-विवेक रंजन अग्निहोत्री, फिल्म निर्देशक ।
सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु… आत्महत्या या कुछ और? जैसे जैसे इस मामले में केंद्रीय एजेंसियों की जाँच रफ्तार पकड़ रही है नए नए किरदार, नए नए खुलासे और चौंकाने वाली बातें सामने आ रही हैं। इतना तो तय है कि यह सीधा सपाट सामान्य आत्महत्या का मामला नहीं है जैसा कि पहले दिन से मुंबई पुलिस मानकर चल रही थी। आखिरकार तमाम तड़क-भड़क और चकाचौंध के पीछे बॉलीवुड को कंट्रोल करने वाले काले सच की परतें उघड़ने लगी हैं और सामने आ रही हैं ड्रग्स, अंडरवर्ल्ड और नेपोटिज्म यानी भाई-भतीजावाद या कुनबापरस्ती की खतरनाक साजिशें।
यह लड़ाई केवल सुशांत को न्याय दिलाने की नहीं है। आज हम वक्त के एक ऐसे मुकाम पर खड़े हैं जहां बहुत बड़ा गैंग और माफिया एक्सपोज होने जा रहा है। और जब यह स्थिति आई है तो एक पूरी की पूरी पीआर मशीनरी उन गिरोहों के बचाव में जुट गई है। रिया चक्रवर्ती (सुशांत की गर्लफ्रेंड) तो केवल एक चेहरा है। इन लोगों ने अपने फ्रेंडली जर्नलिस्ट (अनुकूल पत्रकार) को इंटरव्यू देकर लीपापोती करने यानी काले को उजला दिखाने की कोशिश की है।
ड्रग माफिया के रहमो-करम पर युवाओं का करियर
पिछले आठ दस सालों में देखें तो नशे के कई केमिकल्स को सिनेमा के परदे पर और परदे से बाहर, दोनों तरह से, एक सामान्य चलन के तौर पर दिखाने का प्रयास किया गया। इसमें कोकीन तो खैर अब बच्चों की चीज हो गई है, उससे भी बड़ी बड़ी चीजें आ चुकी हैं। अगर आप ध्यान से देखें तो लगभग इसी समय से बॉलीवुड में भारत विरोधी, हिंदू विरोधी- एक एंटी इंडिया कल्चर एक्टिविटी चालू हुई। इसे पूरी तरह अपने हात में ले रखा है ड्रग माफिया ने।
बॉलीवुड में अब सिर्फ ‘डी गैंग’ नहीं है बल्कि ‘पी गैंग’ (पॉलिटिकल गैंग) भी इसमें शामिल है। इसमें राजनीति के लोग, कॉरपोरेट के लोग, कुछ अन्य बहुत प्रभावशाली लोग और मीडिया के कई ‘फ्रेडली जर्नलिस्ट’ भी संलिप्त हैं। यह हर तरह की एय्याशी या व्यभिचार का गढ़ सा बन गया है। जब तक नए लड़के लड़कियां इस माफिया में डीलर के रूप में, नशे के लती के रूप में या फिर किसी और तरह से नहीं जुड़ते, उनका करियर आगे नहीं बढ़ता। एक बात ध्यान देने वाली है कि पहले हमारी फिल्म इंडस्ट्री में जितने भी सुपर स्टार हुए हैं वो हर किसी के लिए काम करते थे, हर डायरेक्टर के लिए काम करते थे। लेकिन आज क्या हालत है?
