#pramodjoshiप्रमोद जोशी।

2024 के लोकसभा चुनाव के सातवें और अंतिम चरण का मतदान पूरा होने के बाद एग्ज़िट पोल के नतीजे आ गए हैं। इन पंक्तियों के प्रकाशित होने तक हालांकि ज्यादातर पोल अपने निष्कर्षों को पेश कर ही रहे हैं, पर कमोबेश सभी की नजर में नरेंद्र मोदी सरकार सफलता की तिकड़ी लगाने जा रही है। इनके नतीजों में इण्डिया टीवी को छोड़कर किसी भी पोल ने एनडीए को 400 पार नहीं दिखाया है।

दूसरे ज्यादातर एग्ज़िट पोल ने दक्षिण भारत में बीजेपी के प्रवेश के दरवाजे खुलते दिखाए हैं। केरल में पहली बार और तमिलनाडु में भी बीजेपी को सीट मिलने की संभावनाएं देखी जा रही हैं। कर्नाटक में बीजेपी की स्थिति कमोबेश सुरक्षित है और आंध्र तथा तेलंगाना में उसकी स्थिति बेहतर होती दिखाई पड़ रही है। सबसे बड़ी बात, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी का दुर्ग ध्वस्त होता दिखाई पड़ रहा है।

कांग्रेस पार्टी ने पहले घोषित किया था कि उनके प्रतिनिधि इन एग्ज़िट पोल पर हो रही चर्चा में शामिल नहीं होंगे। अलबत्ता कई चैनलों पर कांग्रेस के प्रतिनिधि देखे गए। इनमें सुप्रिया श्रीनेत भी हैं। इसका मतलब है कि कांग्रेस ने अपने उस फैसले को वापस ले लिया। उधर समाजवादी पार्टी ने अपने कार्यकर्ताओं से कहा है कि वे एग्ज़िट पोल के झाँसे में न आएं। पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं, प्रत्याशियों और पदाधिकारियों को दिए एक संदेश में ‘भाजपा के झूठ और उसके एग्जिट पोल’ के खिलाफ सतर्क रहने को कहा है।

सपा प्रमुख ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “मैं आज आपसे एक बेहद ज़रूरी अपील कर रहा हूँ। आप सब कल वोटिंग के दौरान भी और वोटिंग के बाद के दिनों में भी, मतगणना खत्म होने और जीत का सर्टिफिकेट मिलने तक पूरी तरह से सजग, सतर्क, सचेत और सावधान रहिएगा और किसी भी प्रकार के भाजपाई बहकावे में न आइएगा।” अखिलेश ने भाजपा पर आरोप लगाते हुए कहा कि वह शनिवार को मतदान खत्म होते ही झूठ फैलाना शुरू कर देगी। उन्होंने लिखा कि दरअसल ये अपील हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि भाजपा वालों ने योजना बनाई है कि कल शाम को चुनाव खत्म होते ही, वे अपनी ‘मीडिया मंडली’ से विभिन्न चैनलों पर ये कहलवाना शुरू करेंगे कि भाजपा को लगभग 300 सीटों के आसपास बढ़त मिली हुई है, जो कि पूरी तरह से झूठ है। फिलहाल एग्ज़िट पोल ने अपनी दिशा दिखा दी है। अब यह 4 जून को ही स्पष्ट होगा कि अखिलेश यादव की बात सही है या नहीं।

हार नहीं मानेंगे

इन प्रतिक्रियाओं से अनुमान लगाया जा सकता है कि वे मान रहे हैं कि एग्ज़िट पोल में बीजेपी की विजय की घोषणा होगी। कांग्रेस और सपा या ‘इंडिया’ गठबंधन के दल मान रहे हैं कि चुनाव में उनकी जीत होने वाली है। सवाल है कि यदि  उनकी जीत हो रही है, तो एग्ज़िट पोल क्या उसका संकेत नहीं देंगे? लगता यह भी है कि यदि 4 जून के परिणाम ‘इंडिया’ की उम्मीदों के अनुरूप नहीं गए, तो ईवीएम और चुनाव-आयोग वगैरह पर आरोप लगेंगे।

चुनावी राजनीति के कारण भारत में मीडिया की साख काफी गिरी है, पर इतनी नहीं गिरी है कि आमतौर पर हम प्रचार और समाचार के भीतर का अंतर महसूस न कर सकें। कांग्रेस पार्टी ने पहले कुछ एंकरों को टार्गेट किया, फिर राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने सवाल पूछने वाले कुछ पत्रकारों का उपहास उड़ाना शुरू किया। इससे एक अलग किस्म का माहौल बना है, जो जल्द खत्म होने वाला नहीं है। परिणाम जो भी आएं, मीडिया को लेकर जो कड़वाहट पैदा हुई है, वह जाने वाली नहीं है।

