमण करते-करते तुम तैयार हो जाओगे। तैयार होने के बाद अमुक कालखंड और अमुक तिथि में तुम देश की बागडोर संभालोगे।