रमेश शर्मा।
भारत की स्वतंत्रता संघर्ष में असंख्य क्राँतिकारियों के नाम जन सामान्य से ओझल हो गये। ऐसे ही एक क्राँतिकारी थे रामकृष्ण खत्री (3 मार्च 1902 – 18 अक्टूबर 1996) जिन्हें इतिहास प्रसिद्ध काकोरी काँड में दस वर्ष का कठोर कारावास मिला। उन्होंने ही क्राँतिकारी संगठन हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ का मध्य प्रान्त और महाराष्ट्र में विस्तार किया था।
स्वतंत्रता के बाद राजनैतिक रूप से उपेक्षित रहे। लेकिन अपने 94 वर्ष की जीवन यात्रा में सतत सक्रिय रहे। आज यदि काकोरी रेल्वे स्टेशन और वहाँ बने स्मारक से वर्तमान पीढ़ी परिचित हो सकी है तो इसके लिये क्राँतिकारी रामकृष्ण खत्री ने अभियान चलाया था। राष्ट्र और समाजसेवा के लिये पूरे जीवन सक्रिय रहने वाले क्राँतिकारी रामकृष्ण खत्री का जन्म 3 मार्च 1902 को महाराष्ट्र प्राँत के बुलढाना जिला अंतर्गत चिखली गाँव में हुआ था। यह गांव बरार क्षेत्र में आता है। उनके पिता शिवलाल चोपड़ा भी समाज सेवा में थे और लोकमान्य तिलक के सामाजिक जाग्रति अभियान से जुड़े थे। अपने क्षेत्र गणेशोत्सव अभियान का समन्वय करते थे। माता कृष्णाबाई भारतीय संस्कृति एवं परंपराओं के प्रति समर्पित रहीं। यह परिवार तिलक जी के साथ आर्यसमाज से भी जुड़ा था। रामकृष्ण अपने बाल्यकाल में माता के साथ प्रवचनों में जाते थे और बड़े हुए तो पिता के साथ तिलकजी की गतिविधियों में सक्रिय हुये। पहले संतों के फिर तिलक जी व्याख्यानों ने उनपर बहुत प्रभाव डाला और उन्होंने समाज को कुरीतियों से मूक्तकर जाग्रति का अभियान छेड़ने का निर्णय लिया। उनका मानना था यदि समाज जाग्रत और संगठित नहीं हुआ तो कैसे स्वाधीनता संग्राम सफल होगा। इसके लिये वे संत समाज को माध्यम बनाने का संकल्प किया। इसके लिये उन्होंने साधु संतों पुरोहितों की एक संस्था गठित की। इस संस्था का नाम “उदासीन मण्डल” रखा। इस संस्था में युवाओं को शारीरिक प्रशिक्षण एवं ग्रहस्थ परिवारों को प्रवचनों के माध्यम से जाग्रति अभियान चलाया। इस संस्था के महन्त गोविन्द प्रकाश बनाये गये। संस्था प्रमुख के बारे में दो अलग अलग विवरण मिलते हैं। कहीं यह उल्लेख है कि संस्था प्रमुख रामकृष्ण जी ही थे और उन्हीं को इस संस्था में गोविन्द प्रकाश के नाम से जाना गया। जबकि एक विवरण में महंत गोविन्द प्रकाश उनके पारिवारिक गुरु थे। जो हो लेकिन इस संस्था ने पूरे बरार क्षेत्र में जाग्रति की युवा जुड़े और उनमें स्वत्व चेतना जागृत हुई।
स्थानीय स्तर पर संगठन सक्रिय हो जाने के बाद उन्होने देश के अन्य भागों में भी संस्था कि विस्तार करने का निर्णय लिया और यात्रा आरंभ की। अपने इसी अभियान के अंतर्गत वे कानपुर आये। यहाँ उनकी भेंट सुप्रसिद्ध क्राँतिकारी राम प्रसाद विस्मिल से हुई क्रान्तिकारी आँदोलन से जुड़ गये। उनकी कार्यशैली संगठन क्षमता से विस्मिल जी बहुत प्रभावित हुये और उन्होंने रामकृष्ण जी को क्राँतिकारी संगठन “हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन” से जोड़ लिया और मध्यप्राँत में संगठन विस्तार का दायित्व सौंपा। रामकृष्ण जी पूना आये। उन्होने पूना से नागपुर विदर्भ सहित पूरे मध्यप्राँत मे क्राँतिकारी आँदोलन से युवाओं को जोड़ने का अभियान चलाया।