तकनीक का सहारा

2015 में दिल्ली विधानसभा चुनाव के एक्ज़िट पोल इस लिहाज से तो सही थे कि उन्होंने आम आदमी पार्टी की जीत का एलान किया था, पर ऐसी जीत से वे भी बेखबर थे। दूसरी तरफ यह भी सही है कि अब पोल-संचालक ज्यादा सतर्क हैं। उनके पास अब बेहतर तकनीक और अनुभव है। वे आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस का सहारा ले रहे हैं। विश्लेषण करते वक्त वे राजनीति-शास्त्रियों, मानव-विज्ञानियों और दूसरे विशेषज्ञों की राय को भी शामिल करते हैं। उनसे चूक कहाँ हो सकती है, इसकी समझ भी उन्होंने विकसित की है। विश्लेषकों को लगता है कि इस बार के पोल सच के ज्यादा करीब होंगे। बावजूद इसके इन पोल पर गहरी निगाह डालें, तो कुछ पहेलियाँ अनसुलझी नजर आती हैं।

पश्चिमी देशों में लोकमत दर्ज करने का काम आमतौर मार्केट रिसर्च के दूसरे काम करने वाली एजेंसियाँ करती हैं। आमतौर पर उपभोक्ता सामग्री से जुड़ी धारणाओं का पता ये एजेंसियाँ लगाती हैं। सी-वोटर, एक्सिस माई इंडिया, सीएनएक्स भारत की कुछ प्रमुख एजेंसियाँ हैं। चुनाव के समय कई नई-नई कंपनियां भी खड़ी हो जाती हैं। इससे यह भी समझ में आता है कि उनका इस्तेमाल प्रचार के लिए होता है।

भारत में नील्सन जैसी एजेंसी भी सर्वे करती है। यह अमेरिकन कंपनी है, जो 100 से अधिक देशों में काम करती है। दुनिया भर में करीब 44,000 लोग इसके सर्वेक्षणों का काम करते हैं। इसकी दो प्रमुख सहायक कंपनियां हैं। एक, नील्सन मीडिया रिसर्च, जो टीवी रेटिंग का काम करती है और दूसरी एसी नील्सन , जो उपभोक्ता खरीदारी के रुझान और बॉक्स-ऑफिस डेटा तैयार करती है। भारत में कुछ एजेंसियाँ शुद्ध रूप में एग्ज़िट पोल ही करती है। चुनाव-पूर्व सर्वेक्षणों की तुलना में इन एग्ज़िट पोल की साख कुछ बेहतर है। इन पर पूरी तरह यकीन फिर भी नहीं किया जाता है, पर इनसे चुनाव-परिणामों की दिशा का अनुमान लग जाता है।

संकेत तो मिलेगा

बहरहाल आज एग्ज़िट पोल से काफी अनिश्चय दूर होंगे। उसके बाद सभी को 4 जून का इंतज़ार होगा, जब वोटों की गिनती की जाएगी। परिणाम आने के बाद मतदान से जुड़े कई प्रकार के विश्लेषण होंगे। यह काम सीएसडीएस-लोकनीति वाले करते रहे हैं, जिसे काफी हद तक मान्यता भी मिली है। हमारे एग्ज़िट पोल कितने सही साबित होते हैं, इसे समझने के लिए 2009, 2014 और 2019 के पोल और वास्तविक चुनाव-परिणामों का तुलना करने से भी कुछ बातें साफ होंगी।

एग्ज़िट का मतलब होता है बाहर निकलना। एग्ज़िट पोल का मतलब है मतदान करने के बाद बाहर आए मतदाता की राय। जब मतदाता चुनाव में वोट देकर बूथ से बाहर निकलता है तो उससे पूछा जाता है कि क्या आप बताना चाहेंगे कि आपने किस पार्टी या किस उम्मीदवार को वोट दिया है। मतदाताओं का सैंपल किस प्रकार का है और कितने मतदाताओं की राय दर्ज की गई, ऐसे अनेक सवाल इसकी पद्धति से जुड़े हैं। एक समय तक हमारे यहाँ मतदान के फौरन बाद एग्ज़िट पोल के परिणाम भी आते थे, पर बाद में चुनाव आयोग ने उनपर रोक लगा दी और अंततः तय हुआ कि मतदान पूरा तरह पूरा हो जाने के बाद इन पोल के परिणाम घोषित किए जाएं।

