हनुमान गढ़ी का परिचय
प्राचीन है ये मंदिर
पहले करने चाहिए हनुमान गढ़ी के दर्शन
माना जाता है कि है कि अयोध्या में आने से पहले हनुमागढ़ी में विराजमान बजरंगबली के दर्शन करने चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि श्री राम ने जब हनुमान जी को ये मंदिर दिया था तब उन्होंने कहा था अयोध्या में आने पर भक्त सबसे पहले हनुमान जी के दर्शन करेंगे।
हर समय विराजमान रहते हैं बजरंगबली
मंदिर में विराजमान है निशान
प्रभु राम ने नहीं दी थी हनुमान को जाने की इजाजत
तब से ही हनुमान जी, अयोध्या में रहते हैं, इस बात का जिक्र अथर्ववेद में है।
प्रभु राम ने दिया था आदेश हनुमानगढ़ी का मंदिर भगवान हनुमान को समर्पित है, यह मंदिर राजद्वार के सामने ऊंचे टीले पर स्थित है। रामजी ने हनुमान जी को यहीं पर रहने का स्थान दिया था और साथ ही ये अधिकार भी दिया कि जो भी भक्त मेरे दर्शनों के लिए अयोध्या आएगा उसे पहले हनुमान जी का दर्शन पूजन करना होगा। जहां आज भी छोटी दीपावली के दिन आधी रात को संकटमोचन का जन्म दिवस मनाया जाता है। इसलिए सबसे पहले भक्त हनुमानगढ़ी का दर्शन करते हैं।
अयोध्या नगरी दुल्हन की तरह सजी है मालूम हो कि भूमि पूजन के बाद पीएम मोदी मंदिर निर्माण के लिए पहली ईंट रखेंगे, इस वक्त पूरी अयोध्या दुल्हन की तरह सजी हुई है। सुरक्षा के पूरे इंतजाम किए गए हैं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत भी भूमि पूजन स्थल पर पहुंच गए
रामकाल के इस हनुमान मंदिर के निर्माण के कोई स्पष्ट साक्ष्य तो नहीं मिलते हैं. लेकिन कहते हैं कि अयोध्या न जाने कितनी बार बसी और उजड़ी, फिर भी एक स्थान हमेशा अपने मूल रूप में ही रहा. यही वह हनुमान टीला है, जो आज हनुमानगढ़ी के नाम से प्रसिद्ध है. इस टीले तक पहुंचने के लिए भक्तों को पार करना होता है 76 सीढ़ियों का सफर, जिसके बाद दर्शन होते है पवनपुत्र हनुमान की 6 इंच प्रतिमा के, जो हमेशा फूल-मालाओं से सुशोभित रहती है।
10वीं सदी के किलानुमी हनुमानगढ़ी मंदिर की धार्मिक ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि चाहे राजनेता हो या आमजन, सभी अपनी मनौती पूरी कराने या किसी भी शुभ काम के पहले हनुमानगढी में दस्तक देते हैं। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ का अयोध्या का दौरा अक्सर लगा रहता है। कभी महीने में दो-दो बार। वे जब भी यहां आते सबसे पहले हनुमानगढ़ी में विराजमान हनुमान जी के बाल रूप का दर्शन करते और उसके बाद राम जन्म भूमि जाकर रामलला का दर्शन। यह बात योगी जी के लिए ही नही है। सत्ता से जुड़े हों या फिर हों विरोधी दलों के नेता, अपना राजनीतिक कद बढ़ाने की दुआ मांगने से लेकर शुभकार्य शुरू करने तक इसी सिद्ध पीठ पर माथा टेकते हैं।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी जब पहली बार 2016 में अयोध्या आए तो हनुमानगढ़ी में बाल हनुमान के दर्शन करने पहुंचे। और बगल में ही मौजूद रामजन्म भूमि मंदिर में रामलला के दर्शन किए बगैर ही लौट गए। उस समय सवाल भी उठे थे कि राहुल रामलला के दर्शन करने क्यों नहीं गए? राहुल का उस समय जवाब था, वह विवादित स्थल है।
अयोध्या की इस सिद्धपीठ की महत्ता को लेकर कई रोचक कहानियां मिलती है। उनमे से एक है अवध के नवाबों का इसके निर्माण और सुरक्षा को लेकर सहयोग।
बताते हैं कि जब टीले के पेड़ के नीचे हनुमान की छोटी प्रतिमा स्थापित थी तो अवध के नवाब शुजाउद्दौला का शहजादा बेहद बीमार पड़ा, जिसको इलाज से बचा पाने में हकीम और वैद्यों ने हाथ खड़े कर लिए। उधर शहजादे की हालत बिगड़ती जा रही थी। नवाब के मंत्रियों ने बाबा अभयराम दास से मिन्नतें कर उन्हे शहजादे को देखने के लिए मना लिया। बाबा ने कुछ मंत्र पढ़कर हनुमान जी का चरणामृत बीमार शहजादे के ऊपर छिड़का। जिसके असर से शहजादा ठीक हो गया ।
इस पर नवाब ने बाबा से खुश हो कर कहा ‘कुछ मांगिए आप ने मेरे शाहजादे की जान बचाई है।’
इस पर बैरागी बाबा अभयराम दास बोले ‘हमने नहीं हनुमान जी ने उसकी जान बचाई है। इच्छा हो तो हनुमान की मंदिर बनवा दो। फिर क्या था, नवाब ने 5 एकड़ जमीन पर मंदिर का निर्माण करवाने की पहल की। कुछ लोग ऐसी ही घटना को लखनऊ के शासक रहे सुल्तान मंसूर अली से जोड़कर देखते हैं।
हालांकि जब हनुमानगढ़ी के मौजूदा गद्दीनशीन महंत प्रेम दास से मंदिर के ऐतिहासिक तथ्यों के बारे मे बात की गई तो वे भी नवाब के शहजादे की कहानी से इत्तेफाक करते हैं। वे कहते हैं, अवध के नवाबों ने हनुमानगढ़ी के मंदिर के निर्माण में सहयोग किया और अब यह परिसर 52 बीघा के इलाके में फैला है।
गद्दीनशीन महंत प्रेम दास बताते हैं, भगवान राम जब लंका से जीतकर अयोध्या आए तो हनुमान जी भी उनके साथ आए और यहां के किले मे रह कर सुरक्षा करते रहे। वे जब परमधाम को जाने लगे तो हनुमान जी को अयेाध्या का राजा बना कर गए। इसलिए यहां हनुमान जी राजा के रूप में विराजमान हैं जबकि अन्य जगहों पर प्रभु राम के सेवक के रूप में।
महंत प्रेम दास मंदिर की व्यवस्था के बारे में बताते हैं कि शुरुआती दौर में हनुमानगढ़ी की व्यवस्था के लिए कमिटी बनाई गई। चार प्रांतों की तरह चार पट्टियां बनाई गईं। सागरिया, बसंतिया, उज्जैनिया और हरिद्वारि। पंचायती व्यवस्था में चलने वाले मंदिर की व्यवस्था में पंचों को ही चारों पट्टियों का महंत चुनने की पावर दी गई है। हनुमानगढ़ी का सर्वोच्च पद गद्दीनशीन का होता है। जितने समय तक वह इस पद पर आसीन है, वह मंदिर के बाहर कहीं भी भ्रमण नहीं कर सकता। गद्दीनशीन का चुनाव भी पंच ही करते हैं।