दो-तीन बैनर की ही फिल्में करते हैं बड़े स्टार
बड़े-बड़े स्टार अभिनेता या अभिनेत्री गिने चुने दो-तीन लोगों या बैनर के लिए ही काम करते हैं। उनके बीच टैलेंट और क्रिएटिविटी के अलावा भी एक अलग तरह का रिश्ता है। दरअसल एक्टिंग और क्रिएटिविटी तो 20 फीसदी से भी कम रह गई है, 80 फीसदी से अधिक उनमें अलग प्रकार की रिलेशनशिप है। ऐसा क्यों है कि कुछ अभिनेता या अभिनेत्रियां हर समय भारत विरोधी, अर्बन नक्सल ताकतों को ही सपोर्ट करते हैं… चाहे वह सीएए का मामला हो, कश्मीर का मामला हो या टुकड़े टुकड़े गैंग का- वे हमेशा भारत के खिलाफ काम करने वाले गैंग्स के समर्थन में ही खड़े पाये जाते हैं।
ऐसा क्यों है कि अपने पूरे करियर में वे भारत के पक्ष में हुए किसी काम या फैसले के साथ खड़े नहीं होते। इस पूरे मामले में ‘डी’ गैंग के साथ ही ‘पी’ यानी पॉलिटिकल गैंग और व्हाइट कॉलर गैंग भी शामिल है।
तब डी गैंग का सिक्का चलता था
वो 80 और 90 दशक का जमाना था – जब बॉलीवुड में एक फोन आता था डी गैंग का- वह फिरौती लेता था, अपनी पसंद से स्टारकास्ट कराता था, अपनी तरह से फिल्में बनवाता था। अब डी गैंग ड्रग्स के जरिये स्टार्स को अपने ऊपर डिपेंडेंट करता है। सुशांत सिंह राजपूत एक जहीन अभिनेता और शानदार इंसान… इंजीनियरिंग करके इंडस्ट्री में आया था। लेकिन उसके दिमाग को नशे का आदी बनाकर अपाहिज कर दिया गया। लोगों के मन में सवाल हैं कि क्या पहले की तरह आज भी दाऊद गैंग यानी डी गैंग इस हद तक बॉलीवुड में काम कर रहा है।
सुशांत सिंह राजपूत को मैं अच्छी तरह जानता था। एक फ्रेंडली जर्नलिस्ट के साथ रिया चक्रवर्ती का जो लंबा चौड़ा इंटरव्यू प्लांट किया गया है उसमें रिया ने दो ऐसी चीजें
अत्यंत चतुराई से जोड़ी हैं जो उनके मामले को मजबूत बनाएं और लोगों को सब उजला उजला दिखे। उन्होंने डॉ. हरीश शेट्टी का नाम लिया है। डॉ. हरीश शेट्टी को मैं बहुत अच्छे से जानता हूं। भारत की साइकेट्री की दुनिया में अगर कोई सबसे ज्यादा इंटेग्रिटी, एथिक्स और रिस्पेक्ट वाले व्यक्ति हैं जिन्होंने साइकेट्री के क्षेत्र में बहुत महान काम किए हैं तो वह डॉ. हरीश शेट्टी हैं। मैं अपने खून से लिखने को तैयार हूं कि डॉ. हरीश शेट्टी कभी भी किसी दूसरे आदमी को अपने पेशेंट की डायग्नोसिस नहीं बताएंगे। मैं अपनी यह बात दुनिया की किसी भी अदालत के सामने डंके की चोट पर कहने को तैयार हूं।
डिप्रेशन की थ्योरी
रिया चक्रवर्ती ने इंटरव्यू में सुशांत को दी जाने वाली मोडाफिनिल दवा का नाम लिया है, वह क्लौस्ट्रफोबिया की बात कर रही हैं। यानी जिसमें व्यक्ति को ऊंचाई पर जाने से या विमान यात्रा के दौरान डर लगता है। सुशांत मेरा बहुत अच्छा दोस्त था। पिछले ही साल हम लोग गोवा विमान से गए थे। लौटते समय फ्लाइट में अगल बगल ही साथ बैठे थे। क्लौस्ट्रफोबिया या फियर आफ हाईट की वजह से अगर फ्लाइट में कोई नर्वस होता है तो वह नर्वसनेस दिखती है। मेरे परिवार में कुछ लोग हैं जो जब मेरे साथ विमान में यात्रा करते हैं तो हाथ पकड़ लेते हैं, नर्वस हो जाते हैं, चुप रहते हैं, आंखें बंद कर लेते हैं। लेकिन मैं और सुशांत विमान में जोक सुनाते रहे, फिजिक्स की- क्वांटम फिजिक्स की बात करते रहे, फिलास्फी की बात करते रहे… कोई ऐसा आदमी जिसे फ्लाइट में डर लगता हो भला जोक्स इंजॉय क्यों करेगा? ऐसी बातें प्लांट की जा रही हैं। जान बूझकर सुशांत के बारे में भ्रांति फैलाने का प्रयास हो रहा है। ये सही नहीं हैं।
विमान उड़ाता वीडियो
सुशांत सिंह राजपूत ने एक वीडियो ट्विटर पर शेयर किया था जिसे उनकी पूर्व गर्लफ्रेंड अंकिता लोखंडे ने रीट्वीट किया। इसमें सुशांत कॉकपिट में बैठे हुए विमान उड़ा रहे हैं। ऐसे में अगर कोई कहता है कि सुशांत को ऊंचाई पर जाने में, फ्लाई करने में डर लगता था, वह क्लौस्ट्रफोबिक था- तो यह सरासर झूठ ही माना जाएगा। यह बात रिया चक्रवर्ती ने कही है तो या तो वह मिसलीड (गुमराह) कर रही हैं, या फिर वह सुशांत को जानती ही नहीं थीं।
Is this #claustrophobia?
