राजीव रंजन।
10 मार्च का दिन भारतीय जनता पार्टी के लिए ऐतिहासिक रहा, वहीं आम आदमी पार्टी (आप) के लिए भी यह दिन जबर्दस्त रहा। गुरुवार को आए पांच राज्यों के चुनावी नतीजों में भाजपा ने चार राज्यों- उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में सत्ता बरकरार रखते हुए अपनी मजबूती को प्रदर्शित किया, तो आम आदमी पार्टी (आप) ने पंजाब में प्रचंड बहुमत हासिल कर पहली बार किसी पूर्ण राज्य में सत्तासीन होने का सपना साकार किया।
उत्तर प्रदेश में जोगीरा सा रा रा रा
उत्तर प्रदेश में किसी पार्टी ने 37 साल बाद पूर्ण बहुमत से वापसी करने में सफलता पाई है। मोदी और योगी की युगलबंदी ने उत्तर प्रदेश में अपना जादू दिखा दिया और विरोधियों की एक नहीं चलने दी। भाजपा गठबंधन ने 273 सीटों के साथ दो-तिहाई बहुमत हासिल किया। उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में पांच साल सरकार चलाने के बाद दो-तिहाई बहुमत से वापसी करना चमत्कार से कम नहीं है।
पिछले कुछ महीनों में उत्तर प्रदेश में दो जगहें बहुत चर्चा में रही थीं- हाथरस और लखीमपुर खीरी। हाथरस में एक दलित बच्ची के रेप और हत्या के मामले में विपक्षी दलों ने खूब राजनीति की, लेकिन इस सुरक्षित (अ.जा.) सीट पर भाजपा ने एक लाख मतों से भी ज्यादा के अंतर से जीत हासिल की। वहीं लखीमपुर खीरी जिले का सभी आठ सीटों पर भाजपा ने अपना परचम लहराया, जहां किसान आंदोलन का काफी असर बताया जा रहा था। प्रधानमंत्री की संसदीय सीट वाराणसी की सभी विधानसभा सीटों पर भाजपा और सहयोगी दलों ने जीत हासिल की, तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जनपद गोरखपुर की सभी नौ सीटों पर भाजपा गठबंधन ने परचम लहराया।
उत्तराखंड: मोदी मैजिक और मुख्यमंत्री दावेदारों की फजीहत
चुनावी विश्लेषक, ओपिनियन पोल और एक्जिट पोल सभी यही कह रहे थे कि बहुत कांटे का मुकाबला है। ऊंट किसी करवट बैठ सकता है। लेकिन चुनावी नतीजे कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं। भाजपा ने दो-तिहाई बहुमत हासिल किया और राज्य के 22 सालों के इतिहास में लगातार दूसरी बार सत्ता में आने का करिश्मा कर दिखाया। इसका अनुमान किसी को नहीं था। खासकर जब पार्टी ने अपने दो मुख्यमंत्रियों- त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत को बीच में ही हटा दिया था। निस्संदेह उत्तराखंड की जनता प्रदेश भाजपा से नाराज थी, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर उसके मन में एक भरोसा था, जिसका असर स्पष्ट रूप से नतीजों पर देखने को मिला। अगर मोदी मैजिक नहीं होता, तो मुख्यमंत्री पुष्कर धामी की हार के बावजूद भाजपा को दो-तिहाई बहुमत शायद ही मिल पाता।
सिर्फ धामी ही नहीं हारे। कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार और पूर्व मुख्यमंत्री को तो लालकुआं विधानसभा सीट से करारी हार का सामना करना पड़ा। उन्हें भाजपा के मोहन सिंह बिष्ट ने 18,000 से ज्यादा वोटों से हराया। दोनों के बीच 20 फीसदी मतों का फासला है। यहां बड़े मंसूबे लेकर मैदान में उतरी आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री प्रत्याशी कर्नल अजय कोठियाल भी गंगोत्री से चुनाव हार गए। वे तीसरे नंबर पर रहे। उत्तराखंड में भाजपा के वोटो में 2.2 प्रतिशत की कमी आई और कांग्रेस के मत प्रतिशत में थोड़ी वृद्धि हुई, लेकिन कांग्रेस के मतों में ये मामूली वृद्धि उसे सत्ता के आसपास भी नहीं पहुंचा पाई।
दिग्गजों के पतन का गवाह बना पंजाब
पंजाब में आम आदमी पार्टी की प्रचंड जीत दिल्ली में उसकी जीत की याद दिलाती है। जबसे पंजाब विधानसभा 117 सीटों की (1977 से) हुई है, तब से लेकर अब तक किसी पार्टी ने इतनी बड़ी जीत हासिल नहीं की है। इन नतीजों से ऐसा लगता है कि पंजाब की जनता पुरानी पार्टियों से बुरी तरह ऊब चुकी थी। बेरोजगारी, ड्रग्स का लगातार बढ़ता कारोबार, कृषि क्षेत्र में लगातार गिरावट, इन सब बातों से पंजाब की जनता तरह त्रस्त हो चुकी थी। उसे किसी तीसरे विकल्प की तलाश थी और आम आदमी पार्टी उनका भरोसा जीतने में कामयाब रही। इसके वोटो में करीब 20 फीसदी की वृद्धि हुई है। कांग्रेस की कलह ने उसका काम थोड़ा और आसान कर दिया।
