#santoshtiwari डॉ. संतोष कुमार तिवारी।

भारत का सर्वोच्च शौर्य सैन्य अलंकरण परमवीर चक्र दुश्मनों की उपस्थिति में उच्च कोटि की शूरवीरता एवं त्याग के लिए प्रदान दिया जाता है। ज्यादातर स्थितियों में यह सम्मान मरणोपरांत दिया गया है। परमवीर चक्र हासिल करने वाले सूबेदार मेजर बन्ना सिंह (बाना सिंह) ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जो कारगिल युद्ध तक जीवित थे। सूबेदार मेजर बाना सिंह जम्मू कश्मीर लाइट इनफेन्ट्री की आठवीं रेजीमेंट में कार्यरत थे। इस पुरस्कार की स्थापना 26 जनवरी 1950 को की गयी थी जब भारत गणराज्य घोषित हुआ था। 20 जुलाई 1913 को स्विट्ज़रलैंड में जन्मी इवा योन्ने लिण्डा माडे-डे-मारोज़ के पिता हंगरी के थे व माँ रूसी थीं।

सावित्री बाई खानोलकर  (1913 – 1990) ने सर्वोच्च भारतीय सैनिक अलंकरण परमवीर चक्र का डिजाइन बनाया था। सावित्री बाई  का जन्म का नाम इवा योन्ने लिण्डा माडे-डे-मारोज़ था। वह भारतीय इतिहास के ऐसे व्यक्तियों में से हैं जिनका जन्म तो यूरोप में हुआ किंतु उन्होंने अपनी इच्छा से भारतीय संस्कृति को अपनाया।

विक्रम से  मुलाकात

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सावित्रीबाई अपने पति विक्रम खानोलकर के साथ

सावित्री बाई के पिता हंगरी के थे व माँ रूसी थीं। उनका जन्म 20 जुलाई 1913 को स्विट्ज़रलैंड में हुआ। इवा के जन्म के तुरन्त बाद इवा की माँ का देहान्त हो गया। उस समय उनके पिता जेनेवा में लीग ऑफ़ नेशन्स में पुस्तकालयाध्यक्ष थे। एक दिन जब वह अपने पिता तथा अन्य परिवारों के साथ रिवियेरा के समुद्रतट पर छुट्टी मना रही थी, उसके पिता ने उसका परिचय भारतीयों के एक समूह से करवाया जो सैंडहर्स्ट,  इंग्लैंड, से वहाँ छुट्टियाँ मनाने पहुँचा था। इस समूह में ब्रिटेन के सेन्डहर्स्ट मिलिटरी कॉलेज के एक भारतीय छात्र विक्रम खानोलकर भी थे। वे पहले भारतीय थे जिससे इवा का परिचय हुआ। उस समय वह 14 वर्ष की थीं। इवा ने विक्रम का पता लिया। विक्रम सैंडहर्स्ट लौट गए पर वे दोनों पत्रों के माध्यम से संपर्क में रहे। पढ़ाई पूरी करने के बाद विक्रम भारत लौटे ओर भारतीय सेना की 5/11सिख बटालियन से जुड़ गए। अब उनका नाम था कैप्टन विक्रम खानोलकर। उनकी सबसे पहली पोस्टिंग औरंगाबाद में हुई। इवा के साथ उनका पत्राचार अभी तक जारी था, एक दिन इवा भारत आ पहुँची।

 लखनऊ में शादी हुई

Param Vir Chakra': Who was that foreign woman, who designed India's highest  military honor

इवा ने भारत आते ही विक्रम को अपना निर्णय बता दिया कि वह उन्हीं से शादी करेगी। घर वालों के थोड़े विरोध के बाद सभी ने इवा को अपना लिया और 1932 में इवा और विक्रम का विवाह लखनऊ में सम्पन्न हुआ। उन दिनों विक्रम  की पोस्टिंग लखनऊ में थी। विवाह के बाद इवा ने नया नाम सावित्री बाई खानोलकर अपनाया।

भारतीय संस्कृति को अपनाया

विवाह के बाद सावित्री बाई ने पूर्ण रूप से भारतीय संस्कृति को अपना लिया, हिन्दू धर्म अपनाया, महाराष्ट्र के गाँव-देहात में पहने जाने वाली 9 गज़ की साड़ी पहनना शुरु कर दिया, शाकाहारी बनीं और 1-2 वर्ष में तो सावित्री बाई शुद्ध मराठी ओर हिन्दी भाषा बोलने लगीं, मानों उनका जन्म भारत में ही हुआ हो।