You always wanted to fly and you did it and we all are proud of you 😊 pic.twitter.com/5gc2sgyaEK— Ankita lokhande (@anky1912) August 27, 2020
मेरे लिए रिया चक्रवर्ती या उनका इंटरव्यू जरा भी महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि वह सिखा पढ़ाकर लिया गया इंटरव्यू (ट्यूटर इंटरव्यू) है। इसमें कुछ खास चीजें जान बूझकर प्लांट की गई हैं। इंटरव्यू में फ्रेंडली जर्नलिस्ट ने पहले ही इंट्रोडक्शन देते हुए स्थापित कर दिया- ‘सुशांत डिप्रेस्ड था, बाईपोलर था, उसको ये-ये समस्याएं थीं’… फिर रिया चक्रवर्ती से सवाल पूछा- ‘अब बताइए आपको क्या कहना है?’ इससे साफ लगता है कि यह पूरा इंटरव्यू प्लांटेड था। यह वैसे ही है जैसे कोई कहे कि यह आदमी अपनी पत्नी को बहुत मारता था, फिर पूछे- ‘अच्छा तुम यह बताओ कि आजकल मारते हो या नहीं मारते हो?’ यह एक ट्रिक होती है इनवेस्टीगेशन को डीरेल या जाँच को प्रभावित करने की। ये फ्रेंडली जर्नलिस्ट यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि साइकोलॉजिकल आटोप्सी (मनोवैज्ञानिक शव परीक्षा) क्या होती है क्योंकि इनके मित्र चारू दत्त देशपांडे जो खुद एक पत्रकार थे, उनकी मृत्यु के मामले में साइकोलॉजिकल आटोप्सी हुई थी। साइकोलॉजिकल आटोप्सी बहुत अच्छा तरीका है यह पता करने का कि मृतक डिप्रेस्ड था या नहीं था और उसने डिप्रेशन के कारण आत्महत्या की या फिर कुछ और बात है। लेकिन ये लोग चाहते हैं कि सुशांत के मामले में जितना विलंब हो उतना अच्छा है। जितना समय बीतता जाएगा साइकोलॉजिकल आटोप्सी उतना कमजोर होती जाएगी।
मैं यह बात खुलेआम बोल रहा हूं। मुंबई पुलिस चाहे तो इसके लिए मुझे इंवेस्टीगेट भी कर सकती है। यह मैं किसी पर आरोप नहीं लगा रहा हूं बल्कि वह सत्य बयान कर रहा हूं जो मेरे साथ घटा है। सवाल यह है कि जिस जिसने सच बोलने की कोशिश की, उसे चुप कराने की कोशिश की गई है। मैं एक फिल्म निर्देशक हूं, एडवरटाइजिंग में रहा हूं, मैंने जिंदगी देखी है, मैं आदमी को पहचानता हूं। मैं पहला डायरेक्टर था जिसने अपनी हेट स्टोरी नाम की फिल्म में सुशांत को साइन किया था। हालांकि एकता जी ने उसे छोड़ा नहीं, वह एक अलग पॉलिटिक्स है उसमें नहीं घुसेंगे।
सच को चुप कराने की कोशिश
जिस दिन सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु की खबर आई और फौरन ही कह दिया गया कि उसने आत्महत्या की है, उसी समय मैंने ट्वीट किया था कि ‘ये कौन लोग हैं जो कुछ छिपाने की कोशिश कर रहे हैं।’ शायद मैं पहला व्यक्ति था जिसने यह बात सबसे पहले सार्वजनिक तौर पर कही। महाराष्ट्र सरकार ने वहां के सबसे बड़े पुलिस अफसरों को मेरे घर पर भेजा। मैं और मेरी पत्नी अपनी बिल्डिंग से बाहर डेढ़ घंटा उनसे बात करते रहे। डिप्टी पुलिस कमिश्नर ने बताया कि मंत्री जी उन पर दबाव डाल रहे हैं कि किसी प्रकार मुझे चुप कराया जाए और मैं आगे इस मामले में ट्वीट न करूं।
मैं यह बात खुलेआम बोल रहा हूं। मुंबई पुलिस चाहे तो इसके लिए मुझे इंवेस्टीगेट भी कर सकती है। यह मैं किसी पर आरोप नहीं लगा रहा हूं बल्कि वह सत्य बयान कर रहा हूं जो मेरे साथ घटा है। सवाल यह है कि जिस जिसने सच बोलने की कोशिश की, उसे चुप कराने की कोशिश की गई है। मैं एक फिल्म निर्देशक हूं, एडवरटाइजिंग में रहा हूं, मैंने जिंदगी देखी है, मैं आदमी को पहचानता हूं। मैं पहला डायरेक्टर था जिसने अपनी हेट स्टोरी नाम की फिल्म में सुशांत को साइन किया था। हालांकि एकता जी ने उसे छोड़ा नहीं, वह एक अलग पॉलिटिक्स है उसमें नहीं घुसेंगे।