पंजाब की जनता ने बड़े-बड़े नामों का बजाय नए और अनजाने चेहरों को तरजीह दी। यही वजह है कि यहां दो पूर्व तथा एक वर्तमान मुख्यमंत्री चुनाव हारे और उन्हें हराने वालों का नाम ज्यादातर लोगों ने इससे पहले शायद ही सुना हो। पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिह पटियाला से बुरी तरह हारे। वह आप के अजीतपाल सिंह कोहली से करीब 20,000 वोटों से हारे। पूर्व मुख्यमंत्री और देश के सबसे उम्रदराज नेता प्रकाश सिंह बादल लांबी से ‘आप’ के ही गुरमीत सिंह खुदियान से 12,000 से ज्यादा मतों से हारे। मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी तो दोनों सीटें- चमकौर साहिब और भदौर से हारे। चन्नी को भदौड़ सीट से ‘आप’ प्रत्याशी लाभ सिंह उगोके 37 हजार से ज्यादा वोटों से हराया। वहीं चमकौर साहिब सीट से चन्नी ‘आप’ के चरणजीत सिंह से करीब 8 हजार वोटों से हारे।
पंजाब में भाजपा को उल्लेखनीय सफलता तो नहीं मिली, लेकिन उसके मत प्रतिशत में बढ़ोत्तरी हुई है। 2017 में जहां उसे 5.4 फीसदी वोट मिले थे, वहीं 2022 में उसे 6.6 फीसदी मत मिले हैं।
मणिपुर: भाजपा के वोट भी बढ़े और सीटें भी
पूर्वोत्तर में कुछ साल पहले तक भाजपा की जीत के बारे में शायद ही कोई सोच सकता था। सरकार बनाने की बात तो छोड़िए असम से ऊपर उसका कोई अस्तित्व भी नहीं था। लेकिन पार्टी ने अपना जनाधार उत्तर-पूर्व में बहुत बढ़ाया है। मणिपुर में पार्टी ने न सिर्फ सत्ता में वापसी की, बल्कि 60 में से 32 सीटें जीतकर अकेले दम पर बहुमत हासिल कर लिया। पिछली सरकार उसने यहां जोड़-तोड़ से बनाई थी, इस बार ऐसी नौबत नहीं आई। सीटों के मामले में यहां भाजपा 21 से बढ़कर 32 पर पहुंच गई। वहीं उसके मतों में 1.2 फीसदी की वृद्धि हुई। 2017 में उसे 36.3 प्रतिशत मत मिले थे, इस बार 37.5 प्रतिशत मत मिले हैं। मणिपुर में तो कांग्रेस से ज्यादा सीटें जदयू को मिली हैं।
गोवा में लगातार तीसरी बार भाजपा सरकार
दस साल की एंटी-इनकंबेंसी के बावजूद भाजपा अपनी सरकार बचाने में सफल रही। न सिर्फ सरकार बचाने में, बल्कि सीटें और वोट बढ़ाना में भी कामयाब रही। हालांकि चुनावी विश्लेषकों का मानना था कि यहां कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनेगी। भाजपा ने 2017 के 13 सीटों के मुकाबले 2022 में 20 सीटें जीती हैं। पार्टी को 2017 में 32.5 फीसदी मत मिले थे, इस बार 33.3 फीसदी मत मिले हैं। कांग्रेस का वोट प्रतिशत गिर कर 28.4 से 23.5 पहुंच गया है और उसकी सीटों की संख्या 17 से घटकर 11 हो गई है। आम आदमी पार्टी ने भी यहां दो सीटें जीतने में कामयाबी पाई है। तृणमूल का तो खाता भी नहीं खुल पाया। भाजपा से बगावत कर चुनाव लड़े मनोहर पर्रिकर के बेटे उत्पल पर्रिकर पणजी से न तो खुद जीत पाए, न ही भाजपा को हरा पाए। मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत भी हारते-हारते बचे। वे कई राउंड तक पीछे चल रहे थे, लेकिन अंत भला तो सब भला।
विलुप्त होती कांग्रेस
इन चुनावों में सभी राज्यों में भाजपा के वोट बढ़े, उत्तराखंड को छोड़कर। वहीं कांग्रेस के वोट सब जगह कम हुए, उत्तराखंड को छोड़कर। इन चुनावों में भाजपा काफी अच्छी स्थिति में रही, वहीं कांग्रेस हर जगह नुकसान में। उत्तर प्रदेश में उसे कोवल दो सीटें मिली हैं। वह विलुप्त होती जा रही है। कांग्रेस जितनी सीटें तो राजा भैया की उप-क्षेत्रीय पार्टी को मिली हैं। बसपा का हाल तो बेहद बुरा रहा। वह उत्तर प्रदेश में एक सीट पर सिमट गई है। इतना तो उसे पंजाब में मिल गया है। आप का प्रदर्शन पंजाब में तो अद्भुत रहा, लेकिन उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में खाता भी नहीं खुला। गोवा में भी दो सीटों से ही संतोष करना पड़ा, जहां वो 2017 में ही सत्ता में आने का दावे कर रही थी। बावजूद इसके, पंजाब की अभूतपूर्व जीत ने सारे मलाल धो दिए हैं। भाजपा के बाद सबसे ज्यादा फायदे में आप ही रही है।