27 दिसंबर, 2022 को काठमांडो-केरुंग रेलवे का विस्तृत अध्ययन करने के लिए एक चीनी विशेषज्ञ टीम नेपाल पहुंची। यह रेलवे नेपाल में चीन के बीआरआई के तहत नौ विकास परियोजनाओं में से एक है। हालांकि काठमांडो के विशेषज्ञ और अर्थशास्त्री चीनी बीआरआई पर चिंता जता रहे हैं, क्योंकि बड़े पैमाने पर परियोजनाओं के कार्यान्वयन से नेपाल भी श्रीलंका की तरह चीनी कर्ज के जाल में फंस सकता है। यदि ऐसा हुआ तो लंबे समय में नेपाल की संप्रभुता को कमजोर हो सकती है।
नेपाल की 36 हेक्टेयर भूमि पर चीनी कब्जा
हाल ही में, मीडिया ने बताया कि नेपाल की उत्तरी सीमा पर चीन की सलामी-स्लाइस रणनीति के परिणामस्वरूप चीन द्वारा उत्तरी सीमा के 10 स्थानों पर नेपाल की 36 हेक्टेयर भूमि पर कब्जा कर लिया गया है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी सर्वे दस्तावेज के मुताबिक, चीन ने उत्तरी सीमा पर 10 जगहों पर नेपाल की 36 हेक्टेयर जमीन पर कब्जा कर लिया। इसी तरह, गृह मंत्रालय द्वारा किए गए अध्ययन ने निष्कर्ष निकाला है कि नेपाल की राज्य नीति में सीमा के मुद्दों को शामिल करना आवश्यक है।
शी की कठोर नीतियों से अमीर चीन देश छोड़ने को मजबूर
चीन में कोरोना के चलते शी जिनपिंग सरकार की कठोर नीतियां देश के व्यापारिक समुदाय के लिए चिंता का कारण बन गई हैं। उन्हें बेहतर जीवन जीने के लिए देश छोड़ने को मजबूर होना पड़ रहा है। गत दो वर्षों के भीतर चीन में प्रौद्योगिकी, रियल एस्टेट और शिक्षा जैसे उद्योगों पर जिनपिंग सरकार की कठोर नीतियों ने भारी चोट पहुंचाई है, जिसके चलते देश की धनी आबादी भयभीत है। पिछले साल अक्टूबर में शी जिनपिंग द्वारा तीसरा कार्यकाल शुरू करने के बाद उनकी नीतियां ज्यादा सख्त हुई हैं।
न्यू वर्ल्ड वेल्थ की रिपोर्ट के अनुसार, देश में लगभग 10,800 अमीर लोगों ने 2022 में अपना देश छोड़ा है। 2019 के बाद यह आंकड़ा सबसे अधिक है। वहीं, इस मामले में चीन, रूस के बाद दूसरे स्थान पर पहुंच गया है। इसके अलावा, एक सप्ताह पहले की तुलना में चीन के फिर से खुलने के बाद अप्रवासन में वृद्धि हुई है।
चीन में घटा निर्यात
पिछले साल अक्तूबर के आर्थिक आंकड़ों में बताया गया था कि चीन में निर्यात कम हो गया है। देश की मुद्रास्फीति धीमी हो गई है। रियल स्टेट बाजार में भी गिरावट और बढ़ गई है। इसके अलावा, अप्रैल-मई में खुदरा बिक्री पहली बार नीचे चली गई। कड़े लॉकडाउन के बीच, देश में कठिनाइयों व अनिश्चितताओं के कारण चीन की विदेशी फर्मों को भी बाजारों में पैर जमाने के लिए संघर्ष करना पड़ा। (एएमएपी)