चुनाव आयोग का मक़सद है कि किसी भी तरह से चुनाव को प्रभावित नहीं होने दिया जाए। चुनाव आयोग समय-समय दिशानिर्देश भी जारी करता है। आम नियम यह है कि एग्ज़िट पोल के नतीजों को मतदान के दिन प्रसारित नहीं किया जा सकता है। चुनावी प्रक्रिया शुरू होने से लेकर आख़िरी चरण के मतदान ख़त्म होने के आधे घंटे बाद तक एग्ज़िट पोल को प्रसारित नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा एग्ज़िट पोल के परिणामों को मतदान के बाद प्रसारित करने के लिए, सर्वेक्षण-एजेंसी को चुनाव आयोग से अनुमति लेनी होती है।

Assembly Elections 2017 - Complete Counting Arrangements By Tuesday: Poll Panel

सही-गलत अनुमान

2004 के चुनाव में तमाम एग्ज़िट पोल में कहा गया कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार दोबारा जीतकर आएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 2019 के लोकसभा चुनाव के ज़्यादातर एग्ज़िट पोल में भाजपा और एनडीए को 300 से ज़्यादा सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया था। जबकि कांग्रेस नेतृत्व वाले यूपीए गठबंधन को 100 के आसपास सीटें मिलने की संभावना जताई गई थी। नतीजे एग्ज़िट पोल के अनुमानों के करीब ही थे। भाजपा को 303 सीटें मिली थीं और एनडीए को क़रीब 350 सीटें थीं। कांग्रेस को केवल 52 सीटें मिली थीं।

इसके विपरीत 2021 में पश्चिम बंगाल के चुनाव के समय भी एग्ज़िट पोल सही साबित नहीं हुए। ज़्यादातर एजेंसियों ने 292 सीटों वाली विधानसभा में बीजेपी को 100 से ज़्यादा सीटें दीं। एक एजेंसी ने तो बीजेपी को 174 सीटें तक मिलने का अनुमान लगाया। कुछ एजेंसियों ने टीएमसी को भी बढ़त दिखाई थी। कुछ ने कहा कि बीजेपी पहली बार पश्चिम बंगाल में सरकार बना सकती है। नतीजे आए तो टीएमसी की सत्ता में वापसी हुई। नवंबर-दिसंबर, 2022 में गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा के चुनावों के एग्ज़िट पोल एक दिशा को नहीं दिखा रहे थे। परिणाम जब आए, तब गुजरात में बीजेपी को अनुमान से ज्यादा बहुमत मिला और हिमाचल में कांग्रेस को जीत मिली, जिसकी संभावना कम पोल ने व्यक्त की थी। इतना होने के बावजूद यह माना जाता है कि एक्ज़िट पोल काफी हद तक सही होते हैं। अक्सर कुछ मीडिया हाउस इन पोलों का औसत निकाल कर अनुमान लगाते हैं।

पिछले तीन चुनाव

इंडियन एक्सप्रेस ने लोकसभा के पिछले तीन चुनावों के एक्ज़िट पोल पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिससे समझा जा सकता है कि ये एजेंसियाँ कब और कितनी सही साबित होती हैं और कब विफल होती हैं। 2009 में चार एजेंसियों का यूपीए के पक्ष में औसत 195 सीटों का और एनडीए के पक्ष में 185 सीटों का था। परिणाम जब आए, तब यूपीए को 262 और एनडीए को 158 सीटें मिलीं। 2014 के चुनाव में आठ एग्ज़िट पोल का अनुमान था कि एनडीए को 283 और यूपीए को 105 सीटें मिलेंगी। परिणाम आए, तो एनडीए को 336 और यूपीए को केवल 60 सीटें मिलीं। 2019 के चुनावों के दौरान 13 एजेंसियों का औसत अनुमान था कि एनडीए को 306 और यूपीए को 120 सीटें मिलेंगी। परिणाम आने पर एनडीए को 353 और यूपीए को 93 सीटें मिलीं। किसी एक एजेंसी को ही देखें, तो पाएंगे कि कभी वह सही साबित होती है और कभी नहीं भी साबित होती है।

(लेखक ’हिंदुस्तान’ दैनिक नई दिल्ली के पूर्व वरिष्ठ स्थानीय संपादक हैं)