याद रखें, ये आजादी आपको स्विगी या ज़ोमैटो ने डिलीवर नहीं की है।
रमेश शर्मा।
कोई कल्पना कर सकता है ऐसे मानसिक दृढ़ संकल्प की कि पुलिस की हजार प्रताड़नाओं के बाद भले प्राण चले जायें पर संकल्प टस से मस न हो। ऐसे ही संकल्पवान क्राँतिकारी थे महावीर सिंह राठौर (16 सितम्बर 1904 – 17 मई 1933)। जिनसे क्राँतिकारियों का विवरण पूछने के लिये महावीर सिंह राठौर को प्रताड़ित किया गया। तब उन्होंने क्राँतिकारियों को प्रताड़ित किये जाने के विरुद्ध अनशन किया। फिर भी प्रताड़ना बंद न हुई और अंततः 29 वर्ष की आयु में सेलुलर जेल में उनका बलिदान हो गया।
वे किशोर वय से स्वतंत्रता संग्राम में सहभागी बने थे। 1921 में जब असहयोग आँदोलन आरंभ हुआ तब वे सत्रह साल के भी पूरे नहीं हुये थे। उन्होंने अपनी आयु के किशोरों और बच्चों को एकत्र कर प्रभात फेरी निकाली। झंडा लेकर जुलूस निकाला अंग्रेजों के विरुद्ध नारे लगाये। पुलिस ने पकड़कर दस बेतों की सजा दी और छोड़ दिया था। पर बेंत प्रहार से उनका संकल्प और मजबूत हुआ। वे स्वाधीनता संग्राम की राह पर चल निकले।
ऐसे दृढ़ निश्चयी संकल्पवान क्राँतिकारी महावीर सिंह राठौर का जन्म 16 सितम्बर 1904 को उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले की शाहपुर तहसील के अंतर्गत ग्राम तहला में हुआ था। पिता देवी सिंह एक संपन्न और प्रभावशाली परिवार से थे। उनके पूर्वजों की जमींदारी भी रही थी। परिवार आर्य समाज से जुड़ा हुआ था। उन्हें पढ़ाई के लिए आर्य समाज से संबंधित डीएवी कॉलेज भेज दिया गया। यहीं उनके विचारों में ओज एवं दृढ़ता आई। 1921 के असहयोग आँदोलन में सहभागी होने से वे काफी चर्चित हो गये थे। इसलिए पढ़ाई के दौरान ही क्राँतिकारी गतिविधियों से उनका संपर्क सहज ही बन गया। वे नौजवान भारत सभा के सदस्य बन गये।
इस संस्था के माध्यम से वे लाहौर के क्राँतिकारियों के भी संपर्क में आये। इनमें सरदार भगतसिंह और दुर्गा भाभी भी शामिल थीं। 1922 की एक घटना है। तब वे मुश्किल से अठारह वर्ष के थे। असहयोग आँदोलन से निपटने के लिये अंग्रेज जगह जगह बैठकें कर रहे थे। कासगंज में अंग्रेज कलेक्टर ने अपने विश्वस्त लोगों की बैठक बुलाई। यह बैठक सभी कर्मचारी और अधिकारियों के परिवारों को राजभक्ति प्रदर्शित करने के लिये बुलाई गई थी। इस बैठक में महावीर सिंह और उनका परिवार भी था। योजनापूर्वक वक्ता अंग्रेजी शासन की प्रशंसा कर रहे थे। इसी बीच महावीर सिंह ने उठकर वंदेमातरम और महात्मा गाँधी की जय का नारा लगा दिया। कलेक्टर नाराज हुआ। बंदी बनाये गये। परिवारजनों की प्रार्थना के बाद मुक्त किये गये।
1929 में दिल्ली की असेंबली बम काँड और सांडर्स वध काँड मामलों में सुप्रसिद्ध क्राँतिकारी सिंह, राजगुरु सुखदेव, बटुकेश्वर दत्त के साथ इन्हें भी सह आरोपी बनाया गया। मुकदमे की सुनवाई लाहौर में हुई। महावीर सिंह को आजीवन कारावास का दंड मिला। पहले उन्हें पंजाब की जेल में रखा। 1933 में अंडमान की सेल्यूलर जेल में भेजा गया। यह जेल बंदियों को यातना देने के लिये “काला पानी” के नाम से कुख्यात थी। इस जेल में राजनैतिक बंदियों के साथ हो रहे अत्याचार के विरुद्ध महावीर सिंह ने भूख हड़ताल की। जेलर ने भूख हड़ताल तुड़वाने के लिये उनकी प्रताड़ना आरंभ की। उनके मुंह में बलपूर्वक दूध डालने का भी प्रयास हुआ। पर महावीर सिंह अडिग रहे। वह 17 मई 1933 का दिन था। अनशन और प्रताड़ना के चलते। उनके प्राणों ने शरीर छोड़ दिया। उनका बलिदान हुआ तो उनका निर्जीव शरीर समुद्र में फेक दिया गया। इस प्रकार क्राँतिकारी महावीर सिंह के प्राणों का 28 वर्ष की आयु में बलिदान हुआ। इस घटना के विरोध में सेलुलर जेल के तीस अन्य राजनैतिक बंदियों ने भूख हड़ताल की। इसमें मोहित मोइत्रा और मोहन किशोर नामदास का भी बलिदान हुआ। उनके सम्मान में सेललुर जेल के सामने एक मूर्ति स्थापित की गई।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)