मैंने सुशांत के साथ वक्त गुजारा। मैं उसको जानता था। एक आदमी को देखकर समझ में आता है कि क्या यह इस लेवल तक जा सकता है कि आत्महत्या कर ले। लगातार डिप्रेशन-डिप्रेशन बोलकर क्या एक आदमी की चरित्र हत्या नहीं की जा रही है। किसने प्रूव किया कि वह डिप्रेस्ड था? क्या डॉ. हरीश शेट्टी- जिनका नाम रिया चक्रवर्ती ने अपने इंटरव्यू में लिया- जो सुशांत का इलाज कर रहे थे उन्होंने यह बात कही है। किसने कहा यह… रिया चक्रवर्ती, उनके मेन्टोर और फ्रेंडली जर्नलिस्ट, मीडिया और बॉलीवुड के कुछ लोगों के अलावा? आज जब मैं और कंगना जैसे लोग अपनी ही इंडस्ट्री के लोगों के खिलाफ बोल रहे हैं तो आप कल्पना नहीं कर सकते कि हम कितनी धमकियां और खतरा झेल रहे हैं।
फिल्मकार नहीं, अपराधियों का बोलबाला
फिल्म इंडस्ट्री को आज क्रिएटिव लोग, फिल्ममेकर्स नहीं चला रहे हैं। अच्छे फिल्मकार जिनका खूब नाम हुआ, ढेर अवार्ड मिले- वो सब आज घर में बैठे हैं। आज फिल्म इंडस्ट्री को चलाने वाले वे लोग हैं जो क्रिमेनेलिटी में संलिप्त हैं। मैंने बॉलीवुड के दस खतरनाक गैंग्स को लेकर एक रिसर्च आधारित वीडियो बनाया था जो काफी वायरल हुआ। उसे एक रिसर्च एजेंसी के साथ मिलकर बनाया था। फिल्म इंडस्ट्री में आज की तारीख में इतनी क्रिमिनेलिटी है जो गैंग बन गई है… वह किसी को खाने नहीं देती है और तमाम झूठे प्रचार में शामिल है।
सवाल यह भी है कि सुशांत सिंह राजपूत की जान किसी को क्यों लेनी पड़ गई। उसे ऐसा क्या पता था या उसने किसी का क्या बिगाड़ लिया था कि रिया चक्रवर्ती उससे प्रेम करती हैं और साल भर के बाद वह शख्स फंदे पर झूलता नजर आता है। किसी का इसमें क्या मकसद हो सकता है।
यह जान पाना आसान नहीं तो असंभव भी नहीं है। एक शक्तिशाली नेपोटिज्म के खतरनाक खेल को समझिए। नेपोटिज्म का मतलब उतना ही नहीं है जितना लोग आमतौर पर समझते हैं कि एक बाप अपने बेटे को काम दे रहा है या बेटी को काम दे रहा है। नेपोटिज्म का असली मतलब यह है कि अगर आप इन लोगों के ईगो, पावर सेंटर के सामने समर्पण नहीं करते हैं तो ये आपको पूरी तरह से बर्बाद कर देंगे। यहां सरेंडर का मतलब सिर्फ किसी के ईगो को संतुष्ट करने से नहीं है। उसका मतलब है कि जो नए लड़के लड़कियां काम मांगने आते है वो किसी तरह से ड्रग रैकेट में शामिल हों। सेक्स रैकेट में शामिल हों।
कृपया मेरी बात को गलत न लें इस इंडस्ट्री में सेक्स रैकेट का मतलब सिर्फ प्रॉस्टीट्यूशन नहीं है। यह बिल्कुल अलग लेवल का गेम है जिसके बारे में आप सोच भी नहीं सकते। मैं इस पर अभी ज्यादा नहीं बोलना चाहता। इसमें एक बहुत बड़ा फाइनेंसियल एंगिल है। बहुत सारे लोग इसमें शामिल हैं। उन्होंने एक छोटी सी कोटरी (मंडली) बना रखी है। जैसा कुछ साल पहले कांग्रेस-शासन के दौरान उनके बेनेफिशरीज (लाभार्थियों) ने अपना एक छोटा सा छतरपुर फार्म हाउस क्लब बना रखा था। वहां ड्रग्स से लेकर हर तरह की करतूतें चलती थीं और वही लोग भारत के संसाधनों पर कब्जा किए रहते थे। आज इन लोगों (गैंग्स) ने भारत के नैरेटिव, देश की सॉफ्ट पावर बॉलीवुड को पूरी तरह अपने कब्जे में कर लिया है। और ये अपने हाथ से उसे छूटने नहीं देना चाहते।