(11 मार्च पर विशेष)
डॉ. शांता भारत संघ (डब्ल्यूआईए) चेन्नई द्वारा स्थापित कैंसर संस्थान की अध्यक्ष और कार्यकारी अध्यक्ष थीं, जिसे डब्ल्यूएचओ द्वारा देश में शीर्ष रैंकिंग कैंसर केंद्र के रूप में दर्जा दिया गया है। उनकी उपलब्धि को भुलाया नहीं जा सकता है। डॉ वी शांता के जन्म की बात की जाए, तो उनका जन्म 11 मार्च 1927 को मायलापुर, चेन्नई में भारत के एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता विश्वनाथन और बालापार्वती थे। उनके अपने दादा सर सीवी रमन और उनके चाचा डॉ सुब्रमण्यम चन्द्रशेखर थे। शांता बचपन से ही अपने दादाजी से प्रभावित रहीं। वह उनके मुख्य प्रेरणा स्रोत थे। वह हमेशा से जीवन में दूसरों के लिए कुछ करना चाहती थीं। उन्होंने नेशनल गर्ल्स हाई स्कूल में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की और उसके बाद से ही उन्होंने चिकित्सा के पेशे में आने का दृढ़ संकल्प किया। उन्होंने वर्ष 1943 में इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की।
उस दौर में जब लड़कियों को बहुत अधिक स्कूल नहीं भेजा जाता था। शांता एक बौद्धिक परिवार से थीं और उन्हें पढ़ने के लिए विशेष रूप से भेजा जाता था। शांता ने इसलिए शुरू से ही अपने करियर के बारे में ठान लिया था कि वह कुछ अलग बनेंगी। ऐसे में उनकी जब मुलाकात लेडी डफरिन और डॉ मुथुलक्ष्मी रेड्डी से हुई और इन्होंने उनके जीवन को काफी प्रभावित किया और इनकी वजह से ही चिकित्सा के क्षेत्र में उन्होंने अपना करियर बनाने का निर्णय लिया। गौरतलब है कि उन्होंने 1949 में एमबीबीएस के साथ स्नातक की उपाधि प्राप्त की। वर्ष 1952 में और 1955 में प्रसूति एवं स्त्री रोग में उन्होंने एमडी किया। बाद में उन्हें टोरंटो में ऑन्कोलॉजी और यूके में बोन मैरो ट्रांसप्लांट में खुद का प्रशिक्षण किया।
डॉ. शांता को भारत की ऐसी महिलाओं की फेहरिस्त में रखा जाता है जिन्होंने चिकित्सा के जरिये सामाजिक क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। उन्होंने एक ऐसा कैंसर इंस्टीट्यूट बनवाया, जहां जो लोग इलाज का पैसा नहीं दे सकते हैं उन्हें मुफ्त में इलाज मुहैया करवाया जाता है। डॉ. शांता को 2005 में रेमन मैग्सेसे और 2015 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। 19 जनवरी 2021 में 93 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया।(एएमएपी)