क्राँतिकारी आँदोलन के लिये धन की आवश्यकता थी। इसके लिये सरकारी खजाना लूटने की योजना बनी। क्राँतिकारियों का मानना था कि यह धन भारत का है इसलिए इसे भारतीयों के हित में ही लगना चाहिए। इसके लिये देश के विभिन्न स्थानों में सरकारी खजाने पर अधिकार करने का अभियान चला। इसी योजना के अंतर्गत कानपुर के पास काकोरी स्टेशन पर इस खजाने को लूटने की योजना बनी। इसकी योजना क्राँतिकारी राम प्रसाद विस्मिल ने बनाई थी और देशभर से कुछ क्राँतिकारी बुलाये गये थे। 9 अगस्त 1925 को ट्रेन पर धावा बोला गया और क्रांतिकारियों ने 4,600 रुपये लूट लिये। इस घटना में एक रेलयात्री की मौत हो गई थी। घटना के बाद अंग्रेज सरकार ने देशभर में छापे मारे और क्राँतिकारी आँदोलन से जुड़े युवाओं को गिरफ्तार किया गया। देश के विभिन्न स्थानों से कुल चालीस क्राँतिकारी गिरफ़्तार हुये। रामकृष्ण खत्री को पूना में गिरफ्तार किया गया। उन्हें वहाँ से लखनऊ जेल लाया गया। क्राँतिकारियों पर मुकदमा चला। ग्यारह क्राँतिकारी सुबूत के अभाव में रिहा किये गये। शेष 29 क्राँतिकारियों में चार को फांसी दी गई। दो आजन्म कारावास के साथ कालापानी भेजे गये। अन्य 16 को 4 से 14 वर्ष के कारावास की सजा घोषित हुई। इनमें भी अधिकांश कालापानी भेजे गये। क्राँतिकारी रामकृष्ण जी दस साल की सजा के साथ कालापानी भेजा गया।
अपनी पूरी सजा काटकर जेल से रिहा हुये तो सबसे पहले उन्होंने उन परिवारों की खोज खबर ली जिनसे संबंधित क्राँतिकारी अभी जेल में थे। इनमें जो परिवार बहुत दयनीय स्थिति में थे उनकी सहायता प्रबंध में जुटे। इसके साथ क्राँतिकारी राजकुमार सिन्हा और योगेश चन्द्र चटर्जी की रिहाई में रामकृष्ण जी की भूमिका महत्वपूर्ण रही। इसके साथ ही अन्य सभी राजनीतिक कैदियों को जेल से छुड़ाने के लिये आन्दोलन आरंभ किया और उस समय के लगभग सभी प्रमूख नेताओं से भेंट की। इनमेंगाँधीजी पंडित जवाहरलाल नेहरू, डा मुँजे, डाक्टर हेडगेवार आदि प्रमुख थे। 1942 के भारत छोड़ो आँदोलन में भी उनकी सक्रिय भूमिका रही। वे पूना में गिरफ्तार हुये।
स्वतंत्रता के बाद आरंभिक काल में क्राँतिकारी आँदोलन को मान्यता नहीं सकी थी। उन्होंने देशभर की यात्रा की और क्राँतिकारी आँदोलन पर साहित्य रचना आरंभ की। इसी के साथ क्राँतिकारी प्रेमकृष्ण खन्ना के साथ मिलकर काकोरी में क्राँतिकारी आँदोलन स्मारक बनाने का अभियान चलाया। जो सफल हुआ। इसके देशभर के उन स्थानों पर क्राँतिकारियों की स्मृति में सार्वजनिक समारोह आयोजित किये जहाँ क्राँतिकारियों का बलिदान हुआ था। इसके अंतर्गत 17,18 एवं 19 दिसम्बर 1977 को लखनऊ में काकोरी अर्ध शताब्दी कार्यक्रम आयोजित किया। 27-28 फरवरी 1981 को प्रयागराज में क्राँतिकारी चन्द्रशेखर आजाद बलिदान अर्द्धशताब्दी समारोह तथा 22, 23 मार्च 1981 को क्राँतिकारी भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु के बलिदान की स्मृति में अर्द्धशताब्दी समारोह आयोजित किया।
जीवन के अन्तिम समय पुत्र के पास लखनऊ में रहे। यह समय कुछ अस्वस्थता में बीता। अंततः 94 वर्ष की आयु में 18 अक्टूबर 1996 को उन्होंने संसार से विदा ली।
क्राँतिकारी रामकृष्ण जी हिन्दी, मराठी, गुरुमुखी तथा अंग्रेजी के अच्छे जानकार थे। क्राँतिकारी आँदोलन पर उन्होंने अनेक लेख लिखे और विभिन्न स्थानों पर व्याख्यान दिये। एक पुस्तक “शहीदों की छाया” में शीर्षक से लिखी। इसका विमोचन 10 सितम्बर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने किया था। इसके अतिरिक्त एक अन्य पुस्तक “काकोरी शहीद स्मृति” का संपादन किया। स्वतन्त्र भारत में उन्होंने भारत सरकार से मिलकर स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानियों विशेषकर क्राँतिकारियों के परिवारों के सम्मान और सहायता के लिये कई योजनायें भी बनवायीं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)