 रामकृष्ण मिशन से संपर्क

The Swiss-Indian Lady Who Designed Param Vir Chakra

कैप्टन विक्रम जब मेजर बने और उनका तबादला पटना हो गया तो सावित्री बाई के जीवन को एक नयी दिशा मिली, उन्होंने पटना विश्वविद्यालय में संस्कृत नाटक, वेदांत, उपनिषद और हिन्दू धर्म पर अध्ययन किया। इन विषयों पर उनकी पकड़ इतनी मज़बूत हो गयी कि वे स्वामी रामकृष्ण मिशन में इन विषयों पर प्रवचन देने लगीं। सावित्री बाई चित्रकला और पैन्सिल रेखाचित्र बनाने में भी माहिर थीं तथा भारत के पौराणिक प्रसंगों पर चित्र बनाना उनके प्रिय शौक थे। उन्होने पं. उदय शंकर (पंडित रविशंकर के बड़े भाई) से नृत्य भी सीखा। यानी वह एक आम भारतीय से ज्यादा भारतीय बन चुकी थीं।

अंग्रेजी में दो पुस्तकें लिखीं

 

Saints of Maharashtra: Khanolkar Savitribai: Books
 सेंटस ऑफ़ महाराष्ट्रा : यह पुस्तक सावित्रीबाई ने लिखी थी और इसे भारतीय विद्या भवन ने प्रकाशित किया था

उन्होंने अंग्रेज़ी में सेंट्स ऑफ़ महाराष्ट्र  एवं संस्कृत डिक्शनरी ऑफ़ नेम्स नामक दो पुस्तकें भी लिखीं।

मेजर विक्रम अब लेफ़्टिनेन्ट कर्नल बन चुके थे। भारत की आज़ादी के बाद में भारतीय सेना को भारत पाकिस्तान युद्ध में शहीद हुए बहादुर सैनिकों को सम्मनित करने के लिए पदक की आवश्यकता महसूस हुई। मेजर जनरल हीरा लाल अट्टल ने पदकों के नाम पसन्द कर लिये थे परमवीर चक्र, महावीर चक्र और वीर चक्र। बस अब उनके डिजाइन बनने की देर थी, मेजर जनरल अट्टल को इसके लिये सावित्री बाई सबसे योग्य लगीं। एक तो वे कलाकार थीं दूसरे उन्हें भारत की संस्कृति और पौराणिक प्रसंगों की अच्छी जानकारी थी। अट्टल ऐसा पदक चाहते थे जो भारतीय गौरव को प्रदर्शित करता हो। सावित्री बाई ने उन्हें  ऐसा पदक बना कर दिया जो भारतीय सैनिकों के त्याग और समर्पण को दर्शाता है।

पदक का डिजाइन कैसा हो

सावित्री बाई को पदक के डिजाइन के लिये इन्द्र का वज्र सबसे योग्य लगा क्योंकि वज्र महर्षि दधीचि की अस्थियों से बना था और इस वज्र के लिये महर्षि दधीची को अपने प्राणों तथा देह का त्याग करना पडा़ था। महर्षि दधीचि की अस्थियों से बने शस्त्र वज्र को धारण कर इन्द्र वज्रपाणी कहलाए ओर वृत्रासुर का संहार किया। परमवीर चक्र का पदक कांस्य धातु से 3.5 से.मी के व्यास का बनाया गया है और इसमें चारों ओर वज्र के चार चिह्न अंकित हैं। पदक के बीच का हिस्सा उभरा हुआ है और उसपर राष्ट्र का प्रतीक चिह्न उत्कीर्ण है। पदक के दूसरी ओर कमल का चिह्न है और हिन्दी व अंग्रेज़ी में परमवीर चक्र लिखा हुआ है।

किसको पहला परमवीर चक्र मिला

Major Somnath Sharma: The First Recipient Of The Param Vir Chakra & India's  Braveheart

संयोग से सबसे पहला सावित्री बाई की पुत्री के देवर मेजर सोमनाथ शर्मा को मरणोपरांत प्रदान किया गया, जो वीरता पूर्वक लड़ते हुए शहीद हुए थै। इस भारत पाकिस्तान युद्ध में मेजर सोमनाथ शर्मा की टुकड़ी ने श्रीनगर हवाई अड्डे तथा कश्मीर की रक्षा करते हुए 300 पकिस्तानी सैनिकों का सफ़ाया किया था जिसमें भारत के लगभग 22 सैनिक शहीद हुए थे। मेजर सोमनाथ शर्मा को उनकी शहादत के लगभग 3 वर्ष बाद 26 जनवरी 1950 को यह पदक प्रदान किया गया।

 जीवन का अंत

सावित्री बाई खानोलकर ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में समाजसेवा के अनेक काम किए। 1952 में मेजर जनरल विक्रम खानोलकर के देहांत हो जाने के बाद सावित्री बाई ने अपने जीवन को अध्यात्म की तरफ़ मोड लिया। वे दार्जिलिंग के राम कृष्ण मिशन में चली गयीं। अपने जीवन के अन्तिम वर्ष उन्होंने अपनी पुत्री मृणालिनी के साथ गुजारे।  1990 में 77 वर्ष की आयु में उनका देहान्त हो गया।

(लेखक झारखंड केन्द्रीय विश्वविद्यालय के सेवा निवृत्त प्रोफेसर हैं)